गंगा स्तुति – Ganga Stuti
“गंगा स्तुति” का पाठ और गंगा-स्नान सभी पापों को नाश करने में समर्थ है। गंगा स्तुति एक अद्भुत स्तोत्र है जिसका हर शब्द अपने अंदर पवित्रता समेटे हुए है। भक्तिभाव से स्तुति को पढ़ने और गायन करने से न केवल पाप नष्ट होते हैं, बल्कि हृदय पूर्णतः निर्मल हो जाता है और ऐसे निर्मल अन्तःकरण में भगवान का दिव्य प्रकाश चमक उठता है। ऐसे व्यक्ति को फिर कुछ भी अप्राप्य नहीं रहता। पढ़ें गंगा स्तुति और अन्तस् को निर्मल बनाएँ-
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जय जय भगीरथनन्दिनि, मुनि-चय चकोर-चन्दिनि,
नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जह्नु बालिका ।
बिस्नु-बिस्नुपद-सरोजजासि, ईस-सीसपर बिभासि,
त्रिपथगासि, पुन्यरासि, पाप-छालिका ॥ १ ॥
बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि,
भँवर बर बिभंगतर तरंग-मालिका ।
पुरजन पूजोपहार, सोभित ससि धवलधार,
भंजन भव-भार, भक्ति-कल्पथालिका ॥ २ ॥
निज तटबासी बिहंग, जल-थल-चर पसु-पसुपतंग,
कीट,जटिल तापस सब सरिस पालिका ।
तुलसी तव तीर तीर सुमिरत रघुबंस-बीर,
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका ॥ ३ ॥
Ganga Stuti Lyrics
jaya jaya bhagIrathanandini, muni-chaya chakora-chandini,
nara-nAga-bibudha-bandini jaya jahnu bAlikA ।
bisnu-bisnupada-sarojajAsi, Isa-sIsapara bibhAsi,
tripathagAsi, punyarAsi, pApa-ChAlikA ॥1॥
bimala bipula bahasi bAri, sItala trayatApa-hAri,
bha.Nvara bara bibhaMgatara taraMga-mAlikA ।
purajana pUjopahAra, sobhita sasi dhavaladhAra,
bhaMjana bhava-bhAra, bhakti-kalpathAlikA ॥2॥
nija taTabAsI bihaMga, jala-thala-chara pasu-pasupataMga,
kITa,jaTila tApasa saba sarisa pAlikA ।
tulasI tava tIra tIra sumirata raghubaMsa-bIra,
bicharata mati dehi moha-mahiSha-kAlikA ॥3॥
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