धर्म

खजराना गणेश मंदिर – Khajrana Ganesh Mandir

खजराना गणेश मंदिर (Khajrana Ganesh Mandir) भारत का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश की सबसे प्रसिद्ध नगरी इंदौर में स्थित है। मध्य प्रदेश राज्य अपनी ऐतिहासिकता और सुंदरता के लिए भारत के कोने-कोने से प्रसिद्धि बटोर रहा है। इंदौर शहर मध्य प्रदेश की लोकप्रियता में चार चाँद लगाने के लिए हमेशा अग्रसर रहता है। यह शहर, मध्य भारत का आईटी हब होने के साथ-साथ कई और वजह से नित्य प्रतिदिन चर्चा में रहता है। परन्तु खजराना का गणेश मंदिर इसकी लोकप्रियता का सबसे प्रमुख कारण है। यह मंदिर केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में ख्याति प्राप्त किये हुए है। यहां की मंदिर व्यवस्था बहुत उच्च कोटि की है। खजराना का यह गणेश मंदिर अपने चमत्कारों के लिए भी अत्यधिक लोकप्रियता घेरे हुए है। आइये जानते है मंदिर से जुड़े चमत्कारिक रहस्यों और कुछ अन्य तथ्यों के बारे में।

खजराना गणेश मंदिर का इतिहास
History of Khajrana Ganesh Mandir

इस मंदिर का निर्माण होल्कर वंश की महारानी अहिल्या बाई होल्कर के द्वारा सन 1735 में करवाया गया था। खजराना गणेश मंदिर में स्थापित मुख्य प्रतिमा भगवान श्री गणेश जी की है, जिसके बारे में यह कहानी और मान्यता प्रचलित है कि-

मुग़ल शाषक औरंगज़ेब के काल में जब उसका आतंक अत्यधिक बढ़ गया था, तो गणेश प्रतिमा को उसके विध्वंश से बचाने के लिए ज़मीन पर छुपा दिया गया था। जब सब शांत हो गया और छुपाने वाले लोग खुद इस बात को भूल गए तो स्वयं स्वयंभू गणपति जी ने, उस समय के एक स्थानीय पंडित श्री मंगल भट्ट को स्वप्न में आकर इसकी जानकारी दी थी। मंगल भट्ट ने उस वक़्त शाषन कर रहीं महारानी अहिल्या बाई होल्कर को अपने स्वप्न के बारे में बताया। पंडित की बात को गंभीरता से लेते हुए महारानी ने बताई हुई जगह पर खुदाई करवाई तो वहाँ से सचमुच में पाषाण युग की यह गणेश प्रतिमा प्राप्त हुई। मूर्ति स्थापना के पीछे भी एक कहानी प्रचलित, आइये जानते हैं, वह क्या है। 

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कैसे हुई मूर्ति की स्थापना
How the Statue was Installed

महारानी अहिल्या एक बहुत बड़ी शिवभक्त थीं। वे गणपति बाप्पा की मूर्ति पाकर अत्यधिक प्रसन्न थीं और उसकी स्थापना राजवाड़ा में करवाना चाहती थीं। इसी प्रयोजन से उन्होंने सैंकड़ों मजदूरों को प्रतिमा को खजराना से राजवाड़ा लाने का आदेश दिया था। परन्तु इतने मजदूर मिलकर भी मूर्ति को हिला नहीं सके। इसके बाद श्री भट्ट ने महारानी से गणेश जी के स्वप्न में दिए हुए आदेशानुसार प्रतिमा को खजराना में ही स्थापित करवाने का आग्रह किया। महारानी ने पंडित की बात को तवज्जो देकर गणेश प्रतिमा की स्थापना उस जगह करवा दी, जो आज खजराना के गणेश मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। और जहां से मूर्ति प्राप्त हुई थी, उस जगह में एक जलकुंड बनवा दिया गया है। 

खजराना गणेश मंदिर का निर्माण
Construction of Khajrana Mandir

छोटी सी झोपडी से लेकर एक भव्य और अद्भुत इमारत तक यह मंदिर बहुत ज़्यादा विस्तृत हुआ है। देश विदेश से श्रद्धालु मंदिर में पैसे, सोना, बहुमूल्य हीरे, जवाहरात आदि दान करते हैं, और इसके निर्माण कार्य में सहयोग करते हैं। 

मंदिर के गर्भगृह  के बाहरी गेट और दीवार का निर्माण चांदी से हुआ है और इसमें अलग-अलग त्योहारों की झांकियां प्रस्तुत की गई हैं। भगवान की प्रतिमा की आँख हीरे से बनी हुई है, जिसको इंदौर के एक व्यवसायी द्वारा दान किया गया था। 

इस मंदिर को सरकार ने अपने कब्ज़े में ले लिया है और इसे इंदौर के डीएम के द्वारा संचालित और नियंत्रित किया जाता है। उन्हीं मंगल भट्ट (जिनके स्वप्न में गणेश प्रतिमा दिखी थी) के वंशज इस मंदिर में पंडित के रूप में पदस्थ रहते हैं। पुजारी को मासिक तनख्वाह पर रखा जाता है। 

