धर्म

सूरह अल हज हिंदी में – सूरह 22

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

ऐ लोगो, अपने रब से डरो। बेशक क़्रियामत का भूकम्प बड़ी भारी चीज़ है। जिस दिन तुम उसे देखोगे, हर दूध पिलाने वाली अपने दूध पीते बच्चे को भूल जाएगी। और हर हमल (गर्भ) वाली अपना हमल डाल देगी। और लोग तुम्हें मदहोश नज़र आएंगे हालांकि वे मदहोश न होंगे। बल्कि अल्लाह का अज़ाब बड़ा ही सख्त है। और लोगों में कोई ऐसा भी है जो इल्म के बगैर अल्लाह के विषय में झगड़ता है। और हर सरकश शैतान की पैरवी करने लगता है। उसके बारे में यह लिख दिया गया है कि जो शख्स उसे दोस्त बनाएगा वह उसे बेराह कर देगा और उसे अज़ाबे जहन्नम का रास्ता दिखाएगा। (1-4) 

ऐ लोगो, अगर तुम दुबारा जी उठने के मुताल्लिक़ शक में हो तो हमने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया है, फिर नुत्फ़ा (वीर्य) से, फिर ख़ून के लौथड़े से, फिर गोश्त की बोटी से, शक्ल वाली और बगैर शक्ल वाली भी, ताकि हम तुम पर वाज़ेह करें। और हम रहमों (गर्भो) में ठहरा देते हैं जो चाहते हैं एक मुअय्यन (निश्चित) मुदृदत तक। फिर हम तुम्हें बच्चा बनाकर बाहर लाते हैं। फिर ताकि तुम अपनी पूरी जवानी तक पहुंच जाओ। और तुम में से कोई शख्स पहले ही मर जाता है और कोई शख्स बदतरीन उम्र तक पहुंचा दिया जाता है ताकि वह जान लेने के बाद फिर कुछ न जाने। और तुम ज़मीन को देखते हो कि ख़ुश्क पड़ी है फिर जब हम उस पर पानी बरसाते हैं तो वह ताज़ा हो गई और उभर आई और वह तरह-तरह की ख़ुशनुमा चीज़ें उगाती है। यह इसलिए कि अल्लाह ही हक़ है और वह बेजानों में जान डालता है, और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। और यह कि क्रियामत आने वाली है, इसमें कोई शक नहीं और अल्लाह ज़रूर उन लोगों को उठाएगा जो क़ढब्रों में हैं। (5-7)

और लोगों में कोई शख्स है जो अल्लाह की बात में झगड़ता है, इल्म और हिदायत और रोशन किताब के बगैर तकब्बुर (घमंड) करते हुए ताकि वह अल्लाह की राह से बेराह कर दे। उसके लिए दुनिया में रुसवाई है और क्रियामत के दिन हम उसे जलती आग का अज़ाब चखाएंगे। यह तुम्हारे हाथ के किए हुए कामों का बदला है और अल्लाह अपने बंदों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं। (8-10)

और लोगों में कोई है जो किनारे पर रहकर अल्लाह की इबादत करता है। पस अगर उसे कोई फ़ायदा पहुंचा तो वह उस इबादत पर क्रायम हो गया। और अगर कोई आज़माइश पेश आई तो उल्टा फिर गया। उसने दुनिया भी खो दी और आख़िरत भी। यही खुला हुआ ख़सारा (घाटा) है। (11)

वह ख़ुदा के सिवा ऐसी चीज़ को पुकारता है जो न उसे नुक़्सान पहुंचा सकती और न उसे नफ़ा पहुंचा सकती। यह इंतिहा दर्जे की गुमराही है। वह ऐसी चीज़ को पुकारता है जिसका नुक़्सान उसके नफ़ा से क़रीबतर है। कैसा बुरा कारसाज़ है और कैसा बुरा रफ़ीक़ (साथी)। बेशक अल्लाह उन लोगों को जो ईमान लाए और नेक अमल किए ऐसी जन्‍नतों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। अल्लाह करता है जो वह चाहता है। (12-14)

