सूरह अल अहजाब हिंदी में – सूरह 33
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
ऐ नबी, अल्लाह से डरो और मुंकिरों और मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) की इताअत (आज्ञापालन) न करो, बेशक अल्लाह जानने वाला, हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। और पैरवी करो उस चीज़ की जो तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम पर “वहीं (प्रकाशना) की जा रही है, बेशक अल्लाह बाख़बर है उससे जो तुम लोग करते हो। और अल्लाह पर भरोसा रखो, और अल्लाह कारसाज़ (कार्यपालक) होने के लिए काफ़ी है। (1-3)
अल्लाह ने किसी आदमी के सीने में दो दिल नहीं रखे, और न तुम्हारी बीवियों को जिनसे तुम ज़िहार (तलाक देने की एक सूरत जिसमें शहिर अपनी बीबी से कहता था कि तुम मेरे लिए मेरी माँ की पीठ की तरह हो |) करते हो तुम्हारी मां बनाया और न तुम्हारे मुंह बोले बेटों को तुम्हारा बेटा बना दिया। ये सब तुम्हारे अपने मुंह की बातें हैं। और अल्लाह हक़ बात कहता है और वह सीधा रास्ता दिखाता है। मुंह बोले बेटों को उनके बापों की निस्बत से पुकारों यह अल्लाह के नज़दीक ज़्यादा मुंसिफ़ाना बात है। फिर अगर तुम उनके बाप को न जानो तो वे तुम्हारे दीनी भाई हैं और तुम्हारे रफ़ीक़ हैं। और जिस चीज़ में तुमसे भूल चूक हो जाए तो उसका तुम पर कुछ गुनाह नहीं मगर जो तुम दिल से इरादा करके करो। और अल्लाह माफ़ करने वाला, रहम करने वाला है। (4-5)
और नबी का हक़ मोमिनों पर उनकी अपनी जान से भी ज़्यादा है, और नबी की बीवियां उनकी माएं हैं। और रिश्तेदार ख़ुदा की किताब में, दूसरे मोमिनीन और मुहाजिरीन की बनिस्बत, एक दूसरे से ज़्यादा तअल्लुक़ रखते हैं। मगर यह कि तुम अपने दोस्तों से कुछ सुलूक करना चाहो। यह किताब में लिखा हुआ है। (6)
और जब हमने पैग़म्बरों से उनका अहद (वचन) लिया और तुमसे और नूह से और इब्राहीम और मूसा और ईसा बिन मरयम से। और हमने उनसे पुख्ता अहद लिया। ताकि अल्लाह सच्चे लोगों से उनकी सच्चाई के बारे में सवाल करे, और मुंकिरों के लिए उसने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है। (7-8)
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अपने ऊपर अल्लाह के एहसान को याद करो, जब तुम पर फ़ौजें चढ़ आईं तो हमने उन पर एक आंधी भेजी और ऐसी फ़ौज जो तुम्हें दिखाई न देती थी। और अल्लाह देखने वाला है जो कुछ तुम करते हो। जबकि वे तुम पर चढ़ आए, तुम्हारे ऊपर की तरफ़ से और तुम्हारे नीचे की तरफ़ से। और जब आंखें खुल गई और दिल गलों तक पहुंच गए और तुम अल्लाह के साथ तरह-तरह के गुमान करने लगे। उस वक़्त ईमान वाले इम्तेहान में डाले गए और बिल्कुल हिला दिए गए। (9-11)
और जब मुनाफ़िक्रीन (पाखंडी) और वे लोग जिनके दिलों में रोग है, कहते थे कि अल्लाह और उसके रसूल ने जो वादा हमसे किया था वह सिर्फ़ फ़रेब था। और जब उनमें से एक गिरोह ने कहा कि ऐ यसरिब वालो, तुम्हारे लिए ठहरने का मौक़ा नहीं, तो तुम लौट चलो। और उनमें से एक गिरोह पैग़म्बर से इजाज़त मांगता था, वह कहता था कि हमारे घर गैर महफ़ूज़ हैं, और वे गैर महफ़ूज़ नहीं। वे सिर्फ़ भागना चाहते थे। और अगर मदीना के अतराफ़ से उन पर कोई घुस आता और उन्हें फ़ितने की दावत देता तो वे मान लेते और वे इसमें बहुत कम देर करते। और उन्होंने इससे पहले अल्लाह से अहद किया था कि वे पीठ न फेरेंगे। और अल्लाह से किए हुए अहद (वचन) की पूछ होगी। कहो कि अगर तुम मौत से या क़त्ल से भागो तो यह भागना तुम्हारे कुछ काम न आएगा। और इस हालत में तुम्हें सिर्फ़ थोड़े दिनों फ़ायदा उठाने का मौक़ा मिलेगा। कहो, कौन है जो तुम्हें अल्लाह से बचाए अगर वह तुम्हें नुक़्सान पहुंचाना चाहे, या वह तुम पर रहमत करना चाहे। और वे अपने लिए अल्लाह के मुक़ाबले में कोई हिमायती और मददगार न पाएंगे। (12-17)
