सूरह अन नज्म हिंदी में – सूरह 53
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
क़सम है सितारे की जबकि वह ग़ुरूब (अस्त) हो। तुम्हारा साथी न भटका है और न गुमराह हुआ है। और वह अपने जी से नहीं बोलता। यह एक “वही’ (ईश्वरीय वाणी) है जो उस पर भेजी जाती है। उसे ज़बरदस्त क़ुव्वत वाले ने तालीम दी है, आक़िल (प्रबुद्ध) व दाना (विवेकशील) ने। फिर वह नमूदार हुआ और वह आसमान के ऊंचे किनारे पर था। फिर वह नज़दीक हुआ, पस वह उतर आया। फिर दो कमानों के बराबर या इससे भी कम फ़ासला रह गया। फिर अल्लाह ने वही” (प्रकाशना) की अपने बंदों की तरफ़ जो वही” की। झूठ नहीं कहा रसूल के दिल ने जो उसने देखा। अब क्या तुम उस चीज़ पर उससे झगड़ते हो जो उसने देखा है। और उसने एक बार और भी उसे सिदरतुल मुंतहा के पास उतरते देखा है। उसके पास ही बहिश्त है आराम से रहने की, जबकि सिदरह पर छा रहा था जो कुछ कि छा रहा था। निगाह बहकी नहीं और न हद से बढ़ी। उसने अपने रब की बड़ी-बड़ी निशानियां देखीं। (1-18)
भला तुमने लात और उज़्ज़ा पर ग़ौर किया है। और तीसरे एक और मनात पर। क्या तुम्हारे लिए बेटे हैं और ख़ुदा के लिए बेटियां। यह तो बहुत बेढंगी तक़्सीम हुई। ये महज़ नाम हैं जो तुमने और तुम्हारे बाप दादा ने रख लिए हैं अल्लाह ने इनके हक़ में कोई दलील नहीं उतारी। वे महज़ गुमान की पैरवी कर रहे हैं। और नफ़्स की ख्वाहिश की | हालांकि उनके पास उनके रब की जानिब से हिदायत आ चुकी है। कया इंसान वह सब पा लेता है जो वह चाहे। पस अल्लाह के इख़्तियार में है आख़िरत और दुनिया। (19-25)
और आसमानों में कितने फ़रिश्ते हैं जिनकी सिफ़ारिश कुछ भी काम नहीं आ सकती। मगर बाद इसके कि अल्लाह इजाज़त दे जिसे वह चाहे और पसंद करे। बेशक जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, वे फ़रिश्तों को औरतों के नाम से पुकारते हैं। हालांकि उनके पास इस पर कोई दलील नहीं। वे महज़ गुमान पर चल रहे हैं। और गुमान हक़ बात में ज़रा भी मुफ़ीद नहीं। पस तुम ऐसे शख्स से एराज़ (उपेक्षा) करो जो हमारी नसीहत से मुंह मोड़े। और वह दुनिया की ज़िंदगी के सिवा और कुछ न चाहे। उनकी समझ बस यहीं तक पहुंची है। तुम्हारा रब ख़ूब जानता है कि कौन उसके रास्ते से भटका हुआ है। और वह उसे भी ख़ूब जानता है जो राहेरास्त (सन्मार्ग) पर है। (26-30)
और अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है, ताकि वह बदला दे बुरा काम करने वालों को उनके किए का और बदला दे भलाई वालों को भलाई से। जो कि बड़े गुनाहों से और बेहयाई से बचते हैं मगर कुछ आलूदगी (छोटी बुराई)। बेशक तुम्हारे रब की बख्शिश की बड़ी समाई है। वह तुम्हें ख़ूब जानता है जबकि उसने तुम्हें ज़मीन से पैदा किया। और जब तुम अपनी मांओं के पेट में जनीन (भ्रूण) की शक्ल में थे। तो तुम अपने को मुक़दूदस (पवित्र) न समझो। वह तक़वा (ईश-भय) वालों को ख़ूब जानता है। (31-32)
भला तुमने उस शख्स को देखा जिसने एराज़ (उपेक्षा) किया। थोड़ा सा दिया और रुक गया। क्या उसके पास गैब का इल्म है। पस वह देख रहा है। क्या उसे ख़बर नहीं पहुंची उस बात की जो मूसा के सहीफ़ों (ग्रंथों) में है, और इब्राहीम के, जिसने अपना क़ौल पूरा कर दिया। कि कोई उठाने वाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और यह कि इंसान के लिए वही है जो उसने कमाया। और यह कि उसकी कमाई अनक़रीब देखी जाएगी। फिर उसे पूरा बदला दिया जाएगा। और यह कि सबको तुम्हारे रब तक पहुंचना है। (33-42)
और बेशक वही हंसाता है और रुलाता है। और वही मारता है और जिलाता है। और उसी ने दोनों क्रिस्म, नर और मादा को पैदा किया, एक बूंद से जबकि वह टपकाई जाए। और उसी के ज़िम्मे है दूसरी बार उठाना। और उसी ने दौलत दी और सरमायादार बनाया। और वही शिअरा (नाम के तारे) का रब है। (43-49)
और अल्लाह ही ने हलाक किया आदे अव्वल को और समूद को | फिर किसी को बाक़ी न छोड़ा। और क़ौमे नूह को उससे पहले, बेशक वे निहायत ज़ालिम और सरकश थे। और उलटी हुई बस्तियों को भी फेंक दिया। पस उन्हें ढांक लिया जिस चीज़ ने ढांक लिया। पस तुम अपने रब के किन-किन करिश्मों को झुठलाओगे। (50-55)
यह एक डराने वाला है पहले डराने वालों की तरह। क़रीब आने वाली क़रीब आ गई। अल्लाह के सिवा कोई उसे हटाने वाला नहीं। क्या तुम्हें इस बात से तअज्जुब होता है। और तुम हंसते हो और तुम रोते नहीं। और तुम तकब्बुर (घमंड) करते हो। पस अल्लाह के लिए सज्दा करो और उसी की इबादत करो। (56-62)