जो शख्स यह गुमान रखता हो कि ख़ुदा दुनिया और आख़िरत में उसकी मदद नहीं करेगा तो उसे चाहिए कि एक रस्सी आसमान तक ताने। फिर उसे काट डाले और देखे कि क्या उसकी तदबीर उसके गुस्से को दूर करने वाली बनती है। और इस तरह हमने कुरआन को खुली खुली दलीलों के साथ उतारा है। और बेशक अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत दे देता है। इसमें कोई शक नहीं कि जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने यहूदियत इख़्तियार की, और साबी और नसारा और मजूस और जिन्होंने शिर्क (ख़ुदा का साझीदार बनाना) किया। अल्लाह उन सबके दर्मियान क़रियामत के रोज़ फ़ैसला फ़रमाएगा। बेशक अल्लाह हर चीज़ से वाक़िफ़ है। (15-17)

क्या तुम नहीं देखते कि अल्लाह ही के आगे सज्दा करते हैं जो आसमानों में हैं और जो ज़मीन में हैं। और सूरज और चांद और सितारे और पहाड़ और दरख्त और चौपाए और बहुत से इंसान। और बहुत से ऐसे हैं जिन पर अज़ाब साबित हो चुका है और जिसे ख़ुदा ज़लील कर दे तो उसे कोई इज़्ज़त देने वाला नहीं। बेशक अल्लाह करता है जो वह चाहता है। (18)

ये दो फ़रीक़ (पक्ष) हैं जिन्होंने अपने रब के बारे में झगड़ा किया। पस जिन्होंने इंकार किया उनके लिए आग के कपड़े काटे जाएंगे। उनके सरों के ऊपर से खौलता हुआ पानी डाला जाएगा। इससे उनके पेट की चीज़ें तक गल जाएंगी और खालें भी और उनके लिए वहां लोहे के हथौड़े होंगे। जब भी वे घबराकर उससे बाहर निकलना चाहेंगे तो फिर उसमें धकेल दिए जाएंगे और चखते रहो जलने का अज़ाब। (19-29)

बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए, अल्लाह उन्हें ऐसे बाश़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी होंगी। उन्हें वहां सोने के कंगन और मोती पहनाए जाएंगे और वहां उनकी पोशाक रेशम होगी। और उन्हें पाकीज़ा क़ौल (कथन) की हिदायत बख्शी गई थी। और उन्हें ख़ुदाए हमीद (प्रशंसित) का रास्ता दिखाया गया था। (23-24)

बेशक जिन लोगों ने इंकार किया और वे लोगों को अल्लाह की राह से और मस्जिदे हराम से रोकते हैं जिसे हमने लोगों के लिए बनाया है जिसमें मक़ामी स्थानीय) बाशिंदे और बाहर से आने वाले बराबर हैं। और जो इस मस्जिद में रास्ती (शालीनता) से हटकर ज़ुल्म का तरीक़ा इख़्तियार करेगा उसे हम दर्दनाक अज़ाब का मज़ा चखाएंगे। (25)

और जब हमने इब्राहीम को बैतुल्लाह (अल्लाह के घर) की जगह बता दी, कि मेरे साथ किसी चीज़ को शरीक न करना और मेरे घर को पाक रखना तवाफ़ (परिक्रमा) करने वालों के लिए और क्रियाम करने वालों के लिए और रुकूअ और सज्दा करने वालों के लिए। (26)

और लोगों में हज का एलान कर दो, वे तुम्हारे पास आएंगे। पैरों पर चलकर और दुबले ऊंटों पर सवार होकर जो कि दूर दराज़ रास्तों से आएंगे ताकि वे अपने फ़ायदे की जगह पर पहुंचें और चन्द मालूम दिनों में उन चौपायों पर अल्लाह का नाम लें जो उसने उन्हें बछ्शे हैं। पस उसमें से खाओ और मुसीबतज़दा मोहताज को खिलाओ। तो चाहिए कि वे अपना मैल कुचैल ख़त्म कर दें। और अपनी नज़ें (मन्नतें) पूरी करें। और इस क़दीम (प्राचीन) घर का तवाफ़ (परिक्रमा) करें। (27-29)

यह बात हो चुकी और जो शख्स अल्लाह की हुस्‍्मतों (मर्यादाओं) की ताज़ीम करेगा तो वह उसके हक़ में उसके रब के नज़दीक बेहतर है और तुम्हारे लिए चौपाए हलाल कर दिए गए हैं, सिवा उनके जो तुम्हें पढ़कर सुनाए जा चुके हैं। तो तुम बुतों की गंदगी से बचो और झूठी बात से बचो। (30)

अल्लाह की तरफ़ यकसू (एकाग्र) रहो, उसके साथ शरीक न ठहराओ। और जो शख्स अल्लाह के साथ शिर्क करता है तो गोया वह आसमान से गिर पड़ा। फिर चिड़ियां उसे उचक लें या हवा उसे किसी दूर दराज़ मक़ाम पर ले जाकर डाल दे। (31)

