स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती एफ० एच० लेगेट को लिखित (अक्टूबर, 1895)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती एफ० एच० लेगेट को लिखा गया पत्र)
द्वारा ई. टी. स्टर्डी,हाई व्यू,कैवरशम,
रीडिंग, इंग्लैण्ड,
अक्टूबर, १८९५
माँ,
आप अपने पुत्र को भूली तो न होंगी? आप अब कहाँ हैं? और टान्टी तथा बच्चे? आपके मन्दिर के हमारे साधुमना पुजारी का क्या समाचार है? जो जो इतनी शीघ्र ‘निर्वाण’ तो नहीं प्राप्त कर पायेगी, किन्तु उसका गम्भीर मौन एक बड़ी ‘समाधि’ जैसा जरूर लग रहा है।
क्या आप यात्रा कर रही हैं? मुझे इंग्लैण्ड बड़ा आनन्ददायक लग रहा है। मैं अपने मित्र के साथ ‘दर्शन’ पर ही गुजर कर रहा हूँ, खाने-पीने और धूम्रपान के लिए गुंजाइश बहुत कम रहने देता हूँ। द्वैतवाद, अद्वैतवाद आदि के अतिरिक्त हमें कुछ नहीं मिल रहा है।
होलिस्टर मेरी समझ में अपनी लम्बी पतलून में बड़ा साहसी हो गया है। अल्बर्टा जर्मन पढ़ रही है।
यहाँ के अंग्रेज बड़े सहृदय हैं। कुछ ऐंग्लो इंडियनों को छोड़कर वे काले आदमियों से बिल्कुल घृणा नहीं करते। न वे मुझे सड़कों पर ‘हूट’ ही करते हैं। कभी कभी मैं सोचने लगता हूँ कि कहीं मेरा चेहरा गोरा तो नहीं हो गया, किन्तु दर्पण सारे सत्य को प्रकट कर देता है। फिर भी लोग यहाँ बड़े सहृदय हैं।
फिर भी जो अंग्रेज स्त्री-पुरुष भारत से प्रेमभाव रखते हैं, वे स्वयं हिन्दुओं की अपेक्षा अधिक हिन्दू हैं। आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि पूर्णतः भारतीय रीति से मैं ढेर सारी सब्जियाँ पकवा लेता हूँ। जब अंग्रेज कोई काम हाथ में लेता है, तब वह उसकी गहराइयों में प्रवेश करता है। कल यहाँ पर एक उच्च अधिकारी प्रो० फ्रेजर से मिला। उन्होंने अपना आधा जीवन भारत में बिताया है और उन्होंने प्राचीन विचार और ज्ञान में इतना विचरण किया है कि वे भारत के परे किसी अन्य चीज की रत्ती भर चिंता नहीं करते! आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहाँ बहुत से विचारशील स्त्री-पुरुष सोचते हैं कि सामाजिक समस्या का एकमात्र हल हिन्दुओं की जाति-प्रथा है। आप कल्पना कर सकती हैं कि अपने मस्तिष्क में यह भाव रखते हुए वे समाजवादियों तथा दूसरे समाजवादी प्रजातंत्रवादियों से कितनी घृणा करते होंगे! फिर, यहाँ पुरुष – अत्यंत उच्च शिक्षाप्राप्त पुरुष, भारतीय चिंतन में अत्यधिक रूचि रखते हैं, किन्तु स्त्रियाँ बहुत कम। अमेरिका की अपेक्षा यहाँ स्त्रियों का क्षेत्र अधिक संकुचित है। अभी तक मेरा सब काम ठीक चल रहा है। भविष्य में जो प्रगति होगी, वह मैं आपके सूचित करूँगा।
पिता परिवार को, राजमाता को, (उपाधिरहित) ‘जो जो’ को और बच्चों को मेरा प्रेम।
सप्रेम और साशीष सदा आपका,
विवेकानन्द