प्यार के देवता
“प्यार के देवता” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि अपने विरह की भावनाओं को शब्दों के माध्यम से व्यक्त कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
प्राण छू लो अगर प्यार से एक पल,
पीर मेरी युगों की निकल जायगी।
मुस्करा दो अगर प्यार के देवता,
दर्द की ज़िन्दगी भी बदल जायगी॥
रात – दिन की डगर में फिरा घूमता,
द्वार तेरा अभी तक नहीं मिल सका।
जिन्दगी का थका कारवाँ लुट चुका,
स्नेह का पुष्प लेकिन नहीं खिल सका।॥
हम भरे ही रहे हो सजल सीपियाँ,
क्या पता था कि डोली निकल जाएगी।
हर दिशा को संदेशा रहा भेजता,
प्रीति की किन्तु पाती नहीं पा सका॥
यक्ष बनकर सदा ही जला ही किया,
पर मिलन का मुहूरत नहीं आ सका।
आह ! कैसी निठुर प्रीति की रीति है,
क्या पता था नज़र वो बदल जायेगी॥
खींच कर श्वाँस मुझको हृदय से लगा,
गीत बनकर अधर की गली में मिलो।
हार बनकर गले का रहे भुज लता,
रात-रानी बनो माधवी-सी खिलो॥
झुक के देखे हमारे मिलन को गगन,
बेखबर जिन्दगी भी सम्भल जायेगी॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।