लकीर छोटी हो गई – अकबर बीरबल की कहानी
“लकीर छोटी हो गई” बहुत ही छोटी, किन्तु रोचक कहानी है। इसमें अकबर की पहेली जिस तेज़ी और चतुराई से बीरबल सुलझाते हैं, वह सीखने योग्य है। इस कहानी की भाषा पुरानी है, जो इसे और भी अधिक दिलचस्प बनाती है। अन्य अकबर बीरबल की कहानियां पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – अकबर-बीरबल के किस्से।
एक दिन बादशाह ने बीरबल को छकाने के विचार से एक भूल भुलैया की चाल निकाली। वह एक बार फिर से देखना चाहता था कि बीरबल का दिमाग़ अभी भी उतना ही तेज़ है या नहीं, जैसा कि वह पहले हुआ करता था।
यही परखने के लिए बादशाह अकबर एक लकीर जमीन पर खींचकर बीरबल से बोले, “बीरबल! पूरे राज्य में तुम्हें सबसे चतुर व्यक्ति समझा जाता है। इस लकीर को बिना काटे-छाँटे छोटी कर दो। यदि तुम ऐसा कर सको, तभी मैं मानूंगा कि तुम वाक़ई दिमाग़ के तेज़ हो।”
बीरबल तो पूरा गुरु घण्टाल था ही। अकबर की इस बात से उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई। इस सवाल से बिल्कुल परेशान नहीं हुआ, क्योंकि उसकी तीव्र बुद्धि अकबर के इस प्रश्न का उत्तर खोज चुकी थी।
उसने लकीर को न घटाया और न बढ़ाया, बल्कि उसके पास ही अपनी उँगल से एक दूसरी लकीर उससे भी बड़ी खींचकर बोला, “लीजिये पृथिवीनाथ! अब आपकी लकीर इससे भी छोटी हो गई।”
बादशाह बीरबल की मेधावी बुद्धि से हार मान गया। बिना छुए ही लकीर छोटी हो गई थी। बीरबल के तेज़ दिमाग़ ने एक बार फिर बादशाह अकबर का मन जीत लिया था।