सूरह अल अनकबूत हिंदी में – सूरह 29
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
अलिफ़० लाम० मीम० | क्या लोग यह समझते हैं कि वे महज़ यह कहने पर छोड़ दिए जाएंगे कि हम ईमान लाए और उन्हें जांचा न जाएगा। और हमने उन लोगों को जांचा है जो इनसे पहले थे, पस अल्लाह उन लोगों को जानकर रहेगा जो सच्चे हैं और वह झूठों को भी ज़रूर मालूम करेगा। (1-3)
क्या जो लोग बुराइयां कर रहे हैं वे समझते हैं कि वे हमसे बच जाएंगे। बहुत बुरा फ़ैसला है जो वे कर रहे हैं। जो शख्स अल्लाह से मिलने की उम्मीद रखता है तो अल्लाह का वादा ज़रूर आने वाला है। और वह सुनने वाला है, जानने वाला है। और जो शख्स मेहनत करे तो वह अपने ही लिए मेहनत करता है। बेशक अल्लाह जहान वालों से बेनियाज़ (निस्पृह) है। और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किया तो हम उनकी बुराइयां उनसे दूर कर देंगे और उन्हें उनके अमल का बेहतरीन बदला देंगे। (4-7)
और हमने इंसान को ताकीद की कि वह अपने मां-बाप के साथ नेक सुलूक करे। और अगर वे तुझ पर दबाव डालें कि तू ऐसी चीज़ को मेरा शरीक ठहराए जिसका तुझे कोई इल्म नहीं तो उनकी इताअत (आज्ञापालन) न कर। तुम सबको मेरे पास लौट कर आना है, फिर मैं तुम्हें बता दूंगा जो कुछ तुम करते थे। और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए तो हम उन्हें नेक बंदों में दाख़िल करेंगे। और लोगों में कोई ऐसा है जो कहता है कि हम अल्लाह पर ईमान लाए। फिर जब अल्लाह की राह में उसे सताया जाता है तो वह लोगों के सताने को अल्लाह के अज़ाब की तरह समझ लेता है। और अगर तुम्हारे रब की तरफ़ से कोई मदद आ जाए तो वे कहेंगे कि हम तो तुम्हारे साथ थे। क्या अल्लाह उससे अच्छी तरह बाख़बर नहीं जो लोगों के दिलों में है। और अल्लाह ज़रूर मालूम करेगा उन लोगों को जो ईमान लाए और वह ज़रूर मालूम करेगा मुनाफ़िक्रीन (पाखंडियों) को। (8-11)
और मुंकिर लोग ईमान वालों से कहते हैं कि तुम हमारे रास्ते पर चलो और हम तुम्हारे गुनाहों को उठा लेंगे। और वे उनके गुनाहों में से कुछ भी उठाने वाले नहीं हैं। बेशक वे झूठे हैं। और वे अपने बोझ उठाएंगे, और अपने बोझ के साथ कुछ और बोझ भी | और ये लोग जो झूठी बातें बनाते हैं क्रियामत के दिन उसके बारे में उनसे पूछ होगी। (12-13)
और हमने नूह को उसकी क़ौम की तरफ़ भेजा तो वह उनके अंदर पचास साल कम एक हज़ार साल रहा। फिर उन्हें तूफ़ान ने पकड़ लिया और वे ज़ालिम थे। फिर हमने नूह को और कश्ती वालों को बचा लिया। और हमने इस वाक़ये को दुनिया वालों के लिए एक निशानी बना दिया। (14-15)
और इब्राहीम को जबकि उसने अपनी क्रौम से कहा कि अल्लाह की इबादत करो और उससे डरो। यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानो। तुम लोग अल्लाह को छोड़कर महज़ बुतों को पूजते हो और तुम झूठी बातें गढ़ते हो। अल्लाह के सिवा तुम जिनकी इबादत करते हो वे तुम्हें रिज़्क़ देने का इख़्तियार नहीं रखते। पस तुम अल्लाह के पास रिज़्क़ तलाश करो और उसकी इबादत करो और उसका शुक्र अदा करो। उसी की तरफ़ तुम लौटाए जाओगे। और अगर तुम झुठलाओगे तो तुमसे पहले बहुत सी क़ौमें झुठला चुकी हैं। और रसूल पर साफ़-साफ़ पहुंचा देने के सिवा कोई ज़िम्मेदारी नहीं। (16-18)
