सूरह इब्राहिम इन हिंदी – इब्राहीम (सूरह 14)
सूरह इब्राहिम कुरान शरीफ का चौहदवां सूरह है, जिसमें 52 आयत और 7 रुकुस हैं। यह सूरह मक्की है। इस सूरह का नाम इब्राहिम के नाम पर पड़ा, जो उसके बाद आने वाले सभी नबियों के पिता थे। कहते हैं सूरह इब्राहिम को पढ़ने से इंसान को अनगिनत तारों जितना पुण्य मिलता है। अगर कोई सूरह इब्राहिम को रोज़ाना पढ़े तो उसे उसके द्वारा किए हर कुफ़्र से आज़ादी मिलती है। यह सूरह बताता है कि किसी के दिल में क्या चल रहा है ये सिर्फ अल्लाह जानता है, इसलिए हमें अपने करमात पर ध्यान देना चाहिए ताकि जब कयामत कि दिन जब हिसाब हो तो अल्लाह की रहमत मिलती रहे। इमाम जाफ़र अस-सादिक ने रिवायत किया है कि जो कोई भी हर शुक्रवार को दो रकअत की नमाज़ में सूरह इब्राहिम और सूरह हिज्र का पाठ करता है, वह गरीबी, पागलपन और अचानक आए दुःख से बचा रहता है। अगर कोई बच्चा बार-बार बीमार पड़ता हो या उसको सोने में तकलीफ़ होती हो तो सूरह इब्राहिम को एक सफ़ेद कागज़ पर लिखकर ताबीज़ बना कर उस बच्चे को पहना देने से सारी परेशानी दूर होती है। यही नहीं सूरह इब्राहिम को सफ़ेद कपड़े के टुकड़े पर लिख कर बच्चे की बाँह पर बाँधने से दांत निकलने और दूध छुड़ाने के समय वह चिल्लाएगा नहीं। आइए, पढ़ें सूरह इब्राहिम को-
अलिफ़० लाम० रा०। यह किताब है जिसे हमने तुम्हारी तरफ़ नाज़िल किया है ताकि तुम लोगों को अंधेरों से निकाल कर उजाले की तरफ़ लाओ, उनके रब के हुक्म से ख़ुदाए अज़ीज़ (प्रभुत्वशाली) व हमीद (प्रशंसित) के रास्ते की तरफ़, उस अल्लाह की तरफ़ कि आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है सब उसी का है और मुंकिरों के लिए एक सख्त अजाब शदीद की तबाही है जो कि आख़िरत के मुक़ाबले में दुनिया की ज़िंदगी को पसंद करते हैं और अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं और उसमें कजी (टेढ़) निकालना चाहते हैं। ये लोग रास्ते से भटक कर दूर जा पड़े हैं। (1-3)
और हमने जो पैग़म्बर भी भेजा उसकी क़ौम की ज़बान में भेजा ताकि वह उनसे बयान कर दे फिर अल्लाह जिसे चाहता है भटका देता है और जिसे चाहता है हिदायत देता है। वह ज़बरदस्त है, हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। और हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ भेजा कि अपनी क़ौम को अंधेरों से निकाल कर उजाले में लाओ और उन्हें अल्लाह के दिनों की याद दिलाओ। बेशक उनके अंदर बड़ी निशानियां हैं हर उस शख्स के लिए जो सत्र और शुक्र करने वाला हो। और जब मूसा ने अपनी क्ौम से कहा कि अपने ऊपर अल्लाह के उस इनाम को याद करो जबकि उसने तुम्हें फ़िर२औन की क्रौम से छुड़ाया जो तुम्हें सख्त तकलीफ़ें पहुंचाते थे और वे तुम्हारे लड़कों को मार डालते थे और तुम्हारी औरतों को ज़िंदा रखते थे और इसमें तुम्हारे रब की तरफ़ से बड़ा इम्तेहान था। और जब तुम्हारे रब ने तुम्हें आगाह कर दिया कि अगर तुम शुक्र करोगे तो मैं तुम्हें ज़्यादा दूंगा। और अगर तुम नाशुक्री करोगे तो मेरा अज़ाब बड़ा सख्त है। और मूसा ने कहा कि अगर तुम इंकार करो और ज़मीन के सारे लोग भी मुंकिर हो जाएं तो अल्लाह बेपरवा है, ख़ूबियों वाला है। (4-8)
