धर्म

संतान गोपाल मंत्र – Santan Gopal Mantra Vidhi

संतान गोपाल मंत्र विधि संतान पाने का रामबाण उपाय है। इसमें आपको बताया गया है, की किस तरह मंत्र उपचार और उपयो से संतान की प्राप्ति होती है। भगवान के प्रति अटूट विश्वास तथा उनकी पूजा और भक्ति से प्रसन्न होने के बाद भगवान श्री कृष्ण जी उन्हें संतान का सुख देते है, इसी आस्था और श्रद्धा के साथ मनुष्य संतान गोपाल स्तोत्र तथा संतान गोपाल मंत्र विधि का पाठ और मंत्रो का उपचार करते है।

संतान गोपाल-मंत्रानुष्ठान के लिये प्राय: तीन मंत्र उपलब्ध हैं। यहाँ तीनों मंत्रों को विधिसहित लिखा जा रहा है। अपनी रुचि के अनुसार इनमें से किसी एक मंत्र का अनुष्ठान करके संतान गोपाल स्तोत्र का यथा विधि पाठ करना चाहिये। स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध आसन पर पूर्व या उत्तराभि मुख बैठकर शिखा बन्धन, आचमन, प्राणायाम आदि करके निम्नलिखित मंत्र से भगवान्‌ गणेश जी का स्मरण करना चाहिये–

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्‌।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपड्डूजम्‌॥

तदनन्तर निम्न संकल्प करना चाहिये

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु; नम: पुराणपुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत्‌ अद्यैतस्थ अचित्त्यशक्तेमहाविष्णोराज़्या जगत्सृष्टिकर्मणि प्रवर्तमानस्य परार्धद्वबजीविनो ब्रह्मणो द्वितीयपरार्ध श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूलोंके जम्बूद्वपे भारतवर्ष भरतखण्डे आर्या वर्तेकदेशान्तर्गते प्रजापतिक्षेत्रे ““स्थाने ““संवत्सरे ““अयने ‘ऋतौ ““मासे ““पक्षे ““तिथौ ““वबासरे एवं ग्रहगुणगण विशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ““गोत्र: “शर्मा वर्मा/ गुप्तो5हम्‌ अस्यामेव जन्मनि अस्यथामेव पाणि ग्रहीत्यां धर्मपत्नयां भगवद्धक्तस्थ सदाचारनिष्ठस्य सनातनधर्मनिरतस्य चिरज्जी विनः वंशप्रवर्तकस्य स्वात्मजस्योत्पत्त्यर्थ वंशानुवृध्यर्थ सन्ततिप्रतिबन्धकग्रहजन्यदोषनिवृत्तिपूर्वकं श्रीराधामाधव प्रीत्यर्थ च सन्तानगोपालमन्त्रस्थ जपं सन्तानगोपालस्तोत्र पाठज्च करिष्ये।

प्रथम मंत्र विधि – विनियोग

अस्य श्रीसन्तानगोपालमन्त्रस्य श्रीनारद ऋषि:, अनुष्दुप्‌ छन्द :, श्रीकृष्णो देवता, ग्लौं बीजमू, नमः शक्ति:, पुत्रार्थ जपे विनियोग:

अंगन्यास

“देवकीसुत गोविन्द’ हृदयाय नम: (इस वाक्य को बोलकर दाहि ने हाथ की मध्यमा, अनामि का और तर्जनी अंगुलियों से हृदय का स्पर्श करे)। ‘वासुदेव जगत्पते’ शिरसे स्वाहा (इस वाक्य को बोलकर सिर का स्पर्श करे)। ‘देहि मे तनयं कृष्ण’ शिखाये वषट्‌ (इस वाक्य को बोलकर दाहिने हाथ के अँगूठे से शिखा का स्पर्श करे) । ‘त्वामहं शरणं गतः’ कवचाय हुम्‌ (इस वाक्य को बोलकर दाहि ने हाथ की पाँचों अंगुलियों से बायीं भुजा का और बायें हाथ की पाँचों अंगुलियों से दाहिनी भुजा का स्पर्श करे)। ‘ॐ नमः” अस्त्राय फट्‌ (इस वाक्य कों बोलकर दाहिने हाथ को सिस्करे ऊपर से बायीं ओरसे पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आये और तर्जनी तथा मध्यमा अंगुलियों से बायें हाथ की  इसके पश्चात्‌ निम्नांकित रूप से भगवान्‌ श्री कृष्ण का ध्यान करे-

वैकुण्ठादागतं कृष्णं रथस्थं करुणानिधिम्‌।
किरीटिसारथिं पुत्रमानयन्तं परात्परम्‌॥
आदाय तं जलस्थं च गुरवे वैदिकाय च।
अर्पयन्तं महाभागं ध्यायेत्‌ पुत्रार्थमच्युतम्‌॥
‘पार्थसारथि अच्युत भगवान्‌ श्री कृष्ण करुणा के सागर हैं। वे जल में डूबे हुए गुरु-पुत्र कों लेकर आ रहे हैं। वे वैकुण्ठ से अभी-अभी पधारे हैं और रथ पर विराजमान हैं। अपने वैदिक गुरु सांदीपनि को उनका पुत्र अर्पित कर रहे हैं– साधक पुत्र की प्राप्ति के लिये इस रूप में महाभाग भगवान्‌ श्री कृष्ण का चिन्तन करे।’