अल्लाह तुम में से उन लोगों को जानता है जो तुम में से रोकने वाले हैं और जो अपने भाइयों से कहते हैं कि हमारे पास आ जाओ। और वे लड़ाई में कम ही आते हैं। वे तुमसे बुख्ल (कृपणता) करते हैं। पस जब ख़ौफ़ पेश आता है तो तुम देखते हो कि वे तुम्हारी तरफ़ इस तरह देखने लगते हैं कि उनकी आंखें उस शख्स की आंखों की तरह गर्दिश कर रही हैं जिस पर मौत की बेहोशी तारी हो। फिर जब ख़तरा दूर हो जाता है तो वे माल की हिर्स में तुमसे तेज़ ज़बानी के साथ मिलते हैं। ये लोग यकीन नहीं लाए तो अल्लाह ने उनके आमाल अकारत कर दिए। और यह अल्लाह के लिए आसान है। वे समझते हैं कि फ़ौजें अभी गई नहीं हैं। और अगर फ़ौजें आ जाएं तो ये लोग यही पसंद करें कि काश हम बदूदुओं के साथ देहात में हों, तुम्हारी ख़बरें पूछते रहें। और अगर वे तुम्हारे साथ होते तो लड़ाई में कम ही हिस्सा लेते। (18-20)
तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में बेहतरीन नमूना था, उस शख्स के लिए जो अल्लाह का और आख़िरत के दिन का उम्मीदवार हो और कसरत से अल्लाह को याद करे। और जब ईमान वालों ने फ़ौजों को देखा, वे बोले यह वही है जिसका अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे वादा किया था और अल्लाह और उसके रसूल ने सच कहा। और इसने उनके ईमान और इताअत में इज़ाफ़ा कर दिया। ईमान वालों में ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अल्लाह से किए हुए अहद (वचन) को पूरा कर दिखाया। पस उनमें से कोई अपना ज़िम्मा पूरा कर चुका और उनमें से कोई मुंतज़िर है। और उन्होंने ज़रा भी तब्दीली नहीं की। ताकि अल्लाह सच्चों को उनकी सच्चाई का बदला दे और मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) को अज़ाब दे अगर चाहे या उनकी तौबा क़रुबूल करे। बेशक अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। (21-24)
और अल्लाह ने मुंकिरों को उनके गुस्से के साथ फेर दिया कि उनकी कुछ भी मुराद पूरी न हुई और मोमिनीन की तरफ़ से अल्लाह लड़ने के लिए काफ़ी हो गया। अल्लाह क़रुव्वत (शक्ति) वाला ज़बरदस्त है। और अल्लाह ने उन अहले किताब को जिन्होंने हमलाआवरों का साथ दिया उनके क़िलों से उतारा। और उनके दिलों में उसने रौब डाल दिया, तुम उनके एक गिरोह को क़त्ल कर रहे हो और एक गिरोह को क़ैद कर रहे हो। और उसने उनकी ज़मीन और उनके घरों और उनके मालों का तुम्हें वारिस बना दिया। और ऐसी ज़मीन का भी जिस पर तुमने क़दम नहीं रखा। और अल्लाह हर चीज़ पर क़रुदरत रखने वाला है। (25-27)
ऐ नबी, अपनी बीवियों से कहो कि अगर तुम दुनिया की ज़िंदगी और उसकी ज़ीनत चाहती हो तो आओ, मैं तुम्हें कुछ माल व मताअ देकर ख़ूबी के साथ रुख़्सत कर दूं। और अगर तुम अल्लाह और उसके रसूल और आख़िरत के घर को चाहती हो तो अल्लाह ने तुम में से नेक किरदारों के लिए बड़ा अज़ मुहय्या कर रखा है। ऐ नबी की बीवियो, तुम में से जो कोई खुली बेहयाई करेगी, उसे दोहरा अज़ाब दिया जाएगा। और यह अल्लाह के लिए आसान है। (28-30)
