सूरह अल वाक़िअह हिंदी में – सूरह 56
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
जब वाक़ेअ (घटित) होने वाली वाक़ेअ हो जाएगी। उसके वाक़ेअ होने में कुछ झूठ नहीं। वह पस्त करने वाली, बुलन्द करने वाली होगी। जबकि ज़मीन हिला डाली जाएगी। और पहाड़ टूट कर रेज़ा-रेज़ा हो जाएंगे। फिर वे परागंदा गुबार (मलिन धुंध) बन जाएंगे। और तुम लोग तीन क़िस्म के हो जाओगे। (1-7)
फिर दाएं वाले, पस कया खूब हैं दाएं वाले। और बाएं वाले कैसे बुरे लोग हैं बाएं वाले। और आगे वाले तो आगे ही वाले हैं। वे मुक़र्रब लोग हैं। नेमत के बाग़ों में। उनकी बड़ी तादाद अगलों में से होगी। और थोड़े पिछलों में से होंगे। जड़ाऊ तख््तों पर। तकिया लगाए आमने सामने बैठे होंगे। फिर रहे होंगे उनके पास लड़के हमेशा रहने वाले। आबख़ोरे और कूज़े लिए हुए और प्याला साफ़ शराब का। उससे न सर दर्द होगा और न अक़्ल में फ़ुतूर आएगा। और मेवे कि जो चाहें चुन लें। और परिंदों का गोश्त जो उन्हें मरगूब (पसंद) हो। और बड़ी आंखों वाली हूरें। जैसे मोती के दाने अपने गिलाफ़ के अंदर। बदला उन कामों का जो वे करते थे। उसमें वे कोई लग्व (घटिया, निरर्थक) और गुनाह की बात नहीं सुनेंगे। मगर सिर्फ़ सलाम-सलाम का बोल। (8-26)
और दाहिने वाले, कया ख़ूब हैं दाहिने वाले। बेरी के दरख़्तों में जिनमें कांटा नहीं। और केले तह-ब-तह। और फैले हुए साये। और बहता हुआ पानी। और कसरत (बहुलता) से मेवे। जो न ख़त्म होंगे और न कोई रोकटोक होगी। और ऊंचे बिछौने | हमने उन औरतों को ख़ास तौर पर बनाया है। फिर उन्हें कुंवारी रखा है। दिलरुबा और हमउम्र | दाहिने वालों के लिए। अगलों में से एक बड़ा गिरोह होगा और पिछलों में से भी एक बड़ा गिरोह। (27-40)
और बाएं वाले, कैसे बुरे हैं बाएं वाले। आग में और खौलते हुए पानी में। और स्याह धुवें के साये में। न ठंडा और न इज़्जत का। ये लोग इससे पहले ख़ुशहाल थे। और भारी गुनाह पर इसरार करते रहे। और वे कहते थे, क्या जब हम मर जाएंगे। और हम मिट्टी और हड्ड्डियां हो जाएंगे तो क्या हम फिर उठाए जाएंगे। और क्या हमारे अगले बाप दादा भी। कहो कि अगले और पिछले सब, जमा किए जाएंगे | एक मुक़र्रर दिन के वक़्त पर। फिर तुम लोग, ऐ बहके हुए और झुठलाने वाले। ज़क़्क्रूम के दरख़्त में से खाओगे। फिर उससे अपना पेट भरोगे। फिर उस पर खौलता हुआ पानी पियोगे। फिर प्यासे ऊंटों की तरह पियोगे। यह उनकी मेहमानी होगी इंसाफ़ के दिन। (41-56)
हमने तुम्हें पैदा किया है। फिर तुम तस्दीक़ (पुष्टि) क्यों नहीं करते। क्या तुमने गौर किया उस चीज़ पर जो तुम टपकाते हो। क्या तुम उसे बनाते हो या हम हैं बनाने वाले। हमने तुम्हारे दर्मियान मौत मुक़ददर की है और हम इससे आजिज़ नहीं कि तुम्हारी जगह तुम्हारे जैसे पैदा कर दें और तुम्हें ऐसी सूरत में बना दें जिन्हें तुम जानते नहीं। और तुम पहली पैदाइश को जानते हो फिर क्यों सबक़ नहीं लेते। क्या तुमने ग़ौर किया उस चीज़ पर जो तुम बोते हो। क्या तुम उसे उगाते हो या हम हैं उगाने वाले। अगर हम चाहें तो उसे रेज़ा-रेज़ा कर दें, फिर तुम बातें बनाते रह जाओ। हम तो तावान (दंड) में पड़ गए। बल्कि हम बिल्कुल महरूम हो गए। क्या तुमने ग़ौर किया उस पानी पर जो तुम पीते हो। क्या तुमने उसे बादल से उतारा है। या हम हैं उतारने वाले। अगर हम चाहें तो उसे सख्त खारी बना दें। फिर तुम शुक्र क्यों नहीं करते | क्या तुमने ग़ौर किया उस आग पर जिसे तुम जलाते हो। क्या तुमने पैदा किया है उसके दरख़्त को या हम हैं उसके पैदा करने वाले। हमने उसे याददिहानी बनाया है। और मुसाफ़िरों के लिए फ़ायदे की चीज़। पस तुम अपने अज़ीम (महान) रब के नाम की तस्बीह करो। (57-74)
पस नहीं, मैं क़सम खाता हूं सितारों के मवाक़रेअ (स्थितियों) की। और अगर तुम ग़ौर करो तो यह बहुत बड़ी क़सम है। बेशक यह एक इज़्ज़त वाला क्ुरआन है। एक महफ़ूज़ किताब में | इसे वही छूते हैं जो पाक बनाए गए हैं। उतारा हुआ है परवरदिगारे आलम की तरफ़ से। फिर क्या तुम इस कलाम के साथ बेएतनाई (बेपरवाही) बरतते हो। और तुम अपना हिस्सा यही लेते हो कि तुम उसे झुठलाते हो। (75-82)
फिर क्यों नहीं, जबकि जान हलक़ में पहुंचती है। और तुम उस वक़्त देख रहे होते हो। और हम तुमसे ज़्यादा उस शख्स से क़रीब होते हैं मगर तुम नहीं देखते। फिर क्यों नहीं, अगर तुम महकूम (अधीन) नहीं हो तो तुम उस जान को क्यों नहीं लौटा लाते, अगर तुम सच्चे हो। पस अगर वह मुक़र्रबीन (निकटरवर्तियों) में से हो तो राहत है और उम्दा रोज़ी है और नेमत का बाग़ है। और अगर वह असहाबुलयमीन (दाईं तरफ़ वाले) में से हो तो तुम्हारे लिए सलामती, तू असहाबुलयमीन में से है। और अगर वह झुठलाने वाले गुमराह लोगों में से हो। तो गर्म पानी की ज़ियाफ़त (सत्कार) है, जहन्नम में दाखिल होना। बेशक यह क़तई हक़ है। पस तुम अपने अज़ीम रब के नाम की तस्बीह करो। (83-96)