सूरह अल अंबिया हिंदी में – सूरह 21
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
लोगों के लिए उनका हिसाब नज़दीक आ पहुंचा। और वे ग़फ़लत में पड़े हुए एराज़ (उपेक्षा) कर रहे हैं। उनके रब की तरफ़ से जो भी नई नसीहत उनके पास आती है वे उसे हंसी करते हुए सुनते हैं। उनके दिल ग़फ़लत में पड़े हुए हैं। और ज़ालिमों ने आपस में यह सरगोशी (कानाफूसी) की कि यह शख्स तो तुम्हारे ही जैसा एक आदमी है। फिर तुम क्यों आंखों देखे इसके जादू में फंसते हो। रसूल ने कहा कि मेरा रब हर बात को जानता है, चाहे वह आसमान में हो या ज़मीन में। और वह सुनने वाला, जानने वाला है। (1-4)
बल्कि वे कहते हैं, ये परागंदा ख़्वाब (दुस्वप्न) हैं। बल्कि इसे उन्होंने गढ़ लिया है। बल्कि वह एक शायर हैं। उन्हें चाहिए कि हमारे पास उस तरह की कोई निशानी लाएं जिस तरह की निशानियों के साथ पिछले रसूल भेजे गए थे। इनसे पहले किसी बस्ती के लोग भी जिन्हें हमने हलाक किया, ईमान नहीं लाए तो क्या ये लोग ईमान लाएंगे। (5-6)
और तुमसे पहले भी जिसे हमने रसूल बनाकर भेजा, आदमियों ही में से भेजा। हम उनकी तरफ़ “वही” (ईश्वरीय वाणी) भेजते थे। पस तुम अहले किताब से पूछ लो, अगर तुम नहीं जानते। और हमने उन रसूलों को ऐसे जिस्म नहीं दिए कि वे खाना न खाते हों। और वे हमेशा रहने वाले न थे। फिर हमने उनसे वादा पूरा किया। पस उन्हें और जिस-जिस को हमने चाहा बचा लिया। और हमने हद से गुज़रने वालों को हलाक कर दिया। (7-9)
हमने तुम्हारी तरफ़ एक किताब उतारी है जिसमें तुम्हारी याददिहानी है, फिर क्या तुम समझते नहीं। और कितनी ही ज़ालिम बस्तियां हैं जिन्हें हमने पीस डाला। और उनके बाद दूसरी क़ौम को उठाया। पस जब उन्होंने हमारा अज़ाब आते देखा तो वे उससे भागने लगे। भागो मत। और अपने सामाने ऐश की तरफ़ और अपने मकानों की तरफ़ वापस चलो, ताकि तुमसे पूछा जाए। उन्होंने कहा, हाय हमारी कमबख्ती, बेशक हम लोग ज़ालिम थे। पस वे यही पुकारते रहे। यहां तक कि हमने उन्हें ऐसा कर दिया जैसे खेती कट गई हो और आग बुझ गई हो। (10-15)
और हमने आसमान और ज़मीन को और जो कुछ उनके दर्मियान है खेल के तौर पर नहीं बनाया। अगर हम कोई खेल बनाना चाहते तो उसे हम अपने पास से बना लेते, अगर हमें यह करना होता। बल्कि हम हक़ (सत्य) को बातिल (असत्य) पर मारेंगे तो वह उसका सर तोड़ देगा तो वह यकायक जाता रहेगा और तुम्हारे लिए उन बातों से बड़ी ख़राबी है जो तुम बयान करते हो। (16-18)
और उसी के हैं जो आसमानों और ज़मीन में हैं। और जो (फ़रिश्ते) उसके पास हैं वे उसकी इबादत से सरताबी (विमुखता) नहीं करते और न काहिली (सुस्ती) करते हैं। वे रात दिन उसे याद करते हैं, कभी नहीं थकते। (19-20)
क्या उन्होंने ज़मीन में से माबूद (पूज्य) ठहराए हैं जो किसी को ज़िंदा करते हों। अगर इन दोनों में अल्लाह के सिवा माबूद होते तो दोनों दरहम-बरहम हो जाते। पस अल्लाह, आर्श का मालिक, उन बातों से पाक है जो ये लोग बयान करते हैं। वह जो कुछ करता है उस पर वह पूछा न जाएगा और उनसे पूछ होगी। (21-23)
