सूरह अनफाल – अल-अनफ़ाल (सूरह 8)
सूरह अनफाल कुरान शरीफ का आठवाँ सूरह है, जिसमें 75 आयतें हैंI यह सूरह मदनी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि सूरह अनफाल बद्र की लड़ाई के बाद पूरा हुआ। इसलिए इसकी ज़्यादातर आयतें बद्र की लड़ाई का ज़िक्र करती हैं। बद्र की यह लड़ाई इस्लाम को बचाने और बढ़ावा देने के लिए काफ़िरों के खिलाफ़ मुसलमानों की पहली जंग थी, जिसमें उन्हें फ़तह नसीब हुई। इसलिए सूरह अनफाल को कई जगहों में ‘सूरह बद्र’ भी कहा जाता है। कहते हैं कि अल अनफ़ाल का एक मतलब अल्लाह की बंदगी में बलिदान के द्वारा शहादत हासिल करना है। इसलिए अल्लाह का जो बंदा सूरह अनफाल को पढ़ता है, उसके लिए जन्नत के फ़रिश्ते क़यामत के दिन हिमायती करते हैं। सूरह अनफ़ाल को कागज़ पर लिखकर गले में ताबीज़ की तरह पहन लेने से बदख़्वाहों से रिहाई मिलती है। किसी बड़े काम जैसे परीक्षा आदि के दिन सूरह अनफाल की 62वीं आयात को पढ़ना क़ामयाबी का बहुत ही आसान वज़ीफ़ा है। ज़िंदगी की अदावतों से रिहाई के लिए पढ़ें सूरह अनफाल।
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
वे तुमसे अनफ़ाल (ग़नीमत का माल) के बारे में पूछते हैं। कहो कि अनफ़ाल अल्लाह और उसके रसूल के हैं। पस तुम लोग अल्लाह से डरो और अपने आपस के तजअल्लुक़ात की इस्लाह (सुधार) करो और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (आज्ञापालन) करो, अगर तुम ईमान रखते हो। ईमान वाले तो वे हैं कि जब अल्लाह का ज़िक्र किया जाए तो उनके दिल दहल जाएं और जब अल्लाह की आयतें उनके सामने पढ़ी जाएं तो वे उनका ईमान बढ़ा देती हैं और वे अपने रब पर भरोसा रखते हैं। वे नमाज़ क़ायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं। यही लोग हक़ीक़ी मोमिन हैं। उनके लिए उनके रब के पास दर्जे और मग्फ़िरत (क्षमा) हैं और उनके लिए इज़्ज़त की रोज़ी है। (1-4)
जैसा कि तुम्हारे रब ने तुम्हें हक़ के साथ तुम्हारे घर से निकाला। और मुसलमानों में से एक गिरोह को यह नागवार था। वे इस हक़ के मामले में तुमसे झगड़ रहे थे बावजूद यह कि वह ज़ाहिर हो चुका था, गोया कि वे मौत की तरफ़ हांके जा रहे हैं आंखो देखते। और जब ख़ुदा तुमसे वादा कर रहा था कि दो जमाअतों में से एक तुम्हें मिल जाएगी। और तुम चाहते थे कि जिसमें कांटा न लगे वह तुम्हें मिले। और अल्लाह चाहता था कि वह हक़ का हक़ होना साबित कर दे अपने कलिमात से और मुंकिरों की जड़ काट दे ताकि हक़ (सत्य) हक़ होकर रहे और बातिल (असत्य) बातिल होकर रह जाए चाहे मुजरिमों को वह कितना ही नागवार हो। (5-8)
