बाल रक्षा स्तोत्र – Bal Raksha Stotra
“बाल रक्षा स्तोत्र” का पाठ करने के कुछ संभावित लाभ निम्नलिखित हैं:
बच्चों की सुरक्षा: इस स्तोत्र का पाठ करने का प्रमुख उद्देश्य बच्चों को भिन्न प्रकार की आपत्तियों और विपत्तियों से सुरक्षा प्राप्त करना है।
शारीरिक और भावनात्मक भलाई: बहुत सारे माता-पिता इस स्तोत्र का पाठ करने से अपने बच्चों के शारीरिक और भावनात्मक भलाई को बढ़ावा देने का मानते हैं।
मानसिक शांति: इस प्रार्थना का पाठ करने से माता-पिता को शांति और सुख की भावना होती है, जानकर कि वे अपने बच्चों की सुरक्षा और भलाई के लिए दिव्य आशीर्वाद की मांग कर रहे हैं।
माता-पिता और बच्चों के बीच की बँधन को मजबूत करना: यह स्तोत्र के पाठ से माता-पिता और उनके बच्चों के बीच के संबंध को मजबूत करने में मदद कर सकता है, क्योंकि माता-पिता अपने प्यार और देखभाल को प्रार्थना के माध्यम से दिखाते हैं।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़न: जो लोग हिन्दू या अन्य संबंधित आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करते हैं, वे इस स्तोत्र के पाठ से अपने संस्कृति और आध्यात्मिकता से जुड़ते हैं।
श्री गणेशाय नमः।
अव्यादजोऽङ्घ्रि मणिमांस्तव जान्वथोरू
यज्ञोऽच्युतः कटितटं जठरं हयास्यः।
हृत्केशवस्त्वदुर ईश इनस्तु कण्ठं
विष्णुर्भुजं मुखमुरुक्रम ईश्वरः कम् ॥ १॥
चक्र्यग्रतः सहगदो हरिरस्तु पश्चात्
त्वत्पार्श्वयोर्धनुरसी मधुहाजनश्च।
कोणेषु शङ्ख उरुगाय उपर्युपेन्द्रस्
तार्क्ष्यः क्षितौ हलधरः पुरुषः समन्तात् ॥ २॥
इन्द्रियाणि हृषीकेशः प्राणान्नारायणोऽवतु।
श्वेतद्वीपपतिश्चित्तं मनो योगेश्वरोऽवतु ॥ ३॥
पृश्निगर्भस्तु ते बुद्धिमात्मानं भगवान्परः।
क्रीडन्तं पातु गोविन्दः शयानं पातु माधवः ॥ ४॥
व्रजन्तमव्याद्वैकुण्ठ आसीनं त्वां श्रियः पतिः।
भुञ्जानं यज्ञभुक्पातु सर्वग्रहभयङ्करः ॥ ५॥
डाकिन्यो यातुधान्यश्च कुष्माण्डा येऽर्भकग्रहाः।
भूतप्रेतपिशाचाश्च यक्षरक्षोविनायकाः ॥ ६॥
कोटरा रेवती ज्येष्ठा पूतना मातृकादयः।
उन्मादा ये ह्यपस्मारा देहप्राणेन्द्रियद्रुहः ॥ ७॥
स्वप्नदृष्टा महोत्पाता वृद्धबालग्रहाश्च ये।
सर्वे नश्यन्तु ते विष्णोर्नामग्रहणभीरवः ॥ ८॥
॥ इति श्रीमद्भागवते दशमस्कन्धे गोपीकृतबालरक्षा समाप्ता ॥
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śrī gaṇeśāya namaḥ।
avyādajo’ṅghri maṇimāṃstava jānvathorū
yajño’cyutaḥ kaṭitaṭaṃ jaṭharaṃ hayāsyaḥ।
hṛtkeśavastvadura īśa inastu kaṇṭhaṃ
viṣṇurbhujaṃ mukhamurukrama īśvaraḥ kam ॥ 1॥
cakryagrataḥ sahagado harirastu paścāt
tvatpārśvayordhanurasī madhuhājanaśca।
koṇeṣu śaṅkha urugāya uparyupendras
tārkṣyaḥ kṣitau haladharaḥ puruṣaḥ samantāt ॥ 2॥
indriyāṇi hṛṣīkeśaḥ prāṇānnārāyaṇo’vatu।
śvetadvīpapatiścittaṃ mano yogeśvaro’vatu ॥ 3॥
pṛśnigarbhastu te buddhimātmānaṃ bhagavānparaḥ।
krīḍantaṃ pātu govindaḥ śayānaṃ pātu mādhavaḥ ॥ 4॥
vrajantamavyādvaikuṇṭha āsīnaṃ tvāṃ śriyaḥ patiḥ।
bhuñjānaṃ yajñabhukpātu sarvagrahabhayaṅkaraḥ ॥ 5॥
ḍākinyo yātudhānyaśca kuṣmāṇḍā ye’rbhakagrahāḥ।
bhūtapretapiśācāśca yakṣarakṣovināyakāḥ ॥ 6॥
koṭarā revatī jyeṣṭhā pūtanā mātṛkādayaḥ।
unmādā ye hyapasmārā dehaprāṇendriyadruhaḥ ॥ 7॥
svapnadṛṣṭā mahotpātā vṛddhabālagrahāśca ye।
sarve naśyantu te viṣṇornāmagrahaṇabhīravaḥ ॥ 8॥
॥ iti śrīmadbhāgavate daśamaskandhe gopīkṛtabālarakṣā samāptā ॥
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