धर्म

सूरह अल कहफ़ की हिंदी में – सूरह 18

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

तारीफ़ अल्लाह के लिए है जिसने अपने बंदे पर किताब उतारी। और उसमें कोई कजी (टेढ़) नहीं रखी। बिल्कुल ठीक, ताकि वह अल्लाह की तरफ़ से एक सख्त अज़ाब से आगाह कर दे। और ईमान वालों को ख़ुशख़बरी दे दे जो नेक आमाल करते हैं कि उनके लिए अच्छा बदला है। वे उसमें हमेशा रहेंगे। और उन लोगों को डरा दे जो कहते हैं कि अल्लाह ने बेटा बनाया है। उन्हें इस बात का कोई इल्म नहीं और न उनके बाप दादा को। यह बड़ी भारी बात है जो उनके मुंह से निकल रही है, वे सिर्फ़ झूठ कहते हैं। (1-5)

शायद तुम उनके पीछे ग़म से अपने को हलाक कर डालोगे, अगर वे इस बात पर ईमान न लाएं। जो कुछ ज़मीन पर है उसे हमने ज़मीन की रौनक़ बनाया है ताकि हम लोगों को जांचें कि उनमें कौन अच्छा अमल करने वाला है और हम ज़मीन की तमाम चीज़ों को एक साफ़ मैदान बना देंगे। (6-8)

क्या तुम ख्याल करते हो कि कहफ़ और रक़ीम वाले हमारी निशानियों में से बहुत अजीब निशानी थे। जब उन नौजवानों ने ग़ार मे पनाह ली, फिर उन्होंने कहा कि ऐ हमारे रब हमें अपने पास से रहमत दे और हमारे मामले को दुरुस्त कर दे। पस हमने ग़ार में उनके कानों पर सालहा साल (दीर्घ काल) के लिए (नींद का पर्दा) डाल दिया। फिर हमने उन्हें उठाया ताकि हम मालूम करें कि दोनों गिरोहों में से कौन टहरने की मुदृदत का ज़्यादा ठीक शुमार करता है। (9-2)

हम तुम्हें उनका असल क़्िस्सा सुनाते हैं। वे कुछ नौजवान थे जो अपने रब पर ईमान लाए और हमने उनकी हिदायत में मज़ीद तरक़्क़ी दी और हमने उनके दिलों को मज़बूत कर दिया जबकि वे उठे और कहा कि हमारा रब वही है जो आसमानों और ज़मीन का रब है। हम उसके सिवा किसी दूसरे माबूद (पूज्य) को न पुकारेंगे। अगर हम ऐसा करेंगे तो हम बहुत बेजा बात करेंगे। ये हमारी क़ौम के लोगों ने उसके सिवा दूसरे माबूद बना रखे हैं। ये उनके हक़ में वाज़ेह दलील क्यों नहीं लाते। फिर उस शख्स से बड़ा ज़ालिम और कौन होगा जो अल्लाह पर झूठ बांधे। (13-15)

और जब तुम उन लोगों से अलग हो गए हो और उनके माबूदों से जिनकी वे ख़ुदा के सिवा इबादत करते हैं तो अब चलकर ग़ार में पनाह लो, तुम्हारा रब तुम्हारे ऊपर अपनी रहमत फैलाएगा | और तुम्हारे काम के लिए सरोसामान मुहस्या करेगा। (16)

और तुम सूरज को देखते कि जब वह तुलूअ (उदय) होता है तो उनके ग़ार से दाई जानिब को बचा रहता है और जब डूबता है तो उनसे बाईं जानिब को कतरा जाता है और वे ग़ार के अंदर एक वसीअ (विस्तृत) जगह में हैं। यह अल्लाह की निशानियों में से है जिसे अल्लाह हिदायत दे वही हिदायत पाने वाला है और जिसे अल्लाह बेराह कर दे तो तुम उसके लिए कोई मददगार राह बताने वाला न पाओगे। (17)

