धर्मराज की आरती – Dharmraj Ji Ki Aarti in Hindi
धर्मराज की आरती सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाली है। विशेषतः कार्तिक मास में धर्मराज की कथा पढ़ने के बाद इस आरती को गाने का विशेष विधान है। शास्त्रों में धर्मराज या यमराज को पाप-पुण्य के अनुसार न्याय करने वाला कहा गया है। धर्मराज शनिदेव और यमुना जी के भाई और सूर्य देव के पुत्र हैं।
धर्मराज यमराज पापियों को उनकी करनी के अनुकूल दण्ड देते हैं और पुण्य करने वालों को स्वर्ग का मार्ग दिखलाते हैं। धर्मराज जी की आरती श्रद्धा-भक्ति से जो भी व्यक्ति पढ़ता है, वह सजह ही वैतरणी पार कर जाता है।
पढ़ें धर्मराज की आरती
ओ३म् जय-जय धर्म धुरंधर, जय लोकत्राता।
धर्मराज प्रभु तुम ही, हो हरिहर धाता ॥१॥
जय देव दंड पाणिधर यम तुम, पापी जन कारण।
सुकृति हेतु हो पर तुम, वैतरणी ताराण ॥२॥
न्याय विभाग अध्यक्ष हो, नीयत स्वामी।
पाप-पुण्य के ज्ञाता, तुम अन्तर्यामी ॥३॥
दिव्य-दृष्टि से सबके, पाप पुण्य लखते।
चित्रगुप्त द्वारा तुम, लेखा सब रखते ॥४॥
छात्र पात्र वस्त्रान्न क्षिति, शय्याबानी।
तब कृपया, पाते हैं, सम्पत्ति मनमानी ॥५॥
द्विज, कन्या, तुलसी का करवाते परिणय।
वंश-वृद्धि तुम उनकी, करते निःसंशय ॥६॥
दानोद्यापन याजन तुष्ट दयासिन्धु।
मृत्यु अनन्तर तुम ही, हो केवल बन्धु ॥७॥
धर्मराज प्रभु अब तुम दया हृदय धारो।
जगत सिन्धु से स्वामिन, सेवक को तारो ॥८॥
धर्मराज जी की आरती, जो कोई नर गावे।
धरणी पर सुख पाके, मनवांछित फल पावे ॥९॥
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विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर धर्मराज जी की आरती (Dharmraj Ji Ki Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें धर्मराज की आरती रोमन में–
Read Dharmraj Ji Ki Aarti
om jaya-jaya dharma dhuraṃdhara, jaya lokatrātā।
dharmarāja prabhu tuma hī, ho harihara dhātā ॥1॥
jaya deva daṃḍa pāṇidhara yama tuma, pāpī jana kāraṇa।
sukṛti hetu ho para tuma, vaitaraṇī tārāṇa ॥2॥
nyāya vibhāga adhyakṣa ho, nīyata svāmī।
pāpa-puṇya ke jñātā, tuma antaryāmī ॥3॥
divya-dṛṣṭi se sabake, pāpa puṇya lakhate।
citragupta dvārā tuma, lekhā saba rakhate ॥4॥
chātra pātra vastrānna kṣiti, śayyābānī।
taba kṛpayā, pāte haiṃ, sampatti manamānī ॥5॥
dvija, kanyā, tulasī kā karavāte pariṇaya।
vaṃśa-vṛddhi tuma unakī, karate niḥsaṃśaya ॥6॥
dānodyāpana yājana tuṣṭa dayāsindhu।
mṛtyu anantara tuma hī, ho kevala bandhu ॥7॥
dharmarāja prabhu aba tuma dayā hṛdaya dhāro।
jagata sindhu se svāmina, sevaka ko tāro ॥8॥
dharmarāja jī kī āratī, jo koī nara gāve।
dharaṇī para sukha pāke, manavāṃchita phala pāve ॥9॥