धर्म

सूरह अर रूम हिंदी में – सूरह 30

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

अलिफ० लाम० मीम०। रूमी पास के इलाक़े में मग़लूब (परास्त) हो गए, और वे अपनी मग़लूबियत के बाद अनक़रीब ग़ालिब होंगे। चन्द वर्षों में। अल्लाह ही के हाथ में सब काम है, पहले भी और पीछे भी। और उस दिन ईमान वाले ख़ुश होंगे, अल्लाह की मदद से। वह जिसकी चाहता है मदद करता है। और वह ज़बरदस्त है, रहमत वाला है। अल्लाह का वादा है। अल्लाह अपने वादे के ख़िलाफ़ नहीं करता | लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते। वे दुनिया की ज़िंदगी के सिर्फ़ ज़ाहिर को जानते हैं, और वे आख़िरत से बेख़बर हैं। (1-7)

क्या उन्होंने अपने जी में ग़ौर नहीं किया, अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को और जो कुछ इनके दर्मियान है बरहक़ पैदा किया है। और सिर्फ़ एक मुक़र्रर मुददत के लिए। और लोगों में बहुत से हैं जो अपने रब से मुलाक़ात के मुंकिर हैं। क्या वे ज़मीन में चले फिरे नहीं कि वे देखते कि कैसा अंजाम हुआ उन लोगों का जो उनसे पहले थे। वे उनसे ज़्यादा ताक़त रखते थे। और उन्होंने ज़मीन को जोता और उसे उससे ज़्यादा आबाद किया जितना इन्होंने आबाद किया है। और उनके पास उनके रसूल वाज़ेह निशानियां लेकर आए। पस अल्लाह उन पर ज़ुल्म करने वाला न था। मगर वे ख़ुद ही अपनी जानों पर ज़ुल्म कर रहे थे। फिर जिन लोगों ने बुरा काम किया था उनका अंजाम बुरा हुआ, इस वजह से कि उन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया। और वे उनकी हंसी उड़ाते थे। (8-10) 

अल्लाह ख़ल्क़ (सृष्टि) को पहली बार पैदा करता है, फिर वही दुबारा उसे पैदा करेगा। फिर तुम उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे और जिस दिन क्रियामत बरपा होगी उस दिन मुजरिम लोग हैरतज़दा रह जाएंगे। और उनके शरीकों में से उनका कोई सिफ़ारिशी न होगा और वे अपने शरीकों के मुंकिर हो जाएंगे। और जिस दिन क़रियामत बरपा होगी उस दिन सब लोग जुदा-जुदा हो जाएंगे। पस जो ईमान लाए और जिन्होंने नेक अमल किए वे एक बाग़ में मसरूर (प्रसन्न) होंगे। और जिन लोगों ने इंकार किया और हमारी आयतों को और आख़िरत के पेश आने को झुठलाया तो वे अज़ाब में पकड़े हुए होंगे। पस तुम पाक अल्लाह की याद करो जब तुम शाम करते हो और जब तुम सुबह करते हो। और असामानों और ज़मीन में उसी के लिए हम्द (प्रशंसा) है और तीसरे पहर और जब तुम ज़ुहर करते हो। (11-18)

वह ज़िंदा को मुर्दा से निकालता है और मुर्दा को ज़िंदा से निकालता है। और वह ज़मीन को उसके मुर्दा हो जाने के बाद ज़िंदा करता है और इसी तरह तुम लोग निकाले जाओगे। और उसकी निशानियों में से यह है कि उसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया है। फिर यकायक तुम बशर इंसान बनकर फैल जाते हो। और उसकी निशानियों में से यह है कि उसने तुम्हारी जिन्स से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए ताकि तुम उनसे सुकून हासिल करो। और उसने तुम्हारे दर्मियान मुहब्बत और रहमत रख दी। बेशक इसमें बहुत सी निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो ग़ौर करते हैं। (19-21)

और उसकी निशानियों में से आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और तुम्हारी बोलियों ओर तुम्हारे रंगों का इख़्तेलाफ़ (मतभेद) है। बेशक इसमें बहुत सी निशानियां हैं इल्म वालों के लिए। और उसकी निशानियों में से तुम्हारा रात और दिन में सोना और तुम्हारा उसके फ़ज़्ल (जीविका) को तलाश करना है। बेशक इसमें बहुत सी निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो सुनते हैं। और उसकी निशानियों में से यह है कि वह तुम्हें बिजली दिखाता है, ख़ौफ़ के साथ और उम्मीद के साथ | और वह आसमान से पानी उतारता है फिर उससे ज़मीन को ज़िंदा करता है उसके मुर्दा हो जाने के बाद | बेशक इसमें निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो अक़्ल से काम लेते हैं। (22-24)

