“एक हज़ार जूते” – अकबर बीरबल की कहानी
“एक हज़ार जूते” कहानी से अकबर के हास-परिहास और बीरबल की चतुराई का अच्छा परिचय प्राप्त होता है। अन्य अकबर बीरबल की कहानियां पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – अकबर-बीरबल के किस्से।
एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबर को झिपाने की नीयत से उसके जूते गुम करा दिये। जब घर जाने का समय हुआ तो बीरबल अपने जूतों को तलाश करने लगा। उसने हर जगह जूतों को खोजा, पर उसे कहीं भी जूते नहीं मिले। अकबर चुपचाप यह तमाशा देखता रहा और मज़े लेता रहा।
आख़िर में जब वे न मिले तो बादशाह अकबर ने अनजान बनते हुए कहा, “अच्छी बात है। जूते नहीं मिल रहे हों, तो न सही। बीरबल को हमारी तरफ से जूते दिये जायँ।”
बीरबल इस बात में अकबर का उपहास समझ चुका था। वह नये जूतों को पहनकर ऊपरी प्रसन्नता दिखलाते हुए बोला, “हुज़ूर, बहुत-बहुत शुक्रिया। मैं आपको आशीर्वाद देता हूँ कि ईश्वर इसके बदले में आपको हर लोक-परलोक में सभी जगह ऐसे ही एक हज़ार जूते दे।”
बीरबल के ऐसे हास्यपूर्ण आशीर्वाद को सुनकर बादशाह अकबर खिलखिला कर हँस पड़ा। दरबारी लोग चकित होकर बीरबल का मुँह देखते रह गये। इस तरह एक बार फिर बीरबल की हाज़िरजवाबी ने अकबर का दिल जीत लिया था।