सूरह यासीन की तिलावत – यासीन (सूरह 36)
सूरह यासीन की तिलावत से पहले इस अध्याय के बारे में कुछ विशेष बातें जानना ज़रूरी है। इस सूरह की आयतें मक्का में अवतरित हुई थीं और इसमें आयतों की संख्या 83 है। कहते हैं कि सूरह यासीन की तिलावत (Surah Yasin Ki Tilawat) कुरान के हृदय या केंद्र को याद करने के समान है। इससे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। कुरान के बाक़ी अध्याय पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – कुरान शरीफ की तिलावत। सूरह यासीन हिंदी में (Surah Yaseen in Hindi) पढ़ें–
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
या० सीन०। क़सम है बाहिक्मत (तत्ज्ञानपूर्ण) कुरआन की। बेशक तुम रसूलों में से हो। निहायत सीधे रास्ते पर। यह ख़ुदाए अज़ीज़ (प्रभुत्वशाली) व रहीम (दयावान) की तरफ़ से उतारा गया है। ताकि तुम उन लोगों को डरा दो जिनके अगलों को नहीं डराया गया। पस वे बेख़बर हैं। (1-6)
उनमें से अक्सर लोगों पर बात साबित हो चुकी है तो वे ईमान नहीं लाएंगे। हमने उनकी गर्दनों में तौक़ डाल दिए हैं सो वे ठोडियों तक हैं, पस उनके सिर ऊंचे हो रहे हैं। और हमने एक आड़ उनके सामने कर दी है और एक आड़ उनके पीछे कर दी। फिर हमने उन्हें ढांक दिया तो उन्हें दिखाई नहीं देता। और उनके लिए यकसां (समान) है, तुम उन्हें डराओ या न डराओ, वे ईमान नहीं लाएंगे। तुम तो सिर्फ़ उस शख़्स को डरा सकते हो जो नसीहत पर चले और ख़ुदा से डरे, बिना देखे। तो ऐसे शख्स को माफ़ी की और बाइज़्ज़त सवाब की बशारत (शुभ सूचना) दे दो। (7-11)
यक़ीनन हम मुर्दों को ज़िंदा करेंगे। और हम लिख रहे हैं जो उन्होंने आगे भेजा और जो उन्होंने पीछे छोड़ा। और हर चीज़ हमने दर्ज कर ली है एक खुली किताब में और उन्हें बस्ती वालों की मिसाल सुनाओ, जबकि उसमें रसूल आए। (12-13)
जबकि हमने उनके पास दो रसूल भेजे तो उन्होंने दोनों को झुठलाया, फिर हमने तीसरे से उनकी ताईद की, उन्होंने कहा कि हम तुम्हारे पास भेजे गए हैं। लोगों ने कहा कि तुम तो हमारे ही जैसे बशर (इंसान) हो और रहमान ने कोई चीज़ नहीं उतारी है, तुम महज़ झूठ बोलते हो। उन्होंने कहा कि हमारा रब जानता है कि हम बेशक तुम्हारे पास भेजे गए हैं। और हमारे ज़िम्मे तो सिर्फ़ वाज़ेह तौर पर पहुंचा देना है। लोगों ने कहा कि हम तो तुम्हें मनहूस समझते हैं, अगर तुम लोग बाज़ न आए तो हम तुम्हें संगसार करेंगे और तुम्हें हमारी तरफ़ से सख़्त तकलीफ़ पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि तुम्हारी नहूसत तुम्हारे साथ है, क्या इतनी बात पर कि तुम्हें नसीहत की गई। बल्कि तुम हद से निकल जाने वाले लोग हो। (14-19)
और शहर के दूर मक़ाम से एक शख्स दौड़ता हुआ आया। उसने कहा, ऐ मेरी क़ौम रसूलों की पैरवी करो। उन लोगों की पैरवी करो जो तुमसे कोई बदला नहीं मांगते। और वे ठीक रास्ते पर हैं। (20-21)
और मैं क्यों न इबादत करूं उस ज़ात की जिसने मुझे पैदा किया और उसी की तरफ़ तुम लौटाए जाओगे। क्या मैं उसके सिवा दूसरों को माबूद (पूज्य) बनाऊं। अगर रहमान मुझे कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहे तो उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम न आएगी और न वे मुझे छुड़ा सकेंगे। बेशक उस वक़्त मैं एक खुली हुई गुमराही में हूंगा। मैं तुम्हारे रब पर ईमान लाया तो तुम भी मेरी बात सुन लो। इर्शाद हुआ कि जन्नत में दाख़िल हो जाओ। उसने कहा काश मेरी क़ौम जानती कि मेरे रब ने मुझे बख्श दिया और मुझे इज़्ज़तदारों में शामिल कर दिया। (22-27)
