धर्म

सूरह अद दुख़ान हिंदी में – सूरह 44

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

हा० मीम०। क़सम है इस वाज़ेह (सुस्पष्ट) किताब की। हमने इसे एक बरकत वाली रात में उतारा है, बेशक हम आगाह करने वाले थे। इस रात में हर हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला मामला तै किया जाता है, हमारे हुक्म से | बेशक हम थे भेजने वाले। तेरे रब की रहमत से, वही सुनने वाला है, जानने वाला है। आसमानों और ज़मीन का रब और जो कुछ उनके दर्मियान है, अगर तुम यक़ीन करने वाले हो। उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। वही ज़िंदा करता है और मारता है, तुम्हारा भी रब और तुम्हारे अगले बाप दादा का भी रब। (1-8)

बल्कि वे शक में पड़े हुए खेल रहे हैं। पस इंतिज़ार करो उस दिन का जब आसमान एक खुले हुए धुवें के साथ ज़ाहिर होगा। वह लोगों को घेर लेगा। यह एक दर्दनाक अज़ाब है। ऐ हमारे रब, हम पर से अज़ाब टाल दे, हम ईमान लाते हैं। उनके लिए नसीहत कहां, और उनके पास रसूल आ चुका था खोल कर सुनाने वाला। फिर उन्होंने उससे पीठ फेरी और कहा कि यह तो एक सिखाया हुआ दीवाना है। हम कुछ वक़्त के लिए अज़ाब को हटा दें, तुम फिर अपनी उसी हालत पर आ जाओगे। जिस दिन हम पकड़ेंगे बड़ी पकड़ उस दिन हम पूरा बदला लेंगे। (9-16)

और उनसे पहले हमने फ़िरऔन की क़ौम को आज़माया। और उनके पास एक मुअज़्ज़ज़ (सम्मानीय) रसूल आया कि अल्लाह के बंदों को मेरे हवाले करो। मैं तुम्हारे लिए एक मोतबर (विश्वसनीय) रसूल हूं। और यह कि अल्लाह के मुक़ाबले में सरकशी न करो। मैं तुम्हारे सामने एक वाज़ेह दलील पेश करता हूं। और मैं अपने और तुम्हारे रब की पनाह ले चुका हूं इस बात से कि तुम मुझे संगसार (पत्थरों से मार डालना) करो। और अगर तुम मुझ पर ईमान नहीं लाते तो तुम मुझसे अलग रहो। (18-21)

पस मूसा ने अपने रब को पुकारा कि ये लोग मुजरिम हैं। तो अब तुम मेरे बंदों को रात ही रात में लेकर चले जाओ, तुम्हारा पीछा किया जाएगा। और तुम दरिया को थमा हुआ छोड़ दो, उनका लश्कर डूबने वाला है। उन्होंने कितने ही बाग़ और चशमे (स्रोत) और खेतियां और उम्दा मकानात और आराम के सामान जिनमें वे ख़ुश रहते थे सब छोड़ दिए। इसी तरह हुआ और हमने दूसरी क्रौम को उनका मालिक बना दिया। पस न उन पर आसमान रोया और न ज़मीन, और न उन्हें मोहलत दी गई। (22-29)

और हमने बनी इस्राईल को ज़िल्लत वाले अज़ाब से निजात दी। यानी फ़िरऔन से, बेशक वह सरकश और हद से निकल जाने वालों में से था। और हमने उन्हें अपने इल्म से दुनिया वालों पर तरजीह (वरीयता) दी। और हमने उन्हें ऐसी निशानियां दीं जिनमें खुला हुआ इनाम था। (30-33)

ये लोग कहते हैं, बस यही हमारा पहला मरना है और हम फिर उठाए नहीं जाएंगे। अगर तुम सच्चे हो तो ले आओ हमारे बाप दादा को। क्या ये बेहतर हैं या तुब्बअ की क़ौम और जो उनसे पहले थे। हमने उन्हें हलाक कर दिया, बेशक वे नाफ़रमान थे। (34-37)

और हमने आसमानों और ज़मीन को और जो कुछ उनके दर्मियान है खेल के तौर पर नहीं बनाया। इन्हें हमने हक़ के साथ बनाया है लेकिन उनके अक्सर लोग नहीं जानते। बेशक फ़ैसले का दिन उन सबका तैशुदा वक़्त है। जिस दिन कोई रिश्तेदार किसी रिश्तेदार के काम नहीं आएगा और न उनकी कुछ हिमायत की जाएगी। हां मगर वह जिस पर अल्लाह रहम फ़रमाए। बेशक वह ज़बरदस्त है, रहमत वाला है। ज़क़्क़ूम का दरख्त गुनाहगार का खाना होगा, तेल की तलछट जैसा, वह पेट में खौलेगा जिस तरह गर्म पानी खौलता है। उसे पकड़ो और उसे घसीटते हुए जहन्नम के बीच तक ले जाओ। फिर उसके सर पर खौलते हुए पानी का अज़ाब उंडेल दो। चख इसे, तू बड़ा मुअज़्ज़ज़, मुकर्रम है। यह वही चीज़ है जिसमें तुम शक करते थे। (38-50)

बेशक ख़ुदा से डरने वाले अम्न की जगह में होंगे, बाग़ों और चशमों (स्रोतों) में। बारीक रेशम और दबीज़ रेशम के लिबास पहने हुए आमने सामने बैठे होंगे। यह बात इसी तरह है, और हम उनसे ब्याह देंगे हूरें बड़ी-बड़ी आंखों वाली। वे उसमें तलब करेंगे हर क़रिस्म के मेवे निहायत इत्मीनान से। वे वहां मौत को न चखेंगे मगर वह मौत जो पहले आ चुकी है और अल्लाह ने उन्हें जहन्नम के अज़ाब से बचा लिया। यह तेरे रब के फ़ज़्ल से होगा, यही है बड़ी कामयाबी। (51-57)

पस हमने इस किताब को तुम्हारी ज़बान में आसान बना दिया है ताकि लोग नसीहत हासिल करें। पस तुम भी इंतिज़ार करो, वे भी इंतिज़ार कर रहे हैं। (58-59) 

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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