यह बात हो चुकी। और जो शख्स अल्लाह के शआइर (प्रतीकों) का पूरा लिहाज़ रखेगा तो यह दिल के तक़वे (ईश-परायणता) की बात है। तुम्हें उनसे एक मुक़र्रर वक़्त तक फ़ायदा उठाना है। फिर उन्हें कुर्बानी के लिए क़दीम (प्राचीन) घर की तरफ़ ले जाना है। (32-33)

और हमने हर उम्मत के लिए क्रुर्बानी करना मुक़र्रर किया ताकि वे उन चौपायों पर अल्लाह का नाम लें जो उसने उन्हें अता किए हैं। पस तुम्हारा इलाह (पूज्य-प्रभु) एक ही इलाह है तो तुम उसी के होकर रहो और आजिज़ी (नम्नता) करने वालों को बशारत (शुभ सूचना) दे दो। जिनका हाल यह है कि जब अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो उनके दिल कांप उठते हैं। और जो उन पर पड़े उसे सहने वाले और नमाज़ की पाबंदी करने वाले और जो कुछ हमने उन्हें दिया है वे उसमें से ख़र्च करते हैं। (34-35)

और कुर्बानी के ऊंटों को हमने तुम्हारे लिए अल्लाह की यादगार बनाया है। उनमें तुम्हारे लिए भलाई है। पस उन्हें खड़ा करके उन पर अल्लाह का नाम लो। फिर जब वे करवट के बल गिर पड़ें तो उनमें से खाओ और बेसवाल मोहताज और साइल (मांगने वाले) को खिलाओ। इस तरह हमने इन जानवरों को तुम्हारे लिए मुसझ्खर (वशीभूत) कर दिया ताकि तुम शुक्र अदा करो। और अल्लाह को न उनका गोश्त पहुंचता है और न उनका खून बल्कि अल्लाह को सिर्फ़ तुम्हारा तक़वा (ईश-परायणता) पहुंचता है इस तरह अल्लाह ने उन्हें तुम्हारे लिए मुसख्ख़र कर दिया है। ताकि तुम अल्लाह की बख्शी हुई हिदायत पर उसकी बड़ाई बयान करो और नेकी करने वालों को ख़ुशख़बरी दे दो। बेशक अल्लाह उन लोगों की मुदाफ़िअत (प्रतिरक्षा) करता है जो ईमान लाए। बेशक अल्लाह बदअहदों (वचन तोड़ने वालों) और नाशुक्रों को पसंद नहीं करता। इजाज़त दे दी गई उन लोगों को जिनसे लड़ाई की जा रही है इस वजह से कि उन पर ज़ुल्म किया गया है। और बेशक अल्लाह उनकी मदद पर क़ादिर है। वे लोग जो अपने घरों से बेवजह निकाले गए। सिर्फ़ इसलिए कि वे कहते हैं कि हमारा रब (प्रभु) अल्लाह है। और अगर अल्लाह लोगों को एक दूसरे लिए ज़रिए हटाता न रहे तो ख़ानक़ाहें (आश्रम) और गिरजा और इबादतख़ाने और मस्जिदें जिनमें अल्लाह का नाम कसरत (अधिकता) से लिया जाता है ढा दिए जाते। और अल्लाह ज़रूर उसकी मदद करेगा जो अल्लाह की मदद करे। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त है, ज़ोर वाला है। (36-40)

ये वे लोग हैं जिन्हें अगर हम ज़मीन पर ग़लबा दें तो वे नमाज़ का एहतिमाम करेंगे और ज़कात अदा करेंगे और मअरूफ़ (भलाई) का हुक्म देंगे और मुंकर (बुराई) से रोकेंगे और सब कामों का अंजाम ख़ुदा ही के इख्तियार में है। (41)

और अगर वे तुम्हें झुठलाएं तो उनसे पहले क़ौमे नूह और आद और समूद झुठला चुके हैं और क़ौमे इब्राहीम और क़ौमे लूत और मदयन के लोग भी। और मूसा को झुठलाया गया। फिर मैंने मुंकिरों को ढील दी। फिर मैंने उन्हें पकड़ लिया। पस कैसा हुआ मेरा अज़ाब। (42-44)