क्या लोगों ने नहीं देखा कि अल्लाह किस तरह ख़ल्क़ (सृष्टि) को शुरू करता है, फिर वह उसे दोहराएगा। बेशक यह अल्लाह पर आसान है। कहो कि ज़मीन में चलो फिरो फिर देखो कि अल्लाह ने किस तरह ख़ल्क़ को शुरू किया, फिर वह उसे दुबारा उठाएगा। बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। वह जिसे चाहेगा अज़ाब देगा और जिस पर चाहेगा रहम करेगा। और उसी की तरफ़ तुम लौटाए जाओगे। और तुम न ज़मीन में आजिज़ करने वाले हो और न आसमान में, और तुम्हारे लिए अल्लाह के सिवा न कोई कारसाज़ है और न कोई मददगार। और जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का और उससे मिलने का इंकार किया तो वही मेरी रहमत से महरूम हुए और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। फिर उसकी क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा कि उसे क़त्ल कर दो या उसे जला दो। तो अल्लाह ने उसे आग से बचा लिया। बेशक इसके अंदर निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो ईमान लाए। और उसने कहा कि तुमने अल्लाह के सिवा जो बुत बनाए हैं, बस वह तुम्हारे आपसी दुनिया के तअल्लुक़ात की वजह से है, फिर क्रियामत के दिन तुम में से हर एक दूसरे का इंकार करेगा और एक दूसरे पर लानत करेगा। और आग तुम्हारा ठिकाना होगी और कोई तुम्हारा मददगार न होगा। फिर लूत ने उसे माना और कहा कि मैं अपने रब की तरफ़ हिजरत करता हूं। बेशक वह ज़बरदस्त है, हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। और हमने अता किए उसे इस्हाक़ और याकूब और उसकी नस्ल में नुबुब्वत और किताब रख दी। और हमने दुनिया में उसे अज् (प्रतिफल) अता किया और आख़िरत में यक्रीनन वह सालिहीन में से होगा। (19-27)
और लूत को, जबकि उसने अपनी क्रौम से कहा कि तुम ऐसी बेहयाई का काम करते हो कि तुमसे पहले दुनिया वालों में से किसी ने नहीं किया। क्या तुम मर्दों के पास जाते हो और राह मारते हो। और अपनी मज्लिस में बुरा काम करते हो। पस उसकी क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि उसने कहा कि अगर तुम सच्चे हो तो हमारे ऊपर अल्लाह का अज़ाब लाओ। लूत ने कहा कि ऐ मेरे रब, मुफ़्सिद (उपद्रवी) लोगों के मुक़ाबले में मेरी मदद फ़रमा। (28-30)
और जब हमारे भेजे हुए इब्राहीम के पास बशारत लेकर पहुंचे, उन्होंने कहा कि हम इस बस्ती के लोगों को हलाक करने वाले हैं। बेशक इसके लोग सख्त ज़ालिम हैं। इब्राहीम ने कहा कि इसमें तो लूत भी है। उन्होंने कहा कि हम ख़ूब जानते हैं कि वहां कौन है। हम उसे और उसके घर वालों को बचा लेंगे मगर उसकी बीवी कि वह पीछे रह जाने वालों में से होगी। फिर जब हमारे भेजे हुए लूत के पास आए तो वह उनसे परेशान हुआ और दिल तंग हुआ। और उन्होंने कहा कि तुम न डरो और न ग़म करो। हम तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को बचा लेंगे मगर तुम्हारी बीवी कि वह पीछे रह जाने वालों में से होगी। हम इस बस्ती के बाशिंदों पर एक आसमानी अज़ाब उनकी बदकारियों की सज़ा में नाज़िल करने वाले हैं। और हमने उस बस्ती के कुछ निशान रहने दिए हैं उन लोगों की इबरत (सीख) के लिए जो अक़्ल रखते हैं। (31-35)
