धर्म

पारसनाथ चालीसा – पार्श्वनाथ चालीसा – Parasnath Chalisa

पारसनाथ चालीसा का महात्म्य अनन्त है। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ की यह चालीसा (Parasnath Chalisa) शक्ति का भंडार है। लगातार चालीस दिनों तक इसका पाठ करने से चमत्कारी लाभों की प्राप्ति होती है। जो भी व्यक्ति ऐसा करता है, उसकी दरिद्रता का नाश हो जाता है। वह रंक से राजा के समान हो जाता है। उसे कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। संतानहीन को संतान की प्राप्ति हो जाती है। पढ़ें पारसनाथ चालीसा (Parshvanath Chalisa)–

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भगवान पारसनाथ का चिह्न – सर्प

दोहा
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूँ प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का ले, सुखकारी नाम॥

सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुरखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मन्दिर में धार॥

चौपाई
पार्श्वनाथ जगत हितकारी,
हो स्वामी तुम व्रत के धारी।

सुर नर असुर करें तुम सेवा,
तुम ही सब देवन के देवा।

तुमसे करम शत्रु भी हारा,
तुम कीना जग का निस्तारा।

अश्वसेन के राजदुलारे,
वामा की आखों के तारे।

काशी जी के स्वामि कहाये,
सारी परजा मौज उड़ाये।

इक दिन सब मित्रों को लेके,
सैर करने को वन में पहुंचे।

हाथी पर कसकर अम्बारी,
इक जंगल में गई सवारी।

एक तपस्वी देख वहां पर,
उससे बोले वचन सुनाकर।

तपसी ! तुम क्यों पाप कमाते,
इस लक्कड़ में जीव जलाते।

तपसी तभी कुदाल उठाया,
उस लक्कड़ को चीर गिराया।

निकले नाग-नागनी कारे,
मरने के थे निकट बिचारे।

रहम प्रभू के दिल में आया,
तभी मन्त्र नवकार सुनाया।

मर कर वो पाताल सिधाये,
पद्मावति धरणेन्द्र कहाये॥

तपसी मर कर देव कहाया,
नाम कमठ ग्रन्थों में गाया।

एक समय श्री पारस स्वामी,
राज छोड़ कर वन की ठानी।

तप करते थे ध्यान लगाये,
इकदिन कमठ वहां पर आये।

फौरन ही प्रभु को पहिचाना,
बदला लेना दिल में ठाना।

बहुत अधिक बारिश बरसाई,
बादल गरजे बिजली गिराई।

बहुत अधिक पत्थर बरसाये,
स्वामी तन को नहीं हिलाये।

पद्मावति धरणेन्द्र भी आये,
प्रभु की सेवा में चित लाये।

पद्मावती ने फन फैलाया,
उस पर स्वामी को बैठाया।

धरणेन्द्र ने फन फैलाया,
प्रभु के सर पर छत्र बनाया।

कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया,
समोशरण देवेन्द्र रचाया।

