कविता

आजादी पाई (26 जनवरी 1961)

“आजादी पाई” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 26 जनवरी सन् 1961 को लिखी गयी थी। इसमें संविधान के माध्यम से सच्ची स्वतंत्रता पाने का सुंदर वर्णन है। पढ़ें यह कविता–

आज वही छब्बीस जनवरी फिर से आई
जिस दिन हमने पूरी आजादी पाई थी
लाल किले पर ध्वजा तिरंगा फहराया था
राष्ट्रबैण्ड ने वन्देमातरम् ध्वनि गाई थी

यह सबने सोचा था, हम आज़ाद हो गये
अनाचार अत्याचारों से मुक्ति मिलेगी
जीवन की छोटी-सी बगिया लहरायेगी
सत्य, अहिंसा, प्रेम, त्याग से तृप्ति मिलेगी

क्योंकि हमारे नेताओं ने भारत शासन सूत्र सँभाला
और देश के लिए स्वंय ही अपना संविधान रच डाला
आज लुटेरा देश छोड़कर भाग गया है
सदियों से सोने वाला फिर जाग गया है

किन्तु यहाँ ज्यों का त्यों नाटक वही पुराना
केवल अभिनेताओं की सूरत बदली है
शोर अधिक बढ़ गया काम कुछ नहीं हो रहा
ऊपर से तो स्वच्छ किन्तु भावों की छाया भी गंदली है।

रंगमंच से बड़े-बड़े विश्वासों का है जाल बिछाते
भोली भाली जनता को बातों में देकर
थोड़े से अभिनेता अपना काम बनाते
दया प्रेम समता की नित्य दुहाई देकर

गाँधी जी के राम राज्य की करें कल्पना
किन्तु वहीं दीपक के नीचे बना अँधेरा
कैसे पूरी होगी फिर यह शक्ति साधना
नित्य नये अपराध यहाँ बढ़ते जाते हैं

जीवन की रक्षा का भी तो नहीं ठिकाना
निर्माणों की जगह ध्वंश होता जाता है
चीख रहे है हमें स्वर्ग धरती पर लाना

जिनके हाथों में सत्ता की, थोड़ी-सी ताकत आई है
मनमानी कर रहे इधर जनता रोती है
खेली जाती कहीं आज धन से होली है
भूखी मानवता कहीं आज बोझा होती है

किन्तु चलेगी कब तक ऐसी धोखेबाजी
अब तो सारे राज तुम्हारे खुलते जाते
एक ओर कहते जनमत बहुत बड़ा है
और दूसरी और उसी को स्वंय गिराते

शर्म करो क्यों कहते हो यह प्रजातंत्र है
वरना दुर्गति बहुमत की इस तरह न होती
केवल कहने को ही भारत प्रजातंत्र है
टेढ़ी-मेढ़ी चालों से कुछ काम न होगा

केवल घृणा फूट, नफरत ही बढ़ जायेगी ।
नहीं देश का कुछ सुधार होने पायेगा।
बस विनाश की नींव यहाँ पर लग जायेगी
कितने बलिदानों के बाद मिली आज़ादी।

उसको क्या आपस में लड़ कर खो दोगे।
आज हिमालय की ऊँचे शिखरों की पीछे
डटे हुए दुश्मन को फिर से क्या दे दोगे
सावधान ! यह भूल नहीं तुमसे हो जाए
वरना, जयचन्दी इतिहास तुम्हारा हो जायेगा

आगे आने वाली पीढ़ी गाली देगी
गद्दारों में नाम तुम्हारा लिख जायेगा
समझ बूझ कर इसे सम्भालो
यह तो जनता की थाती है

इसकी रक्षा के हित कर लो
अपनी फौलादी छाती है
कह दो जो इसका ताकेगा
स्वंय भस्म वह हो जायेगा

यह तो शंकर की कुटिया है
नेत्र तीसरा खुल जायेगा।

नवल सिंह भदौरिया

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!