मूल मंत्र

‘ॐ श्रीं हीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव
जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः॥’
यह सम्पूर्ण मंत्र है। इसका तीन लाख जप करना चाहिये। इस मंत्र का भावार्थ इस प्रकार है–सच्चिदानन्द स्वरूप, ऐश्वर्यशाली, शक्तिशाली, कामनापूरक, सौम्यस्वरूप, देवकीनन्दन ! गोविन्द! वासुदेव ! जगत्पते ! श्री कृष्ण! मैं आपकी शरणमें आया हूँ, आप मुझे पुत्र प्रदान कीजिये

द्वितीय मंत्र विधि – विनियोग

अस्य श्रीसन्तानगोपालमन्त्रस्थ ब्रह्म ऋषिगायत्रीच्छन्द:,
श्रीकृष्णो देवता, क्लीं बीजम्‌, नम: शक्ति: , पुत्रार्थ जपे विनियोग: ।

अंगन्यास

ग्लौं हृदयाय नम:। क्लीं शिरसे स्वाहा। हीं शिखाये
वषट्‌। श्रीं कवबचाय हुम्‌। ॐ अस्त्राय फटू।

ध्यान

शद्भुचक्रगदापदां दधानं सूतिकागूहे ।
अड्डे शयानं देवक्याः कृष्णं बन्दे विमुक्तये॥
जो सूतिका गृह में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये माता देवकीकी गोदमें सो रहे हैं, उन भगवान्‌ श्री कृष्ण की मैं संतान प्राप्ति के प्रतिबन्धक से मुक्त होने के लिये वन्दना करता हूँ। मूल मंत्र इस प्रकार है–

ॐ  नमो भगवते जगदात्मसूतये नमः’ (सम्पूर्ण जगत्‌ जिनकी अपनी संतान है, उन भगवान्‌ श्री कृष्ण को नमस्कार है)। इसका तीन लाख जप करना चाहिये।

तृतीय मंत्र विधि – सनत्कुमारोक्त संतानगोपालमंत्र

ॐ अस्य श्रीसन्तानगोपालमन्त्रस्य श्रीनारद ऋषि:, अनुष्टुप्‌ छन्द:,
श्रीकृष्णो देवता, ग्लौं बीजम्‌, नमः शक्ति:, पुत्रार्थ जपे विनियोग:।

अंगन्यास

‘देवकीसुत गोविन्द’ हृदयाय नमः। ‘वासुदेव जगत्पते’
शिरसे स्वाहा। ‘देहि मे तनयं कृष्ण” शिखायेै वषट्‌। ‘त्वामहं
शरणं गतः’ कवचाय हुम्‌। ‘देवकीसुत गोविन्द वासुदेव
जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥’ अस्त्राय फट्‌।

ध्यान

शद्भुचक्रगदापदां धारयन्तं जनार्दनम्‌।
अड्ढे शयान॑ देवक्याः सूतिकामन्दि शुभे॥
एवं रूप॑ सदा कृष्णं सुतार्थ भावयेत्‌ सुधीः॥
“उत्तम बुद्धि वाला साधक पुत्र की प्राप्ति के लिये सदा ऐसे रूपवाले जनार्दन भगवान्‌ श्री कृष्ण का चिन्तन करे, जो मंगलमय सूतिकागार में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये देवकी के अंक में शयन करते हैं।’ सम्पूर्ण मंत्र इस प्रकार है–

