धर्म

सूरह आराफ – अल-आराफ़ (सूरह 7)

सूरह आराफ कुरान शरीफ का सातवाँ सूरा है। यह सूरह मक्की है और इसमें 206 आयतें हैं। कहते हैं कि जो सूरह आराफ को लिखकर शरीर पर धारण कर लेता है वह दुश्मनों और जंगली जानवरों से सुरक्षित रहता है। गुलाब-जल और जाफरान से लिखकर सूरह आराफ को गले में पहनने वाले इंसान को कोई भी खतरनाक जानवर छू भी नहीं सकता है। सूरह आराफ को महीने में एक दिन पढ़ने वाले व्यक्ति को कयामत के दिन कोई डर नहीं रहता है। अल आराफ की पैंतीसवीं आयत में है कि ऐसे इंसान को कयामत के दिन कोई डर नहीं सताएगा और उसे कोई दुःख होगा। सूरह आराफ पढ़ने वाले इंसान और शैतान के बीच एक पर्दा आ जाता है। पढ़ें सूरह आराफ।

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

अलिफ़० लाम० मीम० साद०। यह किताब है जो तुम्हारी तरफ़ उतारी गई है। पस तुम्हारा दिल इस वजह से तंग न हो ताकि तुम इसके ज़रिए से लोगों को डराओ, और वह ईमान वालों के लिए याददिहानी है। जो उतरा है तुम्हारी जानिब तुम्हारे रब की तरफ़ से उसकी पैरवी करो और उसके सिवा दूसरे सरपरस्तों की पैरवी न करो। तुम बहुत कम नसीहत मानते हो। और कितनी ही बस्तियां हैं जिन्हें हमने हलाक कर दिया। उन पर हमारा अज़ाब रात को आ पहुंचा या दोपहर को जबकि वे आराम कर रहे थे। फिर जब हमारा अज़ाब उन पर आया तो वे इसके सिवा कुछ न कह सके कि वाक़ई हम ज़ालिम थे। पस हमें ज़रूर पूछना है उन लोगों से जिनके पास रसूल भेजे गए और हमें ज़रूरी पूछना है रसूलों से। फिर हम उनके सामने सब बयान कर देंगे इल्म के साथ और हम कहीं ग़ायब न थे। उस दिन वज़नदार सिर्फ़ हक़ होगा। पस जिनकी तोलें भारी होंगी वही लोग कामयाब ठहरेंगे और जिनकी तौलें हल्की होंगी वही लोग हैं जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला, क्योंकि वे हमारी निशानियों के साथ नाइंसाफ़ी करते थे। (1-9)

और हमने तुम्हें ज़मीन मे जगह दी और हमने तुम्हारे लिए उसमें ज़िंदगी का सामान फ़राहम किया, मगर तुम बहुत कम शुक्र करते हो। और हमने तुम्हें पैदा किया, फिर हमने तुम्हारी सूरत बनाई। फिर फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सज्दा करो। पस उन्होंने सज्दा किया। मगर इब्लीस (शैतान) सज्दा करने वालों में शामिल नहीं हुआ। ख़ुदा ने कहा कि तुझे किस चीज़ ने सज्दा करने से रोका जबकि मैंने तुझे हुक्म दिया था। इब्लीस ने कहा कि मैं इससे बेहतर हूं। तूने मुझे आग से बनाया है और आदम को मिट्टी से। ख़ुदा ने कहा कि तू उतर यहां से। तुझे यह हक़ नहीं कि तू इसमें घमंड करे। पस निकल जा, यक़रीनन तू ज़लील है। इब्लीस ने कहा कि उस दिन तक के लिए तू मुझे मोहलत दे जबकि सब लोग उठाए जाएंगे। ख़ुदा ने कहा कि तुझे मोहलत दी गई। इब्लीस ने कहा कि चूंकि तूने मुझे गुमराह किया है, मैं भी लोगों के लिए तेरी सीधी राह पर बैढूंगा। फिर उन पर आऊंगा उनके आगे से और उनके पीछे से और उनके दाएं से और उनके बाएं से, और तू उनमें से अक्सर को शुक्रगुज़ार न पाएगा। ख़ुदा ने कहा कि निकल यहां से ज़लील और ठुकराया हुआ। जो कोई उनमें से तेरी राह पर चलेगा तो मैं तुम सबसे जहन्नम को भर दूंगा। (10-18)

और ऐ आदम, तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत में रहो और खाओ जहां से चाहो। मगर उस दरख़्त के पास न जाना वर्ना तुम नुक़्सान उठाने वालों में से हो जाओगे। फिर शैतान ने दोनों को बहकाया ताकि वह खोल दे उनकी वह शर्म की जगहें जो उनसे छुपाई गई थीं। उसने उनसे कहा कि तुम्हारे रब ने तुम्हें इस दरख्त से सिर्फ़ इसलिए रोका है कि कहीं तुम दोनों फ़रिश्ते न बन जाओ या तुम्हें हमेशा की ज़िंदगी हासिल हो जाए। और उसने क़सम खाकर कहा कि मैं तुम दोनों का ख़ैरख्वाह (हितैषी) हूं। पस मायल कर लिया उन्हें फ़रेब से। फिर जब दोनों ने दरख्त का फल चखा तो उनकी शर्मगाहें उन पर खुल गईं। और वे अपने को बाग़ के पत्तों से ढांकने लगे और उनके रब ने उन्हें पुकारा कि क्या मैंने तुम्हें उस दरख्त (वृक्ष) से मना नहीं किया था और यह नहीं कहा था कि शैतान तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है। उन्होंने कहा, ऐ हमारे रब हमने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया और अगर तू हमें माफ़ न करे और हम पर रहम न करे तो हम घाटा उठाने वालों में से हो जाएंगे। ख़ुदा ने कहा, उतरो, तुम एक दूसरे के दुश्मन होगे, और तुम्हारे लिए ज़मीन में एक ख़ास मुदृदत तक ठहरना और नफ़ा उठाना है। ख़ुदा ने कहा, उसी में तुम जियोगे और उसी में तुम मरोगे और उसी से तुम निकाले जाओगे। (19-25)

ऐ बनी आदम, हमने तुम पर लिबास उतारा जो तुम्हारे बदन के क़ाबिले शर्म हिस्सों को ढांके और ज़ीनत (साज-सज्जा) भी। और तक़वा (ईश-परायणता) का लिबास इससे भी बेहतर है। यह अल्लाह की निशानियों में से है ताकि लोग गौर करें। ऐ आदमी की औलाद, शैतान तुम्हें बहका न दे जिस तरह उसने तुम्हारे मां बाप को जन्नत से निकलवा दिया, उसने उनके लिबास उतरवाए ताकि उन्हें उनके सामने बेपर्दा कर दे। वह और उसके साथी तुम्हें ऐसी जगह से देखते हैं जहां से तुम उन्हें नहीं देखते | हमने शैतानों को उन लोगों का दोस्त बना दिया है जो ईमान नहीं लाते। (26-27)