जब तुम अपने रब से फ़रियाद कर रहे थे तो उसने तुम्हारी फ़रियाद सुनी कि मैं तुम्हारी मदद के लिए एक हज़ार फ़रिश्ते लगातार भेज रहा हूं। और यह अल्लाह ने सिर्फ़ इसलिए किया कि तुम्हारे लिए ख़ुशख़बरी हो और ताकि तुम्हारे दिल उससे मुतमइन हो जाएं। और मदद तो अल्लाह ही के पास से आती है। यक़ीनन अल्लाह ज़बरदस्त है हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। जब अल्लाह ने तुम पर ऊंध डाल दी अपनी तरफ़ से तुम्हारी तस्कीन के लिए और आसमान से तुम्हारे ऊपर पानी उतारा कि उसके ज़रिए से तुम्हें पाक करे और तुमसे शैतान की नजासत (गंदगी) को दूर कर दे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत कर दे और उससे क़दमों को जमा दे। जब तेरे रब ने फ़रिश्तों को हुक्म भेजा कि मैं तुम्हारे साथ हूं, तुम ईमान वालों को जमाए रखो। मैं मुंकिरों के दिल में रौब डाल दूंगा। पस तुम उनकी गर्दन के ऊपर मारो और उनके पोर-पोर पर ज़र्ब (चोट) लगाओ। यह इस सबब से कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल की मुख़ालिफ़त की | और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की मुख़ालिफ़त करता है तो अल्लाह सज़ा देने में सख्त है। यह तो अब चखो और जान लो कि मुंकिरों के लिए आग का अज़ाब है। (9-14)
ऐ ईमान वालो, जब तुम्हारा मुक़ाबला मुंकिरीन से जंग के मैदान में हो तो उनसे पीठ मत फेरो। और जिसने ऐसे मौक़े पर पीठ फेरी, सिवा इसके कि जंगी चाल के तौर पर हो या दूसरी फ़ौज से जा मिलने के लिए, तो वह अल्लाह के ग़ज़ब (प्रकोप) में आ जाएगा और उसका ठिकाना जहन्नम है और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है। पस उन्हें तुमने क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ने क़त्ल किया। और जब तुमने उन पर ख़ाक फेंकी तो तुमने नहीं फेंकी बल्कि अल्लाह ने फेंकी ताकि अल्लाह अपनी तरफ़ से ईमान वालों पर ख़ूब एहसान करे। बेशक अल्लाह सुनने वाला जानने वाला है। यह तो हो चुका। और बेशक अल्लाह मुंकिरीन की तमाम तदबीरें (युक्तियां) बेकार करके रहेगा। अगर तुम फ़ैसला चाहते थे तो फ़ैसला तुम्हारे सामने आ गया | और अगर तुम बाज़ आ जाओ तो यह तुम्हारे हक़ में बेहतर है। और अगर तुम फिर वही करोगे तो हम भी फिर वही करेंगे और तुम्हारा जत्था तुम्हारे कुछ काम न आएगा चाहे वह कितना ही ज़्यादा हो। और बेशक अल्लाह ईमान वालों के साथ है। (15-19)
ऐ ईमान वालो, अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (आज्ञापालन) करो और उससे रूगर्दानी (अवहेलना) न करो हालांकि तुम सुन रहे हो। और उन लोगों की तरह न हो जाओ जिन्होंने कहा कि हमने सुना हालांकि वे नहीं सुनते। यक़ीनन अल्लाह के नज़दीक बदतरीन जानवर वे बहरे गूंगे लोग हैं जो अक़्ल से काम नहीं लेते। और अगर उनमें किसी भलाई का इल्म अल्लाह को होता तो वह ज़रूर उन्हें सुनने की तौफ़ीक़ देता और अगर अब वह उन्हें सुनवा दे तो वे ज़रूर रूगर्दानी करेंगे बेरुख्ी करते हुए। ऐ ईमान वालो, अल्लाह और रसूल की पुकार पर लब्बैक (स्वीकारोक्ति) कहो जबकि रसूल तुम्हें उस चीज़ की तरफ़ बुला रहा है जो तुम्हें ज़िंदगी देने वाली है। और जान लो कि अल्लाह आदमी और उसके दिल के दर्मियान हायल (बाधित) हो जाता है। और यह कि उसी की तरफ़ तुम्हारा इकट्ठा होना है। और डरो उस फ़ितने से जो ख़ास उन्हीं लोगों पर वाक़ेअ न होगा जो तुममें से ज़ुल्म के करने वाले हुए हैं। और जान लो कि अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है। (20-25)