क्या उन्होंने खुदा के सिवा और माबूद (पूज्य) बनाए हैं। उनसे कहो कि तुम अपनी दलील लाओ। यही बात उन लोगों की है जो मेरे साथ हैं और यही बात उन लोगों की है जो मुझसे पहले हुए। बल्कि उनमें से अक्सर हक़ को नहीं जानते। पस वे एराज़ (उपेक्षा) कर रहे हैं। और हमने तुमसे पहले कोई ऐसा पैग़म्बर नहीं भेजा जिसकी तरफ़ हमने यह वही” (प्रकाशना) न की हो कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, पस तुम मेरी इबादत करो। (24-25)
और वे कहते हैं कि रहमान ने औलाद बनाई है, वह इससे पाक है, बल्कि (फ़रिश्ते) तो मुअज़्ज़ज़ (सम्मानीय) बंदे हैं। वे उससे आगे बढ़कर बात नहीं करते। और वे उसी के हुक्म के मुताबिक़ अमल करते हैं। अल्लाह उनके अगले और पिछले अहवाल को जानता है। और वे सिफ़ारिश नहीं कर सकते मगर उसके लिए जिसे अल्लाह पसंद करे। और वे उसकी हैबत से डरते रहते हैं। और उनमें से जो शख्स कहेगा कि उसके सिवा मैं माबूद (पूज्य) हूं तो हम उसे जहन्नम की सज़ा देंगे। हम ज़ालिमों को ऐसी ही सज़ा देते हैं। (26-29)
क्या इंकार करने वालों ने नहीं देखा कि आसमान और ज़मीन दोनों बंद थे फिर हमने उन्हें खोल दिया। और हमने पानी से हर जानदार चीज़ को बनाया। क्या फिर भी वे ईमान नहीं लाते। (30)
और हमने ज़मीन में पहाड़ बनाए कि वह उन्हें लेकर झुक न जाए और उसमें हमने कुशादा रास्ते बनाए ताकि लोग राह पाएं। और हमने आसमान को एक महफ़ूज़ (सुरक्षित) छत बनाया। और वे उसकी निशानियों से एराज़ (उपेक्षा) किए हुए हैं। और वही है जिसने रात और दिन और सूरज और चांद बनाए। सब एक-एक मदार (कक्ष) में तैर रहे हैं। (31-33)
और हमने तुमसे पहले भी किसी इंसान को हमेशा की ज़िंदगी नहीं दी तो क्या अगर तुम्हें मौत आ जाए तो वे हमेशा रहने वाले हैं। हर जान को मौत का मज़ा चखना है। और हम तुम्हें बुरी हालत और अच्छी हालत से आज़माते हैं परखने के लिए। और तुम सब हमारी तरफ़ लौटाए जाओगे। (34-55)
और मुंकिर लोग जब तुम्हें देखते हैं तो वे सब तुम्हें मज़ाक़ बना लेते हैं। क्या यही है जो तुम्हारे माबूदों (पूज्यों) का ज़िक्र किया करता है। और ख़ुद ये लोग रहमान के ज़िक्र का इंकार करते हैं। (36)
इंसान उजलत (जल्दबाजी) के ख़मीर से पैदा हुआ है। मैं तुम्हें अनक़रीब अपनी निशानियां दिखाऊंगा, पस तुम मुझसे जल्दी न करो और लोग कहते हैं कि यह वादा कब आएगा अगर तुम सच्चे हो। काश इन मुंकिरों को उस वक़्त की ख़बर होती जबकि वे आग को न अपने सामने से रोक सकेंगे और न अपने पीछे से। और न उन्हें मदद पहुंचेगी। बल्कि वह अचानक उन पर आ जाएगी, पस उन्हें बदहवास कर देगी। फिर वे न उसे दफ़ा कर सकेंगे और न उन्हें मोहलत दी जाएगी। और तुमसे पहले भी रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया गया। फिर जिन लोगों ने उनमें से मज़ाक़ उड़ाया था उन्हें उस चीज़ ने घेर लिया जिसका वे मज़ाक़ उड़ाते थे। (37-41)
कहो कि कौन है जो रात और दिन में रहमान से तुम्हारी हिफ़ाज़त करता है। बल्कि वे लोग अपने रब की याददिहानी से एराज़ (उपेक्षा) कर रहे हैं। क्या उनके लिए हमारे सिवा कुछ माबूद (पूज्य) हैं जो उन्हें बचा लेते हैं। वे ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त की क्रुदरत नहीं रखते। और न हमारे मुक़ाबले में कोई उनका साथ दे सकता है। (42-43)
