धर्म

सूरह मुहम्मद हिंदी में – सूरह 47

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

जिन लोगों ने इंकार किया और अल्लाह के रास्ते से रोका, अल्लाह ने उनके आमाल को रायगां (अकारत) कर दिया। और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक अमल किए और उस चीज़ को माना जो मुहम्मद पर उतारा गया है, और वह हक़ है उनके रब की तरफ़ से, अल्लाह ने उनकी बुराइयां उनसे दूर कर दीं और उनका हाल दुरुस्त कर दिया। यह इसलिए कि जिन लोगों ने इंकार किया उन्होंने बातिल (असत्य) की पैरवी की। और जो लोग ईमान लाए उन्होंने हक़ (सत्य) की पैरवी की जो उनके रब की तरफ़ से है। इस तरह अल्लाह लोगों के लिए उनकी मिसालें बयान करता है। (1-3)

पस जब मुंकिरों से तुम्हारा मुक़ाबला हो तो उनकी गर्दनें मारो। यहां तक कि जब ख़ूब क़त्ल कर चुको तो उन्हें मज़बूत बांध लो। फिर इसके बाद या तो एहसान करके छोड़ना है या मुआवज़ा लेकर, यहां तक कि जंग अपने हथियार रख दे। यह है काम। और अगर अल्लाह चाहता तो वह उनसे बदला ले लेता, मगर ताकि वह तुम लोगों को एक दूसरे से आज़माए। और जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाएंगे, अल्लाह उनके आमाल को हरगिज़ ज़ाए (नष्ट) नहीं करेगा। वह उनकी रहनुमाई फ़रमाएगा और उनका हाल दुरुस्त कर देगा। और उन्हें जन्नत में दाख़िल करेगा जिसकी उन्हें पहचान करा दी है। (4-6)

ऐ ईमान वालो, अगर तुम अल्लाह की मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दमों को जमा देगा। और जिन लोगों ने इंकार किया उनके लिए तबाही है और अल्लाह उनके आमाल को ज़ाया कर देगा। यह इस सबब से कि उन्होंने उस चीज़ को नापसंद किया जो अल्लाह ने उतारी है। पस अल्लाह ने उनके आमाल को अकारत कर दिया। क्या ये लोग मुल्क मे चले फिरे नहीं कि वे उन लोगों का अंजाम देखते जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं, अल्लाह ने उन्हें उखाड़ फेंका और मुंकिरों के सामने उन्हीं की मिसालें आनी हैं। यह इस सबब से कि अल्लाह ईमान वालों का कारसाज़ है और मुंकिरों का कोई कारसाज़ (संरक्षक) नहीं। (7-11)

बेशक अल्लाह उन लोगों को जो ईमान लाए और जिन्होंने नेक अमल किया ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। और जिन लोगों ने इंकार किया वे बरत रहे हैं और खा रहे हैं जैसे कि चौपाए खाएं, और आग उन लोगों का ठिकाना है। और कितनी ही बस्तियां हैं जो क्रुव्वत (शक्ति) में तुम्हारी उस बस्ती से ज़्यादा थीं जिसने तुम्हें निकाला है। हमने उन्हें हलाक कर दिया। पस कोई उनका मददगार न हुआ। (12-13)

क्या वह जो अपने रब की तरफ़ से एक वाज़ेह (स्पष्ट) दलील पर है। वह उसकी तरह हो जाएगा जिसकी बदअमली उसके लिए ख़ुशनुमा बना दी गई है और वे अपनी ख़्वाहिशात (इच्छाओं) पर चल रहे हैं। जन्नत की मिसाल जिसका वादा डरने वालों से किया गया है उसकी कैफ़ियत यह है कि उसमें नहहें हैं ऐसे पानी की जिसमें तब्दीली न होगी और नहरें होंगी दूध की जिसका मज़ा नहीं बदला होगा और नहरें होंगी शराब की जो पीने वालों के लिए लज़ीज़ होगीं और नहहें होंगी शहद की जो बिल्कुल साफ़ होगा। और उनके लिए वहां हर क़िस्म के फल होंगे। और उनके रब की तरफ़ से बख्शिश (क्षमा) होगी। क्या ये लोग उन जैसे हो सकते हैं जो हमेशा आग में रहेंगे और उन्हें खौलता हुआ पानी पीने के लिए दिया जाएगा, पस वह उनकी आंतों को टुकड़े-टुकड़े कर देगा। (14-15)

तुम्हारे पास से बाहर जाते हैं तो इल्म वालों से पूछते हैं कि उन्होंने अभी क्या कहा। यही लोग हैं जिनके दिलों पर अल्लाह ने मुहर लगा दी। और वे अपनी ख़्वाहिशों पर चलते हैं। और जिन लोगों ने हिदायत की राह इख़्तियार की तो अल्लाह उन्हें और ज़्यादा हिदायत देता है और उन्हें उनकी परहेज़गारी (ईश-परायणता)अता करता है। (16-17)

ये लोग तो बस इसके मुंतज़िर हैं कि क्रियामत उन पर अचानक आ जाए तो उसकी अलामतें ज़ाहिर हो चुकी हैं। पल जब वह आ जाएगी तो उनके लिए नसीहत हासिल करने का मौक़ा कहां रहेगा। पस जान लो कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं और माफ़ी मांगों अपने क़ूसूर के लिए और मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों के लिए। और अल्लाह जानता है तुम्हारे चलने फिरने को और तुम्हारे ठिकानों को। (18-19)