और याद करो जबकि तुम थोड़े थे और ज़मीन में कमज़ोर समझे जाते थे। डरते थे कि लोग अचानक तुम्हें उचक न लें। फिर अल्लाह ने तुम्हें रहने की जगह दी और अपनी नुसरत (मदद) से तुम्हारी ताईद की और तुम्हें पाकीज़ा रोज़ी दी ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो। ऐ ईमान वालो, ख़ियानत (विश्वास-भंग) न करो अल्लाह और रसूल की और ख़ियानत न करो अपनी अमानतों में हालांकि तुम जानते हो। और जान लो कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद एक आज़माइश हैं। और यह कि अल्लाह ही के पास है बड़ा अज़ | ऐ ईमान वालो, अगर तुम अल्लाह से डरोगे तो वह तुम्हारे लिए फ़ुरक़्ान बहम पहुंचाएगा और तुमसे तुम्हारे गुनाहों को दूर कर देगा और तुम्हें बछ्श देगा और अल्लाह बड़े फ़ज़्ल वाला है, और जब मुंकिर तुम्हारे बारे में तदबीरें सोच रहे थे कि तुम्हें क़ैद कर दें या क़त्ल कर डालें या जलावतन (निर्वासित) कर दें। वे अपनी तदबीरें कर रहे थे और अल्लाह अपनी तदबीरें कर रहा था और अल्लाह बेहतरीन तदबीर वाला है। (26-30)
और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो कहते हैं हमने सुन लिया। अगर हम चाहें तो हम भी ऐसा ही कलाम पेश कर दें। यह तो बस अगलों की कहानियां हैं। और जब उन्होंने कहा कि ऐ अल्लाह अगर यही हक़ है तेरे पास से तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा दे या और कोई दर्दनाक अज़ाब हम पर ले आ। और अल्लाह ऐसा करने वाला नहीं कि उन्हें अज़ाब दे इस हाल में कि तुम उनमें मौजूद हो और अल्लाह उन पर अज़ाब लाने वाला नहीं जबकि वे इस्तग़फ़ार (क्षमा-याचना) कर रहे हों। और अल्लाह उन्हें क्यों न अज़ाब देगा हालांकि वे मस्जिदे हराम से रोकते हैं जबकि वे उसके मुतवल्ली (संरक्षक) नहीं। उसके मुतवल्ली तो सिर्फ़ अल्लाह से डरने वाले हो सकते हैं। मगर उनमें से अक्सर इसे नहीं जानते। और बैतुलल्लाह के पास उनकी नमाज़ सीटी बजाने और ताली पीटने के सिवा और कुछ नहीं। पस अब चखो अज़ाब अपने कुफ़ का। (31-35)
जिन लोगों ने इंकार किया वे अपने माल को इसलिए खर्च करते हैं कि लोगों को अल्लाह की राह से रोके | वे उसे ख़र्च करते रहेंगे फिर यह उनके लिए हसरत बनेगा फिर वे मग़लूब (परास्त) किए जाएंगे। और जिन्होंने इंकार किया उन्हें जहन्नम की तरफ़ इकट्ठा किया जाएगा। ताकि अल्लाह नापाक को अलग कर दे पाक से और नापाक को एक पर एक रखे फिर इस ढेर को जहन्नम में डाल दे, यही लोग हैं ख़सारे (घाटे) में पड़ने वाले। इंकार करने वालों से कहो कि अगर वे बाज़ आ जाएं तो जो कुछ हो चुका है वह उन्हें माफ़ कर दिया जाएगा। और अगर वे फिर वही करेंगे तो हमारा मामला अगलों के साथ गुज़र चुका है। और उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन सब अल्लाह के लिए हो जाए। फिर अगर वे बाज़ आ जाएं तो अल्लाह देखने वाला है उनके अमल का। और अगर उन्होंने एराज़ (उपेक्षा) किया तो जान लो कि अल्लाह तुम्हारा मौला है और क्या ही अच्छा मौला है और क्या ही अच्छा मददगार। (36-40)
