धर्म

गंगोत्री धाम – Gangotri Dham Temple

गंगोत्री धाम उत्तर भारत में स्थित हिन्दुओं के बेहद पवित्र एवं महत्वपूर्ण धामों में से एक है। यह उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हिमालय पर्वतमाला पर लगभग 3100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। उत्तर भारत के चार छोटे और पवित्र धामों में से एक गंगोत्री उत्तरकाशी में एक छोटा-सा शहर है जिसके केंद्र में देवी गंगा का मंदिर (Gangotri Temple) है।

ऋषिकेश से लगभग 12 घंटे की ड्राइव पर स्थित गंगोत्री गढ़वाल हिमालय की ऊँची चोटियों, ग्लेशियरों और घने जंगलों के बीच बसा है और यह भारत के सबसे ऊंचे तीर्थों में से एक है। यहाँ के दिव्य वातावरण के अलावा इसकी प्राकृतिक सुंदरता और अद्भुत नज़ारे भी यहाँ जाने वाले के मन को भावविभोर कर देते हैं। 

गंगा देवी हिन्दुओं की सबसे पूजनीय नदियों में से एक हैं। इनका उद्गम स्थान गंगोत्री शहर से लगभग 18 किलोमीटर दूर गंगोत्री हिमनद ग्लेशियर में स्थित गोमुख है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी गंगा राजा भगीरथ के पूर्वजों के पापों को धोने के लिए धरती पर आईं थीं। गोमुख से निकलने के बाद नदी को भागीरथी के नाम से जाना जाता है और देवप्रयाग शहर के पास अलकनंदा नदी में विलीन होने के बाद इसे ‘गंगा’ नाम मिलता है। पौराणिक कथाओं से लेकर वर्तमान समय तक गंगा नदी हमेशा मानव जाति के उद्धार का एक पवित्र स्रोत रही है। गंगोत्री धाम की यात्रा धार्मिक विशेषता के साथ-साथ आध्यात्मिक आह्वान भी लाती है। 

पतित-पावन गंगा माँ के धाम की यात्रा में जाने से पहले उसके बारे में सारी जानकारी एकत्र करना आवश्यक है। यहाँ पर हम आपके साथ सारी आवश्यक जानकारियाँ साझा करेंगे, जैसे गंगा नदी के उद्गम की कहानी, मंदिर का निर्माण, इतिहास, गंगोत्री मंदिर तक कैसे पहुँचे, इस यात्रा का सबसे उचित समय आदि। 

गंगा नदी के उद्गम के पीछे की कहानी (Story Behind the Origin of River Ganga)

भगीरथ की तपस्या (Bhagirath’s Penance)

पौराणिक कथाओं में यह उल्लेख है की कि राजा भगीरथ के परदादा राजा सगर ने पृथ्वी पर राक्षसों का वध किया था। तत्पश्चात अपने वर्चस्व की घोषणा करने के लिए उन्होंने अश्वमेध यज्ञ करने का फैसला किया। इससे देवलोक के राजा इंद्र को डर था कि अगर ये यज्ञ पूरा हो गया तो उनसे उनका साम्राज्य छिन सकता है इसीलिए उन्होंने अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग कर यज्ञ के घोड़े को चुरा लिया और उसे कपिल ऋषि–जो उस समय गहरे ध्यान में बैठे थे–के आश्रम में बांध दिया। 

जैसे ही राजा सगर के गुप्तचरों ने घोड़े के खो जाने की सूचना राजा को दी तो उन्होंने अपने 60,000 पुत्रों को उसकी तलाश में भेज दिया। राजा के पुत्र घोड़े की तलाश करते-करते कपिल ऋषि के आश्रम तक पहुँच गए और वहाँ घोड़े को बंधा देखकर उनपर चोरी का आरोप लगाया और उनके आश्रम पर धावा बोल दिया। इस पर ऋषि कपिल का ध्यान भंग हो गया और उन्होंने अपनी शक्ति से राजा सगर के सभी 60,000 पुत्रों को भस्म कर दिया। साथ ही उन्होंने यह श्राप भी दिया कि उनकी आत्मा तब ही मोक्ष प्राप्त करेगी जब उनकी राख गंगा नदी के पवित्र जल से धुल जाएगी, जो उस समय स्वर्ग में बह रहीं थीं। 

तब राजा सगर के पोते भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मुक्त करवाने के लिए गंगा नदी को पृथ्वी पर आने के लिए प्रसन्न करने के लिए 1000 वर्षों तक कठोर तप किया था। उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही देवी गंगा प्रसन्न होकर पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हुईं थीं। 

गंगा नदी की कहानी (Story of River Ganga)