और जो लोग ईमान लाए हैं वे कहते हैं कि कोई सूरह क्‍यों नहीं उतारी जाती। पस जब एक वाज़ेह सूरह उतार दी गई और उसमें जंग का भी ज़िक्र था तो तुमने देखा कि जिनके दिलों में बीमारी है वे तुम्हारी तरफ़ इस तरह देख रहे हैं जैसे किसी पर मौत छा गई हो। पस ख़राबी है उनकी। हुक्म मानना है और भली बात कहना है। पस जब मामले का क़तई फ़ैसला हो जाए तो अगर वे अल्लाह से सच्चे रहते तो उनके लिए बहुत बेहतर होता। पस अगर तुम फिर गए तो इसके सिवा तुमसे कुछ उम्मीद नहीं कि तुम ज़मीन में फ़लाद करो और आपस के रिश्तों को तोड़ दो। यही लोग हैं जिन्हें अल्लाह ने अपनी रहमत से दूर किया, पस उन्हें बहरा कर दिया और उनकी आंखों को अंधा कर दिया। (20-23)

क्या ये लोग क्कुरआन में गौर नहीं करते या दिलों पर उनके ताले लगे हुए हैं। जो लोग पीठ फेरकर हट गए, बाद इससे किहिदायत उन पर वाज़ेह हो गई, शैतान ने उन्हें फ़रेब दिया और अल्लाह ने उन्हें ढील दे दी। यह इस सबब से हुआ कि उन्होंने उन लोगों से जो कि ख़ुदा की उतारी हुई चीज़ को नापसंद करते हैं, कहा कि कुछ बातों में हम तुम्हारा कहना मान लेंगे। और अल्लाह उनकी राज़दारी को जानता है। पस उस वक़्त क्या होगा जबकि फ़रिश्ते उनकी रूहें क़ब्ज़ करते होंगे, उनके मुंह और उनकी पीठों पर मारते हुए यह इस सबब से कि उन्होंने उस चीज़ की पैरवी की जो अल्लाह को गुस्सा दिलाने वाली थी और उन्होंने उसकी रिज़ा को नापसंद किया। पस अल्लाह ने उनके आमाल अकारत कर दिए। (24-28)

जिन लोगों के दिलों में बीमारी है क्या वे ख़्याल करते हैं कि अल्लाह उनके कीने (द्वेषों) को कभी ज़ाहिर न करेगा। और अगर हम चाहते तो हम उनको तुम्हें दिखा देते, पस तुम उनकी अलामतों से उन्हें पहचान लेते। और तुम उनके अंदाज़े कलाम से ज़रूर उन्हें पहचान लोगे। और अल्लाह तुम्हारे आमाल को जानता है। (29-30)

और हम ज़रूर तुम्हें आज़माएंगे ताकि हम उन लोगों को जान लें जो तुम में जिहाद करने वाले हैं और साबितक़दम रहने वाले हैं और हम तुम्हारे हालात की जांच कर लें। बेशक जिन लोगों ने इंकार किया और अल्लाह के रास्ते से रोका और रसूल की मुख़ालिफ़त की जबकि हिदायत उन पर वाज़ेह हो चुकी थी, वे अल्लाह को कुछ नुक़्सान न पहुंचा सकेंगे। और अल्लाह उनके आमाल को ढा देगा। (31-32)

ऐ ईमान वालो, अल्लाह की इताअत (आज्ञापालन) करो और रसूल की इताअत करो और अपने आमाल को बर्बाद न करो। बेशक जिन लोगों ने इंकार किया और अल्लाह के रास्ते से रोका। फिर वे मुंकिर ही मर गए, अल्लाह उन्हें कभी न बखछ़्छेगा। पस तुम हिम्मत न हारो और सुलह की दरख़्वास्त न करो। और तुम ही ग़ालिब रहोगे। और अल्लाह तुम्हारे साथ है। और वह हरगिज़ तुम्हारे आमाल में कमी न करेगा। (33-35)

दुनिया की ज़िंदगी तो महज़ एक खेल तमाशा है और अगर तुम ईमान लाओ और तक़वा (ईशपरायणता) इख़्तियार करो तो अल्लाह तुम्हें तुम्हारे अज़ अता करेगा और वह तुम्हारे माल तुमसे न मांगेगा। अगर वह तुमसे तुम्हारे माल तलब करे फिर आख़िर तक तलब करता रहे तो तुम बुख़्ल (कंजूसी) करने लगो और अल्लाह तुम्हारे कीने को ज़ाहिर कर दे। हां, तुम वे लोग हो कि तुम्हें अल्लाह की राह में ख़र्च करने के लिए बुलाया जाता है, पस तुम में से कुछ लोग हैं जो बुख़्ल (कंजूसी) करते हैं। और जो शख्स बुख्ल करता। तो वह अपने ही से बुख़्ल करता है। और अल्लाह बेनियाज़ (निस्पृष्ठ) है, तुम मोहताज हो। और अगर तुम फिर जाओ तो अल्लाह तुम्हारी जगह दूसरी क़ौम ले आएगा, फिर वे तुम जैसे न होंगे। (36-38)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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