और जान लो कि जो कुछ ग़नीमत का माल (जंग में हासिल माल) तुम्हें हासिल हो उसका पांचवां हिस्सा अल्लाह और रसूल के लिए और रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए है, अगर तुम ईमान रखते हो अल्लाह पर और उस चीज़ पर जो हमने अपने बंदे (मुहम्मद) पर उतारी फ़ैसले के दिन, जिस दिन कि दोनों जमाअतों में मुठभेड़ हुई और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। और जबकि तुम वादी के क़रीबी किनारे पर थे और वे दूर के किनारे पर। और क़ाफ़िला तुमसे नीचे की तरफ़ था। और अगर तुम और वे वक़्त मुक़र्रर करते तो ज़रूर इस तक़रुर के बारे में तुममें इख़्तेलाफ़ (मतभेद) हो जाता। लेकिन जो हुआ वह इसलिए हुआ ताकि अल्लाह उस चीज़ का फ़ैसला कर दे जिसे होकर रहना था, ताकि जिसे हलाक होना है वह रोशन दलील के साथ हलाक हो और जिसे ज़िंदगी हासिल करना है वह रोशन दलील के साथ ज़िंदा रहे। यक्रीनन अल्लाह सुनने वाला जानने वाला है। जब अल्लाह तुम्हारे ख़्वाब में उन्हें थोड़ा दिखाता रहा। अगर वह उन्हें ज़्यादा दिखा देता तो तुम लोग हिम्मत हार जाते और आपस में झगड़ने लगते इस मामले में | लेकिन अल्लाह ने तुम्हें बचा लिया। यक्रीनन वह दिलों तक का हाल जानता है। और जब अल्लाह ने उन लोगों को तुम्हारी नज़र में कम करके दिखाया और तुम्हें उनकी नज़र में कम करके दिखाया ताकि अल्लाह उस चीज का फ़ैसला कर दे जिसका होना तै था। और सारे मामलात अल्लाह ही की तरफ़ लौटते हैं। (41-44)
ऐ ईमान वालो जब किसी गिरोह से तुम्हारा मुक़ाबला हो तो तुम साबितक़दम रहो और अल्लाह को बहुत याद करो ताकि तुम कामयाब हो। और इताअत (आज्ञापालन) करो अल्लाह की और उसके रसूल की और आपस में झगड़ा न करो वर्ना तुम्हारे अंदर कमज़ोरी आ जाएगी और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी और सब्र करो, बेशक अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है, और उन लोगों की तरह न बनो जो अपने घरों से अकड़ते हुए और लोगों को दिखाते हुए निकले और जो अल्लाह की राह से रोकते हैं। हालांकि वे जो कुछ कर रहे हैं अल्लाह उसका इहाता (आच्छादन) किए हुए है। और जब शैतान ने उन्हें उनके आमाल ख़ुशनुमा बनाकर दिखाए और कहा कि लोगों में से आज कोई तुम पर ग़ालिब आने वाला नहीं और मैं तुम्हारे साथ हूं। मगर जब दोनों गिरोह आमने सामने हुए तो वह उल्टे पांव भागा और कहा कि मैं तुमसे बरी हूं, मैं वह कुछ देख रहा हूं जो तुम लोग नहीं देखते। मैं अल्लाह से डरता हूं और अल्लाह सख्त सज़ा देना वाला है। जब मुनाफ़िक़ (पाखंडी) और जिनके दिलों में रोग है कहते थे कि इन लोगों को इनके दीन ने धोखे में डाल दिया है और जो अल्लाह पर भरोसा करे तो अल्लाह बड़ा ज़बरदस्त और हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (45-49)