और तुम में से जो अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमांबरदारी करेगी और नेक अमल करेगी तो हम उसे उसका दोहरा अज् देंगे। और हमने उसके लिए बाइज़्ज़त रोज़ी तैयार कर रखी है। ऐ नबी की बीवियो, तुम आम औरतों की तरह नहीं हो। अगर तुम अल्लाह से डरो तो तुम लहजे में नर्मी न इख्तियार करो कि जिसके दिल में बीमारी है वह लालच में पड़ जाए और मारूफ़ (सामान्य नियम) के मुताबिक़ बात कहो। (31-32)
और तुम अपने घर में क़रार से रहो और पहले की जाहिलियत की तरह दिखलाती न फिरो। और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (आज्ञापालन) करो। अल्लाह तो चाहता है कि तुम अहलेबैत (रसूल के घर वालों) से आलूदगी को दूर करे और तुम्हें पूरी तरह पाक कर दे। और तुम्हारे घरों में अल्लाह की आयतों और हिक्मत (तत्वज्ञान) की जो तालीम होती है उसे याद रखो। बेशक अल्लाह बारीकबीं (सूक्ष्मदर्श) है ख़बर रखने वाला है। (33-34)
बेशक इताअत (आज्ञापालन) करने वाले मर्द और इताअत करने वाली औरतें। और ईमान लाने वाले मर्द और ईमान लाने वाली औरतें | और फ़रमांबरदारी करने वाले मर्द और फ़रमांबरदारी करने वाली औरतें। और रास्तबाज़ (सत्यनिष्ठ) मर्द और रास्तबाज़ औरतें | और सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतें। और ख़ुशूअ (विनय) करने वाले मर्द और ख़ुशूअ करने वाली औरतें। और सदक़ा देने वाले मर्द और सदक़ा देने वाली औरतें | और रोज़ा रखने वाले मर्द और रोज़ा रखने वाली औरतें। और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले मर्द और हिफ़ाज़त करने वाली औरतें। और अल्लाह को कसरत (अधिकता) से याद करने वाले मर्द और याद करने वाली औरतें। इनके लिए अल्लाह ने मग्फ़िरत और बड़ा अज् मुहय्या कर रखा है। (35)
किसी मोमिन मर्द या किसी मोमिन औरत के लिए गुंजाइश नहीं है कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का फ़ैसला कर दें तो फिर उनके लिए उसमें इख्तियार बाक़ी रहे। और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी करेगा तो वह सरीह गुमराही में पड़ गया। (36)
और जब तुम उस शख्स से कह रहे थे जिस पर अल्लाह ने इनाम किया और तुमने इनाम किया कि अपनी बीवी को रोके रखो और अल्लाह से डरो। और तुम अपने दिल में वह बात छुपाए हुए थे जिसे अल्लाह ज़ाहिर करने वाला था। और तुम लोगों से डर रहे थे, और अल्लाह ज़्यादा हक़दार है कि तुम उससे डरो। फिर जब ज़ैद उससे अपनी ग़रज़ तमाम कर चुका, हमने तुमसे उसका निकाह कर दिया ताकि मुसलमानों पर अपने मुंह बोले बेटों की बीवियों के बारे में कुछ तंगी न रहे। जबकि वे उनसे अपनी ग़रज़ पूरी कर लें। और अल्लाह का हुक्म होने वाला ही था। (37)
पैग़म्बर के लिए इसमें कोई हरज नहीं जो अल्लाह ने उसके लिए मुक़र्रर कर दिया हो। यही अल्लाह की सुन्नत (तरीक़ा) उन पैग़म्बरों के साथ रही है जो पहले गुज़र चुके हैं। और अल्लाह का हुक्म एक क़तई फ़ैसला होता है। वे अल्लाह के पैग़ामों को पहुंचाते थे और उसी से डरते थे और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते थे। और अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफ़ी है। मुहम्मद तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं हैं, लेकिन वह अल्लाह के रसूल और नबियों के ख़ातम (समापक) हैं। और अल्लाह हर चीज़ का इल्म रखने वाला है। (38-40)
