सूरह अल हदीद हिंदी में – सूरह 57
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
अल्लाह की तस्बीह करती है हर चीज़ जो आसमानों और ज़मीन में है और वह ज़बरदस्त है हिक््मत (तत्वदर्शिता) वाला है। आसमानों और ज़मीन की सल्तनत उसी की है। वह जिलाता है और मारता है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। वही अव्वल भी है और आख़िर भी और ज़ाहिर (व्यक्त) भी है और बातिन (अव्यक्त) भी। और वह हर चीज़ का जानने वाला है। वही है जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया छः दिनों में, फिर वह आर्श पर मुतमक्किन (आसीन) हुआ। वह जानता है जो कुछ ज़मीन के अंदर जाता है और जो उससे निकलता है और जो कुछ आसमान से उतरता है और जो कुछ उसमें चढ़ता है, और वह तुम्हारे साथ है जहां भी तुम हो, और अल्लाह देखता है जो कुछ तुम करते हो। आसमानों और ज़मीन की सल्तनत उसी की है, और अल्लाह ही की तरफ़ लौटते हैं सारे मामले। वह रात को दिन में दाख़िल करता हे और दिन को रात में दाखिल करता है, और वह दिल की बातों को जानता है। (1-6)
ईमान लाओ अल्लाह और उसके रसूल पर और खर्च करो उसमें से जिसमें उसने तुम्हें अमीन (साधिकार) बनाया है। पस जो लोग तुम में से ईमान लाएं और ख़र्च करें उनके लिए बड़ा अज्र है। और तुम्हें क्या हुआ कि तुम अल्लाह पर ईमान नहीं लाते, हालांकि रसूल तुम्हें बुला रहा है कि तुम अपने रब पर ईमान लाओ और वह तुमसे अहद (वचन) ले चुका है, अगर तुम मोमिन हो। वही है जो अपने बंदे पर वाज़ेह आयतें उतारता है ताकि तुम्हें तारीकियों से रोशनी की तरफ़ ले आए और अल्लाह तुम्हारे ऊपर नर्मी करने वाला है, मेहरबान है। और तुम्हें क्या हुआ कि तुम अल्लाह के रास्ते में ख़र्च नहीं करते हालांकि सब आसमान और ज़मीन आख़िर में अल्लाह ही का रह जाएगा। तुम में से जो लोग फ़तह के बाद ख़र्च करें और लड़ें वे उन लोगों के बराबर नहीं हो सकते जिन्होंने फ़तह से पहले ख़र्च किया और लड़े, और अल्लाह ने सबसे भलाई का वादा किया है, अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो। (7-10)
कौन है जो अल्लाह को क़र्ज़ दे, अच्छा क़र्ज़, कि वह उसे उसके लिए बढ़ाए, और उसके लिए बाइज़्ज़त अज् है। जिस दिन तुम मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को देखोगे कि उनकी रोशनी उनके आगे और उनके दाएं चल रही होगी। आज के दिन तुम्हें ख़ुशख़बरी है बाग़ों की जिनके नीचे नहरें जारी होंगी, यह बड़ी कामयाबी है। जिस दिन मुनाफ़िक़ (पाखंडी) मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें ईमान वालों से कहेंगे कि हमें मौक़ा दो कि हम भी तुम्हारी रोशनी से कुछ फ़ायदा उठा लें। कहा जाएगा कि तुम अपने पीछे लौट जाओ। फिर रोशनी तलाश करो। फिर उनके दर्मियान एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिसमें एक दरवाज़ा होगा। उसके अंदर की तरफ़ रहमत होगी। और उसके बाहर की तरफ़ अज़ाब होगा। वे उन्हें पुकारेंगे कि क्या हम तुम्हारे साथ न थे। वे कहेंगे कि हां, मगर तुमने अपने आपको फ़ितने में डाला और राह देखते रहे और शक में पड़े रहे और झूठी उम्मीदों ने तुम्हें धोखे में रखा, यहां तक कि अल्लाह का फ़ैसला आ गया और धोखेबाज़ ने तुम्हें अल्लाह के मामले में धोखा दिया। पस आज न तुमसे कोई फ़िदया (मुक्ति-मुआवज़ा) क्ुबूल किया जाएगा और न उन लोगों से जिन्होंने कुफ़ किया। तुम्हारा ठिकाना आग है। वही तुम्हारी रफ़ीक़ (साथी) है। और वह बुरा ठिकाना है। (11-15)
क्या ईमान वालों के लिए वह वक़्त नहीं आया कि उनके दिल अल्लाह की नसीहत के आगे झुक जाएं। और उस हक़ के आगे जो नाज़िल हो चुका है। और वे उन लोगों की तरह न हो जाएं जिन्हें पहले किताब दी गई थी, फिर उन पर लम्बी मुदृदत गुज़र गई तो उनके दिल सख्त हो गए। और उनमें से अक्सर नाफ़रमान हैं। जान लो कि अल्लाह ज़मीन को ज़िंदगी देता है उसकी मौत के बाद, हमने तुम्हारे लिए निशानियां बयान कर दी हैं, ताकि तुम समझो। (16-17)