और जब वे कोई फ़ोहश (खुली बुराई) करते हैं तो कहते हैं कि हमने अपने बाप दादा को इसी तरह करते हुए पाया है और ख़ुदा ने हमें इसी का हुक्म दिया है। कहो, अल्लाह कभी बुरे काम का हुक्म नहीं देता। क्या तुम अल्लाह के ज़िम्मे वह बात लगाते हो जिसका तुम्हें कोई इल्म नहीं। कहो कि मेरे रब ने क़िस्त (न्याय) का हुक्म दिया है और यह कि हर नमाज़ के वक़्त अपना रुख़ सीधा रखो। और उसी को पुकारो उसी के लिए दीन को ख़ालिस करते हुए। जिस तरह उसने तुम्हें पहले पैदा किया उसी तरह तुम दूसरी बार भी पैदा होगे। एक गिरोह को उसने राह दिखा दी और एक गिरोह है कि उस पर गुमराही साबित हो चुकी। उन्होंने अल्लाह को छोड़कर शैतानों को अपना रफ़ीक़ बनाया और गुमान यह रखते हैं कि वे हिदायत पर हैं। (28-30)

ऐ औलादे आदम, हर नमाज़ के वक़्त अपना लिबास पहनो और खाओ पियो। और हद से तजावुज़ (सीमा उल्लंघन) न करो | बेशक अल्लाह हद से तजावुज़ करने वालों को पसंद नहीं करता। कहो अल्लाह की ज़ीनत (साज-सज्जा) को किसने हराम किया जो उसने अपने बंदों के लिए निकाला था और खाने की पाक चीज़ों को। कहो वे दुनिया की ज़िंदगी में भी ईमान वालों के लिए हैं और आख़िरत (परलोक) में तो वे ख़ास उन्हीं के लिए होंगी। इसी तरह हम अपनी आयतें खोल कर बयान करते हैं उन लोगों के लिए जो जानना चाहें। कहो मेरे रब ने तो बस फ़ोहश (अश्लील) बातों को हराम ठहराया है वे खुली हों या छुपी। और गुनाह को और नाहक़ की ज़्यादती को और इस बात को कि तुम अल्लाह के साथ किसी को शरीक करो जिसकी उसने कोई दलील नहीं उतारी और यह कि तुम अल्लाह के ज़िम्मे ऐसी बात लगाओ जिसका तुम इल्म नहीं रखते। (31-33)

और हर क़ौम के लिए एक मुक़र्ररह मुदृदत है। फिर जब उनकी मुदृदत आ जाएगी तो वे न एक साअत (क्षण) पीछे हट सकेंगे और न आगे बढ़ सकेंगे। ऐ बनी आदम, अगर तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल आएं जो तुम्हें मेरी आयतें सुनाएं तो जो शख्स डरा और जिसने इस्लाह कर ली उनके लिए न कोई ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मगीन होंगे। और जो लोग मेरी आयतों को झुठलाएं और उनसे तकब्बुर करें वही लोग दोज़ख़ वाले हैं। वे उसमें हमेशा रहेंगे। फिर उससे ज़्यादा ज़ालिम

कौन होगा जो अल्लाह पर बोहतान बांधे या उसकी निशानियों को झुठलाए उनके नसीब का जो हिस्सा लिखा हुआ है वे उन्हें मिलकर रहेगा। यहां तक कि जब हमारे भेजे हुए उनकी जान लेने के लिए उनके पास पहुंचेंगे तो उनसे पूछेंगे कि अल्लाह के सिवा जिन्हें तुम पुकारते थे कहां हैं। वे कहेंगे कि वे सब हमसे खोए गए। और वे अपने ऊपर इक़रार करेंगे कि बेशक वे इंकार करने वाले थे। (34-37)

ख़ुदा कहेगा, दाख़िल हो जाओ आग में जिन्‍नों और इंसानों के उन गिरोहों के साथ जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं। जब भी कोई गिरोह जहन्नम में दाख़िल होगा वह अपने साथी गिरोह पर लानत करेगा। यहां तक कि जब वे उसमें जमा हो जाएंगे तो उनके पिछले अपने अगले वालों के बारे में कहेंगे, ऐ हमारे रब, यही लोग हैं जिन्होंने हमें गुमराह किया पस तू उन्हें आग का दोहरा अज़ाब दे। ख़ुदा कहेगा कि सबके लिए दोहरा है मगर तुम नहीं जानते। और उनके अगले अपने पिछलों से कहेंगे, तुम्हें हम पर कोई फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) हासिल नहीं। पस अपनी कमाई के नतीजे में अज़ाब का मज़ा चखो। (38-39)

बेशक जिन लोगों ने हमारी निशानियों को झुठलाया और उनसे तकब्बुर (घमंड) किया उनके लिए आसमान के दरवाज़े नहीं खोले जाएंगे और वे जन्नत में दाख़िल न होंगे जब तक कि ऊंट सूई के नाके में न घुस जाए। और हम मुजरिमों को ऐसी ही सज़ा देते हैं। उनके लिए दोज़्ख का बिछोना होगा और उनके ऊपर उसी का ओढ़ना होगा। और हम ज़ालिमों को इसी तरह सज़ा देते हैं। और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए– हम किसी शख्स पर उसकी ताक़त के मुवाफ़िक़ ही बोझ डालते हैं- यही लोग जन्नत वाले हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे। और उनके सीने की हर ख़लिश (दुराव) को हम निकाल देंगे। उनके नीचे नहरें बह रही होंगी और वे कहेंगे कि सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है जिसने हमें यहां तक पहुंचाया और हम राह पाने वाले न थे अगर अल्लाह हमें हिदायत न करता। हमारे रब के रसूल सच्ची बात लेकर आए थे। और आवाज़ आएगी कि यह जन्नत है जिसके तुम वारिस ठहराए गए हो अपने आमाल के बदले। (40-43)

और जन्नत वाले दोज़ख़ वालों को पुकारेंगे कि हमसे हमारे रब ने जो वादा किया था हमने उसे सच्चा पाया, कया तुमने भी अपने रब के वादे को सच्चा पाया। वे कहेंगे हां। फिर एक पुकारने वाला दोनों के दर्मियान पुकारेगा कि अल्लाह की लानत हो ज़ालिमों पर। जो अल्लाह की राह से रोकते थे और उसमें कजी (टेढ़) ढूंढते थे और वे आख़िरत (परलोक) के मुंकिर थे। और दोनों के दर्मियान एक आड़ होगी। और आराफ़ (जन्नत और जहन्नम के बीच की जगह) के ऊपर कुछ लोग होंगे जो हर एक को उनकी अलामत से पहचानेंगे और वे जन्नत वालों को पुकार 

कर कहेंगे कि तुम पर सलामती हो, वे अभी जन्नत में दाख़िल नहीं हुए होंगे मगर वे उम्मीदवार होंगे। और जब दोज़ख़ वालों की तरफ़ उनकी निगाह फेरी जाएगी तो वे कहेंगे कि ऐ हमारे रब हमें शामिल न करना इन ज़ालिम लोगों के साथ। और आराफ़ वाले उन लोगों को पुकारेंगे जिन्हें वे उनकी अलामत से पहचानते होंगे। वे कहेंगे कि तुम्हारे काम न आई तुम्हारी जमाअत और तुम्हारा अपने को बड़ा समझना। क्या यही वे लोग हैं जिनके बारे में तुम क़मम खाकर कहते थे कि उन्हें कभी अल्लाह की रहमत न पहुंचेगी। जन्नत में दाखिल हो जाओ, अब न तुम पर कोई डर है और न तुम ग़मगीन होगे। (44-49)