पस कितनी ही बस्तियां हैं जिन्हें हमने हलाक कर दिया और वे ज़ालिम थीं। पस अब वे अपनी छतों पर उल्टी पड़ी हैं और कितने ही बेकार कुवें और कितने पुख्ता महल जो वीरान पड़े हुए हैं। कया ये लोग ज़मीन में चले फिरे नहीं कि उनके दिल ऐसे हो जाते कि वे उनसे समझते या उनके कान ऐसे हो जाते कि वे उनसे सुनते। क्योंकि आंखें अंधी नहीं होतीं बल्कि वे दिल अंधे हो जाते हैं जो सीनों में हैं। (45-46)

और ये लोग तुमसे अज़ाब के लिए जल्दी किए हुए हैं। और अल्लाह हरगिज़ अपने वादे के ख़िलाफ़ करने वाला नहीं है। और तेरे रब के यहां का एक दिन तुम्हारे शुमार के एतबार से एक हज़ार साल के बराबर होता है। और कितनी ही बस्तियां हैं जिन्हें मैंने ढील दी और वे ज़ालिम थीं। फिर मैंने उन्हें पकड़ लिया और मेरी ही तरफ़ लौट कर आना है। (47-48)

कहो कि ऐ लोगो मैं तुम्हारे लिए एक खुला हुआ डराने वाला हूं। पस जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए उनके लिए मग्फ़िरत (क्षमा) है और इज़्ज़त की रोज़ी। और जो लोग हमारी आयतों को नीचा दिखाने के लिए दौड़े वही दोज़ख़ वाले हैं। (49-51) 

और हमने तुमसे पहले जो भी रसूल और नबी भेजा तो जब उसने कुछ पढ़ा तो शैतान ने उसके पढ़ने में मिला दिया। फिर अल्लाह शैतान के डाले हुए को मिटा देता है। फिर अल्लाह अपनी आयतों को पुख्ता कर देता है। और अल्लाह इल्म वाला हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। ताकि जो कुछ ज्षैतान ने मिलाया है उससे वह उन लोगों को जांचे जिनके दिलों में रोग है और जिनके दिल सख्त हैं। और ज़ालिम लोग मुख़ालिफ़त में बहुत दूर निकल गए हैं और ताकि वे लोग जिन्हें इल्म मिला है जान लें कि यह सच है तेरे रब की तरफ़ से है। फिर वे उस पर यक़ीन लाएं। और उनके दिल उसके आगे झुक जाएं। और अल्लाह ईमान लाने वालों को ज़रूर सीधा रास्ता दिखाता है। (52-54)

और इंकार करने वाले लोग हमेशा उसकी तरफ़ से शक में पड़े रहेंगे। यहां तक कि अचानक उन पर क़ियामत आ जाए। या एक मनहूस दिन का अज़ाब आ जाए। उस दिन सारा इख़्तियार सिर्फ़ अल्लाह को होगा। वह उनके दर्मियान फ़ैसला फ़रमाएगा। पस जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए वे नेमत के बाग़ों में होंगे और जिन्होंने इंकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो उनके लिए ज़िल्लत का अज़ाब है। (55-57)

और जिन लोगों ने अल्लाह की राह में अपना वतन छोड़ा, फिर वे क़त्ल कर दिए गए या वे मर गए, अल्लाह ज़रूर उन्हें अच्छा रिज़्क़ देगा। और बेशक अल्लाह ही सबसे बेहतर रिज़्क़ देने वाला है। वह उन्हें ऐसी जगह पहुंचाएगा जिससे वे राज़ी होंगे। और बेशक अल्लाह जानने वाला, हिल्म (उदारता) वाला है। (58-59)

यह हो चुका, और जो शख्स बदला ले वैसा ही जैसा उसके साथ किया गया था, और फिर उस पर ज़्यादती की जाए तो अल्लाह ज़रूर उसकी मदद करेगा। बेशक अल्लाह माफ़ करने वाला, दरगुज़र करने वाला है। (60)

यह इसलिए कि अल्लाह रात को दिन में दाखिल करता है और दिन को रात में दाखिल करता है। और अल्लाह सुनने वाला देखने वाला है। यह इसलिए कि अल्लाह ही हक़ (सत्य) है और वे सब बातिल (असत्य) हैं जिन्हें अल्लाह को छोड़कर लोग पुकारते हैं। और बेशक अल्लाह ही सबसे ऊपर है, सबसे बड़ा है। (61-62)

क्या तुम नहीं देखते कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया। फिर ज़मीन सरसब्ज़ हो गई। बेशक अल्लाह बारीकबीं (सूक्ष्मदर्शी) है, ख़बर रखने वाला है। उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है। बेशक अल्लाह ही है जो बेनियाज़ (निस्पृष्ठ) है, तारीफ़ों वाला है। (63-64)

