धर्म

एकदंत – Ekadant (गणेश जी का द्वितीय रूप)

एकदंत (Ekdant) अवतार भगवान गणेश के अष्टविनायक (Ashtavinayak) रूपों में दूसरा अवतार है। इस अवतार में भगवान गणेश का एक ही दाँत है। यह अवतार मदासुर के दमन के लिए हुआ था। यह एकदंत अवतार जो एकता और सामंजस्य का प्रतीक है।

एकदन्तावतारौ वै देहिनां ब्रह्मधारकः।
मदासुरस्य हन्ता स आखुवाहनगः स्मृतः॥

भगवान् गणेश का ‘एकदन्त अवतार’ देहि ब्रह्म का धारक है। वह मदासुर का वध करने वाला है। उसका वाहन मूषक बताया गया है। मदासुर नाम का एक बलवान् पराक्रमी दैत्य था। वह महर्षि च्यवन का पुत्र था। एक बार वह अपने पिता से आज्ञा लेकर दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास गया। उसने शुक्राचार्य से कहा कि आप मुझे कृपा पूर्वक अपना शिष्य बना लें। मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी बनना चाहता हूँ। आप मेरी इच्छा पूरी करने के लिये मेरा उचित मार्ग दर्शन करें। शुक्राचार्य ने सन्तुष्ट होकर उसे अपना शिष्य बना लिया। सर्वज्ञ आचार्य ने उसे विधिसहित एकाक्षरी “ह्रीं” शक्ति मन्त्र दिया।

मदासुर अपने गुरुदेव के चरणों में प्रणाम कर जंगल में तप करने के लिये चला गया। उसने माँ भगवती का ध्यान करते हुए हज़ारों वर्षों तक कठोर तप किया। यहाँ तक कि उसका शरीर दीमकों की बाँबी बन गया। उसके चारों ओर वृक्ष उग गए और लताएँ फैल गईं। उसके कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवती प्रकट हुईं। माता ने उसे नीरोग रहने तथा निष्कंटक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का राज्य प्राप्त होने का वरदान दिया।

मदासुर ने पहले सम्पूर्ण धरती पर अपना साम्राज्य स्थापित किया। फिर स्वर्ग पर चढ़ाई की। इन्द्रादि देवताओं को जीतकर वह स्वर्ग का भी शासक बन बैठा। उसने प्रमदासुर की कन्या सालसा से विवाह किया। उससे उसे तीन पुत्र हुए। उसने शूलपाणि भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। सर्वत्र असुरों का क्रूरतम शासन चलने लगा। पृथ्वी पर समस्त धर्म-कर्म लुप्त हो गये। देवताओं एवं मुनियों के दुःख की सीमा न रही। सर्वत्र हाहाकार मच गया।

चिन्तित देवता सनत्कुमार के पास गये तथा उनसे उस असुर के विनाश एवं धर्म-स्थापना का उपाय पूछा। सनत्कुमार ने कहा – ‘देवगण आप लोग श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान एकदन्त की उपासना करें। वे सन्तुष्ट होकर अवश्य ही आप लोगों का मनोरथ पूर्ण करेंगे। महर्षि के उपदेशानुसार देवगण एकदन्त की उपासना करने लगे। तपस्या के सौ वर्ष पूरे होने पर मूषक वाहक भगवान एकदंत प्रकट हुए तथा वर माँगने के लिये कहा। देवताओं ने निवेदन किया- ‘प्रभो! मदासुर के शासन में देवगण स्थान भ्रष्ट और मुनिगण कर्मभ्रष्ट हो गये हैं। आप हमें इस कष्ट से मुक्ति दिलाकर अपनी भक्ति प्रदान करें।’

उधर देवर्षि नारद ने मदासुर को सूचना दी कि भगवान एकदन्त ने देवताओं को वरदान दिया है। अब वे तुम्हारा प्राण-हरण करने के लिये तुम से युद्ध करना चाहते हैं। मदासुर अत्यन्त कुपित होकर अपनी विशाल सेना के साथ एकदन्त से युद्ध करने चला।

भगवान एकदंत रास्ते में ही प्रकट हो गये। राक्षसों ने देखा कि भगवान एकदन्त सामने से चले आ रहे हैं। वह मूषक पर सवार हैं। उनकी आकृति अत्यन्त भयानक है। उनके हाथों में परशु, पाश आदि आयुध हैं। उन्होंने असुरों से कहा कि तुम अपने स्वामी से कह दो यदि वह जीवित रहना चाहता है तो देवताओं से द्वेष छोड़ दे। उनका राज्य उन्हें वापस कर दे। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो मैं निश्चित ही उसका वध करूँगा।

महाक्रूर मदासुर युद्ध के लिये तैयार हो गया। जैसे ही उसने अपने धनुष पर बाण चढ़ाना चाहा कि भगवान एकदन्त (Ekadanta Ganapati) का तीव्र परशु उसे लगा और वह बेहोश होकर गिर गया।

बेहोशी टूटने पर मदासुर समझ गया कि यह सर्वसमर्थ परमात्मा ही हैं। उसने हाथ जोड़कर स्तुति करते हुए कहा कि प्रभो! आप मुझे क्षमा कर अपनी दृढ़ भक्ति प्रदान करें। एकदंत ने प्रसन्न होकर कहा कि जहाँ मेरी पूजा आराधना हो, वहाँ तुम कदापि मत जाना। आज से तुम पाताल में रहोगे। देवता भी प्रसन्न होकर एकदन्त की स्तुति करके अपने लोक चले गये।

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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