और दोज़ख़ के लोग जन्नत वालों को पुकारेंगे कि कुछ पानी हम पर डाल दो या उसमें से जो अल्लाह ने तुम्हें खाने को दे रखा है। वे कहेंगे कि अल्लाह ने इन दोनों चीज़ों को मुंकिरों के लिए हराम कर दिया है। वे जिन्होंने अपने दीन को खेल और तमाशा बना लिया था और जिन्हें दुनिया की ज़िंदगी ने धोखे में डाल रखा था। पस आज हम उन्हें भुला देंगे जिस तरह उन्होंने अपने इस दिन की मुलाक़ात को भुला दिया था और जैसा कि वे हमारी निशानियों का इंकार करते रहे। और हम उन लोगों के पास एक ऐसी किताब ले आए हैं जिसे हमने इल्म की बुनियाद पर मुफ़स्सल (विस्तृत) किया है, हिदायत और रहमत बनाकर उन लोगों के लिए जो ईमान लाएं। क्‍या अब वे इसी के मुंतज़िर हैं कि उसका मज़मून ज़ाहिर हो जाए। जिस दिन उसका मज़मून ज़ाहिर हो जाएगा तो वे लोग जो उसे पहले भूले हुए थे बोल उठेंगे कि बेशक हमारे रब के पैग़म्बर हक़ लेकर आए थे। पस अब क्या कोई हमारी सिफ़ारिश करने वाले हैं कि हमारी सिफ़ारिश करें या हमें दुबारा वापस ही भेज दिया जाए ताकि हम उससे मुख्तलिफ़ अमल करें जो हम पहले कर रहे थे। उन्होंने अपने आपको घाटे में डाला और उनसे गुम हो गया वह जो वे गढ़ते थे। (50-53)

बेशक तुम्हारा रब वही अल्लाह है जिसने आसमानों और ज़मीन को छः दिनों में पैदा किया। फिर वह आर्श पर मुतमक्किन (आसीन) हुआ। वह उद़ाता है रात को दिन पर, दिन उसके पीछे लगा आता है दौड़ता हुआ। और उसने पैदा किए सूरज और चांद और सितारे, सब ताबेदार हैं उसके हुक्म के। याद रखो, उसी का काम है पैदा करना और हुक्म करना। बड़ी बरकत वाला है अल्लाह जो रब है सारे जहान का। अपने रब को पुकारो गिड़गिड़ाते हुए और चुपके-चुपके | यक्रीनन वह हद से गुज़रने वालों को पसंद नहीं करता। और ज़मीन में फ़लाद न करो उसकी इस्लाह के बाद। और उसी को पुकारो ख़ौफ़ के साथ और तमअ (आशा) के साथ। यक़ीनन अल्लाह की रहमत नेक काम करने वालों से क़रीब है। (54-56)

और वह अल्लाह ही है जो हवाओं को अपनी रहमत के आगे ख़ुशख़बरी बनाकर भेजता है। फिर जब वे बोझल बादलों को उठा लेती हैं तो हम उसे किसी ख़ुश्क सरज़मीन की तरफ़ हांक देते हैं। फिर हम उसके ज़रिए पानी उतारते हैं। फिर हम उसके ज़रिए से हर क़रिस्म के फल निकालते हैं। इसी तरह हम मुर्दों को निकालेंगे, ताकि तुम गौर करो। और जो ज़मीन अच्छी है उसकी पैदावार निकलती है उसके रब के हुक्म से और जो ज़मीन ख़राब है उसकी पैदावार कम ही होती है। इसी तरह हम अपनी निशानियां मुख़्तलिफ़ पहलुओं से दिखाते हैं उनके लिए जो शुक्र करने वाले हैं। (57-58)

हमने नूह को उसकी क्रौम की तरफ़ भेजा। नूह ने कहा ऐ मेरी क्रौम, अल्लाह की इबादत करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं। मैं तुम पर एक बड़े दिन के अज़ाब से डरता हूं। उसकी क़ौम के बड़ों ने कहा कि हमें तो यह नज़र आता है कि तुम एक खुली हुई गुमराही में मुब्तिला हो। नूह ने कहा कि ऐ मेरी क्ौम, मुझमें कोई गुमराही नहीं है। बल्कि मैं भेजा हुआ हूं सारे आलम के परवरदिगार का। तुम्हें अपने रब के पैग़ामात पहुंचा रहा हूं और तुम्हारी ख़ैरख़्वाही कर रहा हूं। और मैं अल्लाह की तरफ़ से वह बात जानता हूं जो तुम नहीं जानते। क्या तुम्हें इस पर तअज्जुब हुआ कि तुम्हारे रब की नसीहत तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक शख्स के ज़रिए आई ताकि वह तुम्हें डगाए और ताकि तुम बचो और ताकि तुम पर रहम किया जाए। पस उन्होंने उसे झुठला दिया। फिर हमने नूह को बचा लिया और उन लोगों को भी जो उसके साथ कश्ती में थे और हमने उन लोगों को डुबो दिया जिन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया था। बेशक वे लोग अंधे थे। (59-64)

और आद की तरफ़ हमने उनके भाई हूद को भेजा। उन्होंने कहा ऐ मेरी क़ौम, अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं। सो कया तुम डरते नहीं। उसकी क़ौम के बड़े जो इंकार कर रहे थे बोले, हम तो तुम्हें बेअक़्ली में मुब्तिला देखते हैं और हमें गुमान है कि तुम झूठे हो। हूद ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम, मुझे कुछ बेअक़्ली नहीं। बल्कि मैं ख़ुदावंदेआलम का रसूल हूं। तुम्हें अपने रब के पैग़ामात पहुंचा रहा हूं और तुम्हारा ख़ैरख़ाह और अमीन हूं। क्या तुम्हें इस पर तअणज्जुब है कि तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक शख्स के ज़रिए तुम्हारे रब की नसीहत आई ताकि वह तुम्हें डगाए। और याद करो जबकि उसने क़ौमे नूह के बाद तुम्हें उसका जानशीन बनाया और डीलडोल में तुमको फैलाव भी ज़्यादा दिया। पस अल्लाह की नेमतों को याद करो ताकि तुम फ़लाह पाओ। (65-69)

हूद की क़ौम ने कहा, क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हम तनहा अल्लाह की इबादत करें और उन्हें छोड़ दें जिनकी इबादत हमारे बाप दादा करते आए हैं। पस तुम जिस अज़ाब की धमकी हमें देते हो उसे ले आओ अगर तुम सच्चे हो। हूद ने कहा तुम पर तुम्हारे रब की तरफ़ से नापाकी और गुस्सा वाक़ेअ हो चुका है। कया तुम मुझसे उन नामों पर झगड़ते हो जो तुमने और तुम्हारे बाप दादा ने रख लिए हैं। जिनकी ख़ुदा ने कोई सनद नहीं उतारी। पस इंतज़ार करो, मैं भी तुम्हारे साथ इंतज़ार करने वालों में हूं। फिर हमने बचा लिया उसे और जो उसके साथ थे अपनी रहमत से और उन लोगों की जड़ काट दी जो हमारी निशानियों को झुठलाते थे और मानते न थे। (70-72)

और समूद की तरफ़ हमने उनके भाई सालेह को भेजा। उन्होंने कहा ऐ मेरी क़ौम, अल्लाह की इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से एक खुला हुआ निशान आ गया है। यह अल्लाह की ऊंटनी तुम्हारे लिए एक निशानी की तौर पर है। पस इसे छोड़ दो कि वह खाए अल्लाह की ज़मीन में। और इसे कोई तकलीफ़ न पहुंचाना वर्ना तुम्हें एक दर्दनाक अज़ाब पकड़ लेगा। और याद करो जबकि ख़ुदा ने आद के बाद तुम्हें उनका जानशीन (उत्तराधिकारी) बनाया और तुम्हें ज़मीन में ठिकाना दिया, तुम उसके मैदानों में महल बनाते हो और पहाड़ों को तराश कर घर बनाते हो। पस अल्लाह की नेमतों को याद करो और ज़मीन में फ़साद करते न फिरो। (73-74)

