अकबर बीरबल की कहानी – “हौज के अण्डे”
“हौज के अण्डे” कहानी बीरबल की हाज़िरजवाबी का उदाहरण है। इस कहानी में पढ़ें कि कैसे बीरबल कर देता है सबकी बोलती बन्द। अन्य अकबर बीरबल की कहानियां पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – अकबर-बीरबल के किस्से
एक दिन बादशाह अकबर को बीरबल की हँसी उड़ाने की इच्छा जागृत हुईं। अतएव उन्होंने बीरबल के आने के पूर्व ही बाज़ार से बहुत-से मुर्गी के अंडे मंगाकर अपने दरबारियों को एक-एक कर बाँट दिए। केवल बीरबल ही खाली रह गया था।
वह ज्योंही दरबार मे हाज़िर हुआ, बादशाह ने कहा, “बीरबल, मैंने आज रात में एक अजीब सपना देखा है। उसका तात्पर्य यह निकलता है कि जो मनुष्य इस हौज में डुबकी लगाकर एक अण्डा मुरगी का न निकाल लावे, उसे दो बाप का समझना चाहिये। मैं केवल तुम्हारी ही बाट देख रहा था। बेहतर है कि सबकी बारी-बारी से परीक्षा की जाय। देखें स्वप्न का क्या प्रभाव पड़ता है।”
अकबर की अनुमति से सभी दरबारी हौज में डुबकी मारकर हाथ में एक-एक मुरगी का अण्डा लेकर बाहर निकले। जब बीरबल की ओसरी आई तो वह हौज में डुबकी मारकर खाली हाथ निकला, परन्तु उसके मुखारविन्द से कुकडू कूँ का शब्द निकल रहा था।
अकबर ने कहा, “मियाँ बीरबल, तुम्हारा अण्डा कहाँ है? जल्दी दिखलाओ।”
बीरबल ने उत्तर दिया, “ग़रीबपरवर! तमाम अण्डा देने वाली मुर्गियों के बीच एक मैं ही मुर्गा हूँ।
बिचारे दरबारी सहम गये और बादशाह के ओठों पर मुस्कुराहट आ गई।