बेशक सदक़ा देने वाले मर्द और सदक़ा देने वाली औरतें। और वे लोग जिन्होंने अल्लाह को क़र्ज़ दिया, अच्छा क़र्ज़, वह उनके लिए बढ़ाया जाएगा और उनके लिए बाइज़्ज़त अज्र (प्रतिफल) है। और जो लोग ईमान लाए अल्लाह पर और उसके रसूलों पर। वही लोग अपने रब के नज़दीक सिद्दीक़ (सच्चे) और शहीद (सत्य के साक्षी) हैं, उनके लिए उनका अज्र (प्रतिफल) और उनकी रोशनी है, और जिन लोगों ने इंकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया वे दोज़ख़ के लोग हैं। (18-19)
जान लो कि दुनिया की ज़िंदगी इसके सिवा कुछ नहीं कि खेल और तमाशा है और ज़ीनत (साज-सज्जा) और बाहमी (आपसी) फ़ख्क्न और माल और औलाद में एक दूसरे से बढ़ने की कोशिश करना है। जैसे कि बारिश की उसकी पैदावार किसानों को अच्छी मालूम होती है। फिर वह ख़ुश्क हो जाती है। फिर तू उसे ज़र्द देखता है, फिर वह रेज़ा-रेज़ा हो जाती है। और आख़िरत में सख्त अज़ाब है और अल्लाह की तरफ़ से माफ़ी और रिज़ामंदी भी। और दुनिया की ज़िंदगी धोखे की पूंजी के सिवा और कुछ नहीं। दौड़ो अपने रब की माफ़ी की तरफ़ और ऐसी जन्नत की तरफ़ जिसकी वुस्अत (व्यापकता) आसमान और ज़मीन की वुस्ञत के बराबर है। वह उन लोगों के लिए तैयार की गई है जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाएं, यह अल्लाह का फ़ज़्ल (अनुग्रह) है। वह उसे देता है जिसे वह चाहता है और अल्लाह बड़ा फ़ज़्ल वाला है। (20-21)
कोई मुसीबत न ज़मीन में आती है और न तुम्हारी जानों में मगर वह एक किताब में लिखी हुई है इससे पहले कि हम उन्हें पैदा करें, बेशक यह अल्लाह के लिए आसान है ताकि तुम ग़म न करो उस पर जो तुमसे खोया गया। और न उस चीज़ पर फख् करो जो उसने तुम्हें दिया, और अल्लाह इतराने वाले फुख करने वाले को पसंद नहीं करता जो कि बुख़्ल (कंजूसी) करते हैं और दूसरों को भी बुख़्ल की तालीम देते हैं। और जो शख्स एराज़ (उपेक्षा) करेगा। तो अल्लाह बेनियाज़ (निस्पृहठ) है खूबियों वाला है। (22-24)
हमने अपने रसूलों को निशानियों के साथ भेजा और उनके साथ उतारा किताब और तराज़ू, ताकि लोग इंसाफ़ पर क़ायम हों। और हमने लोहा उतारा जिसमें बड़ी क़॒व्वत (शक्ति) है और लोगों के लिए फ़ायदे हैं और ताकि अल्लाह जान ले कि कौन उसकी और उसके रसूलों की मदद करता है बिना देखे, बेशक अल्लाह ताक़त वाला, ज़बरदस्त है। (25)
और हमने नूह को और इब्राहीम को भेजा। और उनकी औलाद में हमने पैग़म्बरी और किताब रख दी। फिर उनमें से कोई राह पर है और उनमें से बहुत से नाफ़रमान हैं। फिर उन्हीं के नक़्शेक्दम पर हमने अपने रसूल भेजे और उन्हीं के नक़्शेक्दम पर ईसा बिन मरयम को भेजा और हमने उसे इंजील दी। और जिन लोगों ने उसकी पैरवी की हमने उनके दिलों में शफ़्क़त (करुणा) और रहमत (दया) रख दी। और रहबानियत (सन्यास) को उन्होंने ख़ुद ईजाद किया है। हमने उसे उन पर नहीं लिखा था। मगर उन्होंने अल्लाह की रिज़ामंदी के लिए उसे इख्तियार कर लिया, फिर उन्होंने उसकी पूरी रिआयत (निर्वाह) न की, पस उनमें से जो लोग ईमान लाए उन्हें हमने उनका अज्र (प्रतिफल) दिया, और उनमें से अक्सर नाफ़रमान हैं। (26-27)
ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और उसके रसूल पर ईमान लाओ, अल्लाह तुम्हें अपनी रहमत से दो हिस्से अता करेगा। और तुम्हें रोशनी अता करेगा जिसे लेकर तुम चलोगे। और तुम्हें बख्शा देगा। और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। ताकि अहले किताब जान लें कि वे अल्लाह के फ़ज़्ल (अनुग्रह) में से किसी चीज़ पर इख़्तियार नहीं रखते और यह कि फ़ज़्ल अल्लाह के हाथ में है। वह जिसे चाहता है अता फ़रमाता है। और अल्लाह बड़े फ़ज़्ल वाला है। (28-29)