उनकी क़ौम के बड़े जिन्होंने घमंड किया, उन मोमिनीन से बोले जो कमज़ोर समझे जाते थे, क्या तुम्हें यक्नीन है कि सालेह अपने रब के भेजे हुए हैं। उन्होंने जवाब दिया कि हम तो जो वे लेकर आए हैं उस पर ईमान रखते हैं। वे मुतकब्बिर (घमंडी) लोग कहने लगे कि हम तो उस चीज़ के मुंकिर हैं जिस पर तुम ईमान लाए हो। फिर उन्होंने ऊंटनी को काट डाला और अपने रब के हुक्म से फिर गए। और उन्होंने कहा, ऐ सालेह अगर तुम पैग़म्बर हो तो वह अज़ाब हम पर ले आओ जिससे तुम हमें डराते थे। फिर उन्हें ज़लज़ले ने आ पकड़ा और वे अपने घर में औंधे मुंह पड़े रह गए। और सालेह यह कहता हुआ उन की बस्तियों से निकल गया कि ऐ मेरी क़ौम, मैंने तुम्हें अपने रब का पैग़ाम पहुंचा दिया और मैंने तुम्हारी ख़ैरख़्वाही की मगर तुम ख़ैरख़्वाहों को पसंद नहीं करते। (75-79)

और हमने लूत को भेजा। जब उसने अपनी क़ौम से कहा। क्‍या तुम खुली बेहयाई का काम करते हो जो तुमसे पहले दुनिया में किसी ने नहीं किया। तुम औरतों को छोड़कर मर्दों से अपनी ख्वाहिश पूरी करते हो। बल्कि तुम हद से गुज़र जाने वाले लोग हो। मगर उसकी क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि इन्हें अपनी बस्ती से निकाल दो। ये लोग बड़े पाकबाज़ बनते हैं। फिर हमने बचा लिया लूत को और उसके घर वालों को, उसकी बीवी के सिवा जो पीछे रह जाने वालों में से बबी। और हमने उन पर बारिश बरसाई पत्थरों की, फिर देखो कि कैसा अंजाम हुआ मुजरिमों का। (80-84)

और मदयन की तरफ़ हमने उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा ऐ मेरी क़ौम, अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद (पूज्य) नहीं। तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से दलील पहुंच चुकी है। पस नाप और तौल पूरी करो। और मत घटाकर दो लोगों को उनकी चीज़ें। और फ़साद न डालो ज़मीन में उसकी इस्लाह के बाद। यह तुम्हारे हक़ में बेहतर है अगर तुम मोमिन हो। और रास्तों पर मत बैठो कि डगाओ और अल्लाह की राह से उन लोगों को रोको जो उस पर ईमान ला चुके हैं और उस राह में कजी (टेढ़) तलाश करो। और याद करो जबकि तुम बहुत थोड़े थे फिर तुम्हें बढ़ा दिया। और देखो फ़साद करने वालों का अंजाम क्‍या हुआ। और अगर तुममें से एक गिरोह उस पर ईमान लाया है जो देकर मैं भेजा गया हूं और एक गिरोह ईमान नहीं लाया है तो इंतिज़ार करो यहां तक कि अल्लाह हमारे दर्मियान फ़ैसला कर दे और वह बेहतर फ़ैसला करने वाला है। (85-87)

क़ौम के बड़े जो मुतकब्बिर (धमंडी) थे उन्होंने कहा कि ऐ शुऐब हम तुम्हें और उन लोगों को जो तुम्हारे साथ ईमान लाए हैं अपनी बस्ती से निकाल देंगे या तुम हमारी मिल्लत में फिर आ जाओ। शुऐब ने कहा, क्या हम बेज़ार हों तब भी | हम अल्लाह पर झूठ गढ़ने वाले होंगे अगर हम तुम्हारी मिल्‍्लत में लौट आएं बाद इसके कि अल्लाह ने हमें उससे नजात दी। और हमसे यह मुमकिन नहीं कि हम उस मिल्लत में लौट आएं मगर यह कि ख़ुदा हमारा रब ही ऐसा चाहे। हमारा रब हर चीज़ को अपने इल्म से घेरे हुए है। हमने अपने रब पर भरोसा किया। ऐ हमारे रब, हमारे और हमारी क़ौम के दर्मियान हक़ के साथ फ़ैसला कर दे, तू बेहतरीन फ़ैसला करने वाला है। और उन बड़ों ने जिन्होंने उसकी क़ौम में से इंकार किया था कहा कि अगर तुम शुऐब की पैरवी करोगे तो तुम बर्बाद हो जाओगे। फिर उन्हें ज़लज़ले ने पकड़ लिया। पस वे अपने घर में औंधे मुंह पड़े रह गए। जिन्होंने शुऐब को झुठलाया था गोया वे कभी उस बस्ती में बसे ही न थे, जिन्होंने शुऐेब को झुठलाया वही घाटे में रहे। उस वक़्त शुऐब उनसे मुंह मोड़ कर चला और कहा, ऐ मेरी क्ौम मैं तुम्हें अपने रब के पैग़ामात पहुंचा चुका और तुम्हारी ख़ैरख़्वाही कर चुका। अब मैं क्या अफ़सोस करूं मुंकिरों पर। (88-93)

और हमने जिस बस्ती में भी कोई नबी भेजा, उसके बाशिन्दों को हमने सख्ती और तकलीफ़ में मुब्तिला किया ताकि वे गिड़गिड़ाएं। फिर हमने दुख को सुख से बदल दिया यहां तक कि उन्हें खूब तरक़्क़ी हुई और वे कहने लगे कि तकलीफ़ और ख़ुशी तो हमारे बाप दादाओं को भी पहुंचती रही है। फिर हमने उन्हें अचानक पकड़ लिया और वे इसका गुमान भी न रखते थे। और अगर बस्तियों वाले ईमान लाते और डरते तो हम उन पर आसमान और ज़मीन की नेमतें खोल देते। मगर उन्होंने झुठलाया तो हमने उन्हें पकड़ लिया उनके आमाल के बदले। फिर क्‍या बस्ती वाले इससे बेख़ौफ़ हो गए हैं कि उन पर हमारा अज़ाब रात के वक़्त आ पड़े जबकि वे सोते हों। या क्‍या बस्ती वाले इससे बेख़ोफ़ हो गए हैं कि हमारा अज़ाब आ पहुंचे उन पर दिन चढ़े जब वे खेलते हों। क्या ये लोग अल्लाह की तदबीरों से बेखौफ़ हो गए हैं। पस अल्लाह की तदबीरों (युक्तियों) से वही लोग बेख़ौफ़ होते हैं जो तबाह होने वाले हों। (94-99)

क्या सबक़ नहीं मिला उन्हें जो ज़मीन के वारिस हुए हैं उसके अगले बाशिन्दों के बाद कि अगर हम चाहें तो उन्हें पकड़ लें उनके गुनाहों पर। और हमने उनके दिलों पर मुहर कर दी है पस वे नहीं समझते | ये वे बस्तियां हैं जिनके कुछ हालात हम तुम्हें सुना रहे हैं। उनके पास हमारे रसूल निशानियां लेकर आए तो हरगिज़ न हुआ कि वे ईमान लाएं उस बात पर जिसे वे पहले झुठला चुके थे। इस तरह अल्लाह मुंकिरों के दिलों पर मुहर कर देता है। और हमने उनके अक्सर लोगों में अहद (वचन) का निबाह न पाया और हमने उनमें से अक्सर को नाफ़रमान (अवज्ञाकारी) पाया। (100-102)