और मदयन की तरफ़ उनके भाई शुऐब को। पस उसने कहा कि ऐ मेरी क्ौम, अल्लाह की इबादत करो। और आख़िरत के दिन की उम्मीद रखो और ज़मीन में फ़साद फैलाने वाले न बनो। तो उन्होंने उसे झुठला दिया। पस ज़लज़ले ने उन्हें आ पकड़ा। फिर वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए। और आद और समूद को, और तुम पर हाल खुल चुका है उनके घरों से। और उनके आमाल को ज्ैतान ने उनके लिए ख़ुशनुमा बना दिया। फिर उन्हें रास्ते से रोक दिया और वे होशियार लोग थे। (36-38)
और क़ारून को और फ़िरऔन को और हामान को और मूसा उनके पास खुली निशानियां लेकर आया तो उन्होंने ज़मीन में घमंड किया और वे हमसे भाग जाने वाले न थे। पस हमने हर एक को उसके गुनाह में पकड़ा। फिर उनमें से कुछ पर हमने पथराव करने वाली हवा भेजी। और उनमें से कुछ को कड़क ने आ पकड़ा। और उनमें से कुछ को हमने ज़मीन में धंसा दिया। और उनमें से कुछ को हमने ग़र्क़ कर दिया। और अल्लाह उन पर ज़ुल्म करने वाला न था। मगर वे ख़ुद अपनी जानों पर ज़ुल्म कर रहे थे। (39-40)
जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा दूसरे कारसाज़ बनाए हैं उनकी मिसाल मकड़ी की सी है। उसने एक घर बनाया | और बेशक तमाम घरों से ज़्यादा कमज़ोर मकड़ी का घर है। काश कि लोग जानते। बेशक अल्लाह जानता है उन चीज़ों को जिन्हें वे उसके सिवा पुकारते हैं। और वह ज़बरदस्त है, हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। और ये मिसालें हैं जिन्हें हम लोगों के लिए बयान करते रहे हैं और इन्हें वही लोग समझते हैं जो इल्म वाले हैं। अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को बरहक़ पैदा किया है। बेशक इसमें निशानी है ईमान वालों के लिए। (41-44)
तुम उस किताब को पढ़ो जो तुम पर “वही” (प्रकाशना) की गई है। और नमाज़ क़ायम करो। बेशक नमाज़ बेहयाई से और बुरे कामों से रोकती है। और अल्लाह की याद बहुत बड़ी चीज़ है। ओर अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो। (45)
और तुम अहले किताब से बहस न करो मगर उस तरीक़े पर जो बेहतर है, मगर जो उनमें बेइंसाफ़ हैं। और कहो कि हम ईमान लाए उस चीज़ पर जो हमारी तरफ़ भेजी गई है। और उस पर जो तुम्हारी तरफ़ भेजी गई है। हमारा माबूद (पूज्य) और तुम्हारा माबूद एक है और हम उसी की फ़रमांबरदारी करने वाले हैं। (46)
और इसी तरह हमने तुम्हारे ऊपर किताब उतारी। तो जिन लोगों को हमने किताब दी है वे उस पर ईमान लाते हैं। और इन लोगों में से भी कुछ ईमान लाते हैं। और हमारी आयतों का इंकार सिर्फ़ मुंकिर ही करते हैं। और तुम इससे पहले कोई किताब नहीं पढ़ते थे और न उसे अपने हाथ से लिखते थे। ऐसी हालत में बातिलपरस्त (असत्यवादी) लोग शुबह में पड़ते। बल्कि ये खुली हुई आयतें हैं उन कुरआन मजीद लोगों के सीनों में जिन्हें इल्म अता हुआ है। और हमारी आयतों का इंकार नहीं करते मगर वे जो ज़ालिम हैं। (47-49)