यही जगह अहिच्छत्र कहाये,
पात्र केशरी जहां पर आये।

शिष्य पांच सौं संग विद्वाना,
जिनको जाने सकल जहाना।

पार्श्वनाथ का दर्शन पाया,
सबने जैन धरम अपनाया।

अहिच्छत्र थी सन्दर नगरी,
जहां सूखी थी परजा सगरी।

राजा श्री वसुपाल कहाये,
वो इक जिन मन्दिर बनवाये।

प्रतिमा पर पालिश करवाया,
फौरन इक मिस्त्री बुलवाया।

वह मिस्तरी मांस खाता था,
इससे पालिश गिर जाता था।

मुनि ने उसे उपाय बताया,
पारस दर्शन व्रत दिलवाया।

मिस्त्री ने व्रत पालन कीना,
फौरन ही रंग चढ़ा नवीना।

गदर सतावन का किस्सा है,
इक माली को यो लिक्खा है।

माली एक प्रतिमा को लेकर,
झट छुप गया कुँए के अन्दर।

उस पानी का अतिशय भारी,
दूर होय सारी बीमारी।

जो अहिच्छत्र हृदय से ध्यावे,
सो नर उत्तम पदवी पावे।

पुत्र संपदा की बढ़ती हों,
पापों की इक दम घटती हो।

है तहसील आंवला भारी,
स्टेशन पर मिले सवारी।

रामनगर एक ग्राम बराबर,
जिसको जाने सब नारी नर।

चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाये,
हाथ जोड़कर शीश नवाये।

॥ सोरठा ॥
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार, अहिच्छत्र में आय के।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले॥

जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथाय नमः

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर भगवान श्री पार्श्वनाथ की यह चालीसा (Parasnath Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें भगवान श्री पार्श्वनाथ चालीसा रोमन में–

Read Parasnath Chalisa

॥dohā॥
śīśa navā arihaṃta ko, siddhana karū~ praṇāma।
upādhyāya ācārya kā le, sukhakārī nāma॥

sarva sādhu aura sarasvatī, jina mandira surakhakāra।
ahicchatra aura pārśva ko, mana mandira meṃ dhāra॥