बल्कि हमने उन्हें और उनके बाप-दादा को दुनिया का सामान दिया। यहां तक कि इसी हाल में उन पर लम्बी मुदृदत गुज़र गई। क्या वे नहीं देखते कि हम ज़मीन को उसके अतराफ़ (चतुर्दिक) से घटाते चले जा रहे हैं। फिर क्या यही लोग ग़ालिब (वर्चस्वशील) रहने वाले हैं। कहो कि मैं बस “वही! (ईश्वरीय वाणी) के ज़रिए से तुम्हें डराता हूं। और बहरे पुकार को नहीं सुनते जबकि उन्हें डराया जाए और अगर तेरे रब के अज़ाब का झौंका उन्हें लग जाए तो वे कहने लगेंगे कि हाय हमारी बदबख़्ती, बेशक हम ज़ालिम थे। (44-46)
और हम क्रियामत के दिन इंसाफ़ की तराज़ू रखेंगे। पस किसी जान पर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा। और अगर राई के दाने के बराबर भी किसी का अमल होगा तो हम उसे हाज़िर कर देंगे। और हम हिसाब लेने के लिए काफ़ी हैं। (47)
और हमने मूसा और हारून को फ़ुरक़ान (सत्य-असत्य की कसौटी) और रोशनी और नसीहत अता की ख़ुदातरसों (ईश परायण लोगों) के लिए, जो बिना देखे अपने रब से डरते हैं और वे क्रियामत का ख़ौफ़ रखने वाले हैं। और यह एक बाबरकत याददिहानी है जो हमने उतारी है, तो क्या तुम इसके मुंकिर हो। (48-50)
और हमने इससे पहले इब्राहीम को इसकी हिदायत अता की। और हम उसे खूब जानते थे। जब उसने अपने बाप और अपनी क्रौम से कहा कि ये क्या मूर्तियां हैं जिन पर तुम जमे बैठे हो। उन्होंने कहा कि हमने अपने बाप दादा को इनकी इबादत करते हुए पाया है। इब्राहीम ने कहा कि बेशक तुम और तुम्हारे बाप दादा एक खुली गुमराही में मुब्तिला रहे। (51-54)
उन्होंने कहा, क्या तुम हमारे पास सच्ची बात लाए हो या तुम मज़ाक़ कर रहे हो। इब्राहीम ने कहा बल्कि तुम्हारा रब वह है जो आसमानों और ज़मीन का रब है। जिसने उन्हें पैदा किया। और मैं इस बात की गवाही देने वाला हूं और ख़ुदा की क़सम मैं तुम्हारे बुतों के साथ एक तदबीर (युक्ति) करूंगा। जबकि तुम पीठ फेरकर चले जाओगे। पस उसने उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर दिया सिवा उनके एक बड़े के ताकि वे उसकी तरफ़ रुजूअ करें। (55-58)
उन्होंने कहा कि किसने हमारे बुतों के साथ ऐसा किया है बेशक वह बड़ा ज़ालिम है। लोगों ने कहा कि हमने एक जवान को इनका तज़्किरा करते हुए सुना था जिसे इब्राहीम कहा जाता है। उन्होंने कहा कि उसे सब आदमियों के सामने हाज़िर करो। ताकि वे देखें। उन्होंने कहा कि ऐ इब्राहीम, क्या हमारे माबूदों (पूज्यों) के साथ तुमने ऐसा किया है। इब्राहीम ने कहा, बल्कि उनके इस बड़े ने ऐसा किया है तो उनसे पूछ लो अगर ये बोलते हों। (59-63)
फिर उन्होंने अपने जी में सोचा फिर कहने लगे कि हक़ीक़त में तुम ही नाहक़ पर हो। फिर अपने सरों को झुका लिया। ऐ इब्राहीम, तुम जानते हो कि ये बोलते नहीं। इब्राहीम ने कहा, क्या तुम ख़ुदा के सिवा ऐसी चीज़ों की इबादत करते हो जो तुम्हें न कोई फ़ायदा पहुंचा सकें और न कोई नुक़्सान | अफ़सोस है तुम पर भी और उन चीज़ों पर भी जिनकी तुम अल्लाह के सिवा इबादत करते हो। क्या तुम समझते नहीं। (64-67)
उन्होंने कहा कि इसे आग में जला दो और अपने माबूदों (पूज्यों) की मदद करो, अगर तुम्हें कुछ करना है। हमने कहा कि ऐ आग तू इब्राहीम के लिए ठंडक और सलामती बन जा। और उन्होंने उसके साथ बुराई करना चाहा तो हमने उन्हीं लोगों को नाकाम बना दिया। (68-70)