ऐ ईमान वालो, अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करो। और उसकी तस्बीह करो सुबह और शाम। वही है जो तुम पर रहमत भेजता है और उसके फ़रिश्ते भी ताकि तुम्हें तारीकियों से निकाल कर रोशनी में लाए। और वह मोमिनों पर बहुत मेहरबान है। जिस रोज़ वे उससे मिलेंगे, उनका इस्तक़बाल सलाम से होगा। और उसने उनके लिए बाइज़्ज़त सिला (प्रतिफल) तैयार कर रखा है। (41-44)
ऐ नबी, हमने तुम्हें गवाही देने वाला और ख़ुशख़बरी देने वाला और डराने वाला बनाकर भेजा है। और अल्लाह की तरफ़, उसके इज़्न (आज्ञा) से, दावत देने वाला (आध्वानकर्ता) और एक रोशन चराग़। और मोमिनों को बशारत (शुभ सूचना) दे दो कि उनके लिए अल्लाह की तरफ़ से बहुत बड़ा फ़ज़्ल (अनुग्रह) है। और तुम मुंकिरों और मुनाफ़िक़ों की बात न मानो और उनके सताने को नज़रअंदाज़ करो और अल्लाह पर भरोसा रखो। और अल्लाह भरोसे के लिए काफ़ी है। (45-48)
ऐ ईमान वालो, जब तुम मोमिन औरतों से निकाह करो, फिर उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो तो उनके बारे में तुम पर कोई इद्दत लाज़िम नहीं है जिसका तुम शुमार करो। पस उन्हें कुछ मताअ (सामग्री) दे दो और ख़ूबी के साथ उन्हें रुख्सतत कर दो। (49)
ऐ नबी हमने तुम्हारे लिए हलाल कर दीं तुम्हारी वे बीवियां जिनकी महर तुम दे चुके हो और वे औरतें भी जो तुम्हारी ममलूका (मिल्कियत में) हैं जो अल्लाह ने ग़नीमत में तुम्हें दी हैं और तुम्हारे चचा की बेटियां और तुम्हारी फूफियों की बेटियां और तुम्हारे मामुओं की बेटियां और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियां जिन्होंने तुम्हारे साथ हिजरत की हो। और उस मुसलमान औरत को भी जो अपने आपको पैग़म्बर को दे दे, बशर्ते कि पैग़म्बर उसे निकाह में लाना चाहे, यह ख़ास तुम्हारे लिए है, मुसलमानों से अलग। हमें मालूम है जो हमने उन पर उनकी बीवियों और उनकी दासियों के बारे में फ़र्ज़ किया है, ताकि तुम पर कोई तंगी न रहे और अल्लाह बझ्शने वाला, मेहरबान है। (50)
तुम उनमें से जिस-जिसको चाहो दूर रखो और जिसे चाहो अपने पास रखो। और जिन्हें दूर किया था उनमें से फिर किसी को तलब करो तब भी तुम पर कोई गुनाह नहीं। इसमें ज़्यादा तवक़्क़ीअ (संभावना) है कि उनकी आंखें ठंडी रहेंगी, और वे रंजीदा न होंगी। और वे इस पर राज़ी रहें जो तुम उन सबको दो। और अल्लाह जानता है जो तुम्हारे दिलों में है। और अल्लाह जानने वाला है, बुर्दबार (उदार) है। इनके अलावा और औरतें तुम्हारे लिए हलाल नहीं हैं। और न यह दुरुस्त है कि तुम उनकी जगह दूसरी बीवियां कर लो, अगरचे उनकी सूरत तुम्हें अच्छी लगे। मगर जो तुम्हारी ममलूका (मिल्कियत में) हो। और अल्लाह हर चीज़ पर निगरां है। (51-52)
ऐ ईमान वालो, नबी के घरों में मत जाया करो मगर जिस वक़्त तुम्हें खाने के लिए इजाज़त दी जाए, ऐसे तौर पर कि उसकी तैयारी के मुंतज़िर न रहो। लेकिन जब तुम्हें बुलाया जाए तो दाखिल हो। फिर जब तुम खा चुको तो उठकर चले जाओ और बातों में लगे हुए बैठे न रहो। इस बात से नबी को नागवारी होती है। मगर वह तुम्हारा लिहाज़ करते हैं। और अल्लाह हक़ बात कहने में किसी का लिहाज़ नहीं करता। और जब तुम रसूल की बीवियों से कोई चीज़ मांगो तो पर्दे की ओट से मांगो। यह तरीक़ा तुम्हारे दिलों के लिए ज़्यादा पाकीज़ा है और उनके दिलों के लिए भी। और तुम्हारे लिए जाइज़ नहीं कि तुम अल्लाह के रसूल को तकलीफ़ दो और न यह जाइज़ है कि तुम उनके बाद उनकी बीवियों से कभी निकाह करो। यह अल्लाह के नज़दीक बड़ी संगीन बात है। तुम किसी चीज़ को ज़ाहिर करो या उसे छुपाओ तो अल्लाह हर चीज़ को जानने वाला है। (53-54)
