करणी माता मंदिर – चूहों वाला मंदिर
करणी माता मंदिर एक सिद्ध मंदिर है। यूँ तो संपूर्ण भारत अपने विविध मंदिरों एवं उनकी ऐतिहासिकता के लिए सदैव ही चर्चा में रहता है। इन मंदिरों के रहस्यों की भी विविध गाथाएँ प्रसिद्ध हैं। देश-विदेश के वैज्ञानिक आदि इन मंदिरों के रहस्यमय चमत्कारों से अवगत होने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। दुनिया भर के लोगों का जमावड़ा यहाँ दिन-प्रतिदिन लगा ही रहता है।
इसी क्रम में आज हम बात करेंगे राजस्थान के प्रसिद्ध करणी माता मंदिर की। इस मंदिर के रहस्यों और चमत्कारों की भी अलग ही कहानी प्रचलित है। क्या आप जानते हैं यह मंदिर यहाँ पर मौजूद चूहों के लिए अधिक प्रसिद्ध है? मान्यता है कि यहाँ पाए जाने वाले मूषक भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। क्या आप भी जानना चाहेंगे इन चूहों के पीछे के रहस्य की कहानी? तो आइये जानते हैं विस्तार में इस मंदिर से जुड़े मूषकों के रहस्य और अन्य तथ्यों के बारे में।
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करणी माता मंदिर की विशेषता (Importance of Karni Mata Temple)
करणी माता का मंदिर राजस्थान के बीकानेर ज़िले से लगभग 30 कि. मी. दूर देशनोक ज़िले में स्थित है। यह मंदिर करणी देवी को समर्पित है। इसे “चूहों का मंदिर” भी कहा जाता है। दुनिया भर में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ आपको मंदिर के प्रांगण में बहुत अधिक तादाद में चूहे नज़र आएंगे।
देश-विदेश से श्रद्धालुगण यहाँ माता के दर्शन करने और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु आते हैं। मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को अपने पैरों को घसीटकर चलने का परामर्श दिया जाता है ताकि कोई भी चूहा पैरों के नीचे ना आये। इस मंदिर में किसी भी मूषक का पैरों के नीचे आना शुभ नहीं माना जाता है।
मान्यता अनुसार करणी माता को बीकानेर राजघराने की कुलदेवी माना जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इन्हीं के आशीर्वाद के फलस्वरूप जोधपुर और बीकानेर राजघरानों की स्थापना हुई थी।
जानें मंदिर में चूहों के पीछे की कहानी (Story of Mice In The Temple)
वर्तमान समय में इस मंदिर में 25,000 से 30,000 चूहे हैं जो करणी माता की संतान माने जाते हैं। इन चूहों को “काबा” कहा जाता है। मंदिर में बड़ी संख्या में चूहों की मौजूदगी के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जो इस प्रकार है–
करणी माता का लक्ष्मण नामक एक पुत्र था। एक बार लक्ष्मण कोलायत तहसील में स्थित कपिल सरोवर में पानी पी रहा था। तब पैर फिसलकर डूबने की वजह से उसकी मृत्यु हो गई।
माता करणी पुत्र को जीवित करने की विनती करने यमराज के पास गईं। यम देव को मृत इंसान को पुनर्जीवित करने की अनुमति ना होने की वजह से उन्होंने करणी जी के पुत्र को चूहे के रूप में जीवनदान दिया। इसलिए आज भी ये चूहे उनके पुत्र के वारिस के रूप में इस मंदिर में चहलक़दमी करते हैं।
मंदिर परिसर में काले और सफ़ेद दोनों रंग के चूहे हैं। मान्यता है की जो भी व्यक्ति सफ़ेद मूषक के दर्शन कर लेता है उसकी सभी मनोकामनाएँ अवश्य पूर्ण होती हैं। आरती के वक़्त इन चूहों को भोग लगाया जाता है और वही प्रसाद मंदिर में आने वाले भक्तों में वितरित किया जाता है।
चूहों को किसी भी प्रकार के नुक़सान या दूसरे जानवरों के घात से बचाने के लिए मंदिर परिसर के चारों तरफ़ बारीक़ जाली लगाई गई है, ताकि कोई भी जानवर मंदिर में प्रवेश ना कर पाए।