क्या तुम्हें उन लोगों की ख़बर नहीं पहुंची जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं- क़ौमे नूह और आद और समूद और जो लोग इनके बाद हुए हैं, जिन्हें ख़ुदा के सिवा कोई नहीं जानता। उनके पैग़म्बर उनके पास दलाइल (स्पष्ट प्रमाण) लेकर आए तो उन्होंने अपने हाथ उनके मुंह में दे दिए और कहा कि जो तुम्हें देकर भेजा गया है, हम उसे नहीं मानते और जिस चीज़ की तरफ़ तुम हमें बुलाते हो हम उसके बारे में सख़्त उलझन वाले शक में पड़े हुए हैं। (9)
उनके पैग़म्बरों ने कहा, क्या ख़ुदा के बारे में शक है जो आसमानों और ज़मीन को वजूद में लाने वाला है। वह तुम्हें बुला रहा है कि तुम्हारे गुनाह माफ़ कर दे और तुम्हें एक मुक़र्रर मुदुदत तक मोहलत दे। उन्होंने कहा कि तुम इसके सिवा कुछ नहीं कि हमारे जैसे एक आदमी हो। तुम चाहते हो कि हमें उन चीज़ों की इबादत से रोक दो जिनकी इबादत हमारे बाप दादा करते थे। तुम हमारे सामने कोई खुली सनद ले आओ। (10)
उनके रसूलों ने उनसे कहा, हम इसके सिवा कुछ नहीं कि तुम्हारे ही जैसे इंसान हैं मगर अल्लाह अपने बंदों में से जिस पर चाहता है अपना इनाम फ़रमाता है और यह हमारे इख़्तियार में नहीं कि हम तुम्हें कोई मोजिज़ा (चमत्कार) दिखाएं बगैर ख़ुदा के हुक्म के। और ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए। और हम क्यों न अल्लाह पर भरोसा करें जबकि उसने हमें हमारे रास्ते बताए। और जो तकलीफ़ तुम हमें दोगे हम उस पर सब्र करेंगे। और भरोसा करने वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए। और इंकार करने वालों ने अपने पैग़म्बरों से कहा कि या तो हम तुम्हें अपनी ज़मीन से निकाल देंगे या तुम्हें तुम्हारी मिल्लत में वापस आना होगा। तो पैग़म्बरों के रब ने उन पर वही! (ईश्वरीय वाणी) भेजी कि हम इन ज़ालिमों को हलाक कर देंगे। और उनके बाद तुम्हें ज़मीन पर बसाएंगे। यह उस शख्स के लिए है जो मेरे सामने खड़ा होने से डरे और जो मेरी वईद (चेतावनी) से डरे। और उन्होंने फ़ैसला चाहा और हर सरकश, ज़िदूदी नामुराद हुआ। उसके आगे दोज़ख़ है और उसे पीप का पानी पीने को मिलेगा वह उसे घूंट-घूंट पिएणा और उसे हलक़ से मुश्किल से उतार सकेगा। मौत हर तरफ़ से उस पर छाई हुई होगी। मगर वह किसी तरह नहीं मरेगा और उसके आगे सख्त अज़ाब होगा। (11-17)
जिन लोगों ने अपने रब का इंकार किया उनके आमाल उस राख की तरह हैं जिसे एक तूफ़ानी दिन की आंधी ने उड़ा दिया हो। वे अपने किए में से कुछ भी न पा सकेंगे। यही दूर की गुमराही है। क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को बिल्कुल ठीक-ठीक पैदा किया है। अगर वह चाहे तो तुम लोगों को ले जाए और एक नई मख्लूक़ ले आए। और यह ख़ुदा पर कुछ दुश्वार भी नहीं। और ख़ुदा के सामने सब पेश होंगे। फिर कमज़ोर लोग उन लोगों से कहेंगे जो बड़ाई वाले थे, हम तुम्हारे ताबेअ (अधीन) थे तो क्या तुम अल्लाह के अज़ाब से कुछ हमें बचाओगे। वे कहेंगे कि अगर अल्लाह हमें कोई राह दिखाता तो हम तुम्हें भी ज़रूर वह राह दिखा देते। अब हमारे लिए यकसां (समान) है कि हम बेक़रार हों या सब्र करें, हमारे बचने की कोई सूरत नहीं। (18-21)