मंदिर में हैं मुख्य मूर्ति के साथ अन्य प्रतिमाएं
Other Statues in the Temple

खजराना गणेश मंदिर में मुख्य मूर्ति जो कि गणपति जी की है, वह सिन्दूरी रंग से रंगी हुई है। इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर में अन्य 33 देवी देवताओं की मूर्ति भी स्थापित हैं। इनमें भगवान शिव, देवी दुर्गा, श्री राम, हनुमान जी, और साईं बाबा सहित अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं हैं। परिसर में एक अत्यंत प्राचीन पीपल का पेड़ भी हैं, जिससे जुड़ी भी कई मान्यताएं प्रचलित हैं। 

खजराना गणेश मंदिर की महत्ता
Importance of Khajrana Ganesh Mandir

वैसे तो देश में निर्मित सभी गणेश मंदिरों की अपनी विशेषता है। परन्तु इंदौर में स्थित खजराना गणेश मंदिर का  अलग ही महत्व है। देश विदेश से श्रद्धालु मंदिर में गणेश जी के दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि, जो भी किसी विशिष्ट मनोकामना के साथ मंदिर में आता है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता। आंकड़ों की माने तो प्रत्येक दिन लगभग दस हज़ार लोग मंदिर में आकर माथा टेकते हैं। 

दूर-दूर से लोग मंदिर में आकर तीन परिक्रमा लगाते हैं और दीवार पर मन्नत का धागा बांधते हैं। ये प्रक्रिया भी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भक्तों द्वारा की जाती है। मन्नत पूरी हो जाने के बाद भक्त वापस धागा खोलने के लिए जाते हैं। 

वैसे तो हर दिन ही खजराना गणेश मंदिर में भक्तों का जमावड़ा रहता है, परन्तु बुधवार और रविवार को विशेष आयोजन एवं पूजा आरती होती है, जिसमे शामिल होने के लिए श्रद्धालुओं का बड़ा जमावड़ा रहता है। 

इंदौर और उसके आसपास के लोग किसी भी शुभ कार्य का प्रथम निमंत्रण मंदिर में भेजकर भगवान श्री गणेश को आमंत्रित करते हैं। लोगों का मानना है कि इससे शुभ कार्य में कोई बाधा, विघ्न, या अड़चने नहीं आती हैं। 

गणेश जी के महत्वपूर्ण त्यौहार जैसे विनायक चतुर्थी, तिल चौथ इत्यादि में यहाँ पर विशेष आयोजन होता है, मेला लगता है, और बहुत भव्य रूप में इसे मनाया जाता है।

यहां पर गणेश भक्तों को प्रतिदिन निःशुल्क भोजन कराया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि यह मंदिर भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी प्रसिद्ध है। उसी क्रम में यह मान्यता भी प्रचलित है कि जिस भी भक्त की इच्छा पूर्ण हो जाती है, वह अपने वज़न के तुल्य लड्डुओं का दान करता है। 

उल्टा स्वास्तिक बनाने का विधान
The Tradition of Inverted Swastik

मंदिर के बारे में उल्टे स्वास्तिक के आधार पर इच्छा पूर्ति की एक अलग महिमा है। इसके अनुसार जो भी भक्तगण गणेश जी की पीठ पर उल्टा स्वास्तिक (सातिया) बनाकर अपनी मन्नत बोलता है, कुछ ही समय में उसके मनोरथ पूर्ण होते हैं। फिर मनोकामना पूर्ति के बाद वह भक्त वापस मंदिर में जाकर उल्टा स्वास्तिक को सीधा बना देता है। मान्यता है कि उल्टा स्वास्तिक बनाने से लोगों की मनचाही इच्छा जल्द ही पूर्ण हो जाती है। 

सबसे धनी मंदिरों में है नाम शामिल
One of the Richest Temple

शिरडी के साईं बाबा मंदिर और तिरुपति के वेंकटेश्वर मंदिर की ही तरह खजराना मंदिर का नाम भी सबसे धनी हिन्दू मंदिरों में शुमार है। यहां पर देश विदेश से बहुमूल्य चढ़ावा आता है, जिसके वजह से मंदिर की कुल संपत्ति का कोई हिसाब नहीं है। मंदिर के ख़ज़ानों में विदेशी मुद्राओं की भी बहुतायत में गणना होती है। भक्तगण और श्रद्धालुजन ऑनलाइन माध्यम से भी मंदिर में भेंट चढ़ाते हैं। 

यह थी इंदौर के खजराना स्थित गणेश मंदिर की अपरंपार महिमा। हिंदीपथ के माध्यम से हमने मंदिर के बारे में सारी उचित और महत्वपूर्ण जानकारी आप सभी के साथ साझा की है।

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निष्ठा राय

निष्ठा राय ने राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भोपाल से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की है। कॉन्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत निष्ठा लेखन में दिलचस्पी रखती हैं। वे हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों ही भाषाओं में समान रूप से निपुण हैं। टीम हिंदीपथ से जुड़कर वे उसमें सामग्री के चयन से लेकर उसकी गुणवत्ता आदि तमाम प्रक्रियाओं से जुड़ी हुई हैं। निष्ठा कार्य के सभी पहलुओं में लगातार सहयोग करती हैं और नया सीखने को तत्पर रहती हैं।

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