पैग़म्बर की बीवियों पर अपने बापों के बारे में कोई गुनाह नहीं है। और न अपने बेटों के बारे में और न अपने भाइयों के बारे में और न अपने भतीजों के बारे में और न अपने भांजों के बारे में और न अपनी औरतों के बारे में और न अपनी दासियों के बारे में। और तुम अल्लाह से डरती रहो, बेशक अल्लाह हर चीज़ पर निगाह रखता है। (55)
अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर रहमत भेजते हैं। ऐ ईमान वालो, तुम भी उस पर दुरूद व सलाम भेजो। जो लोग अल्लाह और उसके रसूल को अज़िय्यत (यातना) देते हैं, अल्लाह ने उन पर दुनिया और आख़िरत में लानत की और उनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब तैयार कर रखा है। और जो लोग मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को अज़िय्यत देते हैं बगैर इसके कि उन्होंने कुछ किया हो तो उन्होंने बोहतान का और सरीह गुनाह का बोझ उठाया। (56-58)
ऐ नबी, अपनी बीवियों से कहो और अपनी बेटियों से और मुसलमानों की औरतों से कि नीचे कर लिया करें अपने ऊपर थोड़ी सी अपनी चादरें इससे जल्दी पहचान हो जाएगी तो वे सताई न जाएंगी। और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है। मुनाफ़िक़़ीन (पाखंडी) और वे लोग जिनके दिलों में रोग है और जो मदीना में झूठी ख़बरें फैलाने वाले हैं, अगर वे बाज़ न आए तो हम तुम्हें उनके पीछे लगा देंगे। फिर वे तुम्हारे साथ मदीना में बहुत कम रहने पाएंगे। फिटकारे हुए, जहां पाए जाएंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह मारे जाएंगे। यह अल्लाह का दस्तूर है उन लोगों के बारे में जो पहले गुज़र चुके हैं। और तुम अल्लाह के दस्तूर में कोई तब्दीली न पाओगे। लोग तुमसे क़ियामत के बारे में पूछते हैं। कहो कि उसका इल्म तो सिर्फ़ अल्लाह के पास है। और तुम्हें क्या ख़बर, शायद क्रियामत क़रीब आ लगी हो। बेशक अल्लाह ने मुंकिरों को रहमत से दूर कर दिया है। और उनके लिए भड़कती हुई आग तैयार है, उसमें वे हमेशा रहेंगे। वे न कोई हामी पाएंगे और न कोई मददगार। जिस दिन उनके चेहरे आग में उल्ट-पल्रट किए जाएंगे, वे कहेंगे, ऐ काश हमने अल्लाह की इताअत की होती और हमने रसूल की इताअत (आज्ञापालन) की होती। और वे कहेंगे कि ऐ हमारे रब, हमने अपने सरदारों और अपने बड़ों का कहना माना तो उन्होंने हमें रास्ते से भटका दिया। ऐ हमारे रब, उन्हें दोहरा अज़ाब दे और उन पर भारी लानत कर। (59-68)
ऐ ईमान वालो, तुम उन लोगों की तरह न बनो जिन्होंने मूसा को अज़िय्यत (यातना) पहुंचाई तो अल्लाह ने उसे उन लोगों की बातों से बरी साबित किया। और वह अल्लाह के नज़दीक बाइज़्ज़त था। ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो और दुरुस्त बात कहो। वह तुम्हारे आमाल सुधारेगा और तुम्हारे गुनाहों को बख्श देगा। और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (आज्ञापालन) करे उसने बड़ी कामयाबी हासिल की। (69-71)
हमने अमानत को आसमानों और ज़मीन और पहाड़ों के सामने पेश किया तो उन्होंने उसे उठाने से इंकार किया और वे उससे डर गए, और इंसान ने उसे उठा लिया। बेशक वह ज़ालिम और जाहिल था। ताकि अल्लाह मुनाफ़िक (पाखंडी) मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों को और मुश्रिक मर्दों और मुश्रिक औरतों को सज़ा दे। और मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों पर तवज्जोह फ़रमाए। और अल्लाह बख्शने वाला, मेहरबान है। (72-73)