माता करणी की कहानी (Story of Karni Mata)
स्थानीय लोगों में मान्यता है कि करणी माता साक्षात माँ जगदम्बा का अवतार हैं। इनका जन्म 1387 ई. में जोधपुर ज़िले के सुआप में मेहाजी किनिया के घर में हुआ था। उन्हें रिधुबाई नाम दिया गया। जब वो विवाह योग्य हो गईं तो साथिया गाँव के किपोजी चारण से उनका विवाह करवाया गया।
किन्तु जीवन में उतार-चढ़ाव के चलते उन्होंने सांसारिक जीवन को त्याग कर सेवा और भक्ति का मार्ग अपनाने का फ़ैसला कर लिया। इसी के चलते उन्होंने अपनी छोटी बहन का विवाह अपने पति से करवा दिया और स्वयं का जीवन ईश्वर भक्ति और जनहित के लिए समर्पित कर दिया। जन कल्याण के उद्देश्य से किए हुए चमत्कारों की वजह से लोग उन्हें करणी माता कहकर पुकारने लगे। तत्कालीन जांगल प्रदेश को उन्होंने अपनी कार्यस्थली बना लिया था।
चूहों वाला मंदिर और उसका निर्माण (Construction of Temple)
स्थानीय लोगों द्वारा बताया जाता है कि माता करणी वहाँ मौजूद एक गुफा में रहकर ईश्वर भक्ति में लीन हो गई थीं। मान्यता है कि 15वीं शताब्दी में 151 वर्ष की उम्र में देवी करणी एकाएक विलुप्त हो गईं। जिस गुफा में करणी माता ईश्वर की आराधना किया करती थीं, वह आज भी मंदिर परिसर में उपस्थित है। करणी जी की अंतिम इच्छा थी कि उनके देह त्याग के पश्चात् उसी गुफा में उनकी मूर्ति की स्थापना करवाई जाये। उनकी इच्छा का पालन किया गया।
माता करणी देवी मंदिर का निर्माण 20वीं शताब्दी में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह द्वारा करवाया गया था। 1999 में हैदराबाद के कुंदन लाल वर्मा द्वारा मंदिर का विस्तार करवाया गया था।
मंदिर की वास्तुकला (Architecture of Temple)
मंदिर के इतिहास और चमत्कारों के अतिरिक्त इसकी वास्तुकला भी पर्यटकों को आकर्षित करती है। इसकी संरचना राजपूत और मुग़ल शैली को ध्यान में रखते हुए की गई है। बलुआ पत्थर द्वारा मंदिर का निर्माण कार्य किया गया है। मंदिर परिसर में चारों तरफ़ सुंदर नक़्क़ाशी की हुई दीवारें, गलियारे और कई द्वारों का निर्माण हुआ है। मुख्य द्वार को संगमरमर की नक़्क़ाशियों से सजाया गया है। मंदिर के द्वारों में देवी की विभिन्न किंवदंतियों को दर्शाने वाले पैनल हैं।
गर्भगृह में माता की प्रतिमा स्थापित है जिसमें उन्होंने हाथों में त्रिशूल पकड़ा हुआ है। उसी के साथ गर्भगृह में कुछ विशेष आकर्षण के केंद्र हैं जैसे सोने का छत्र, चांदी का किवाड़ और चांदी की एक बड़ी परात जिसमें चूहों को भोग लगाया जाता है।
मंदिर के चमत्कारी चूहे (Miraculous Mice of the Temple)
ये तो हम पहले ही समझ चुके हैं कि इस मंदिर में हज़ारों की तादाद में चूहे हैं, जिस वजह से इसे चूहों वाला मंदिर या मूषक मंदिर भी कहा जाता है। परन्तु इसे साक्षात् माँ आदिशक्ति का अवतार मानी जाने वाली माता करणी का चमत्कार बोलें या चूहों की दिव्य शक्ति कि इतने चूहों के बावजूद भी मंदिर प्रांगण से बिल्कुल बदबू नहीं आती है।
और तो और चूहे और उनके द्वारा झूठा किया हुआ भोजन आम जनता के लिए ख़तरनाक माना जाता है। परंतु यहाँ पर भक्तजनों को जो प्रसाद दिया जाता है, वह पहले इन चूहों को भोग लगाया जाता है। फिर भी यहाँ से प्रसाद ग्रहण करने वाले भक्त को कभी भी प्लेग या चूहे द्वारा होने वाली अन्य बीमारी का सामना नहीं करना पड़ा है।
करणी माता मेला (Karni Mata Fair)
करणी माता मेला राजस्थान के देशनोक ज़िले में प्रतिवर्ष दो बार लगता है।
