गुरु नानक का जीवन परिचय
गुरु नानक देव जी का जन्म पंजाब प्रान्त के तलवंडी नामक ग्राम में विक्रम सम्वत 1526 की वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। यह स्थान अब ननकाना साहब कहा जाता है। इनके पिता का नाम कालचन्द पटवारी और माता का नाम श्रीमती तृप्ता था।
गुरु नानकदेव बचपन से ही शान्त स्वभाव के थे। इन्हें एकान्त में बैठना अधिक अच्छा लगता था। इनके पिता जी ने इन्हें बचपन में गोपाल पण्डित के पास हिन्दी और मौलवी कुतुबुद्दीन के पास फारसी पढ़ने के लिये भेजा, किन्तु उन दोनों गुरुओं को अपने आत्मिक बल द्वारा इन्होंने अपना शिष्य बना लिया।
एक बार इनके पिता ने इन्हें कुछ रुपये देकर बाजार से कोई सामान खरीदने के लिये भेजा। रास्ते में इन्हें कुछ साधु-संत मिले, सारा रुपया इन्होंने संतों के सत्कार में लगा दिया। घर लौटने पर इन्होंने अपने पिता से कहा कि जैसा सौदा आज मैंने खरीदा है, वैसा सौदा कोई हो नहीं सकता। मैंने आपके रुपये से संत-सेवा का अक्षय फल प्राप्त किया है। इसपर इनके पिता ने इन्हें काफी मारा-पीटा अपने पिता के इस व्यवहार पर इनकी बहन नानकी को बड़ा दुःख हुआ। वह इन्हें साथ लेकर अपनी ससुराल सुल्तानपुर चली गयीं।
गुरु नानक का विवाह विक्रम सम्वत् 1544 में मूलचन्द की पुत्री सुलक्षणा देवी से हुआ, जिनसे इन्हें श्रीचन्द्र और लक्ष्मीचन्द नामक दो पुत्र हुए। श्रीचन्द्र ने संन्यास लेकर उदासीन नामक सम्प्रदाय चलाया।
गुरु नानक का जीवन परिचय बताता है कि विक्रम सम्वत् 1554 में ये गृहत्याग करके देशाटन के लिये चल पड़े। इनके साथ इनके प्रिय सेवक मर्दाना भी थे। इस यात्रा में इन्होंने बहुत भ्रमण किया तथा अपने पवित्र उपदेश से लोगों को सन्मार्ग पर लगाया।
इन्होंने दक्षिण में श्रीलंका और उत्तर में मक्का-मदीना तक की प्रसिद्ध यात्राएँ कीं। इनके उपदेश देने का ढंग विचित्र तथा नवीन था। इनके उपदेशों का असर तत्काल पड़ता था। कहते हैं कि मक्का में पहुँचकर ये काबे की ओर पैर करके सो गये। जब काजी ने इन्हें काबे की ओर पैर करके सोते देखा, तब काफी क्रुद्ध हुआ। इन्होंने काजी से कहा कि जिधर अल्लाह का घर न हो, उधर ही मेरा पैर कर दो। काजी ने इनका पैर जिधर घुमाया, काबा भी उधर ही घूम गया। इनका यह चमत्कार देखकर काजी इनसे बहुत प्रभावित हुआ और इनका भक्त बन गया। इसी यात्रा काल में गुरु नानक देव जी का परिचय प्रसिद्ध सूफी संत फरीद से हुआ और दोनों महापुरुषों में प्रगाढ़ मैत्री हो गयी।
गुरु नानक हिन्दू-मुसलमान दोनों को समान मानकर उपदेश करते थे। परमात्मा एक हैं और उन्हें सभी प्राप्त कर सकते हैं, यही इनके उपदेश का सार था। अपने प्रिय शिष्य लहिड़ा को इन्होंने अपना उत्तराधिकारी बनाया। यही बाद में गुरु अंगद के नाम से प्रसिद्ध हुए। विक्रम सम्वत् 1596 में गुरु नानकदेव जी ने अपनी लौकिक लीला का संवरण किया आज भी इनके द्वारा बताये मार्ग से अनेक लोग अपने आत्मकल्याण का पथ प्रशस्त कर रहे हैं।
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प्रश्नोत्तरी
नानकदेव जी जन्म पंजाब प्रान्त के तलवंडी नामक ग्राम में विक्रम सम्वत 1526 की वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। इस जगह को अब ननकाना साहब कहा जाता है।
नानक देव सूफ़ी संत फ़रीद के समकालीन थे।
इनके पिता का नाम कालचन्द पटवारी और माता का नाम श्रीमती तृप्ता था।