कविता

हथकड़ियाँ टूट चुकीं (26 जनवरी 1951)

“हथकड़ियाँ टूट चुकीं” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 26 जनवरी सन् 1951 को लिखी गयी थी। इसमें सुंदर शब्दों में देशप्रेम और राष्ट्र-निर्माण की भावना का वर्णन है। पढ़ें यह कविता–

भरने को नव उमंग मन में गणतन्त्र दिवस यह आया है।
मैंटो जग से सब अनाचार यह पाठ पढ़ाने आया है॥

कबकी रजनी है बीत चुकी बेड़ी हथकड़ियाँ टूट चुकी
जेलों के फाटक खुले पड़े यह नया संदेश लाया है
निर्माण करो अब नव युग का मिट जाये जग का उत्पीड़न
जिससे न सुनाई पड़े कहीं भर्त्सना और रोदन क्रन्दन
देखो कितनों को अन्न पेट भर, वस्त्र और मिल जाते हैं
देखो कितने प्रासादों में नित कंचन थाल सजाते हैं
देखो कितने नंगे-भूखे जल पीकर ही सो जाते हैं
देखो कितने आँसू पीकर अन्तर की आग बुझाते हैं

शोषित मानव के लिए आज यह जागृति बनकर आया है।
भरने को नव उमंग मन में गणतन्त्र दिवस यह आया है।

उस शिवा वीर, राणा प्रताप अरु झाँसी वाली रानी की
टीपू, बन्दा, आज़ाद, भगत की विप्लव भरी जवानी की
उन वीरों की जिनने मिट्टी जलियाँवाला की पावन की
जिनके लोहू से लिखी गई थी गाथा सन् सत्तावन की
ढिल्लन, सहगल अरु शाहनवाज नेताजी की कुर्बानी की
सन् बयालीस के वीरों की बापू की करुण कहानी का
उन वीरों की जो मरे किन्तु लाशें पहचान नहीं पाई।
उन बहिनों की जो भैया के राखी की बाँध नहीं पाई

उन सबकी ही एक साथ यह याद दिलाने आया है
भरने को नव उमंग मन में गणतन्त्र दिवस यह आया है।।

धू-धू कर जलती मानवता, है नहीं न्याय की कुछ चलती
देखी मैंने तो आज जगत में केवल दानवता फलती है
आज स्वार्थ के वश मानव, निर्बल को कुछ अधिकार नहीं
बढ़ गया दम्भ, छल कपट, फूट पर रहा परस्पर प्यार नहीं
भर लो नव शक्ति भुजाओं में, भर लो नव जीवन प्राणों में
बोलो तुम फिर ऐसे बोलो, जिससे सागर भी दहल उठे
बोलो तुम फिर ऐसे बोलो जिससे हिमगिरि भी पिघल उठे
नव निर्मित निधि की रक्षा हित तूफ़ान बनाने आया है।

भरने को नव उमंग मन में गणतन्त्र दिवस यह आया है।।

आपको “हथकड़ियाँ टूट चुकीं” कविता कैसी लगी, कृपया हमें टिप्पणी करके अवश्य बताएँ।

नवल सिंह भदौरिया

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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