आशाओं के सुमन खिलाओ
“आशाओं के सुमन खिलाओ” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें जीवन-पथ पर निरंतर बढ़ते रहने और हृदय में आशा-विश्वास संजोए रखने का आह्वान है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
मेरा जीवन मधुर दो।
व्याकुल मेरा अन्तर प्रतिपल
नयन बरसते झर-झर अविरल
उछ्वासों के तूफानों में
रहे सदा जो दृढ़ और निश्चल
मेरे मन-मन्दिर में ऐसा
शुचितम सुन्दर दीप जला दो।
मेरे जीवन…
सूख चुका आशा का उपवन
जीवन की घड़ियों में उलझन
नहीं कभी उल्लास मधुरतम
लाता साँझ-सवेरे उपवन
मेरी छोटी उर-बगिया में
आशाओं के सुमन खिला दो।
मेरे जीवन…
तेरा मुझको एक सहारा
तुझको है विश्वास हमारा
फिर इतना अन्तर कैसे है?
नहीं कोई जब कि है न्यारा
मेरे अन्तरतम से फिर तुम
कलुष भेद का भाव मिटा दो।
मेरे जीवन…
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।