और अगर तुम देखते जबकि फ़रिश्ते इन मुंकिरीन की जान क़ब्ज़ करते हैं, मारते हुए उनके चेहरों और उनकी पीठों पर, और यह कहते हुए कि अब जलने का अज़ाब चखो। यह बदला है उसका जो तुमने अपने हाथों आगे भेजा था और अल्लाह हरगिज़ बंदों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं। फ़िरऔन वालों की तरह और जो उनसे पहले थे कि उन्होंने अल्लाह की निशानियों का इंकार किया पस अल्लाह ने उनके गुनाहों पर उन्हें पकड़ लिया। बेशक अल्लाह क्रुव्वत (शक्ति) वाला है, सख्त सज़ा देने वाला है। यह इस वजह से हुआ कि अल्लाह उस इनाम को जो वह किसी क़ौम पर करता है उस वक़्त तक नहीं बदलता जब तक वे उसे न बदल दें जो उनके नफ़्सों (अंतःकरणों) में है। और बेशक अल्लाह सुनने वाला जानने वाला है। फ़िरऔन वालों की तरह और जो उनसे पहले थे कि उन्होंने अपने रब की निशानियों को झुठलाया फिर हमने उनके गुनाहों के सबब से उन्हें हलाक कर दिया और हमने फ़िरऔन वालों को ग़र्क़ कर दिया और ये सब लोग ज़ालिम थे। (50-54)
बेशक सब जानदारों में बदतरीन अल्लाह के नज़दीक वे लोग हैं जिन्होंने इंकार किया और वे ईमान नहीं लाते। जिनसे तुमने अहद (वचन) लिया, फिर वे अपना अहद हर बार तोड़ देते हैं और वे डरते नहीं। पस अगर तुम उन्हें लड़ाई में पाओ तो उन्हें ऐसी सज़ा दो कि जो उनके पीछे हैं वे भी देखकर भाग जाएं, ताकि उन्हें इबरत (सीख) हो। और अगर तुम्हें किसी क़ौम से बदअहदी (वचन भंग) का डर हो तो उनका अहद उनकी तरफ़ फेंक दो, ऐसी तरह कि तुम और वे बराबर हो जाएं। बेशक अल्लाह बदअहदों को पसंद नहीं करता। (55-58)
और इंकार करने वाले यह न समझें कि वे निकल भागेंगे, वे हरगिज़ अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते। और उनके लिए जिस क़द्र तुमसे हो सके तैयार रखो क़ुव्वत और पले हुए घोड़े कि इससे तुम्हारी हैबत रहे अल्लाह के दुश्मनों पर और तुम्हारे दुश्मनों पर और इनके अलावा दूसरों पर भी जिन्हें तुम नहीं जानते। अल्लाह उन्हें जानता है। और जो कुछ तुम अल्लाह की राह में ख़र्च करोगे वह तुम्हें पूरा कर दिया जाएगा और तुम्हारे साथ कोई कमी न की जाएगी। और अगर वे सुलह (संधि) की तरफ़ झुकें तो तुम भी इसके लिए झुक जाओ और अल्लाह पर भरोसा रखो। बेशक वह सुनने वाला जानने वाला है। और अगर वे तुम्हें धोखा देना चाहेंगे तो अल्लाह तुम्हारे लिए काफ़ी है। वही है जिसने अपनी नुसरत (मदद) और मोमिनों के ज़रिए तुम्हें क्ुव्वत दी। और उनके दिलों में इत्तिफ़ाक़ (जुड़ाव) पैदा कर दिया। अगर तुम ज़मीन में जो कुछ है सब ख़र्च कर डालते तब भी उनके दिलों में इत्तिफ़ाक़ पैदा न कर सकते। लेकिन अल्लाह ने उन में इत्तिफ़ाक़ पैदा कर दिया, बेशक वह ज़ोरआवर है हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (59-63)
