अधिकार बना रहने दो
“अधिकार बना रहने दो” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि वेदना के स्वरों को मुखरित कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
चिर जलने का अधिकार बना रहने दो।
अम्बर में तड़प-तड़प कर निशि भर तारे जलते हैं
पर मूक वेदना अपनी वह कब किससे कहते हैं
मेरी भी मौन व्यथा को तुम मौन बना रहने दो।
चिर जलने का अधिकार बना रहने दो॥
अम्बुधि के जल को वाड़व हर समय जलाया करता
जलकर के ही निज सीमा में वह सीमित रहता
मेरे उस-सागर को भी जलकर सीमित रहने दो।
चिर जलने का अधिकार बना रहने दो॥
अग्नि प्रतिदिन जलती है जलते हैं भानु शशी भी
मेघों का उर जलता है शीतलता नहीं कहीं भी
जगजल-जल कर जीता है, मुझकोजीकर जलने दो।
चिर जलने का अधिकार बना रहने दो॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।