सरस्वती-वंदना
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वंदत हौं मातु सारदा के पग बेर-बेर
एक बेर आइ निज बीन कों सुनाइ दै।
मेरे मन-मंदिर की घोर कालिमा कों मेंटि,
आइ बरदानी ज्ञान ज्योति कों जगाइ दै।
हंस-वाहिनी सदा ही जिह्वा पै बिराजौ आइ,
बैठि उर-बीच नीच भावना भगाइ दै।
ताल-स्वर लय यति हू की दानी देवि,
मेरे गायबे कूँ छंद नित नवल बनाइ दै।
माँगत हों मातु बरदान यही बेर-बेर,
एक बेर करि कें कृपा की कोर हेरि दै।
चाहत न मान, धन, धाम, सुख साधन हू,
सारस्वत अमोल ज्ञान-दीपक उजेरि दै।
तूनैं राजहंस कों दियौ है नीर-क्षीर ज्ञान,
भौतिक प्रपंचनि तें मोय निरबेरि दै।
फैरिदै तू पीठि पै दया कौ नेंक हाथ अम्ब,
एक बेर अपनौ तू पूतु कहि टेरि दै।
वेद और पुरान षड्, सास्त्रन कौ ज्ञान होत,
ध्यान के धरें तें ऐसी, गुन की अगारी है।
मेंटि के असत सद्-मारग कौ बोध करै,
तम तोम फारिबे को जोति पुंज भारी है।
एक कर बीना दूजौ पुस्तक सौ राजै हाथ,
स्वेत पद्म आसन पै सुभ्र बस्त्रधारी है।
मातु कहि हेरों कैसें उल्लू की सवारी ताहि,
मेरी मातु की तौ राजहंस की सवारी है।
वानी के प्रताप बाल्मीकि राम गुन गायौ,
वानी के प्रताप व्यास भारत बनायौ है।
वानी के प्रताप ऋषि मुनियन वेद कहे,
मूर्ख कालिदास, कालिदास कहलायौ है।
आँधरौ जनम को सो लैकें तानपूरा हाथ,
हिन्दी काव्य जगत कौ सूर कहलायौ है।
चन्द्र कहलायौ है गरीब तुलसी सौ दास,
आयौ जो सरन मातु तैनें अपनायौ है।
पूजनीया बन्दनीया अखिल भू मण्डल में,
शेष शम्भु हारे, काहू पार नाँय पायौ है।
बाँचि-बाँचि के बिरंचि तेरौ जस, मौन होत,
गाइ-गाइ के गनेश गाइ नाँय पायौ है।
अच्युत, अनाम औ अखण्ड अविनाशी सदा,
ध्यान धरि राखत हैं, वेदनि में गायौ है।
बड़ौ है भरोसौ वरदानी मातु वाणी, तेरौ,
निबल ‘नवल’ तेरी सरन में आयौ है।
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर इस कविता को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें यह कविता रोमन में–
Read Saraswati Vandana
vaṃdata hauṃ mātu sāradā ke paga bera-bera
eka bera āi nija bīna koṃ sunāi dai।
mere mana-maṃdira kī ghora kālimā koṃ meṃṭi,
āi baradānī jñāna jyoti koṃ jagāi dai।
haṃsa-vāhinī sadā hī jihvā pai birājau āi,
baiṭhi ura-bīca nīca bhāvanā bhagāi dai।
tāla-svara laya yati hū kī dānī devi,
mere gāyabe kū~ chaṃda nita navala banāi dai।
mā~gata hoṃ mātu baradāna yahī bera-bera,
eka bera kari keṃ kṛpā kī kora heri dai।
cāhata na māna, dhana, dhāma, sukha sādhana hū,
sārasvata amola jñāna-dīpaka ujeri dai।
tūnaiṃ rājahaṃsa koṃ diyau hai nīra-kṣīra jñāna,
bhautika prapaṃcani teṃ moya niraberi dai।
phairidai tū pīṭhi pai dayā kau neṃka hātha amba,
eka bera apanau tū pūtu kahi ṭeri dai।
veda aura purāna ṣaḍ, sāstrana kau jñāna hota,
dhyāna ke dhareṃ teṃ aisī, guna kī agārī hai।
meṃṭi ke asata sad-māraga kau bodha karai,
tama toma phāribe ko joti puṃja bhārī hai।
eka kara bīnā dūjau pustaka sau rājai hātha,
sveta padma āsana pai subhra bastradhārī hai।
mātu kahi heroṃ kaiseṃ ullū kī savārī tāhi,
merī mātu kī tau rājahaṃsa kī savārī hai।
vānī ke pratāpa bālmīki rāma guna gāyau,
vānī ke pratāpa vyāsa bhārata banāyau hai।
vānī ke pratāpa ṛṣi muniyana veda kahe,
mūrkha kālidāsa, kālidāsa kahalāyau hai।
ā~dharau janama ko so laikeṃ tānapūrā hātha,
hindī kāvya jagata kau sūra kahalāyau hai।
candra kahalāyau hai garība tulasī sau dāsa,
āyau jo sarana mātu taineṃ apanāyau hai।
pūjanīyā bandanīyā akhila bhū maṇḍala meṃ,
śeṣa śambhu hāre, kāhū pāra nā~ya pāyau
bā~ci-bā~ci ke biraṃci terau jasa, mauna hota,
gāi-gāi ke ganeśa gāi nā~ya pāyau hai।
acyuta, anāma au akhaṇḍa avināśī sadā,
dhyāna dhari rākhata haiṃ, vedani meṃ gāyau hai।
baड़au hai bharosau varadānī mātu vāṇī, terau,
nibala ‘navala’ terī sarana meṃ āyau hai।
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स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।
Thank you so much for sharing with me this precious poetry.