फिर उनके बाद हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ भेजा फ़िरऔन और उसकी क़ौम के सरदारों के पास। मगर उन्होंने हमारी निशानियों के साथ ज़ुल्म किया। पस देखो कि मुफ़्सिदों (फ़साद करने वालों) का क्‍या अंजाम हुआ। और मूसा ने कहा ऐ फ़िरऔन, मैं परवरदिगारे आलम की तरफ से भेजा हुआ आया हूं। सज़ावार हूं कि अल्लाह के नाम पर कोई बात हक़ के सिवा न कहूं। मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से खुली हुई निशानी लेकर आया हूं। पस तू मेरे साथ बनी इस्राईल को जाने दे | फ़िरऔन ने कहा, अगर तुम कोई निशानी लेकर आए हो तो उसे पेश करो अगर तुम सच्चे हो। तब मूसा ने अपना असा (डंडा) डाल दिया तो यकायक वह एक साफ़ अज़दहा बन गया। और उसने अपना हाथ निकाला तो अचानक वह देखने वालों के सामने चमक रहा था। फ़िरऔन की क़ौम के सरदारों ने कहा यह शख्स बड़ा माहिर जादूगर है। चाहता है कि तुम्हें तुम्हारी ज़मीन से निकाल दे। अब तुम्हारी क्या सलाह है। उन्होंने कहा, मूसा को और उसके भाई को मोहलत दो और शहरों में हरकारे भेजो कि वे तुम्हारे पास सारे माहिर जादूगर ले आएं। (103-112)

और जादूगर फ़िरऔन के पास आए। उन्होंने कहा, हमें इनाम तो ज़रूर मिलेगा अगर हम ग़ालिब (विजित) रहे। फ़िरऔन ने कहा, हां और यक्रीनन तुम हमारे मुक़र्रबीन (निकटवर्तियों) में दाख़िल होगे। जादूगरों ने कहा, या तो तुम डालो या हम डालने वाले बनते हैं। मूसा ने कहा, तुम ही डालो। फिर जब उन्होंने डाला तो लोगों की आंखों पर जादू कर दिया और उन पर दहशत तारी कर दी और बहुत बड़ा करतब दिखाया, और हमने मूसा को हुक्म भेजा कि अपना असा (डंडा) डाल दो। तो अचानक वह निगलने लगा उसे जो उन्होंने गढ़ा था। पस हक़ ज़ाहिर हो गया और जो कुछ उन्होंने बनाया था बातिल होकर रह गया। पस वे लोग वहीं हार गए और ज़लील होकर रहे। और जादूगर सज्दे में गिर पड़े। उन्होंने कहा, हम ईमान लाए रब्बुलआलमीन (सृष्टि-प्रभु) पर जो रब (प्रभु) है मूसा और हारून का। (113-122)

फ़िरऔन ने कहा, तुम लोग मूसा पर ईमान ले आए इससे पहले कि मैं तुम्हें इजाज़त दूं। यक़्ीनन यह एक साज़िश है जो तुम लोगों ने शहर में इस ग़रज़ से की है कि तुम उसके बाशिन्दों को यहां से निकाल दो, तो तुम बहुत जल्द जान लोगे। मैं तुम्हारे हाथ और पांओं मुख़ालिफ़ सम्तों से काटूंगा फिर तुम सबको सूली पर चढ़ा दूंगा। उन्होंने कहा, हमें अपने रब ही की तरफ़ लौटना है। तू हमें सिर्फ़ इस बात की सज़ा देना चाहता है कि हमारे रब की निशानियां जब हमारे सामने आ गईं तो हम उन पर ईमान ले आए। ऐ रब, हम पर सब्र उंडेल दे और हमें वफ़ात दे इस्लाम पर। फ़िरऔन की क़ौम के सरदारों ने कहा, क्या तू मूसा और उसकी क़ौम को छोड़ देगा कि वे मुल्क में फ़लाद फैलाएं और तुझे और तेरे माबूदों (पृज्यों) को छोड़ें। फ़िरऔन ने कहा हम उनके बेटों को क़त्ल करेंगे और उनकी औरतों को ज़िंदा रखेंगे। और हम उन पर पूरी तरह क़ादिर हैं। मूसा ने अपनी क़्ौम से कहा कि अल्लाह से मदद चाहो और सब्र करो। ज़मीन अल्लाह की है, वह अपने बंदों में से जिसे चाहता है उसका वारिस बना देता है। और आख़िरी कामयाबी अल्लाह से डरने वालों ही के लिए है। मूसा की क़ौम ने कहा, हम तुम्हारे आने से पहले भी सताए गए और तुम्हारे आने के बाद भी। मूसा ने कहा क़रीब है कि तुम्हारा रब तुम्हारे दुश्मन को हलाक कर दे और बजाए उनके तुम्हें इस सरज़मीन का मालिक बना दे, फिर देखे कि तुम कैसा अमल करते हो। (128-129)

और हमने फ़िरऔन वालों को क़हत (अकाल) और पैदावार की कमी में मुक्तिला किया ताकि उन्हें नसीहत हो। लेकिन जब उन पर ख़ुशहाली आती तो कहते कि यह हमारे लिए है और अगर उन पर कोई आफ़त आती तो उसे मूसा और उसके साथियों की नहूसत बताते | सुनो, उनकी बदबख़्ती तो अल्लाह के पास है मगर उनमें से अक्सर नहीं जानते। और उन्होंने मूस3 से कहा, हमें मस्हूर (जादू ग्रस्त) करने के लिए तुम चाहे कोई भी निशानी लाओ हम तुम पर ईमान लाने वाले नहीं हैं। (130-132)

फिर हमने उनके ऊपर तूफ़ान भेजा और टिड्डी और जुएं और मेंढक और ख़ून। ये सब निशानियां अलग-अलग दिखाईं। फिर भी उन्होंने तकब्बुर (घमंड) किया और वे मुजरिम लोग थे। और जब उन पर कोई अज़ाब पड़ता तो कहते ऐ मूसा, अपने रब से हमारे लिए दुआ करो जिसका उसने तुमसे वादा कर रखा है। अगर तुम हम पर से इस अज़ाब को हटा दो तो हम ज़रूर तुम पर ईमान लाएंगे और तुम्हारे साथ बनी इस्राईल को जाने देंगे। फिर जब हम उनसे दूर कर देते आफ़त को कुछ मुदृदत के लिए जहां बहरहाल उन्हें पहुंचना था तो उसी वक़्त वे अहद (वचन) को तोड़ देते। फिर हमने उन्हें सज़ा दी और उन्हें समुद्र में ग़र्क़ कर दिया क्‍योंकि उन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया और उनसे बेपरवाह हो गए। और जो लोग कमज़ोर समझे जाते थे उन्हें हमने उस सरज़मीन के पूर्व व पश्चिम का वारिस बना दिया जिसमें हमने बरकत रखी थी। और बनी इस्राईल पर तेरे रब का नेक वादा पूरा हो गया इस सबब से कि उन्होंने सब्र किया और हमने फ़िरऔन और उसकी क़ौम का वह सब कुछ बर्बाद कर दिया जो वे बनाते थे और जो वे चढ़ाते थे। (133-137)

