सृजन के वास्ते
“सृजन के वास्ते” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता में सृजन की प्रक्रिया का विवेचन है। पढ़ें यह कविता–
हर पुरातन से घृणा है,
हर नये से प्यार है।
हर लहर है इक किनारा,
हर इक तट मँझधार है।
रात को दिन कहने वालों,
की कमी कुछ भी नहीं।
हर किरन की रोशनी,
उनके लिए अंधियार है।
जिन्दगी के फूल उनको,
शूल से बेहतर नहीं।
हर चमन वीरान है,
वीरान हर गुलज़ार है।
आँख जो पुरनम है वह,
उनको भली लगाती नहीं।
ओठ को चूमे तो हर इक,
होंठ पर अंगार है।
हम सृजन के वास्ते,
नित बदलते हैं रास्ते।
किन्तु हर एक रास्ते पर,
हर कदम लाचार है।
सूर्य पूरब से निकलता,
है अगर यह सत्य तो।
हर दिशा की अर्चना,
करना बहुत बेकार है।
इन चकाचौधों से असली,
रोशनी मिलती नहीं।
बिजलियाँ तो बिजलियाँ हैं,
व्यर्थ यह उपचार है।
हर दिशा से आ रही,
आवाज़ हम हैं बढ़ रहे।
किन्तु धोखा दे रही,
समझा जिसे पतवार है।
लोग मुझसे पूछते हैं,
आज ये क्या हो रहा।
सोचता हूँ क्या कहूँ,जब हर जन्म बीमार है।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।