अकबर का सवाल, बीरबल का जवाब
“अकबर का सवाल, बीरबल का जवाब” अकबर-बीरबल की बड़ी ही ज्ञानवर्धक कहानी है। इसमें बीरबल अकबर के इस मुश्किल प्रश्न–सबसे प्यारा कौन है–का साक्ष्य के साथ सटीक उत्तर देता है। अन्य कहानियाँ पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – अकबर-बीरबल की कहानियां।
एक दिन अकबर अपने दरबार में बैठा था। दो वर्षीय शहजादा सलीम उसकी गोद में सानन्द खेल रहा था। उसकी बाल-चपलता देखकर बादशाह अकबर आनन्द-मग्न हो गया। आनन-फानन में उसके मन में यह प्रश्न उपस्थित हुआ, “जीवधारी को सबसे प्यारा कौन है?”
अकबर को चुप देखकर सलीम उसका ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट करने के अभिप्राय से तुतला कर कुछ बोला। उसकी तोतरी बातों ने बादशाह अकबर के आनन्द को और भी बढ़ा दिया। आनन्दवश वह अपने मनोगत भावों को दबा न सका और तत्क्षण समस्त दरबारियों की तरफ लक्ष्य करके पूछा, “इस पृथिवी पर के प्राणियों को सबसे प्रिय क्या है?”
अकबर का सवाल सुनकर दरबारी सोच में पड़ गये। कोई कुछ कहता, तो कोई कुछ। अन्त में आपस में गोष्ठी करने लगे, परन्तु फिर भी किसी सिद्धांत पर अटल नहीं हुए। बीरबल की अनुपस्थिति में इन विचारों पर कभी-कभी ऐसी विपत्ति आ जाया करती थी। यदि बीरबल प्रस्तुत होता, तब तो उनकी पौ बारह थी। बादशाह भी बीरबल के रहते ऐसी-ऐसी बातें किसी दूसरे दरबारी से कभी न पूछता था।
आज की सभा में बीरबल न था, जिस कारण इनके ऊपर ऐसी आफत आई। कुछ देर सोच समझ लेने के बाद सर्वसम्मति मिलाकर एक वृद्ध दरबारी बोला, “पृथिवीनाथ! अधिकतर प्रिय लड़का होता है।”
दरबारियों ने आपस की गोष्टी से निश्चित किया था कि इस समय अकबर लड़के को गोद में लिये हुए खिला रहा है। अतएव उसके प्रश्न का इशारा लड़के की तरफ ही है। बादशाह अकबर ने उस समय वृद्ध दरबारी का उत्तर स्वीकार कर लिया और सभा बरखास्त हुई।
बीरबल राजकीय कार्य से कहीं बाहर गया था। दैवात वह दूसरे ही दिन आ पहुँचा। बादशाह को तो पहले की धुन बँधी हुई थी। बीरबल को सभा में बैठते ही वही प्रश्न उससे भी किया। वह बोला, “ग़रीबपरवर! प्राणी को अपना जीवन सबसे अधिक प्यारा होता है। इसकी तुलना और किसी से नहीं की जा सकती। चाहे वह अपना कितना ही सगा संबन्धी क्यों न हो?”
तब बादशाह अकबर ने अपने दरबारियों का मान रखने के लिये बीरबल की बात काटकर कहा, “तुम्हारा कहना गलत है। क्या लड़का प्राण से प्यारा नहीं होता? तुमको यदि अपने कहने पर अटल विश्वास है तो उसे प्रमाणित कर दिखावो।”
बीरबल बादशाह की आज्ञा शिरोधार्य करता हुआ बोला, “पृथिवीनाथ! बाग का एक बड़ा हौज खाली करने की बागवान को आज्ञा दी जावे। तब तक मैं बाजार से परीक्षा की चीजें लेकर लौट आता हूँ। आप सभासदों सहित बाग़ में उपस्थित रहें। वहीं पर मैं इस बात को प्रमाणित करके दिखलाऊँगा।”
बादशाह की आज्ञा पाकर बाग़वान ने प्राणपण से परिश्रम करके थोड़ी ही देर में सबसे बड़े हौज को खाली कर सूचना दी। बाग में बैठने के लिये अकबर की तरफ से समुचित प्रबंध किया गया और वे दरबारियों के सहित बाग में दाखिल हुए। तब तक बीरबल भी एक बंदरिये को उसके बच्चे सहित लेकर बाग में आया।
बीरबल ने बंदरिया को बच्चे सहित हौज के मध्य भाग में बिठलाकर ऊपर से पानी भरने की आज्ञा दी। हौज में पानी भरा जाने लगा। पानी क्रमशः हौज के ऊपर चढ़ आया। बंदरिया बराबर अपने बच्चे को ऊपर उठाती गई। यहाँ तक कि बच्चा उसकी पीठ पर बैठ गया और पानी का बढ़ना बराबर जारी रहा।
जब पानी बढ़कर उसके गले तक पहुँचा, तो वह खड़ी हो गई और अपने बच्चे को अपने हाथ पर रखकर ऊपर उठा लिया। सब लोग इस नजारे को बड़ी गौर से देख रहे थे।
बादशाह अकबर बीरबल को चिताकर बोला, “क्यों बीरबल, क्या देखते नहीं हो कि किस प्रकार बंदरिया अपने प्राणों पर खेलकर बच्चे की रक्षा कर रही है। क्या अब भी सन्तान को सर्वोपरि प्रिय मानने को तैयार नहीं हो?”
बीरबल ने उत्तर दिया, “पृथिवीनाथ, थोड़ा और ठहर जाइये। अभी बंदरिया के प्राण पर नहीं आई है। थोड़ी देर में आप ही फैसला हो जाता है।”
अभी बीरबल और अकबर में उपरोक्त बातें हो रही थीं कि बंदरिया के मुख में पानी भरना शुरू हुआ। पानी भरने के कारण उसका दम घुटने की नौबत आ गई। नाक में पानी भरने लगा। वह अधीर होकर बहने लगी।
आखिरकार लाचार हो उसने बच्चे की ममता छोड़ दी और अपने प्राण बचाने के लिये एक नया उपाय निकाला। वह झट बच्चे को पानी में डुबाकर आप स्वयं उसके ऊपर खड़ी हो गई। इस प्रकार उसका मुँह पानी से ऊपर हो गया। बीरबल ने बादशाह अकबर को उसे दिखलाकर बागवान को पानी रोकने की आज्ञा दी। पानी आना तुरंत बन्द हो गया। बंदरिया बच्चे सहित जीवित बाहर निकाल ली गई।
बीरबल ने कहा, “पृथिवीनाथ, आपने प्रत्यक्ष देखा है कि जब तक प्राण बचने की आशा थी, तब तक बँदरिया बच्चे के प्राण बचाने का बराबर यत्न करती रही। परन्तु जब उसके ही प्राणों पर आफत आई, तो वह बच्चे की जीवन-रक्षा भूल गई। बल्कि स्वयं उसके जान की गाहक होकर अपना प्राण बचाया।”
अकबर का सवाल हल हो गया था। बादशाह ने दरबारियों सहित बीरबल की बुद्धि की श्रेष्ठता स्वीकार कर ली।