और हमने उसे और लूत को उस ज़मीन की तरफ़ नजात दे दी जिसमें हमने दुनिया वालों के लिए बरकतें रखी हैं। और हमने उसे इस्हाक़ दिया और मज़ीद बरआं (तदधिक) याक्रूब। और हमने उन सबको नेक बनाया। और हमने उन्हें इमाम (नायक) बनाया जो हमारे हुक्म से रहनुमाई करते थे। और हमने उन्हें नेक अमली और नमाज़ की इक्रामत और ज़कात की अदायगी का हुक्म भेजा और वे हमारी इबादत करने वाले थे। और लूत को हमने हिक्मत (तत्वदर्शिता) और इल्म अता किया। और उसे उस बस्ती से नजात दी जो गंदे काम करती थी। बिलाशुबह वे बहुत बुरे, फ़ासिक़ (अवज्ञाकारी) लोग थे। और हमने उसे अपनी रहमत में दाखिल किया बेशक वह नेकों में से था। (71-75)
और नूह को जबकि इससे पहले उसने पुकारा तो हमने उसकी दुआ क़ुबूल की। पस हमने उसे और उसके लोगों को बहुत बड़े ग़म से नजात दी। और उन लोगों के मुक़ाबले में उसकी मदद की जिन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया। बेशक वे बहुत बुरे लोग थे। पस हमने उन सबको ग़र्क़ कर दिया। (76-77)
और दाऊद और सुलैमान को जब वे दोनों खेत के बारे में फ़ैसला कर रहे थे, जबकि उसमें कुछ लोगों की बकरियां रात के वक़्त जा पड़ीं। और हम उनके इस फ़ैसले को देख रहे थे। पस हमने सुलैमान को उसकी समझ दे दी। और हमने दोनों को हिक्मत (त्त्वदर्शिता) और इल्म अता किया था। और हमने दाऊद के साथ ताबेअ कर दिया था पहाड़ों को कि वे उसके साथ तस्बीह करते थे और परिंदों को भी। और हम ही करने वाले थे। और हमने उसे तुम्हारे लिए एक जंगी लिबास की संअत (शिल्पकला) सिखाई। ताकि वह तुम्हें लड़ाई में महफ़ूज़ रखे। तो क्या तुम शुक्र करने वाले हो। (78-80)
और हमने सुलैमान के लिए तेज़ हवा को मुसझूखर (वशीभूत) कर दिया जो उसके हुक्म से उस सरज़मीन की तरफ़ चलती थी जिसमें हमने बरकतें रखी हैं। और हम हर चीज़ को जानने वाले हैं। और शयातीन में से भी हमने उसके ताबेअ (अधीन) कर दिया था जो उसके लिए ग़ौता लगाते थे। और इसके सिवा दूसरे काम करते थे और हम उन्हें संभालने वाले थे। (81-82)
और अय्यूब को जबकि उसने अपने रब को पुकारा कि मुझे बीमारी लग गई है और तू सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाला है। तो हमने उसकी दुआ क़ुबूल की और उसे जो तकलीफ़ थी उसे दूर कर दिया। और हमने उसे उसका कुंबा (परिवार) अता किया और इसी के साथ उसके बराबर और भी, अपनी तरफ़ से रहमत और नसीहत, इबादत करने वालों के लिए। (83-84)
और इस्माईल और इदरीस और ज़ुलकिफ़्ल को, ये सब सब्र करने वालों में से थे। और हमने उन्हें अपनी रहमत में दाख़िल किया। बेशक वे नेक अमल करने वालों में से थे। (85-86)
और मछली वाले (यूनुस) को, जबकि वह अपनी क़ौम से बरहम (क्रुद्ध) होकर चला गया। फिर उसने यह समझा कि हम उसे न पकड़ेंगे फिर उसने अंधेरे में पुकारा कि तेरे सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं, तू पाक है। बेशक मैं क़ुसूरवार हूं। तो हमने उसकी दुआ क़ुबूल की और उसे ग़म से नजात दी। और इसी तरह हम ईमान वालों को नजात (मुक्ति) देते हैं। (87-88)