और हमने बनी इस्राईल को समुद्र के पार उतार दिया। फिर उनका गुज़र एक ऐसी क़ौम पर हुआ जो पूजने में लग रहे थे अपने बुतों के। उन्होंने कहा ऐ मूसा, हमारी इबादत के लिए भी एक बुत बना दे जैसे इनके बुत हैं। मूसा ने कहा, तुम बड़े जाहिल लोग हो। ये लोग जिस काम में लगे हुए हैं वह बर्बाद होने वाला है और ये जो कुछ कर रहे हैं वह बातिल है। उसने कहा, क्‍या मैं अल्लाह के सिवा कोई और माबूद तुम्हारे लिए तलाश करूं हालांकि उसने तुम्हें तमाम अहले आलम पर फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) दी है। और जब हमने फ़िरऔन वालों से तुम्हें नजात दी जो तुम्हें सख्त अज़ाब में डाले हुए थे। तुम्हारे बेटों को क़त्ल करते और तुम्हारी औरतों को ज़िंदा रहने देते और इसमें तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारी बड़ी आज़माइश थी। (138-141)

और हमने मूसा से तीस रातों का वादा किया और उसे पूरा किया दस मज़ीद रातों से तो उसके रब की मुद्दत चालीस रातों में पूरी हुई। और मूसा ने अपने भाई हारून से कहा, मेरे पीछे तुम मेरी क्ौम में मेरी जानशीनी (प्रतिनिधित्व) करना, इस्लाह (सुधार) करते रहना, और बिगाड़ पैदा करने वालों के तरीक़े पर न चलना | और जब मूसा हमारे वक़्त पर आ गया और उसके रब ने उससे कलाम किया तो उसने कहा, मुझे अपने को दिखा दे कि मैं तुझे देखूं। फ़रमाया, तुम मुझे हरगिज़ नहीं देख सकते। अलबत्ता पहाड़ की तरफ़ देखो, अगर वह अपनी जगह क़ायम रह जाए तो तुम भी मुझे देख सकोगे। फिर जब उसके रब ने पहाड़ पर अपनी तजल्ली (आलोक) डाली तो उसे रेज़ा-रेज़ा कर दिया। और मूसा बेहोश होकर गिर पड़ा। फिर जब होश आया तो बोला, तू पाक है, मैंने तेरी तरफ़ रुजूअ किया और मैं सबसे पहले ईमान लाने वाला हूं। अल्लाह ने फ़रमाया, ऐ मूसा मैंने तुम्हें लोगों पर अपनी पैग़म्बरी और अपने कलाम के ज़रिए से सरफ़राज़ किया। पस अब लो जो कुछ मैंने तुम्हें अता किया है। और शुक्रगुज़ारों में से बनो। और हमने उसके लिए तख़्तियों पर हर क़िस्म की नसीहत और हर चीज़ की तफ़्सील लिख दी। पस इसे मज़बूती से पकड़ो और अपनी क़ौम को हुक्म दो कि इनके बेहतर मफ़हूम (भावार्थ) की पैरवी करें। अनक़रीब मैं तुम्हें नाफ़रमानों का घर दिखाऊंगा। (142-145)

मैं अपनी निशानियों से उन लोगों को फेर दूंगा जो ज़मीन में नाहक़ घमंड करते हैं। और अगर वे हर क़िस्म की निशानियां देख लें तब भी उन पर ईमान न लाएं। और अगर वे हिदायत का रास्ता देखें तो उसे न अपनाएंगे और अगर गुमराही का रास्ता देखें तो उसे अपना लेंगे। यह इस सबब से है कि उन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया और उनकी तरफ़ से अपने को ग़ाफ़िल रखा। और जिन्होंने हमारी निशानियों को और आख़िरत की मुलाक़ात को झुठलाया उनके आमाल अकारत हो गए और वे बदले में वही पाएंगे जो वे कहते थे। (146-147)

और मूसा की क़ौम ने उसके पीछे अपने ज़ेवरों से एक बछड़ा बनाया, एक धड़ जिससे बैल की सी आवाज़ निकलती थी। क्या उन्होंने नहीं देखा कि वह न उनसे बोलता है और न कोई राह दिखाता है। उसे उन्होंने माबूद (पूज्य) बना लिया और वे बड़े ज़ालिम थे। और जब वे पछताए और उन्होंने महसूस किया कि वे गुमराही में पड़ गए थे तो उन्होंने कहा, अगर हमारे रब ने हम पर रहम न किया और हमें न बख्शा तो यक़रीनन हम बर्बाद हो जाएंगे। और जब मूसा रंज और गुस्से में भरा हुआ अपनी क़ौम की तरफ़ लौटा तो उसने कहा, तुमने मेरे बाद मेरी बहुत बुरी जानशीनी (प्रतिनिधित्व) की | क्या तुमने अपने रब के हुक्म से पहले ही जल्दी कर ली। और उसने तख्तियां डाल दीं और अपने भाई का सिर पकड़ कर उसे अपनी तरफ़ खींचने लगे। हारून ने कहा, ऐ मेरी मां के बेटे, लोगों ने मुझे दबा लिया और क़रीब था कि मुझे मार डालें। पस तू दुश्मनों को मेरे ऊपर हंसने का मौक़ा न दे और मुझे ज़ालिमों के साथ शामिल न कर। मूसा ने कहा, ऐ मेरे रब माफ़ कर दे मुझे और मेरे भाई को और हमें अपनी रहमत में दाख़िल फ़रमा और तू सबसे ज़्यादा रहम करने वाला है। (148-151) बेशक जिन लोगों ने बछड़े को माबूद (पूज्य) बनाया उन्हें उनके रब का ग़ज़ब पहुंचेगा और ज़िल्लत दुनिया की ज़िंदगी में। और हम ऐसा ही बदला देते हैं झूठ बांधने वालों को। और जिन लोगों ने बुरे काम किए फिर इसके बाद तौबा की। और ईमान लाए तो बेशक इसके बाद तेरा रब बख्शने वाला मेहरबान है। (152-155)

और जब मूसा का गुस्सा थमा तो उसने तख््तियां उठाई और जो उनमें लिखा हुआ था उसमें हिदायत और रहमत थी उन लोगों के लिए जो अपने रब से डरते हैं। और मूसा ने अपनी क़ौम में से सत्तर आदमी चुने हमारे मुक़र्रर किए हुए वक़्त के लिए। फिर जब उन्हें ज़लज़ले ने पकड़ा तो मूसा ने कहा ऐ रब, अगर तू चाहता तो तू पहले ही इन्हें हलाक कर देता और मुझे भी। क्या तू हमें एसे काम पर हलाक करेगा जो हमारे अंदर के बेवक़ूफ़ों ने किया। ये सब तेरी आज़माइश है तू इससे जिसे चाहे गुमराह कर दे और जिसे चाहे हिदायत दे। तू ही हमारा थामने वाला है। पस हमें बछ़्शा दे और हम पर रहम फ़रमा, तू सबसे बेहतर बख्काने वाला है। और तू हमारे लिए इस दुनिया में भी भलाई लिख दे और आख़िरत में भी। हमने तेरी तरफ़ रुजूअ किया। अल्लाह ने कहा, मैं अपना अज़ाब उसी पर डालता हूं जिसे चाहता हूं और मेरी रहमत शामिल है हर चीज़ को। पस मैं उसे लिख दूंगा उनके लिए जो डर रखते हैं और ज़कात अदा करते हैं और हमारी निशानियों पर ईमान लाते हैं। जो लोग पैरवी करेंगे उस रसूल की जो नबी उम्मी (अनपढ़) है, जिसे वे अपने यहां तौरात और इंजील में लिखा हुआ पाते हैं। वह उन्हें नेकी का हुक्म देता है और उन्हें बुराई से रोकता है और उनके लिए पाकीज़ा चीज़ें जाइज़ ठहराता है और नापाक चीज़ें हराम करता है और उन पर से वह बोझ और क़्ैदें उतारता है जो उन पर थीं। पस जो लोग उस पर ईमान लाए और जिन्होंने उसकी इज़्जत की और उसकी मदद की और उस नूर की पैरवी की जो उसके साथ उतारा गया है तो वही लोग फ़लाह पाने वाले हैं। (154-157)