और उसकी निशानियों में से यह है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम है। फिर जब वह तुम्हें एक बार पुकारेगा तो तुम उसी वक़्त ज़मीन से निकल पड़ोगे। और आसमानों और ज़मीन में जो भी है उसी का है। सब उसी के ताबेअ (अधीन) हैं और वही है जो अव्वल बार पैदा करता है फिर वही दुबारा  पैदा करेगा। और यह उसके लिए ज़्यादा आसान है। और आसमानों और ज़मीन में उसी के लिए सबसे बरतर सिफ़त (गुण) है। और वह ज़बरदस्त है, हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (25-27)

वह तुम्हारे लिए ख़ुद तुम्हारी ज़ात से एक मिसाल बयान करता है। क्या तुम्हारे गुलामों में कोई तुम्हारे उस माल में शरीक है जो हमने तुम्हें दिया है कि तुम और वह उसमें बराबर हों। और जिस तरह तुम अपनों का लिहाज़ करते हो उसी तरह उनका भी लिहाज़ करते हो। इस तरह हम आयतें खोलकर बयान करते हैं उन लोगों के लिए जो अक़्ल से काम लेते हैं। बल्कि अपनी जानों पर ज़ुल्म करने वालों ने बगैर दलील अपने ख्यालात की पैरवी कर रखी है तो उसे कौन हिदायत दे सकता है जिसे अल्लाह ने भटका दिया हो। और कोई उनका मददगार नहीं। (28-29)

पस तुम यकसू होकर अपना रुख़ इस दीन की तरफ़ रखो, अल्लाह की फ़ितरत जिस पर उसने लोगों को बनाया है। उसके बनाए हुए को बदलना नहीं। यही सीधा दीन है। लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते। उसी की तरफ़ मुतवज्जह होकर और उसी से डरो और नमाज़ क़ायम करो और मुश्रिकीन में से न बनो जिन्होंने अपने दीन को टुकड़े-टुकड़े कर लिया। और बहुत से गिरोह हो गए। हर गिरोह अपने तरीक़े पर नाज़ां (मग्न) है जो उसके पास है। (30-32)

और जब लोगों को कोई तकलीफ़ पहुंचती है तो वे अपने रब को पुकारते हैं उसी की तरफ़ मुतवज्जह होकर। फिर जब वह अपनी तरफ़ से उन्हें मेहरबानी चखाता है तो उनमें से एक गिरोह अपने रब का शरीक ठहराने लगता है कि जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसके मुंकिर हो जाएं। तो चन्द दिन फ़ायदा उठा लो, अनक़रीब तुम्हें मालूम हो जाएगा। क्या हमने उन पर कोई सनद उतारी है कि वह उन्हें ख़ुदा के साथ शिर्क करने को कह रही है। (33-35)

और जब हम लोगों को मेहरबानी चखाते हैं तो वे उससे ख़ुश हो जाते हैं। और अगर उनके आमाल के सबब से उन्हें कोई तकलीफ़ पहुंचती है तो यकायक वे मायूस हो जाते हैं। क्या वे देखते नहीं कि अल्लाह जिसे चाहे ज़्यादा रोज़ी देता है और जिसे चाहे कम। बेशक इसमें निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं। पस रिश्तेदार को उसका हक़ दो और मिस्कीन को और मुसाफ़िर को। यह बेहतर है उन लोगों के लिए जो अल्लाह की रिज़ा चाहते हैं और वही लोग फ़लाह पाने वाले हैं। और जो सूद तुम देते हो ताकि लोगों के माल में शामिल होकर वह बढ़ जाए, तो अल्लाह के नज़दीक वह नहीं बढ़ता | और जो ज़कात तुम दोगे अल्लाह की रिज़ा हासिल करने के लिए तो यही लोग हैं जो अल्लाह के यहां अपने माल को बढ़ाने वाले हैं। (36-39) 

अल्लाह ही है जिसने तुम्हें पैदा किया, फिर उसने तुम्हें रोज़ी दी, फिर वह तुम्हें मौत देता है, फिर वह तुम्हें ज़िंदा करेगा। क्या तुम्हारे शरीकों में से कोई ऐसा है जो इनमें से कोई काम करता हो। वह पाक है और बरतर है उस शिर्क से जो ये लोग करते हैं। ख़ुश्की और तरी में फ़साद फैल गया लोगों के अपने हाथों की कमाई से, ताकि अल्लाह मज़ा चखाए उन्हें उनके कुछ आमाल का, शायद की वे बाज़ आएं। कहो कि ज़मीन में चलो फिरो, फिर देखो कि उन लोगों का अंजाम क्‍या हुआ जो इससे पहले गुज़रे हैं। उनमें से अक्सर मुश्रिक (बहुदेववादी) थे। (40-42)