और ज़करिया को, जबकि उसने अपने रब को पुकारा कि ऐ मेरे रब, तू मुझे अकेला न छोड़। और तू बेहतरीन वारिस है। तो हमने उसकी दुआ क्ुबूल की और उसे यहया अता किया। और उसकी बीवी को उसके लिए दुरुस्त कर दिया। ये लोग नेक कामों में दौड़ते थे और हमें उम्मीद और ख़ौफ़ के साथ पुकारते थे। और हमारे आगे झुके हुए थे। (89-90)
और वह ख़ातून जिसने अपनी नामूस (स्तीत्व) को बचाया तो हमने उसके अंदर अपनी रूह फूंक दी और उसे और उसके बेटे को दुनिया वालों के लिए एक निशानी बना दिया। (91)
और यह तुम्हारी उम्मत एक ही उम्मत है और मैं ही तुम्हारा रब हूं तो तुम मेरी इबादत करो। और उन्होंने अपना दीन अपने अंदर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। सब हमारे पास आने वाले हैं। पस जो शख्स नेक अमल करेगा और वह ईमान वाला होगा तो उसकी महनत की नाक़द्री न होगी, और हम उसे लिख लेते हैं। (92-94)
और जिस बस्ती वालों के लिए हमने हलाकत मुक़दूदर कर दी है उनके लिए हराम है कि वे रुजूअ करें | यहां तक कि जब याजूज और माजूज खोल दिए जाएंगे और वे हर बुलन्दी से निकल पड़ेंगे। और सच्चा वादा नज़दीक आ लगेगा तो उन लोगों की निगाहें फटी रह जाएंगी जिन्होंने इंकार किया था। हाय हमारी कमबख़्ती, हम इससे ग़फ़लत में पड़े रहे। बल्कि हम ज़ालिम थे। (95-97)
बेशक तुम और जिन्हें तुम ख़ुदा के सिवा पूजते थे सब जहन्नम का ईधन हैं। वहीं तुम्हें जाना है। अगर ये वाक़ई माबूद (पूज्य) होते तो उसमें न पड़ते। और सब उसमें हमेशा रहेंगे। उसमें उनके लिए चिल्लाना है और वे उसमें कुछ न सुनेंगे। बेशक जिनके लिए हमारी तरफ़ से भलाई का पहले फ़ैसला हो चुका है वे उससे दूर रखे जाएंगे। वे उसकी आहट भी न सुनेंगे। और वे अपनी पसंदीदा चीज़ों में हमेशा रहेंगे। उन्हें बड़ी घबराहट ग़म में न डालेगी। और फ़रिश्ते उनका इस्तिक़बाल करेंगे। यह है तुम्हारा वह दिन जिसका तुमसे वादा किया गया था। (98-103)
जिस दिन हम आसमान को लपेट देंगे जिस तरह तूमार (पुस्तिका) में औराक़ (पन्ने) लपेट दिए जाते हैं। जिस तरह पहले हमने तख्लीक़ की इब्तिदा की थी उसी तरह हम फिर उसका इआदा (पुनरावृत्ति) करेंगे। यह हमारे ज़िम्मे वादा है और हम उसे करके रहेंगे। और ज़बूर में हम नसीहत के बाद लिख चुके हैं कि ज़मीन के वारिस हमारे नेक बंदे होंगे। इसमें एक बड़ी ख़बर है इबादतगुज़ार लोगों के लिए। (104-106)
और हमने तुम्हें तो बस दुनिया वालों के लिए रहमत बनाकर भेजा है। कहो कि मेरे पास जो वही! (ईश्वरीय वाणी) आती है वह यह है कि तुम्हारा माबूद (पूज्य) सिर्फ़ एक माबूद है, तो क्या तुम इताअतगुज़ार (आज्ञाकारी) बनते हो। पस अगर वे एराज़ (उपेक्षा) करें तो कह दो कि मैं तुम्हें साफ़ तौर पर इत्तिला कर चुका हूं। और मैं नहीं जानता कि वह चीज़ जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है, क़रीब है या दूर। बेशक वह खुली बात को भी जानता है और उस बात को भी जिसे तुम छुपाते हो। और मुझे नहीं मालूम शायद वह तुम्हारे लिए इम्तेहान हो और फ़ायदा उठा लेने की एक मोहलत हो। पैग़म्बर ने कहा कि ऐ मेरे रब, हक़ के साथ फ़ैसला कर दे। और हमारा रब रहमान (कृपाशील) है, उसी से हम उन बातों पर मदद मांगते हैं जो तुम बयान करते हो। (107-112)