एक अन्य पौराणिक कथा में कहा गया है कि भगीरथ की प्रार्थना के फलस्वरूप गंगा नदी पृथ्वी पर उतरने के लिए सहमत तो हो गईं, परंतु उनका वेग इतना अधिक था कि पूरी पृथ्वी डूब जाती। इस तरह के विध्वंस से पृथ्वी ग्रह को बचाने के लिए भगवान शिव ने गंगा नदी को अपने केश में जकड़ लिया। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भगीरथ ने फिर से कठिन तपस्या की। भगीरथ की अपार भक्ति को देखकर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गंगा नदी को तीन धाराओं के रूप में मुक्त किया, जिनमें से एक पृथ्वी पर आई और भागीरथी नदी के रूप में जानी जाने लगीं। जैसे ही गंगा के जल ने भागीरथ के पूर्वजों की राख को छुआ, वे मुक्त हो गये। माना जाता है कि जिस पत्थर पर भगीरथ ने ध्यान किया था, उसे भागीरथ शिला के नाम से जाना जाता है जो गंगोत्री मंदिर के काफी करीब स्थित है।

मंदिर का इतिहास (History of Temple)

जैसा कि पहले ही पढ़ चुके हैं कि भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहाँ एक पवित्र शिलाखंड पर विराजमान होकर भगवान शंकर की घोर तपस्या की थी। गंगोत्री धाम के इतिहास के अनुसार इस स्थान पर “देवी गंगा” ने धरती को छुआ था।

एक और मान्यता यह है कि महाभारत के युद्ध में मारे गए अपने परिवारों की आध्यात्मिक शांति के लिए पांडवों ने इस स्थान पर एक विशाल देव यज्ञ भी किया था। कहा जाता है कि यहाँ के बर्फीले पानी में नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। गंगोत्री धाम मंदिर 18वीं शताब्दी में इस पवित्र चट्टान के पास फिर बनाया गया था।

गंगोत्री मंदिर का निर्माण (Construction of Gangotri Temple)

इस स्थान पर आदि शंकराचार्य ने माता गंगा की मूर्ति स्थापित की थी। जहाँ यह मूर्ति स्थापित की गई थी, वहाँ 18वीं शताब्दी में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने बड़े गंगोत्री मंदिर का निर्माण करवाया था। जनरल थापा ने मंदिर के प्रबंधन के लिए मुखबा गंगोत्री गांवों से पंडों को भी नियुक्त किया। इससे पहले तकनौर के राजपूत गंगोत्री के पुजारी थे।

गंगोत्री धाम के इतिहास में यह भी पता चलता है कि जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने 20वीं शताब्दी में मंदिर की मरम्मत करवाई थी और वर्तमान समय में गंगोत्री मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर शाही परिवार के राजा माधो सिंह ने बीसवीं शताब्दी में करवाया था। गंगोत्री मंदिर उत्तम सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट चौड़े पठारों से बना है। शिवलिंग के रूप में एक प्राकृतिक चट्टान भागीरथी नदी में डूबी हुई है। यह नज़ारा बेहद खूबसूरत और आकर्षक होता है। 

प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग के दर्शन से दिव्य शक्ति का प्रत्यक्ष अनुभव होता है। गंगोत्री मंदिर के पास शाम के समय जब गंगा का जलस्तर कम हो जाता है उस समय गंगोत्री नदी में डूबे हुए पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते हैं। गंगोत्री मंदिर की कथा के अनुसार भगवान शिव ने अपनी जटाओं को फैलाया था और इसी स्थान पर विराजमान होकर अपने घुंघराले बालों में मां गंगा को लपेट लिया था। 

गंगोत्री धाम में क्या देखना चाहिए (What to See in Gangotri Dham)

गंगोत्री मंदिर (Gangotri Temple)

भागीरथी नदी के किनारे माँ गंगा का भव्य मंदिर शांति का प्रतीक है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित यह मंदिर गढ़वाल हिमालय के छोटा चार धाम में चार तीर्थों में से एक है। सफेद मंदिर के प्रांगण में चांदी की छोटी मूर्ति के रूप में देवी गंगा विराजमान हैं। हिमालय की अद्भुत पर्वत शृंखला और बगल में बहती भागीरथी नदी मंदिर को और अधिक आध्यात्मिक और प्राकृतिक मूल्य प्रदान करती है। तीर्थयात्रियों को मुख्य मंदिर में जाने से पहले पवित्र नदी में डुबकी लगानी होती है।

सर्दी के मौसम में चारों और बर्फ छा जाने पर देवी गंगा 20 किलोमीटर नीचे मुखबा गाँव में मुख्य मठ मंदिर के लिए प्रस्थान कर देतीं हैं। वैदिक मंत्रोच्चार और विस्तृत अनुष्ठानों के बीच दिवाली (अक्टूबर/नवंबर) के शुभ दिन पर यह स्थानांतरण होता है। एवं अक्षय तृतीया (अप्रैल/मई) के अवसर पर देवी को पूर्ण खुशी और उत्साह के साथ गंगोत्री मंदिर में वापस लाया जाता है।

