कौन-कौन क्या-क्या नहीं कर सकता – अकबर बीरबल स्टोरी
“कौन-कौन क्या-क्या नहीं कर सकता” अकबर-बीरबल की मज़ेदार स्टोरी है। इसमें अकबर की पहेली का जवाब बीरबल जिस सूझबूझ से देता है, वह पढ़ने लायक़ है। अकबर और बीरबल की दूसरी स्टोरी पढ़ने के लिए यहाँ जाएँ – अकबर-बीरबल की कहानियाँ
एक दिन का यह समाचार है कि अकबर बादशाह दरबार में बैठे हुए सरकारी कामों को दत्तचित्त होकर देख रहे थे। जब वे उन कामों से निवृत्त हुए तो उन्हें गपाष्टक (गप्पें मारना) करने की सूझी और कुछ मुसाहिबों को साथ में लेकर आकाश पाताल की बात करने लगे।
कोई किसी विषय को लेकर विवेचन करता, तो कोई किसी विषय को। इसी बीच बादशाह अकबर को पुराने कवियों का कहा हुआ एक दोहा याद आया-
क्या नहिं अबला करि सकै, क्या नहिं सिन्धु समाय।
क्या नहिं पावक जर सकै, क्या काल नहिं खाय॥
वे दर्बारियों से उपरोक्त दोहे का उत्तर पूछ बैठे कि इनमें कौन-कौन क्या-क्या नहीं कर सकता, पर अफसोस कि एक दरबारी भी उत्तर देने को समर्थ न हुआ। तब बादशाह अकबर ने दीवानखाने से बीरबल को बुलवाया। जब वह आया तो उससे उसी दोहे का उत्तर पूछा।
बीरबल अपनी बुद्धि से ऐसे-ऐसे चुटकुलों को अँगुली पर नचाया करता था, वह तुरंत बोला-
पुत्र न अबला कर सके, यश नहिं सिन्धु समाय।
धर्म अग्नि में नहिं जलै, नाम काल नहिं खाय॥
बीरबल के ऐसे सटीक उत्तर को सुनकर बादशाह बहुत सन्तुष्ट हुए और बीरबल को कई बहुमूल्य आभूषण पारितोषिक में दिया। सभासद बीरबल का मुख निहारते रह गये। उन लोगों ने बीरबल के बुद्धि की भूरि-भूरि प्रशंसा की।