जौहर दिखलाओ
“जौहर दिखलाओ” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 15 सितम्बर सन् 1965 को लिखी गयी थी। पाकिस्तान द्वारा हुए आक्रमण के समय की यह रचना है। इसमें देशवासियों से वीरता दिखलाने का आह्वान है। पढ़ें यह कविता–
बर्बरता दे रही चुनौती वीरो बढ़कर आगे आओ
नशा उतर जाये दुश्मन का कुछ ऐसे जौहर दिखलाओ
आज लुटेरा भारत की सीमा में घुस आने को तत्पर
आज तुम्हारी मातृभूमि का शीशफूल छूने को तत्पर
कोटि-कोटि पूतों की जननी को देखो हैवान न लूटे
मानवता का गला दबाकर कुछ दानव आराम न लूटे
हो जाओ कटिबद्ध जंग का हैवानों को मज़ा चखा दो
काट-काट कर शीश शत्रुकेमाँ के ऋण का ब्याज चुका दो
ललकारो बढ़कर दुश्मन को उसकी छाती पर चढ़ जाओ
नशा उतर जाये —————————–
समय आ गया आज दिखादो कितनी शक्ति तुम्हारे तन में
फौलादी सीने के नीचे कितनी दृढ़ता है इस मन में
पैरों में भूचाल बँधे हैं, साँसों में तूफान मचलते
हाथों में बज्रों की ताकत आँखों में अंगार दहकते
किसकी ताकत है जो हम पर वार करे फिर बचकर जाये
शिवशंकर का नहीं आज तुम रूद्रदेव का साज सजाओ ।
नशा उतर जाये —————————–
दुश्मन ने सोचा है तुम तो शान्ति राग के गाने वाले
दुश्मन ने सोचा समझा है तुम तो हिंसा से हो डरने वाले
दुश्मन ने सोचा है तुम तो कायर दुर्बल हाथों वाले
नहीं उसे मालूम कभी था तुम निकलोगे विषधर काले
क्रोध भरी फुकारों से अब भस्मसात् दुश्मन कर डालो
फिर भी शीश उठाये तो फिर धड़ से शीश अलग कर डालो
उठो-उठो अपने हाथों में फिर नंगी तलवार उठा लो।
नशा उतर जाये —————————–
तुममें अपनी मातृभूमि पर मिटने का अरमान छिपा है
तुममें अपनी सलिल भूमि के कप-कप का अभिमान छिपा है
तुममें वीर शिवा-राणा का स्वतन्त्रता का प्यार छिपा है
तुममें पौरुष साहस का भी एक अमित भण्डार छिपा है
तुम जवान हो अपने सीने पर हँस-हँस कर बिजली झेलो
भगे लुटेरा तुम्हें देखकर ऐसे प्रलयंकर बन जाओ ।
नशा उतर जाये —————————–
नई-नई आज़ादी के तुम सजग-सबल पहरे वाले हो
नई देश की मिट्टी के तुम, साहस वाले रखवाले हो
देखो भूल नहीं हो जाये, यह नेहरू-बापू की थाती
इसकी रक्षा करनी होगी, हल्दी घाटी याद दिलाती
स्वतन्त्रता के दीवाने हम, हमने खेल मरण के खेले
आओ-आओ एक बार फिर अपना असली रूप दिखा दो।
नशा उतर जाये —————————–
कभी न पूरे होने पाये दुश्मन के नापाक इरादे
तुममें इतनी शक्ति छिपी है जो दुश्मन पर बज्र गिरा दें
एक बार ताण्डव होने दो, प्रलयंकर शंकर बन जाओ
धुआ कुहा नभ में छा जाये डगमग डगमग धरती डोले
हर हर बम का महामंत्र, धरती का अणु अणु कण-कण बोले
दुनियाँ देखे भारत माँ के वीर सपूतों आगे आओ ।
नशा उतर जाये —————————–
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।