और वे कहते हैं कि उस पर उसके रब की तरफ़ से निशानियां क्यों नहीं उतारी गईं। कहो कि निशानियां तो अल्लाह के पास हैं। और मैं सिर्फ़ खुला हुआ डराने वाला हूं। क्या उनके लिए यह काफ़ी नहीं है कि हमने तुम पर किताब उतारी जो उन्हें पढ़कर सुनाई जाती है। बेशक इसमें रहमत और याददिहानी है उन लोगों के लिए जो ईमान लाए हैं। कहो कि अल्लाह मेरे और तुम्हारे दर्मियान गवाही के लिए काफ़ी है। वह जानता है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है। और जो लोग बातिल (असत्य) पर ईमान लाए और जिन्होंने अल्लाह का इंकार किया वही ख़सारे (घाटे) में रहने वाले हैं। (50-52)
और ये लोग तुमसे अज़ाब जल्द मांग रहे हैं। और अगर एक वक़्त मुक़र्रर न होता तो उन पर अज़ाब आ जाता। और यक्रीनन वह उन पर अचानक आएगा और उन्हें ख़बर भी न होगी। वे तुमसे अज़ाब जल्द मांग रहे हैं। और जहन्नम मुंकिरों को घेरे हुए है। जिस दिन अज़ाब उन्हें ऊपर से ढांक लेगा और पांव के नीचे से भी, और कहेगा कि चखो उसे जो तुम करते थे। (53-55)
ऐ मेरे बंदो जो ईमान लाए हो, बेशक मेरी ज़मीन वसीअ (विस्तृत) है तो तुम मेरी ही इबादत करो। हर जान को मौत का मज़ा चखना है। फिर तुम हमारी तरफ़ लौटाए जाओगे। और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक अमल किए उन्हें हम जन्नत के बालाख़ानों (उच्च भवनों) में जगह देंगे जिनके नीचे नहरें जारी होंगी वे उनमें हमेशा रहेंगे। क्या ही अच्छा अज़ है अमल करने वालों का। जिन्होंने सब्र किया और जो अपने रब पर भरोसा रखते हैं। और कितने जानवर हैं जो अपना रिज़्क़ उठाए नहीं फिरते। अल्लाह उन्हें रिज़्क़ देता है और तुम्हें भी। और वह सुनने वाला जानने वाला है। (56-60)
और अगर तुम उनसे पूछो कि किसने पैदा किया आसमानों और ज़मीन को, और मुसख्खर किया सूरज को और चांद को, तो वे ज़रूर कहेंगे कि अल्लाह ने। फिर वे कहां से फेर दिए जाते हैं। अल्लाह ही अपने बंदों में से जिसका चाहता है रिज़्क़ कुशादा कर देता है और जिसका चाहता है तंग कर देता है। बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है। और अगर तुम उनसे पूछो कि किसने आसमान से पानी उतारा, फिर उसने ज़मीन को ज़िंदा किया उसके मर जाने के बाद, तो ज़रूर वे कहेंगे कि अल्लाह ने। कहो कि सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है। बल्कि उनमें से अक्सर लोग नहीं समझते। (61-63)
और यह दुनिया की ज़िंदगी कुछ नहीं है मगर एक खेल और दिल का बहलावा | और आख़िरत का घर ही असल ज़िंदगी की जगह है, काश कि वे जानते। पस जब वे कश्ती में सवार होते हैं तो अल्लाह को पुकारते हैं, उसी के लिए दीन को ख़ालिस करते हुए | फिर जब वह उन्हें नजात देकर ख़ुश्की की तरफ़ ले जाता है तो वे फ़ौरन शिर्क करने लगते हैं। ताकि हमने जो नेमत उन्हें दी है उसकी नाशुक्री करें और चन्द दिन फ़ायदा उठाएं। पस वे अनक़रीब जान लेंगे। (64-66)
क्या वे देखते नहीं कि हमने एक पुरअम्न हरम बनाया। और उनके गिर्द व पेश (आस पास) लोग उचक लिए जाते हैं। तो क्या वे बातिल (असत्य) को मानते हैं और अल्लाह की नेमत की नाशुक्री करते हैं। और उस शख्स से बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूठ बांधे या हक़ को झुठलाए जबकि वह उसके पास आ चुका। क्या मुंकिरों का ठिकाना जहन्नम में न होगा। और जो लोग हमारी ख़ातिर मशक़्क़त उठाएंगे उन्हें हम अपने रास्ते दिखाएंगे। और यक्रीनन अल्लाह नेकी करने वालों के साथ है। (67-69)