- पहला और सबसे बड़ा मेला मार्च-अप्रैल के महीने में चैत्र शुक्ल पक्ष की नवरात्रि के समय लगता है। यह मेला प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर दशमी तिथि तक चलता है।
- दूसरा मेला सितंबर-अक्टूबर के महीने में शरद नवरात्रि के समय ही लगता है। यह मेला आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से दशमी तिथि तक चलता है।
नवरात्री के दौरान हज़ारों श्रद्धालुगण पैदल ही मंदिर के दर्शन करने आते हैं।
करणी माता मंदिर में आरती का समय (Aarti Timings at Karni Mata Temple)
यह मंदिर सुबह 5 बजे खुलता है और भक्तों को रात 10 बजे तक प्रवेश की अनुमति रहती है। सुबह के समय करणी माता की आरती हर रोज़ प्रातः 5 बजे और शाम की आरती हर रोज़ सायं 7 बजे होती है।
मंदिर कैसे पहुंचे (How to Reach This Temple)
करणी माता मंदिर पहुंचने के लिए आप अपनी आवश्यकता अनुसार फ़्लाइट, ट्रेन, या बस का चुनाव कर सकते हैं।
अगर आप हवाई मार्ग द्वारा इस मंदिर तक पहुँचना चाहते हैं तो आपको नज़दीकी रेलवे स्टेशन जोधपुर पहुँचना पड़ेगा। यह मंदिर से लगभग 220 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। जोधपुर हवाई अड्डे की गिनती देश के बड़े हवाई अड्डों में आती है और देश के किसी भी कोने से आप यहाँ पहुँच सकते हैं। हवाई अड्डे से मंदिर पहुँचने के लिए आप बस, टैक्सी, या फिर कैब का इस्तेमाल कर सकते हैं।
रेल मार्ग द्वारा मंदिर पहुँचने के लिए आप बीकानेर रेलवे स्टेशन पहुँच सकते हैं। यह देश के बड़े-बड़े शहरों को कनेक्ट करता है। मंदिर का नज़दीकी रेलवे स्टेशन देशनोक में है, जो मंदिर से कुछ ही क़दम की दूरी पर स्थित है। पैदल चलकर ही यहाँ से मंदिर पहुँचा जा सकता है। यह रेलवे स्टेशन बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित है। अतएव आप बीकानेर स्टेशन से भी मंदिर पहुँच सकते हैं। इसके लिए आपको आसानी से बस, टैक्सी और जीप उपलब्ध हो जाएंगी।
सड़क मार्ग से करणी मंदिर पहुँचने के लिए आप बीकानेर तक लक्ज़री क्लास बस से आ सकते हैं। फिर वहाँ से लोकल बस, टैक्सी या कैब के माध्यम से मंदिर पहुँचा जा सकता है।
श्रद्धालु और भक्तों के विश्राम और ठहरने के लिए मंदिर के समीप ही धर्मशालाएँ भी मौजूद हैं।
करणी माता मंदिर की यात्रा कब करनी चाहिए (When to Visit Karni Mata Temple)
वैसे तो साल भर में किसी भी दिन यह मंदिर जाया जा सकता है और वह शुभ ही होता है। परन्तु अगर आप मार्च-अप्रैल या सितम्बर-अक्टूबर के महीने में यहाँ जाते हैं तो आपको अलग ही रौनक और चहल-पहल दिखाई देगी। इस समय पर यहाँ विशेष मेलों का आयोजन होता है।
करणी माता मंदिर का स्थानीय भोजन एवं समीप के पर्यटन स्थल (Local Food and Nearby Tourist Places of Karni Mata Temple)
मंदिर का दर्शन करने आने वाले पर्यटक यहाँ के मुख्य एवं प्रसिद्ध भोजन जैसे नमकीन, भुजिया, पापड़, कचोरी, समोसा आदि का लुत्फ़ उठा सकते हैं। और तो और, यहाँ के स्थानीय लोगों का पसंदीदा भोजन जैसे गट्टे की सब्ज़ी, दाल बाटी चूरमा, रबड़ी, पकोड़ी के साथ घेवर, खट्टा आदि के स्वाद का आनंद भी ज़रूर लेना चाहिए।
अगर आप करणी माता मंदिर के दर्शन का प्लान बना रहे हैं तो अपनी लिस्ट में आसपास के पर्यटन स्थल को भी जोड़ सकते हैं। मंदिर के कुछ कि. मी. की दूरी पर मुख्य पर्यटन स्थल इस प्रकार हैं–रामपुरिया हवेली, देवीकुंड सागर, लालगढ़ पैलेस, गजनेर पैलेस और जूनागढ़ का किला आदि।
शक्ति के सभी उपासकों को एक बार इस मंदिर में जाकर चमत्कारों और प्रकृति के अनुपम दृश्यों का आनंद ज़रूर उठाना चाहिए। जय करणी माता!