और इसके बाद उसकी क़ौम पर हमने आसमान से कोई फ़ौज नहीं उतारी, और हम फ़ौज नहीं उतारा करते। बस एक धमाका हुआ तो यकायक वे सब बुझकर रह गए। अफ़सोस है बंदों के ऊपर, जो रसूल भी उनके पास आया वे उसका मज़ाक़ ही उड़ाते रहे। क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने उनसे पहले कितनी ही क़ौमें हलाक कर दीं। अब वे उनकी तरफ़ वापस आने वाली नहीं। और उनमें कोई ऐसा नहीं जो इकट्ठा होकर हमारे पास हाज़िर न किया जाए। (28-32)
और एक निशानी उनके लिए मुर्दा ज़मीन है। उसे हमने ज़िंदा किया और उससे हमने ग़ल्ला निकाला। पस वे उसमें से खाते हैं। और उसमें हमने खजूर के और अंगूर के बाग़ बनाए। और उसमें हमने चशमे (स्रोत) जारी किए। ताकि लोग उसके फल खाएं। और उसे उनके हाथों ने नहीं बनाया। तो क्या वे शुक्र नहीं करते। पाक है वह ज़ात जिसने सब चीज़ के जोड़े बनाए, उनमें से भी जिन्हें ज़मीन उगाती है और ख़ुद उनके अंदर से भी। और उनमें से भी जिन्हें वे नहीं जानते। (33-36)
और एक निशानी उनके लिए रात है, हम उससे दिन को खींच लेते हैं तो वे अंधेरे में रह जाते हैं। और सूरज, वह अपनी ठहरी हुई राह पर चलता रहता है। यह अज़ीज़ (प्रभुत्वशशाली) व अलीम ज्ञानवान) का बांधा हुआ अंदाज़ा है। और चांद के लिए हमने मंज़िलें मुक़र्रर कर दीं, यहां तक कि वह ऐसा रह जाता है जैसे खजूर की पुरानी शाख़। न सूरज के वश में है कि वह चांद को पकड़ ले और न रात दिन से पहले आ सकती है। और सब एक-एक दायरे में तैर रहे हैं। (37-40)
और एक निशानी उनके लिए यह है कि हमने उनकी नस्ल को भरी हुई कश्ती में सवार किया। और हमने उनके लिए उसी के मानिंद और चीज़ें पैदा कीं जिन पर वे सवार होते हैं। और अगर हम चाहें तो उन्हें ग़र्क़ कर दें, फिर न कोई उनकी फ़रयाद सुनने वाला हो और न वे बचाए जा सकें। मगर यह हमारी रहमत है और उन्हें एक निर्धारित वक़्त तक फ़ायदा देना है। (41-44)
और जब उनसे कहा जाता है कि उससे डरो जो तुम्हारे आगे है और जो तुम्हारे पीछे है ताकि तुम पर रहम किया जाए। और उनके रब की निशानियों में से कोई निशानी भी उनके पास ऐसी नहीं आती जिसकी वे उपेक्षा न करते हों। और जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह ने जो कुछ तुम्हें दिया है उसमें से ख़र्च करो तो जिन लोगों ने इंकार किया वे ईमान लाने वालों से कहते हैं कि क्या हम ऐसे लोगों को खिलाएं जिन्हें अल्लाह चाहता तो वह उन्हें खिला देता। तुम लोग तो खुली गुमराही में हो। (45-47)
और वे कहते हैं कि यह वादा कब होगा अगर तुम सच्चे हो। ये लोग बस एक चिंघाड़ की राह देख रहे हैं जो उन्हें आ पकड़ेगी और वे झगड़ते ही रह जाएंगे। फिर वे न कोई वसीयत कर पाएंगे और न अपने लोगों की तरफ़ लौट सकेंगे। और सूर फूंका जाएगा तो यकायक वे क़ब्रों से अपने रब की तरफ़ चल पड़ेंगे। वे कहेंगे, हाय हमारी बदबख़्ती, हमारी क़ब्र से किसने हमें उठाया- यह वही है जिसका रहमान ने वादा किया था और पैग़म्बरों ने सच कहा था। बस वह एक चिंघाड़ होगी, फिर यकायक सब जमा होकर हमारे पास हाज़िर कर दिए जाएंगे। (48-53)
