शरद वर्णन
“शरद वर्णन” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया “नवल” द्वारा ब्रज भाषा में रचित शरद ऋतु का वर्णन करती बड़ी ही अद्भुत कविता है। आनंद लें “शरद वर्णन” का–
मोर पपीहान, दादुरनि की न धुनि कहूँ
परति सुनाई, छाई चाँदनी अकास में।
बिरहा की पीर कोक कोकी कौं सताबै नाहिं,
मिलि हरसात जात चंद्र के प्रकास में।
भौंर भए मत्त, बोल झींगुरन अस्त भए,
पंक को न संग पंथ-पंथ हू बिकास में।
हिय में हुलास अति खंजन औ हंसनि के,
सरद समाई आय बारिज बिकास में।
विमल अकास जल अमल मुदित मीन,
सीतल सुगन्ध मन्द चलत समीर है।
फूले अरविंद भृंग लूटै मकरंद चंद-
तारागन संग संग, चमकत नीर है।
दमकत रेनु बेनु बाजत कछारनि में
उठति मरोर उर धरतिन धीर है।
मानिनी सुभामिनी के मन न रहत हाय।
चाँदनी सरद की बड़ी ही बे पीर है।
नगर-नगर में डगर रेत खेतनि में-
अम्बर-अवनि-अम्बु आभा अधिकाई है
बागनि में बन में कछार-कूक कुंजनि में-
द्रुमनि की डारन के अंग लिपटाई है।
हासन में, काँसन में कंजन अवासन में
देस औ विदेसन में जाइ मुसिक्याई है।
सरद जुन्हाई मनभाई सुख दाई छाई,
मुख अलबेलिन पै सौगुनी सुहाई है॥
कुंद औ मुकुन्द फूले सरित-सरोवरनि
देति ना दिखाई कहूँ रंच हू गरद की।
पंथिन के पंथ खुले जोगी-जती धरे ध्यान,
छाननि के खेत सो हैं सोभा है जरद की।
हँसत सँयोगी देखि-देखि नभ चन्द छटा,
चाँदनी वियोग में बढ़ावनी दरद की।
मेघहीन अम्बर में दूधिया सुहास भरें-
आई ऋतु पावनी सुहावनी सरद की ॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।