और तुम उन्हें देखकर यह समझे कि वे जाग रहे हैं, हालांकि वे सो रहे थे। हम उन्हें दाएं और बाएं करवट बदलवाते रहते थे। और उनका कुत्ता ग़ार के दहाने पर दोनों हाथ फैलाए बैठा था। अगर तुम उन्हें झांक कर देखते तो उनसे पीठ फेर कर भाग खड़े होते और तुम्हारे अंदर उनकी दहशत बैठ जाती। (18)

और इसी तरह हमने उन्हें जगाया ताकि वे आपस में पूछ गछ करें। उनमें से एक कहने वाले ने कहा, तुम कितनी देर यहां ठहरे। उन्होंने कहा कि हम एक दिन या एक दिन से भी कम ठहरे होंगे। वे बोले कि अल्लाह ही बेहतर जानता है कि तुम कितनी देर यहां रहे। पस अपने में से किसी को यह चांदी का सिक्का देकर शहर भेजो, पस वह देखे कि पाकीज़ा खाना कहां मिलता है, और तुम्हारे लिए इसमें से कुछ खाना लाए। और वह नर्मी से जाए और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे। अगर वे तुम्हारी ख़बर पा जाएंगे तो तुम्हें पत्थरों से मार डालेंगे या तुम्हें अपने दीन में लौटा लेंगे और फिर तुम कभी फ़लाह न पाओगे। (19-20)

और इस तरह हमने उन पर लोगों को मुतलअ (सूचित) कर दिया ताकि लोग जान लें कि अल्लाह का वादा सच्चा है और यह कि क्रियामत में कोई शक नहीं। जब लोग आपस में उनके मामले में झगड़ रहे थे। फिर कहने लगे कि उनके ग़ार पर एक इमारत बना दो। उनका रब उन्हें ख़ूब जानता है। जो लोग उनके मामले में ग़ालिब आए उन्होंने कहा कि हम उनके ग़ार पर एक इबादतगाह बनाएंगे। (21)

कुछ लोग कहेंगे कि वे तीन थे, और चौथा उनका कुत्ता था। और कुछ लोग कहेंगे कि वे पांच थे और छठा उनका कुत्ता था, ये लोग बेतहक़ीक़ बात कह रहे हैं, और कुछ लोग कहेंगे कि वे सात थे और आठवां उनका कुत्ता था। कहो कि मेरा रब बेहतर जानता है कि वे कितने थे। थोड़े ही लोग उन्हें जानते हैं। पस तुम सरसरी बात से ज़्यादा उनके मामले में बहस न करो और न उनके बारे में उनमें से किसी से पूछो। (22)

और तुम किसी काम के बारे में यूं न कहो कि मैं इसे कल कर दूंगा, मगर यह कि अल्लाह चाहे। और जब तुम भूल जाओ तो अपने रब को याद करो। और कहो कि उम्मीद है कि मेरा रब मुझे भलाई की इससे ज़्यादा क़रीब राह दिखा दे। (23-24)

और वे लोग अपने ग़ार में तीन सौ साल रहे (कुछ लोग मुदृदत की शुमार में) 9 साल और बढ़ गए हैं, कहो कि अल्लाह उनके रहने की मुद्दत को ज़्यादा जानता है। आसमानों और ज़मीन का गैब उसके इल्म में है, क्या ख़ूब है वह देखने वाला और सुनने वाला। ख़ुदा के सिवा उनका कोई मददगार नहीं और न अल्लाह किसी को अपने इख़्तियार में शरीक करता है। (25-26)

और तुम्हारे रब की जो किताब तुम पर “वही” (प्रकाशना) की जा रही है उसे सुनाओ, ख़ुदा की बातों को कोई बदलने वाला नहीं। और उसके सिवा तुम कोई पनाह नहीं पा सकते। और अपने आपको उन लोगों के साथ जमाए रखो जो सुबह व शाम अपने रब को पुकारते हैं, वे उसकी रिज़ा (प्रसन्‍नता) के तालिब हैं। और तुम्हारी आंखे हयाते दुनिया की रौनक़ की ख़ातिर उनसे हटने न पाएं। और तुम ऐसे शख्स का कहना न मानो जिसके क़ल्ब (हृदय) को हमने अपनी याद से ग़ाफ़िल कर दिया। और वह अपनी ख़्वाहिश पर चलता है। और उसका मामला हद से गुज़र गया है। (27-28)