पस आज के दिन किसी शख्स पर कोई ज़ुल्म न होगा। और तुम्हें वही बदला मिलेगा जो तुम करते थे। बेशक जन्नत के लोग आज अपने मशग़लों में ख़ुश होंगे। और उनकी बीवियां, सायों में मसहरियों पर तकिया लगाए हुए बैठे होंगे। उनके लिए वहां मेवे होंगे और उनके लिए वह सब कुछ होगा जो वे मांगेंगे। उन्हें सलाम कहलाया जाएगा मेहरबान रब की तरफ़ से। (54-58)
और ऐ मुजरिमो, आज तुम अलग हो जाओ। ऐ औलादे आदम, क्या मैंने तुम्हें ताकीद नहीं कर दी थी कि तुम शैतान की इबादत न करना। बेशक वह तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है। और यह कि तुम मेरी ही इबादत करना, यही सीधा रास्ता है। और उसने तुम में से बहुत से गिरोहों को गुमराह कर दिया। तो क्या तुम समझते नहीं थे। यह है जहन्नम जिसका तुमसे वादा किया जाता था। अब अपने काफ़ के बदले में इसमें दाख़िल हो जाओ। आज हम उनके मुंह पर मुहर लगा देंगे और उनके हाथ हमसे बोलेंगे और उनके पांव गवाही देंगे जो कुछ ये लोग करते थे। (59-65)
और अगर हम चाहते तो उनकी आंखों को मिटा देते। फिर वे रास्ते की तरफ़ दौड़ते तो उन्हें कहां नज़र आता। और अगर हम चाहते तो उनकी जगह ही पर उनकी सूरतें बदल देते तो वे न आगे बढ़ सकते और न पीछे लौट सकते। और हम जिसकी उम्र ज़्यादा कर देते हैं तो उसे उसकी पैदाइश में पीछे लौटा देते हैं, तो क्या वे समझते नहीं। (66-68)
और हमने उसे शेअर (काव्य) नहीं सिखाया और न यह उसके लायक़ है। यह तो सिर्फ़ एक नसीहत है और वाज़ेह (सुस्पष्ट) कुरआन है ताकि वह उस शख्स को ख़बरदार कर दे जो ज़िंदा हो और इंकार करने वालों पर हुज्जत क़ायम हो जाए। (69-70)
क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने अपने हाथ की बनाई हुई चीज़ों में से उनके लिए मवेशी पैदा किए, तो वे उनके मालिक हैं। और हमने उन्हें उनका ताबेअ (अधीन) बना दिया, तो उनमें से कोई उनकी सवारी है और किसी को वे खाते हैं। और उनके लिए उनमें फ़ायदे हैं और पीने की चीज़ें भी, तो क्या वे शुक्र नहीं करते | और उन्होंने अल्लाह के सिवा दूसरे माबूद (पूज्य) बनाए कि शायद उनकी मदद की जाए। वे उनकी मदद न कर सकेंगे, और वे उनकी फ़ौज होकर हाज़िर किए जाएंगे। तो उनकी बात तुम्हें गमगीन न करे। हम जानते हैं जो कुछ वे छुपाते हैं और जो कुछ वे ज़ाहिर करते हैं। (71-76)
क्या इंसान ने नहीं देखा कि हमने उसे एक बूंद से पैदा किया, फिर वह सरीह झगड़ालू बन गया। और वह हम पर मिसाल चसपां करता है और वह अपनी पैदाइश को भूल गया। वह कहता है कि हड्डियों को कौन ज़िंदा करेगा जबकि वे बोसीदा हो गई हों। कहो, उन्हें वही ज़िंदा करेगा जिसने उन्हें पहली मर्तबा पैदा किया। और वह सब तरह पैदा करना जानता है। वही है जिसने तुम्हारे लिए हरे भरे दरख्त से आग पैदा कर दी। फिर तुम उससे आग जलाते हो। क्या जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया वह इस पर क़ादिर नहीं कि उन जैसों को पैदा कर दे। हां वह क़ादिर है। और वही है असल पैदा करने वाला, जानने वाला। उसका मामला तो बस यह है कि जब वह किसी चीज़ का इरादा करता है तो कहता है कि हो जा तो वह हो जाती है। पस पाक है वह ज़ात जिसके हाथ में हर चीज़ का इख़्तियार है और उसी की तरफ़ तुम लौटाए जाओगे। (77-83)