 कहो ऐ लोगो, बेशक मैं अल्लाह का रसूल हूं तुम सबकी तरफ़ जिसकी हुकूमत है आसमानों और ज़मीन में | वही जिलाता है और वही मारता है। पस ईमान लाओ अल्लाह पर और उसके उम्मी रसूल व नबी पर जो ईमान रखता है अल्लाह और उसके कलिमात (वाणी) पर और उसकी पैरवी करो ताकि तुम हिदायत पाओ | और मूसा की क्रौम में एक गिरोह ऐसा भी है जो हक़ के मुताबिक़ रहनुमाई करता है और उसी के मुताबिक़ इंसाफ़ करता है। और हमने उन्हें बारह घरानों में तक़्सीम करके उन्हें अलग-अलग गिरोह बना दिया। और जब मूसा की क़ौम ने पानी मांगा तो हमने मूसा को हुक्म भेजा कि फ़लां चट्टान पर अपनी लाठी मारो तो उससे बारह चशमे (जलस्रोत) फूट निकले। हर गिरोह ने अपना पानी पीने का मक़ाम मालूम कर लिया। और हमने उन पर बदलियों का साया किया और उन पर मनन व सलवा उतारा। खाओ पाकीज़ा चीज़ों में से जो हमने तुम्हें दी हैं। और उन्होंने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा बल्कि ख़ुद अपना ही नुक़्सान करते रहे। और जब उनसे कहा गया कि उस बस्ती में जाकर बस जाओ। उसमें जहां से चाहो खाओ और कहो हमें बख्छा दे और दरवाज़े में झुके हुए दाख़िल हो, हम तुम्हारी ख़ताएं माफ़ कर देंगे। हम नेकी करने वालों को और ज़्यादा देते हैं। फिर उनमें से ज़ालिमों ने बदल डाला दूसरा लफ़्ज़ उसके सिवा जो उनके कहा गया था। फिर हमने उन पर आसमान से अज़ाब भेजा इसलिए कि वे ज़ुल्म करते थे। (158-162)

और उनसे उस बस्ती का हाल पूछो जो दरिया के किनारे थी। जब वे सब्त (सनीचर) के बारे में तजावुज़ (उल्लंघन) करते थे। जब उनके सब्त के दिन उनकी मछलियां पानी के ऊपर आतीं और जिस दिन सब्त न होता तो न आती | उनकी आज़माइश हमने इस तरह की, इसलिए कि वे नाफ़रमानी कर रहे थे। और जब उनमें से एक गिरोह ने कहा कि तुम ऐसे लोगों को क्यों नसीहत करते हो जिन्हें अल्लाह हलाक करने वाला है या उन्हें सख्त अज़ाब देने वाला है। उन्होंने कहा, तुम्हारे रब के सामने इल्ज़ाम उतारने के लिए और इसलिए कि शायद वे डरें। फिर जब उन्होंने भुला दी वह चीज़ जो उन्हें याद दिलाई गई थी तो हमने उन लोगों को बचा लिया जो बुराई से रोकते थे और उन लोगों को जिन्होंने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया एक सख्त अज़ाब में पकड़ लिया। इसलिए कि वे नाफ़रमानी (अवज्ञा) करते थे। फिर जब वे बढ़ने लगे उस काम में जिससे वे रोके गए थे तो हमने उनसे कहा कि ज़लील बंदर बन जाओ। (163-166)

और जब तुम्हारे रब ने एलान कर दिया कि वह यहूद पर क्रियामत के दिन तक ज़रूर ऐसे लोग भेजता रहेगा जो उन्हें निहायत बुरा अज़ाब दें। बेशक तेरा रब जल्द सज़ा देने वाला है और बेशक वह बख़्शने वाला मेहरबान है। और हमने उन्हें गिरोह-गिरोह करके ज़मीन में बिखेर दिया | उनमें कुछ नेक हैं और उनमें कुछ इससे मुख्तलिफ़ (भिन्‍न)। और हमने उनकी आज़माइश की अच्छे हालात से और बुरे हालात से ताकि वे बाज़ आएं। फिर उनके पीछे नाख़ल्फ़ (अयोग्य) लोग आए जो किताब के वारिस बने, वे इसी दुनिया की मताअ (सुख-सामग्री) लेते हैं और कहते हैं कि हम यक़ीनन बख़्श दिए जाएंगे। और अगर ऐसी ही मताअ उनके सामने फिर आए तो उसे ले लेंगे। कया उनसे किताब में इसका अहद (वचन) नहीं लिया गया है कि अल्लाह के नाम पर हक़ के सिवा कोई और बात न कहें। और उन्होंने पढ़ा है जो कुछ उसमें लिखा है। और आख़िरत का घर बेहतर है डरने वालों के लिए, क्या तुम समझते नहीं। और जो लोग ख़ुदा की किताब को मज़बूती से पकड़ते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं, बेशक हम मुस्लिहीन (सुधारकों) का अज्र ज़ाया नहीं करेंगे। और जब हमने पहाड़ को उनके ऊपर उठाया गोया कि वह सायबान है। और उन्होंने गुमान किया कि वह उन पर आ पड़ेगा। पकड़ो उस चीज़ को जो हमने तुम्हें दी है मज़बूती से, और याद रखो जो उसमें है ताकि तुम बचो। (167-177)

और जब तेरे रब ने बनी आदम की पीठों से उनकी औलाद को निकाला और उन्हें गवाह ठहराया ख़ुद उनके ऊपर। क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूं। उन्होंने कहा हां, हम इक़रार करते हैं। यह इसलिए हुआ कि कहीं तुम क्रियामत के दिन कहने लगो हमें तो इसकी ख़बर न थी। या कहो कि हमारे बाप दादा ने पहले से शिर्क (ख़ुदा का साझीदार ठहराना) किया था और हम उनके बाद उनकी नस्ल में हुए। तो क्या तू हमें हलाक करेगा उस काम पर जो ग़लतकार लोगों ने किया। और इस तरह हम अपनी निशानियां खोलकर बयान करते हैं ताकि वे पलट आएं। (172-174)