॥caupāī॥
pārśvanātha jagata hitakārī,
ho svāmī tuma vrata ke dhārī।

sura nara asura kareṃ tuma sevā,
tuma hī saba devana ke devā।

tumase karama śatru bhī hārā,
tuma kīnā jaga kā nistārā।

aśvasena ke rājadulāre,
vāmā kī ākhoṃ ke tāre।

kāśī jī ke svāmi kahāye,
sārī parajā mauja uḍa़āye।

ika dina saba mitroṃ ko leke,
saira karane ko vana meṃ pahuṃce।

hāthī para kasakara ambārī,
ika jaṃgala meṃ gaī savārī।

eka tapasvī dekha vahāṃ para,
usase bole vacana sunākara।

tapasī ! tuma kyoṃ pāpa kamāte,
isa lakkaḍa़ meṃ jīva jalāte।

tapasī tabhī kudāla uṭhāyā,
usa lakkaḍa़ ko cīra girāyā।

nikale nāga-nāganī kāre,
marane ke the nikaṭa bicāre।

rahama prabhū ke dila meṃ āyā,
tabhī mantra navakāra sunāyā।

mara kara vo pātāla sidhāye,
padmāvati dharaṇendra kahāye॥

tapasī mara kara deva kahāyā,
nāma kamaṭha granthoṃ meṃ gāyā।

eka samaya śrī pārasa svāmī,
rāja choḍa़ kara vana kī ṭhānī।

tapa karate the dhyāna lagāye,
ikadina kamaṭha vahāṃ para āye।

phaurana hī prabhu ko pahicānā,
badalā lenā dila meṃ ṭhānā।

bahuta adhika bāriśa barasāī,
bādala garaje bijalī girāī।

bahuta adhika patthara barasāye,
svāmī tana ko nahīṃ hilāye।

padmāvati dharaṇendra bhī āye,
prabhu kī sevā meṃ cita lāye।

padmāvatī ne phana phailāyā,
usa para svāmī ko baiṭhāyā।

dharaṇendra ne phana phailāyā,
prabhu ke sara para chatra banāyā।

karmanāśa prabhu jñāna upāyā,
samośaraṇa devendra racāyā।

yahī jagaha ahicchatra kahāye,
pātra keśarī jahāṃ para āye।

śiṣya pāṃca sauṃ saṃga vidvānā,
jinako jāne sakala jahānā।

pārśvanātha kā darśana pāyā,
sabane jaina dharama apanāyā।

ahicchatra thī sandara nagarī,
jahāṃ sūkhī thī parajā sagarī।

rājā śrī vasupāla kahāye,
vo ika jina mandira banavāye।

pratimā para pāliśa karavāyā,
phaurana ika mistrī bulavāyā।

vaha mistarī māṃsa khātā thā,
isase pāliśa gira jātā thā।

muni ne use upāya batāyā,
pārasa darśana vrata dilavāyā।

mistrī ne vrata pālana kīnā,
phaurana hī raṃga caḍha़ā navīnā।

gadara satāvana kā kissā hai,
ika mālī ko yo likkhā hai।

mālī eka pratimā ko lekara,
jhaṭa chupa gayā ku~e ke andara।

usa pānī kā atiśaya bhārī,
dūra hoya sārī bīmārī।

jo ahicchatra hṛdaya se dhyāve,
so nara uttama padavī pāve।

putra saṃpadā kī baḍha़tī hoṃ,
pāpoṃ kī ika dama ghaṭatī ho।

hai tahasīla āṃvalā bhārī,
sṭeśana para mile savārī।

rāmanagara eka grāma barābara,
jisako jāne saba nārī nara।

cālīse ko ‘candra’ banāye,
hātha joḍa़kara śīśa navāye।

॥ soraṭhā ॥
nita cālīsahiṃ bāra, pāṭha kare cālīsa dina।
kheya sugandha apāra, ahicchatra meṃ āya ke।
hoya kubera samāna, janma daridrī hoya jo।
jisake nahiṃ santāna, nāma vaṃśa jaga meṃ cale॥

jāpa:– oṃ hrīṃ arhaṃ śrī pārśvanāthāya namaḥ

हिंदीपथ पर पारसनाथ चालीसा (Parasnath chalisa) आप हिंदी में कभी भी पढ़ सकते हैं। जल्द ही यहां हम आपके लिए पारसनाथ भगवान का चालीसा (Parshwanath chalisa) का pdf भी उपलब्ध कराएंगे। इसका पीडीएफ डाउनलोड करके आप अपने डिवाइस में सेव करके या प्रिंट करवा के भी रख सकते हैं। आइये जानते हैं भगवान पार्श्वनाथ से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य। 

  • जैनों के चौबीसवें तीर्थंकर पारसनाथ या पार्श्वनाथ का जन्म करीब 2900 वर्ष पहले बनारस (अब वाराणसी) में हुआ था। 
  • इनका जन्म पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि में इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। 
  • भगवान पारसनाथ के पिता का नाम राजा अश्वसेन और माता का नाम रानी वामा देवी था। 
  • इनका रंग हरा और ऊंचाई 9 हाथ थी। 
  • इनका जन्म चिन्ह सर्प था। 
  • उन्होंने तीस वर्ष की आयु में घर त्याग कर बनारस में जैनेश्वरी दीक्षा ले ली थी। 
  • इनके यक्ष का नाम धरणेन्द्र और यक्षिणी का नाम पद्मावती था। 
  • भगवान पार्श्वनाथ ने काशी में 83 दिन तक कठोर तपस्या की थी। 84 वे दिन इन्हें कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। 
  • जैनों के प्रमुख चतुर्विध संघ की स्थापना का श्रेय पार्श्वनाथ जी को ही जाता है, जिसमें श्राविका, श्रावक, आर्यिका, और मुनि आते हैं। 
  • इन्होंने जैनों के चार प्रमुख व्रत सत्य, अहिंसा, अस्तेय, और अपरिग्रह की शिक्षा दी थी। 
  • पारसनाथ प्रभु को झारखण्ड की सम्मेदशिखर जी पहाड़ी पर श्रावण शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। 

यहाँ हमने बात की जैन धर्म के प्रमुख श्री पार्श्वनाथ भगवान के बारे में। जैन धर्म में इनकी पूजा का विशेष विधान है। साथ ही श्री पारसनाथ चालीसा का पाठ भी महत्वपूर्ण माना जाता है। ये व्यक्ति के सभी कष्टों को हर लेता है। हिंदी में अन्य रोचक जानकारियों के लिए हिंदीपथ पर बने रहें।

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