ॐ  देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामह शरणं गतः॥
इस मंत्रका तीन लाख जप करे। शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आधी रात के समय भगवान्‌ श्री कृष्ण की पूजा करे। पूजा के लिये स्वस्तिक को रचना करके उस पर घीसे भरा हुआ सकोरा या कोसा स्थापित करे। फिर उसमें रूई की बत्ती डालकर उत्तम दीप प्रज्वलित करे। तत्पश्चात्‌ अष्टदल कमल बनाकर उसमें स्थापित हुए श्रीकृष्णकी पूजा करे। फिर दो कलशोंको जलसे भरकर उनकी विधिवत्‌ स्थापना करके सम्पूर्ण उपचारोंसे युक्त पूजा करे। तत्पश्चात्‌ उन कलशों में भक्ति पूर्वक भगवान्‌ श्रीकृष्ण आवाहन करके पुनः उनका पूर्वोक्त रीति से पूजन करे। तदनन्तर उन दोनों कलशों का स्पर्श करके अनन्यभाव से एक हजार आठ अथवा एक सौ आठ बार उपर्युक्त मंत्र का जप करे। इसके बाद द्वादशी को गोविन्द की विधि पूर्वक पूजा करके अगहनी के चावल की स्वादिष्ठ खीर तथा गाय के घी और गुड़ से युक्त पकवान का भोग अर्पण करे। इन सबके साथ सामयिक फल भी होना चाहिये। इसके अतिरिक्त दाल, भात, स्वादिष्ठ सुस्निग्ध व्यंजन, कपिला गाय के दूध का दही और खाँड भी रहना चाहिये। इन समस्त भोज्य पदार्थों कों सोने के पात्र में रखकर इनके पात्र भूत भगवान्‌ विष्णु को इन्हें निवेदन करे। साथ ही शीतल कर्पूर और गुलाब से सुवासित तथा कपड़े से छाना हुआ स्वच्छ जल अर्पण करे। इसके बाद अपनी आथधिक शक्ति के अनुसार शुद्ध बुद्धि से भगवान्‌ श्री कृष्ण में श्रद्धा रखते हुए अपनी सम्पूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिये ब्राह्मणों कों भोजन दे। संस्कार युक्त अग्नि में भगवान्‌ विष्णु का आवाहन करके अर्घध्य आदि से उनका पूजन करे। फिर १०८ बार या २८ बार हविष्य (खीर)-की आहुति देकर शेष हविष्य को कहीं सुरक्षित रख दे। इसके बाद घी की ८०० आहुतियाँ दे। हुतशेष घृत को उक्त दोनों कलशों में गिराकर उस घृतमिश्रित जलद्वारा दम्पती (यजमान और उसकी पत्नी दोनों)- का अभिषेक करे। तदनन्तर जलमय श्री हरि का ध्यान करते हुए ब्राह्मण पुन: उन कलशों के जल से उन दोनों का अभिषेक करके एक सौ आठ बार पूर्वोक्त मंत्र का जप करने के पश्चात्‌ शेष रखे हुए हविष्य को यजमान-पत्नी के हाथ में दे दे। यजमान-पत्नी उस हविष्य कों लेकर श्री कृष्ण का ध्यान करती हुई एक सुखद आसन पर पूर्वाभि मुख होकर बैठ जाय और उसका भक्षण करे; उस समय यह भावना करे कि इस हविष्य के साथ भगवान्‌ श्रीकृष्ण स्वयं मेरे उदर में आकर विराजमान हुए हैं। फिर जब श्रेष्ठ ब्राह्मण लोग अच्छी तरह भोजन कर लें, तब यजमान पान और मोदक आदि से उन्हें तृप्त करे। तत्पश्चात्‌ वह श्री विष्णु के चिन्तन-पूर्वक उन ब्राह्मणों के चरणों में मस्तक झुकाये। उस समय ब्राह्मण लोग यजमान-दम्पती से यह कहें कि आप दोनों के अभीष्ट मनोरथ की सिद्धि हो।’ फिर वे निष्पाप दम्पती यह भावना करते हुए कि “अब हमारा मनोरथ सफल हो गया! अत्यन्त प्रसन्‍न हो स्वयं भी भोजन करें। जो ब्राह्मण धन खर्च करने में कंजूसी न करके शुक्ल पक्ष को द्वादशी तिथि को भगवान्‌ विष्णु के प्रति भक्तिभाव से युक्त हो इस प्रकार पूजन आदि करता है, वह शीघ्र ही तेजस्वी एवं चिरायु पुत्र प्राप्त कर लेता है। उसका वह पुत्र भी वंशपरम्परा को चलाने वाला, विष्णु भक्त एवं परम बुद्धिमान्‌ होता है। जो श्रेष्ठ द्विज दरिद्र होने के कारण ऐसा न कर सके, वह यदि पूर्वोक्त मंत्र का जप एवं तर्पण करे तो उसे भी पुत्र प्राप्त हो सकता है ।

मंत्रसारोक्त संतानकर-यंत्र

पहले अष्टदल कमल बनाकर उसकी कर्णिका में ‘क्लीं’ इस कामबीजका उल्लेख करे। फिर वहीं यजमान पति-पत्नीके नाम और उसकी कामना भी लिख दे। यथा–‘अमुकस्य धर्मपत्या: अमुकदेव्या: पुत्र कुरू कुरू।’ फिर आठ दलों के निम्न भागों में दो-दो करके अकारादि सोलह स्वरों को अंकि करे तथा उन्हीं के ऊपरी भागों में संतानगोपाल-मंत्रके चार-चार अक्षरों कों लिखे। फिर उन दलों के बाह्य भाग में एक गोल रेखा खींचकर उसे ककारादि वर्णों से आवेष्टित करे। तत्पश्चात्‌ उस वृत्तके बाहर चतुष्कोण बनावे। किसी पात्र में माखन रखकर उसपर यह यंत्र अंकित करे अथवा सूक्ष्म स्वर्ण आदि के पत्र पर इस यंत्र को लिखे। यंत्र से अंकित नवनीत को नारी खा जाय और स्वर्णादि पत्रों पर लिखे हुए यंत्र कों वह धारण करे। इससे वह पुत्र कों जन्म देती है।

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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