पंचतंत्र की कहानी – धोखेबाज मित्र
“धोखेबाज मित्र” पंचतंत्र की पहली कहानी है, जिसमें ग्रंथ की भूमिका बांधी गयी है। पढ़ें यह रोचक कहानी और अपनी टिप्पणी अवश्य करें। पंचतंत्र की अन्य कहानियाँ पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – पंचतंत्र की कहानियां।
दक्षिण भारत में एक छोटा-सा नगर था। जिसमें एक व्यापारी वर्धमान रहता था। वर्धमान के पिता वैसे तो उसके लिए काफी धन और अच्छा कारोबार छोड़ गये थे, किन्तु फिर भी उसके दिल में एक लालसा थी कि वह किसी-न-किसी ढंग से अमीर आदमी बन जाए, इतना अमीर कि चारों ओर उसके ही नाम के चर्चे हों। बस यही सोच हर समय उसके दिमाग में घूमती रहती थी।
“धनवान बनूँ, अमीर बनूँ।”
“धनवान बनने के लिए कौन-कौन से रास्ते हैं।”
सरकारी नौकरी, खेती, विद्या, ब्याज़, व्यापार और भिक्षा – यही छः रास्ते थे उसके सामने। अमीर बनने के लिए उसे छः रास्तों में से एक को चुनना था, उसकी मंज़िल केवल एक ही थी – अमीर बनना।
वह रातों को चारपाई पर लेटा-लेटा यही सोचा करता था कि इन छ: रास्तों में कौन-सा रास्ता चुन लूँ।
सरकारी नौकरी में तो अफसरों को दिन रात प्रणाम करना पड़ेगा। फिर उनकी डांट-डपट भी सुननी पड़ेगी। फिर भी क्या भरोसा था कि वह कब तक अमीर बनेगा।
खेती करना और विद्या प्राप्त करना उसके बस की बात नहीं थी।
ब्याज पर धन देकर सूदखोरी से धन कमाने में हर समय आदमी घर पर पड़ा-पड़ा सुस्त हो जाता है । उसमें रकम डूबने का भी डर रहता है।
बस फिर एक ही रास्ता रह जाता है, “व्यापार।”
“हां…हां… व्यापार।”
“यही निर्णय कर लिया था रूपा ने।”
उसने अपने विशेष साथियों को इकट्ठा करके अपनी योजना को विस्तार से बताया और इन सबने यह फैसला कर लिया कि इस छोटे कस्बे में हम किसानों से सस्ता अनाज और लकड़ियां आदि खरीदकर बड़े शहर में ले जाकर महंगे भाव से बेचेंगे। इस प्रकार हम अमीर बन जाएंगे।
क्योंकि रूपा सेठ पहले से ही गांव में धनी माना हुआ था। उसकी बात सुनते ही सभी साथी खुश हो गये और रूपा के साथ जाने को तैयार भी।
बस फिर क्या था, देखते-ही-देखते सारी तैयारियां पूरी हो गईं। एक मजबूत-सी बैलगाड़ी खरीदी गई, जिसमें गांव वालों से सस्ते दामों पर माल खरीदकर उसमें भर लिया गया। उस गाड़ी को खींचने के लिए दो बढ़िया और शक्तिशाली बैल खरीदे गये।
इस प्रकार से रूपा सेठ अपने साथियों के साथ उस माल से भरी बैलगाड़ी को लेकर शहर की ओर चल पड़ा।
शहर की दूरी गांव से काफी अधिक थी। फिर बैलगाड़ी पर बोझा भी कुछ अधिक लाद दिया गया था। जिसका फल यह निकला कि घने जंगल में जाकर बैल मूर्छित होकर गिर पड़ा। उसकी एक टांग भी टूट गई। इस प्रकार रूपा और उसके साथी काफी चिंतित हो गये थे। वे करते भी क्या? चिंता के मारे उनका बुरा हाल हो रहा था। एक ओर तो घने जंगल में जंगली जानवरों का डर था, दूसरी ओर चोरों का।
बहुत देर सोचने के पश्चात रूपा अपने दो साथियों को बैल की देखभाल के लिए छोड़कर बाकी साथियों को अपने साथ ले शहर की ओर चल पड़ा। उसने सोचा कि वह मनुष्य बुद्धिमान है जो थोड़े के लिए अधिक नुकसान न होने दे।
मगर रूपा के साथी शायद उससे कहीं अधिक होशियार थे। उन्होंने जैसे ही अपने सेठ को जाते देखा, तो दूसरे दिन ही स्वयं भी वहां से चल पड़े। रूपा सेठ के पास पहुंचकर उन्होंने झूठ बोलते हुए कह दिया कि वह बैल तो उसी रात को मर गया था। हम उसका अंतिम संस्कार उसी जंगल में करके आ रहे हैं।
दूसरी ओर जख्मी बैल जंगल की हरी-हरी घास और ताजा हवा खा-खाकर दिन-प्रतिदिन ठीक होता गया। उस जंगल में दिन रात खाता-पीता मौज मारता, रात को नदी किनारे जाकर सो जाता। इस प्रकार वह कुछ ही दिनों में इतना मोटा-ताजा और सांड जैसा हो गया। उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे यह बैल वास्तव में इस जंगल का राजा हो।
कुछ ही दिनों में पिंगलक नामक सिंह जंगली जानवरों के साथ अपनी प्यास बुझाने के लिए उस नदी के पास जाने लगा तो रूपा के इस सांड बैल ने जोर से दहाड़ने की आवाज निकाली, जिससे सारा जंगल गूंज उठा।
पिंगलक सिंह ने इतनी भयंकर आवाज कभी नहीं सुनी थी। वह घबराया हुआ नदी के पास से बिना पानी पिये भाग खड़ा हुआ। उसके पीछे-पीछे दूसरे जंगली जानवर भी भाग लिए। सब-के-सब जंगल में एक स्थान पर छुप कर बैठ गये।
उसी जंगल में उस सिंह के मंत्री के दो पुत्र करटक व दमनक नाम के रहते थे, जिनको उस सिंह ने अपने पद से हटा दिया था। लेकिन फिर भी वे अपने राजा का पूरा आदर करते थे। जैसे ही उन्होंने सिंह को नदी किनारे से प्यासा लौटते देखा तो दमनक बोला, “भाई करटक, हमारा स्वामी तो नदी किनारे से प्यासा लौट आया। अब तो बेचारा बड़ा शर्मिंदा हुआ बैठा है। जंगल का राजा होकर वह पानी भी नहीं पी सका।”
करटक बोला, “भाई दमनक, हमें भला इन बातों से क्या लेना है। बड़े लोग यह कह गए हैं कि जो भी दूसरों के काम में बिना मतलब अपनी टांग अड़ाता है, वह बेमौत मरता है। जैसे एक कील उखाड़ने वाले बन्दर की कहानी तुमने सुन रखी होगी।”
“नहीं भैया, मैंने तो उसकी कहानी नहीं सुनी।”
नहीं सुनी तो आज सुन लो। मैं तुम्हें उस बन्दर की कहानी सुनाता हूं जो दूसरों के काम में बिना मतलब अपनी टांग फंसाता था और…। अब सुनो उस बंदर की कहानी – न राजा बिना सेवक, न सेवक बिना राजा।
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