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अकबर के चार प्रश्न – अकबर बीरबल की कहानी

“अकबर के चार प्रश्न” कहानी में जिस तरह बीरबल अकबर की चकरा देने वाली पहेलियों का जवाब देता है, वह वाक़ई पढ़ने योग्य है। अन्य अकबर बीरबल की कहानियां पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – अकबर-बीरबल के किस्से

एक दिन जब कि कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी, बादशाह अकबर बीरबल के साथ अपने बाग़ में टहलते हुए धूप खा रहे थे। अकबर के मन में अचानक एक तरंग उठी और उसके निराकरण के लिये बीरबल को मध्यस्थ बनाकर पूछा-

कौन बोलने को चहै, और कौन चहै है चूप।
कौन चहै है बरसना, कौन चहे है धूप॥

इतना कहने के साथ ही बादशाह बीरबल को धमका कर बोले, “यदि आज के चारों सवालों का समुचित उत्तर न दे सकोगे तो जान से मारे जावोगे।”

बीरबल को बादशाह अकबर का कथन सुनकर बड़ी करुणा आई, क्योंकि बादशाह सचमुच उसको जान से मारने को उतारू हो गये थे। दूसरे, करुणा इसलिये आई कि इतने छोटे से प्रश्न के लिये बादशाह अकबर इतना उग्ररूप क्यों धारण करते हैं। इसका उत्तर तो एक बुद्धिमान लड़का भी समझकर दे सकता है। ख़ैर, इस समय तो अपनी जान बचानी चाहिये। ऐसा विचार कर वह बोला-

माली बरसन को चहे, धोबी के मन धूप।
साई चाहै बोलना, चोर चहै जू चूप।

बादशाह को बीरबल का यह युक्तिसंगत दोहा बहुत भला मालूल हुआ, परन्तु वह उससे और भी सरलार्थ चाहते थे। इसलिये फिर बोले, “बीरबल! आपका यह दोहा काटने लायक नहीं है, फिर भी मुझे इससे पूरा संतोष नहीं हुआ। इसलिये कोई दूसरी विधि से और स्पष्ट कर मुझे समझावो।” बीरबल ने कहा कि बहुत अच्छा, और यह दूसरा दोहा रचकर पढ़ सुनाया-

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥

फिर भी बादशाह अकबर संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने बीरबल से दूसरा उत्तर माँगा। तब बीरबल बोला, “हे पृथ्वीनाथ, सबका मूलमंत्र यह है कि अपनी-अपनी सभी चाहते हैं। मैं इस संबंध में एक दास्तान आपको सुनाता हूँ, शायद उससे आप संतुष्ट हो जाएँ”-

एक ग़रीब बाप के दो लड़कियाँ थीं। उसने उनमें से एक को तो बाग़वान के घर ब्याहा और दूसरी को कोंहार से। जब कुछ दिनों के बाद उनसे मिलने गया तो पहले बाग़वान के घर गया। वहाँ पहुँचकर कुशल प्रश्न के पश्चात अपनी कन्या का चेहरा उतरा हुआ देखकर उसकी सोच का कारण पूछा।

वह बोली, “हे पिताजी, मैं अपने दुःखकी बात आपसे क्या सुनाऊँ। उसका छूटना ईश्वर के हाथ है। इधर कितने ही दिनों से अवर्षण हो रहा है। जिस कारण सारा बाग़ का बाग़ सूखा जा रहा है। उसमें न तो अच्छे फूल आते हैं ओर न फल ही। तब वह वहाँ से विदा होकर वह अपनी दूसरी लड़की से मिलने कोहार के घर गया। वह लड़की मन मारकर द्वार पर बैठी हुई थी। पिता से मिलकर बड़ी प्रसन्न हुई और अपना सारा दुखड़ा सुनाकर फिर मौन हो गई।

पिता ने उसकी ऐसी उदासी का कारण पूछा तो वह बोली, “हे पिताजी! मैं आपसे अपने दुःख की बात क्या कहूँ। इधर कई दिनों से मेह बराबर बरस रहा है। न बरतन सूखने पाते हैं ओर न सूखी गोहरी ही आँवाँ लगाने को मिलती है। सब हाल रोज़गार बन्द है। न मालूम इस  बारिश का क्रम कब तक जारी रहेगा।”

पिता अपनी दोनों लड़कियों की पृथक पृथक चाहना सुनकर चुप रह गया और सोचने लगा, “यह सब कुछ नहीं, हम जीवधारी अपनी-अपनी चाहते हैं। परन्तु ईश्वर किसकी करे और किसकी न करे। वह जो कुछ करता है सब भला ही करता है।”

इस दृष्टान्त को सुनाकर बीरबल ने कहा, “पृथ्वीनाथ! यों तो पेशे के अनुसार सब की चाहना अलग-अलग होती है, परन्तु आपके प्रश्नों का वही ठीक उत्तर है जो मैंने पहले दोनों दोहों में आपको सुनाया है।” बादशाह अकबर बीरबल के उत्तर से बहुत सन्तुष्ट हुए।

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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