ऐ नबी तुम्हारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वे मोमिनीन जिन्होंने तुम्हारा साथ दिया है। ऐ नबी मोमिनीन को लड़ाई पर उभारो। अगर तुम में बीस आदमी साबितक़दम (दृढ़) होंगे तो दो सौ पर ग़ालिब आएंगे और अगर तुम में सौ होंगे तो हज़ार मुंकिरों पर ग़ालिब आएंगे, इस वास्ते कि वे लोग समझ नहीं रखते। अब अल्लाह ने तुम पर से बोझ हल्का कर दिया और उसने जान लिया कि तुम में कुछ कमज़ोरी है। पस अगर तुम में सौ साबितक़दम होंगे तो दो सौ पर ग़ालिब आएंगे और अगर हज़ार होंगे तो अल्लाह के हुक्म से दो हज़ार पर ग़ालिब आएंगे, और अल्लाह साबितक़दम रहने वालों के साथ है। किसी नबी के लिए लायक़ नहीं कि उसके पास क़ैदी हों जब तक वह ज़मीन में अच्छी तरह ख़ूरेज़ी न कर ले। तुम दुनिया के असबाब चाहते हो और अल्लाह आख़िरत को चाहता है। और अल्लाह ज़बरदस्त है, हिक््मत (तत्वदर्शिता) वाला है। और अगर अल्लाह का एक लिखा हुआ पहले से मौजूद न होता तो जो तरीक़ा तुमने इख़्तियार किया उसके सबब तुम्हें सख्त अज़ाब पहुंच जाता। पस जो माल तुमने लिया है उसे खाओ, तुम्हारे लिए हलाल और पाक है और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह बरूथने वाला मेहरबान है। (64-69)
ऐ नबी तुम्हारे हाथ में जो क़ैदी हैं उनसे कह दो कि अगर अल्लाह तुम्हारे दिलों में कोई भलाई पाएगा तो जो कुछ तुमसे लिया गया है उससे बेहतर वह तुम्हें देगा और तुम्हें बख्छशा देगा और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। और अगर ये तुमसे बदअहदी (वचन-भंग) करेंगे तो इससे पहले इन्होंने ख़ुदा से बदअहदी की तो ख़ुदा ने तुम्हें उन पर क़ाबू दे दिया और अल्लाह इल्म वाला हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने हिजतत की और अल्लाह की राह में अपने जान व माल से जिहाद किया। और वे लोग जिन्होंने पनाह दी और मदद की, वे लोग एक दूसरे के रफ़ीक़ हैं और जो लोग ईमान लाए मगर उन्होंने हिजरत नहीं की तो उनसे तुम्हारा रिफ़राक़ृत का कोई तअल्लुक़ नहीं जब तक कि वे हिजरत करके न आ जाएं। और वे तुमसे दीन के मामले में मदद मांगे तो तुम पर उनकी मदद करना वाजिब (ज़रूरी) है, इल्ला यह कि मदद किसी ऐसी क़ौम के ख़िलाफ़ हो जिसके साथ तुम्हारा मुआहिदा (संधि) है। और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है। और जो लोग मुंकिर हैं वे एक दूसरे के रफ़ीक़ (सहयोगी) हैं। अगर तुम ऐसा न करोगे तो ज़मीन में फ़ितना फैलेगा और बड़ा फ़साद होगा। (70-73)
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत (स्थान परिवर्तन) की और अल्लाह की राह में जिहाद किया और जिन लोगों ने पनाह दी और मदद की, यही लोग सच्चे मोमिन हैं। इनके लिए बख्शिश है और बेहतरीन रिज़्क़ है। और जो लोग बाद में ईमान लाए और हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया वे भी तुम में से हैं। और ख़ून के रिश्तेदार एक दूसरे के ज़्यादा हक़दार हैं अल्लाह की किताब में | बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है। (74-75)