और जब मामले का फ़ैसला हो जाएगा तो शैतान कहेगा कि अल्लाह ने तुमसे सच्चा वादा किया था और मैंने तुमसे वादा किया तो मैंने उसकी ख़िलाफ़वर्ज़ी की। और मेरा तुम्हारे ऊपर कोई ज़ोर न था। मगर यह कि मैंने तुम्हें बुलाया तो तुमने मेरी बात को मान लिया पस तुम मुझे इल्ज़ाम न दो, और तुम अपने आपको इल्ज़ाम दो। न मैं तुम्हारा मददगार हो सकता हूं और न तुम मेरे मददगार हो सकते हो। मैं ख़ुद इससे बेज़ार हूं कि तुम इससे पहले मुझे शरीक ठहराते थे। बेशक ज़ालिमों के लिए दर्दनाक अज़ाब है। (22)
और जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने नेक अमल किए वे ऐसे बाजों में दाखिल किए जाएंगे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। उनमें वे अपने रब के हुक्म से हमेशा रहेंगे। उसमें उनकी मुलाक़ात एक दूसरे पर सलामती होगी। क्या तुमने नहीं देखा, किस तरह मिसाल बयान फ़रमाई अल्लाह ने कलिमा-ए-तस्यिबा (शुभ बात) की। वह एक पाकीज़ा दरख़्त की मानिंद है जिसकी जड़ ज़मीन में जमी हुई है। और जिसकी शाख़ें आसमान तक पहुंची हुई हैं। वह हर वक़्त पर अपना फल देता है अपने रब के हुक्म से और अल्लाह लोगों के लिए मिसाल बयान करता है ताकि वे नसीहत हासिल करें। और कलिमा-ए-ख़बीसा (अशुभ बात) की मिसाल एक ख़राब दरख़्त की है जो ज़मीन के ऊपर ही से उखाड़ लिया जाए। उसे कोई सबात (दृढ़ता) न हो। अल्लाह ईमान वालों को एक पक्की बात से दुनिया और आख़िरत (परलोक) में मज़बूत करता है। और अल्लाह ज़ालिमों को भटका देता है। और अल्लाह करता है जो वह चाहता है। क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने अल्लाह की नेमत के बदले कुफ़ किया और जिन्होंने अपनी क़ौम को हलाकत के घर में पहुंचा दिया, वे उसमें दाख़िल होंगे और वह कैसा बुरा ठिकाना है। और उन्होंने अल्लाह के मुक़ाबिल ठहराए ताकि वे लोगों को अल्लाह के रास्ते से भटका दें। कहो कि चन्द दिन फ़ायदा उठा लो, आख़िरकार तुम्हारा ठिकाना दोज़ख़ है। मेरे जो बंदे ईमान लाए हैं उनसे कह दो कि वे नमाज़ क़ायम करें और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से खुले और छुपे ख़र्च करें इससे पहले कि वह दिन आए जिसमें न ख़रीद व फ़रोख़्त होगी और न दोस्ती काम आएगी। (23-31)
अल्लाह वह है जिसने आसमान और ज़मीन बनाए और आसमान से पानी उतारा। फिर उससे मुख़्तलिफ़ फल निकाले तुम्हारी रोज़ी के लिए और कश्ती को तुम्हारे लिए मुसख़ूबर (अधीनस्थ) कर दिया कि समुद्र में उसके हुक्म से चले और उसने दरियाओं को तुम्हारे लिए मुसख़्खर किया। और उसने सूरज और चांद को तुम्हारे लिए मुसख्ख़र कर दिया कि बराबर चले जा रहे हैं और उसने रात और दिन को तुम्हारे लिए मुसख़्वर कर दिया। और उसने तुम्हें हर चीज़ में से दिया जो तुमने मांगा। अगर तुम अल्लाह की नेमतों को गिनो तो तुम गिन नहीं सकते। बेशक इंसान बहुत बेइंसाफ़ और बड़ा नाशुक्रा है। (32-34)