और उन्हें उस शख्स का हाल सुनाओ जिसे हमने अपनी आयतें दी थीं तो वह उनसे निकल भागा। पस शैतान उसके पीछे लग गया और वह गुमराहों में से हो गया। और अगर हम चाहते तो उसे उन आयतों के ज़रिए से बुलन्दी अता करते मगर वह तो ज़मीन का हो रहा और अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी करने लगा। पस उसकी मिसाल कुत्ते की सी है कि अगर तू उस पर बोझ लादे तब भी हांपे और अगर छोड़ दे तब भी हांपे। यह मिसाल उन लोगों की है जिन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया | पस तुम यह अहवाल उन्हें सुनाओ ताकि वे सोचें | कैसी बुरी मिसाल है उन लोगों की जो हमारी निशानियों को झुठलाते हैं और वे अपना ही नुक़्सान करते रहे। अल्लाह जिसे राह दिखाए वही राह पाने वाला होता है और जिसे वह बेराह कर दे तो वही घाटा उठाने वाले हैं। और हमने जिन्‍नात और इंसानों में से बहुतों को दोज़ख़ के लिए पैदा किया है। उनके दिल हैं जिनसे वे समझते नहीं, उनकी आंखें हैं जिनसे वे देखते नहीं, उनके कान हैं जिनसे वे सुनते नहीं। वे ऐसे हैं जैसे चौपाए बल्कि उनसे भी ज़्यादा बेराह। यही लोग हैं ग़ाफ़िल। और अल्लाह के लिए हैं सब अच्छे नाम। पस इन्हीं से उसे पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो, जो उसके नामों में कजरवी (कुटिलता) करते हैं। वे बदला पाकर रहेंगे अपने कामों का। और हमने जिन्हें पैदा किया है उनमें से एक गिरोह ऐसा है जो हक़ के मुताबिक़ फ़ैसला करता है। और जिन लोगों ने हमारी निशानियों को झुठलाया हम उन्हें आहिस्ता आहिस्ता पकड़ेंगे ऐसी जगह से जहां से उन्हें ख़बर भी न होगी। और मैं उन्हें ढील देता हूं, बेशक मेरा दाव बड़ा मज़बूत है। (175-183) 

क्या उन लोगों ने ग़ौर नहीं किया कि उनके साथी को कोई जुनून नहीं है। वह तो एक साफ़ डराने वाला है। क्या उन्होंने आसमानों और ज़मीन के निज़ाम पर नज़र नहीं की और जो कुछ अल्लाह ने पैदा किया है हर चीज़ से और इस बात पर की शायद उनकी मुददत क़रीब आ गई हो। पस इसके बाद वे किस बात पर ईमान लाएंगे। जिसे अल्लाह बेराह कर दे उसे कोई राह दिखाने वाला नहीं। और वह उन्हें सरकशी ही में भटकता हुआ छोड़ देता है। वह तुमसे क्रियामत के बारे में पूछते हैं कि उसका वह कब वाके होगा। कहो इसका इल्म तो मेरे रब ही के पास है। वही उसके वक़्त पर उसे ज़ाहिर करेगा। वह भारी हो रही है आसमानों में और ज़मीन में। वह जब तुम पर आएगी तो अचानक आ जाएगी। वह तुमसे पूछते हैं गोया कि तुम उसकी तहक़ीक़ कर चुके हो। कहो इसका इल्म तो बस अल्लाह ही के पास है। लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते। कहो मैं मालिक नहीं अपनी जान के भले का और न बुरे का मगर जो अल्लाह चाहे। और अगर मैं गैब को जानता तो मैं बहुत से फ़ायदे अपने लिए हासिल कर लेता और मुझे कोई नुक़्सान न पहुंचता। मैं तो महज़ एक डराने वाला और ख़ुशख़बरी सुनाने वाला हूं उन लोगों के लिए जो मेरी बात मानें। (184-188)

वही है जिसने तुम्हें पैदा किया एक जान से और उसी ने बनाया उसका जोड़ा ताकि उसके पास सुकून हासिल करे। फिर जब मर्द ने औरत को ढांक लिया तो उसे एक हल्का सा हमल रह गया। फिर वह उसे लिए फिरती रही। फिर जब वह बोझल हो गई तो दोनों ने मिलकर अल्लाह अपने रब से दुआ की, अगर तूने हमें तंदुरुस्त औलाद दी तो हम तेरे शुक्रगुज़ार रहेंगे। मगर जब अल्लाह ने उन्हें तंदरुस्त औलाद दे दी तो वे उसकी बख्शी हुई चीज़ में दूसरों को उसका शरीक ठहराने लगे। अल्लाह बरतर है उन मुश्रिकाना बातों से जो ये लोग करते हैं। क्या वे शरीक बनाते हैं ऐसों को जो किसी चीज़ को पैदा नहीं करते बल्कि वे ख़ुद मख्लूक़ (सृजित) हैं। और वे न उनकी किसी क्रिस्म की मदद कर सकते हैं और न अपनी ही मदद कर सकते हैं। और अगर तुम उन्हें रहनुमाई के लिए पुकारो तो वे तुम्हारी पुकार पर न चलेंगे। बराबर है चाहे तुम उन्हें पुकारो या तुम ख़ामोश रहो। जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो वे तुम्हारे ही जैसे बंदे हैं। पस तुम उन्हें पुकारो, वे तुम्हें जवाब दें अगर तुम सच्चे हो। (189-194)

क्या उनके पाँव हैं कि उनसे चलें। क्या उनके हाथ हैं कि उनसे पकड़ें। क्‍या उनकी आंखें हैं कि उनसे देखें | क्या उनके कान हैं कि उनसे सुनें | कहो, तुम अपने शरीकों को बुलाओ | फिर तुम लोग मेरे ख़िलाफ़ तदबीरें करो और मुझे मोहलत न दो। यक़ीनन मेरा कारसाज़ (कार्य-साधक) अल्लाह है जिसने किताब उतारी है और वह कारसाज़ी करता है नेक बंदों की। और जिन्हें तुम पुकारते हो उसके सिवा वे न तुम्हारी मदद कर सकते हैं और न अपनी ही मदद कर सकते हैं। और अगर तुम उन्हें रास्ते की तरफ़ पुकारो तो वे तुम्हारी बात न सुनेंगे और तुम्हें नज़र आता है कि वे तुम्हारी तरफ़ देख रहे हैं मगर वे कुछ नहीं देखते। (195-198)

दरगुज़र (क्षमा) करो, नेकी का हुक्म दो और जाहिलों से न उललो | और अगर तुम्हें कोई वसवसा शैतान की तरफ़ से आए तो अल्लाह की पनाह चाहो। बेशक वह सुनने वाला जानने वाला है। जो लोग डर रखते हैं जब कभी शैतान के असर से कोई बुरा ख़्याल उन्हें छू जाता है तो वे फ़ौरन चौंक पड़ते हैं और फिर उसी वक़्त उन्हें सूझ आ जाती है। और जो शैतान के भाई हैं वे उन्हें गुमराही में खींचे चले जाते हैं फिर वे कमी नहीं करते। और जब तुम उनके सामने कोई निशानी (चमत्कार) नहीं लाए तो कहते हैं कि क्‍यों न तुम छांट लाए कुछ अपनी तरफ़ से। कहो, मैं तो उसी की पैरवी करता हूं जो मेरे रब की तरफ़ से मुझ पर “वही! (प्रकाशना) की जाती है। ये सूझ की बातें हैं तुम्हारे रब की तरफ़ से और हिदायत और रहमत है उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं। और जब क़्रुरआन पढ़ा जाए तो उसे तवज्जोह से सुनो और ख़ामोश रहो, ताकि तुम पर रहमत की जाए। और अपने रब को सुबह व शाम याद करो अपने दिल में, आजिज़ी और ख़ौफ़ के साथ और पस्त आवाज़ से, और ग़ाफ़िलों में से न बनों | जो (फ़रिश्ते) तेरे रब के पास हैं वे उसकी इबादत से तकब्बुर (घमंड) नहीं करते। और वे उसकी पाक ज़ात को याद करते हैं और उसी को सज्दा करते हैं। (199-206)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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