इतिहास नया बनने को है (15 अगस्त 1958)
“इतिहास नया बनने को है” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 15 अगस्त सन् 1958 को लिखी गयी थी। इस कविता में देश और देशवासियों के लिए बाधाएँ पार कर आगे बढ़ने का संदेश है। यह हौसले का संदेश आज भी प्रासंगिक है। पढ़ें यह कविता–
मंज़िल पर मत हारो राही।
अगणित बलिदानों के बल पर
तुम अब तक बढ़ते आये हो।
बाधाओं के गिरि-शृंङ्गों से
भी डटकर लड़ते आये हो।
उत्साह नहीं कम हो जाये
तुम निकट आ गये हो राही।
मंज़िल पर मत हारो राही।
मज़बूर नहीं होना तुमको।
मज़बूरी तो कायरता है
जो बढ़ता जाता मंजिल पर।
उससे हर कोई डरता है
मंजिल की राह कटीली हों।
फिर भी मन मत मारो राही
मंज़िल पर मत हारो राही।
दुःख से ही तो सुख मिलता है।
शूलों में फूल विहँसते हैं
संघर्ष बढ़ाता आगे को ।
नादाँ हैं वे जो डरते हैं
तुम बाँह पकड़ तूफानों की।
आगे बढ़ते जाना राही
मंज़िल पर मत हारो राही।
तुम नये मोड़ पर खड़े हुए
इतिहास नया बनने को है
दुनियाँ की आँखें लगी हुई
भारत अब क्या करने को है ?
देखो न कहीं मानवता के ।
डिग जाँय कदम पथ पर राही।।
मंज़िल पर मत हारो राही।
मंज़िल को आज चुनौती दो
अपने श्रम-सीकर के बल पर
निर्माणों को अब आने दो
अपने विश्वासों के बल पर
शोणित दे नंगे पैरों का
मंजिल की माँग भरो राही
मंजिल पर मत हारो राही।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।