पानी के नीचे शिवलिंग (Underwater Shivling)

प्राकृतिक चट्टान से निर्मित शिवलिंग पानी में डूबा हुआ है जिनके दर्शन से भक्तों को परम सुख की अनुभूति होती है। ऐसा कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ भगवान शिव अपने घुंघराले बालों में गंगा जी को बांधकर बैठे थे। इन्हें धाराओं में विभाजित करके, शिव जी ने देवी गंगा के विशाल बल से पृथ्वी को बचाया था।

गोमुख और तपोवन (Gomukh and Tapovan)

गोमुख में गंगा नदी के पवित्र उद्गम और ऊंची चोटियों से घिरे एक सुरम्य और रोमांचक ट्रैक पर जा सकते हैं। लोग आगे तपोवन तक जा सकते हैं जो गोमुख से लगभग 4 किलोमीटर दूर है। तपोवन में घास के मैदान, सुंदर फूल, धाराएँ, और आसपास के हिमालय की चोटियों जैसे शिवलिंग और भागीरथी के अविश्वसनीय दृश्य हैं। तपोवन कई पर्वतारोहण पर्यटन शुरू करने वालों के लिए एक आधार शिविर भी है।

भैरों घाटी में भैरों नाथ मंदिर (Bhairavnath Mandir in Bhairon Ghati)

गंगोत्री धाम से लगभग 10 किलोमीटर नीचे, उस बिंदु के पास जहाँ जाध गंगा (जिसे जाह्नवी नदी भी कहा जाता है) भागीरथी में विलीन हो जाती है, भैरों नाथ का मंदिर है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भैरों नाथ को भगवान शिव ने इस क्षेत्र के रक्षक के रूप में चुना था। और गंगोत्री मंदिर की हर यात्रा के बाद भैरों के मंदिर के दर्शन करने चाहिए।

भैरों घाटी से लगभग 3 किमी की दूरी पर चलकर लंका चट्टी पहुँचते हैं जहाँ इस क्षेत्र का सबसे ऊँचा नदी पुल स्थित है; जाह्नवी नदी पर बना यह पुल अपने आप में एक अद्भुत दृश्य है।

गंगोत्री धाम कैसे पहुँचे (How to Reach Gangotri Dham)

गंगोत्री पहुंचने के लिए प्रायः दो रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है, जो इस प्रकार है:

दिल्ली – हरिद्वार – ऋषिकेश – नरेंद्र नगर – टिहरी – धरासू बेंड – उत्तरकाशी – भटवारी – गंगनानी – हरसिल – गंगोत्री

दिल्ली – देहरादून – मसूरी – चंबा – टिहरी – धरासू बेंड – उत्तरकाशी – भटवारी – गंगनानी – हरसिल – गंगोत्री

हवाई मार्ग से (By Air):

जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, ऋषिकेश रोड, देहरादून, गंगोत्री का निकटतम हवाई अड्डा है। वहाँ से आगे बस या कैब करके आप गंगोत्री तक पहुँच सकते हैं। 

रेल मार्ग से (By Rail):

हरिद्वार और देहरादून के लिए नियमित ट्रेनें साल के 365 उपलब्ध हैं। वहाँ से आगे बस या कैब करके आप गंगोत्री तक पहुँच सकते हैं। 

सड़क मार्ग से (By Road):

गंगोत्री सड़क मार्ग से आसानी से कनेक्ट होता है। ऋषिकेश, देहरादून, उत्तरकाशी, और टेहरी गढ़वाल से बस और टैक्सी द्वारा गंगोत्री पहुँचा जा सकता है। 

गंगोत्री यात्रा का उचित समय (Best Time to Visit Gangotri)

गंगोत्री मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अप्रैल/मई से जून और सितंबर से अक्टूबर/नवंबर तक है।

बारिश के मौसम में बाढ़, भूस्खलन जैसी समस्याओं का खतरा होता है तो वहीं सर्दियों में हिमपात और ठण्ड की वजह से तापमान बहुत नीचे चला जाता है। 

हर साल मई से अक्टूबर के महीनों के बीच, पवित्र गंगा मैया के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु इस चार धाम से गंगोत्री के दर्शन करने आते हैं।
तो दोस्तो, आशा है कि इस लेख को पढ़कर आपको उत्तराखंड के चार धाम में से एक गंगोत्री धाम से सम्बंधित संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। गंगा माँ के पावन दर्शन और प्रकृति के अनुपम दृश्यों का लुत्फ़ उठाने के लिए हर किसी को एक बार गंगोत्री की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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