क्या तुम देखते नहीं कि अल्लाह ने ज़मीन की चीज़ों को तुम्हारे काम में लगा रखा है और कश्ती को भी, वह उसके हुक्म से समुद्र में चलती है। और वह आसमान को ज़मीन पर गिरने से थामे हुए है, मगर यह कि उसके हुक्म से। बेशक अल्लाह लोगों पर नर्मी करने वाला, मेहरबान है। और वही है जिसने तुम्हें ज़िंदगी दी, फिर वह तुम्हें मौत देता है। फिर वह तुम्हें ज़िंदा करेगा। बेशक इंसान बड़ा ही नाशुक्रा है। (65-66)

और हमने हर उम्मत के लिए एक तरीक़ा मुक़र्रर किया कि वे उसकी पैरवी करते थे। पस वे इस मामले में तुमसे झगड़ा न करें। और तुम अपने रब की तरफ़ बुलाओ। यक़ीनन तुम सीधे रास्ते पर हो। अगर वे तुमसे झगड़ा करें तो कहो कि अल्लाह ख़ूब जानता है जो कुछ तुम कर रहे हो। अल्लाह क्रियामत के दिन तुम्हारे दर्मियान उस चीज़ का फ़ैसला कर देगा जिसमें तुम इख्तेलाफ़ (मतभेद) कर रहे हो। क्‍या तुम नहीं जानते कि आसमान व ज़मीन की हर चीज़ अल्लाह के इल्म में है। सब कुछ एक किताब में है। बेशक यह अल्लाह के लिए आसान है। (67-70)

और वे अल्लाह के सिवा उनकी इबादत करते हैं जिनके हक़ में अल्लाह ने कोई दलील नहीं उतारी और न उनके बारे में उन्हें कोई इल्म है। और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं। और जब उन्हें हमारी वाज़ेह (सुस्पष्ट) आयतें पढ़कर सुनाई जाती हैं तो तुम मुंकिरों के चेहरे पर बुरे आसार देखते हो। गोया कि वे उन लोगों पर हमला कर देंगे जो उन्हें हमारी आयतें पढ़कर सुना रहे हैं। कहो कि क्या मैं तुम्हें बताऊं कि इससे बदतर चीज़ क्‍या है। वह आग है। उसका अल्लाह ने उन लोगों से वादा किया है जिन्होंने इंकार किया और वह बहुत बुरा ठिकाना है। (71-72)

ऐ लोगो, एक मिसाल बयान की जाती है तो इसे ग़ौर से सुनो | तुम लोग ख़ुदा के सिवा जिस चीज़ को पुकारते हो वे एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकते | अगरचे सबके सब उसके लिए जमा हो जाएं। और अगर मक्खी उनसे कुछ छीन ले तो वे उसे उससे छुड़ा नहीं सकते। मदद चाहने वाले भी कमज़ोर और जिनसे मदद चाही गई वे भी कमज़ोर। उन्होंने अल्लाह की क़द्र न पहचानी जैसा कि उसके पहचानने का हक़ है। बेशक अल्लाह ताक़तवर है, ग़ालिब (प्रभुत्वशाली) है। (73-74)

अल्लाह फ़रिश्तों में से अपना पैग़ाम पहुंचाने वाला चुनता है। और इंसानों में से भी। बेशक अल्लाह सुनने वाला, देखने वाला है। वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और अल्लाह ही की तरफ़ लौटते हैं सारे मामलात। (75-76)

ऐ ईमान वालो, रुकूअ और सज्दा करो। और अपने रब की इबादत करो और भलाई के काम करो ताकि तुम कामयाब हो। और अल्लाह की राह में कोशिश करो जैसा कि कोशिश करने का हक़ है। उसी ने तुम्हें चुना है। और उसने दीन  के मामले में तुम पर कोई तंगी नहीं रखी। तुम्हारे बाप इब्राहीम का दीन। उसी ने तुम्हारा नाम मुस्लिम (आज्ञाकारी) रखा, इससे पहले और इस कुरआन में भी ताकि रसूल तुम पर गवाह हो और तुम लोगों पर गवाह बनो। पस नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो। और अल्लाह को मज़बूत पकड़ो, वही तुम्हारा मालिक है। पस कैसा अच्छा मालिक है और कैसा अच्छा मददगार। (77-78)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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