पस अपना रुख़ दीने क़स्यिम (सीथैे-सहज धर्म) की तरफ़ सीधा रखो। इससे पहले कि अल्लाह की तरफ़ से ऐसा दिन आ जाए जिसके लिए वापसी नहीं है। उस दिन लोग जुदा-जुदा हो जाएंगे। जिसने इंकार किया तो उसका इंकार उसी पर पड़ेगा। और जिसने नेक अमल किया तो ये लोग अपने ही लिए सामान कर रहे हैं। ताकि अल्लाह ईमान लाने वालों को और नेक अमल करने वालों को अपने फ़ज़्ल से जज़ा (प्रतिफल) दे। बेशक अल्लाह मुंकिरों को पसंद नहीं करता। (43-45)

और उसकी निशानियों में से यह है कि वह हवाएं भेजता है ख़ुशख़बरी देने के लिए और ताकि वह तुम्हें अपनी रहमत से नवाज़े। और ताकि कश्तियां उसके हुक्म से चलें। और ताकि तुम उसका फ़ज़्ल तलाश करो। और ताकि तुम उसका शुक्र अदा करो। और हमने तुमसे पहले रसूलों को भेजा उनकी क्रौम की तरफ़। पस वे उनके पास खुली निशानियां लेकर आए। तो हमने उन लोगों से इंतिक़ाम लिया जिन्होंने जुर्म किया था। और हम पर यह हक़ था कि हम मोमिनों की मदद करें। (46-47)

अल्लाह ही है जो हवाओं को भेजता है। पस वे बादल को उठाती हैं। फिर अल्लाह उन्हें आसमान में फैला देता है जिस तरह चाहता है। और वह उन्हें तह-ब-तह करता है। फिर तुम बारिश को देखते हो कि उसके अंदर से निकलती है। फिर जब वह अपने बंदों में से जिसे चाहता है उसे पहुंचा देता है तो यकायक वे ख़ुश हो जाते हैं। और वे उसके नाज़िल किए जाने से पहले, ख़ुशी से पहले, नाउम्मीद थे। पस अल्लाह की रहमत के आसार (निशान) को देखो, वह किस तरह ज़मीन को ज़िंदा कर देता है उसके मुर्दा हो जाने के बाद। बेशक वही मुद्दों को ज़िंदा करने वाला है। और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। और अगर हम एक हवा भेज दें, फिर वे खेती को ज़र्द हुई देखें तो इसके बाद वे इंकार करने लगेंगे। तो तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते, और न तुम बहरों को अपनी पुकार सुना सकते जबकि वे पीठ फेरकर चले जा रहे हों। और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से निकाल कर राह पर ला सकते हो। तुम सिर्फ़ उसे सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर ईमान लाने वाला हो। पस यही लोग इताअत (आज्ञापालन) करने वाले हैं। (48-53)

अल्लाह ही है जिसने तुम्हें कमज़ोरी से पैदा किया, फिर कमज़ोरी के बाद क़ुव्वत (शक्ति) दी, फिर क्ुव्वत के बाद कमजोरी और बुढ़ापा तारी कर दिया। वह जो चाहता है पैदा करता है। और वह इल्म वाला, क़ुदरत वाला है। और जिस दिन क्रियामत बरपा होगी, मुजरिम क़सम खाकर कहेंगे कि वे एक घड़ी से ज़्यादा नहीं रहे। इस तरह वे फेरे जाते थे। और जिन लोगों को इल्म व ईमान अता हुआ था वे कहेंगे कि अल्लाह की किताब में तो तुम हश्र (जीवित हो उठने) के दिन तक पड़े रहे। पस यह हश्र (जीवित हो उठने) का दिन है, लेकिन तुम जानते न थे। पस उस दिन ज़ालिमों को उनकी मअज़रत (सफ़ाई पेश करना) कुछ नफ़ा न देगी और न उनसे माफ़ी मांगने के लिए कहा जाएगा। (54-57)

और हमने इस क्रुरआन में लोगों के लिए हर क़रिस्म की मिसालें बयान की हैं। और अगर तुम उनके पास कोई निशानी ले आओ तो जिन लोगों ने इंकार किया है वे यही कहेंगे कि तुम सब बातिल (असत्य) पर हो। इस तरह अल्लाह मुहर कर देता है उन लोगों के दिलों पर जो नहीं जानते। पस तुम सब्र करो, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है। और तुम्हें बेबरदाश्त न कर दें वे लोग जो यक़ीन नहीं रखते। (58-60)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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