मंगलमय त्यौहार (स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1964)
“मंगलमय त्यौहार” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 15 अगस्त सन् 1964 को लिखी गयी थी।
इसमें देशवासियों से आज़ादी की क़ीमत पहचानने और भारत को आगे बढ़ाने की अपील परिलक्षित होती है। पढ़ें यह कविता–
नव पुष्पों से करो अर्चना मंगलमय त्यौहार की
अन्धकार पीकर लाया जो डोली नव उजियार की
बिखर गयी किरणें घर-घर में कोटि कंगूरे मुस्काए
हिमगिरि दमक उ आभा से, फिर सोने के दिन आए
सागर की लहरें सहसा ही पा स्वतन्त्रता को झूम उठी
और तिरंगी विजय पताकायें अम्बर को चूम उठी
अगणित पुष्प लुटाती आई डाली हर सिंगार की
नव पुष्पों—————————————-
निद्रित पलकें खोल जगे हम मन में नई उमंग ले
देखा गंगा आज हमारी बहती नई तरंग ले
गूंजा श्रम संगीत सृजन की ओर हमारे चरण उठे
श्रमसीकर सबकेमस्तक पर झिलमिल झिलमिल दमक उठे
नीति हमारी कभी नहीं थी सीमा के विस्तार की
नव पुष्पों—————————————-
चली कुदाली खेतों में तब नई जिन्दगी नाच उठी
मिट्टी खुश होकर घर-घर में सोना-चाँदी बाँट उठी
रोक लिया हमने नदियों का जल फौलादी हाथों से
हमने सबको ही खुश रखा अपनी मीठी बातों से
बढ़ते गए भावना मन में लेकर देश सुधार की
नव पुष्पों—————————————-
किन्तु पड़ौसी का ईर्ष्या से हृदय अचानक धधक उठा
अगणित सेना ले करके वह चढ़ सीमा पर गरज उठा
उसने सोचा था कि लड़ेगें नहीं अहिंसा मनवाले
किन्तु पता क्या था उसको भारत हैं विषधर काले
गया लौट उलटे पैरों जब भारत नें फुँकार दी
नव पुष्पों—————————————-
किन्तु कुँआरी मुस्कानों पर अब भी काले घन छाये
उठो और दायित्व निभाओ, चली न आजादी जाये
निर्माणों के साथ-साथ रक्षा का भार निभाना है
अपनी सीमा से दुश्मन का खतरा हमें मिटाना है
नियत बदलती दीख रही है नकली हिस्सेदार की।
नव पुष्पों—————————————-
वीरों ! है सौगन्ध तुम्हें अपनी माता के प्यार की
है तुमको सौगन्ध प्रियतमा के सुहाग-शृंगार की
नन्हें और दुधमुंहे, लालों की सौगन्ध है
गीता-रामायण–कुरान को भी तुमको सौगन्ध है
लो तुमको सौगन्ध आज गंगा–यमुना की धार की ।
नव पुष्पों—————————————-
आज हिमालय की चोटी पर चढ़ दुश्मन ललकार दो
अब न अधिक हम सहन करेंगे यह कहकर हुँकार दो
हटो-हटो सीमा छोड़ो अब घर को लौट चले जाओ
तुम्हें पता क्या! शक्ति कि कितनी होती सागर-ज्वार की।
नव पुष्पों—————————————-
बतला दो जो चमन लगाया नहीं उजड़ने हम देंगे
एक-एक तिनके के हित हम कोटि-कोटि जीवन देंगे
तेरी तो सामर्थ्य भला क्या सारी दुनियाँ चढ़ आए
तो भी हम पीछे न हटेंगे नभ अंगारे बरसाये
याद नहीं हम भुला सकेंगे भारत माँ के प्यार की।
नव पुष्पों से —————————————-
आज विषमता के काँटों को अपने पग से तोड़ दो
फैली हुई रूढ़ियों को अब ठीक दिशा में मोड़ दो
हम है एक, एक हम सब हैं, इधर न कोई टकराये
हम भारत के रक्षक हैं, यह भारत का जन-जन गाये
कहो भावना उदित हुई कब हममें है प्रतिकार की ।
नव पुष्यों से —————————————-
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।