और जब इब्राहीम ने कहा, ऐ मेरे रब, इस शहर को अम्न वाला बना। और मुझे और मेरी औलाद को इससे दूर रख कि हम बुतों की इबादत करें। ऐ मेरे रब इन बुतों ने बहुत लोगों को गुमराह कर दिया। पस जिसने मेरी पैरवी की वह मेरा है। और जिसने मेरा कहा न माना तो तू बख्शने वाला मेहरबान है। (35-36)
ऐ हमारे रब, मैंने अपनी औलाद को एक बेखेती की वादी में तेरे मोहतरम घर के पास बसाया है। ऐ हमारे रब ताकि वे नमाज़ क़ायम करें। पस तू लोगों के दिल उनकी तरफ़ मायल कर दे और उन्हें फलों की रोज़ी अता फ़रमा। ताकि वे शुक्र करें। ऐ हमारे रब, तू जानता है जो कुछ हम छुपाते हैं और जो कुछ हम ज़ाहिर करते हैं। और अल्लाह से कोई चीज़ छुपी नहीं, न ज़मीन में और न आसमान में। शुक्र है उस ख़ुदा का जिसने मुझे बुढ़ापे में इस्माईल और इस्हाक़ दिए। बेशक मेरा रब दुआ का सुनने वाला है। ऐ मेरे रब, मुझे नमाज़ क्ायम करने वाला बना। और मेरी औलाद में भी। ऐ मेरे रब मेरी दुआ क़ुबूल कर। ऐ हमारे रब, मुझे माफ़ फ़रमा और मेरे वालिदेन को और मोमिनीन को, उस रोज़ जबकि हिसाब क़ायम होगा। और हरगिज़ मत ख़्याल करो कि अल्लाह इससे बेख़बर है जो ज़ालिम लोग कर रहे हैं। वह उन्हें उस दिन के लिए ढील दे रहा है जिस दिन आंखें पथरा जाएंगी। वे सिर उठाए हुए भाग रहे होंगे। उनकी नज़र उनकी तरफ़ हटकर न आएगी और उनके दिल बदहवास होंगे। और लोगों को उस दिन से डरा दो जिस दिन उन पर अज़ाब आ जाएगा। उस वक़्त ज़ालिम लोग कहेंगे कि ऐ हमारे रब, हमें थोड़ी मोहलत और दे दे, हम तेरी दावत (आह्वान) क्रुबूल कर लेंगे और रसूलों की पैरवी करेंगे। क्या तुमने इससे पहले क़समें नहीं खाई थीं कि तुम पर कुछ ज़वाल (पतन) आना नहीं है। और तुम उन लोगों की बस्तियों में आबाद थे जिन्होंने अपने जानों पर ज़ुल्म किया। और तुम पर खुल चुका था कि हमने उनके साथ क्या किया। और हमने तुमसे मिसालें बयान कीं। और उन्होंने अपनी सारी तदबीरें (युक्तियां) कीं और उनकी तदबीरें अल्लाह के सामने थीं। अगरचे उनकी तदबीरें ऐसी थीं कि उनसे पहाड़ भी टल जाएं। (37-46)
पस तुम अल्लाह को अपने पैग़म्बरों से वादाख़िलाफ़ी करने वाला न समझो। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त है, बदला लेने वाला है। जिस दिन यह ज़मीन दूसरी ज़मीन में से बदल जाएगी और आसमान भी | और सब एक ज़बरदस्त अल्लाह के सामने पेश होंगे। और तुम उस दिन मुजरिमों को ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ देखोगे। उनके लिबास तारकोल के होंगे। और उनके चेहरों पर आग छाई हुई होगी ताकि अल्लाह हर शख्स को उसके किए का बदला दे। बेशक अल्लाह जल्द हिसाब लेने वाला है। यह लोगों के लिए एक एलान है और ताकि इसके ज़रिए से वे डरा दिए जाएं। और ताकि वे जान लें कि वही एक माबूद (पूज्य) है और ताकि दानिशमंद (प्रबुद्ध) लोग नसीहत हासिल करें। (47-52)