और कहो कि यह हक़ (सत्य) है तुम्हारे रब की तरफ़ से, पस जो शख्स चाहे इसे माने और जो शख्स चाहे न माने। हमने ज़ालिमों के लिए ऐसी आग तैयार कर रखी है जिसकी क़नातें उन्हें अपने घेरे में ले लेंगी। और अगर वे पानी के लिए फ़रयाद करेंगे तो उनकी फ़रयादरसी ऐसे पानी से की जाएगी जो तेल की तलछट की तरह होगा। वह चेहरों को भून डालेगा। क्‍या बुरा पानी होगा और कैसा बुरा ठिकाना। (29)

बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे काम किए तो हम ऐसे लोगों का अज्र (प्रतिफल) ज़ाया नहीं करेंगे जो अच्छी तरह काम करें। उनके लिए हमेशा रहने वाले बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बहती होंगी वहां उन्हें सोने के कंगन पहनाए जाएंगे। और वे बारीक और दबीज़ (गाढ़े) रेशम के सब्ज़ कपड़े पहनेंगे, तख़्तों पर टेक लगाए हुए। कैसा अच्छा बदला है और कैसी अच्छी जगह। (30-31)

तुम उनके सामने एक मिसाल पेश करो। दो शख्स थे। उनमें से एक को हमने अंगूरों के दो बाग़ दिए। और उनके गिर्द खजूर के दरख़्तों का इहाता बनाया और दोनों के दर्मियान खेती रख दी। दोनों बाग़ अपना पूरा फल लाए, उनमें कुछ कमी नहीं की। और दोनों बाग़ों के बीच हमने नहर जारी कर दी और उसे ख़ूब फल मिला तो उसने अपने साथी से बात करते हुए कहा कि मैं तुझसे माल में ज़्यादा हूं और तादाद में भी ज़्यादा ताक़तवर हूं। वह अपने बाग़ में दाखिल हुआ और वह अपने आप पर ज़ुल्म कर रहा था। उसने कहा कि मैं नहीं समझता कि यह कभी बर्बाद हो जाएगा। और मैं नहीं समझता कि क्रियामत कभी आएगी। और अगर मैं अपने रब की तरफ़ लौटा दिया गया तो ज़रूर इससे ज़्यादा अच्छी जगह मुझे मिलेगी। (32-36)

उसके साथी ने बात करते हुए कहा-क्या तुम उस ज़ात से इंकार कर रहे हो जिसने तुम्हें मिट्टी से बनाया, फिर पानी की एक बूंद से। फिर तुम्हें पूरा आदमी बना दिया। लेकिन मेरा रब तो वही अल्लाह है और मैं अपने रब के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराता। और जब तुम अपने बाग़ में दाख़िल हुए तो तुमने क्‍यों न कहा कि जो अल्लाह चाहता है वही होता है, अल्लाह के बगैर किसी में कोई क़ुव्वत (शक्ति) नहीं। अगर तुम देखते हो कि मैं माल और औलाद में तुमसे कम हूं तो उम्मीद है कि मेरा रब मुझे तुम्हारे बाग़ से बेहतर बाग़ दे दे। और तुम्हारे बाग़ पर आसमान से कोई आफ़त भेज दे जिससे वह बाग़ साफ़ मैदान होकर रह जाए या उसका पानी ख़ुश्क हो जाए, फिर तुम उसे किसी तरह न पा सको। (37-41)

और उसके फल पर आफ़त आई तो जो कुछ उसने उस पर खर्च किया था उस पर वह हाथ मलता रह गया। और वह बाग़ अपनी टंट्टियों पर गिरा हुआ पड़ा था। और वह कहने लगा कि ऐ काश मैं अपने रब के साथ किसी को शरीक न ठहराता। और उसके पास कोई जत्था न था जो ख़ुदा के सिवा उसकी मदद करता और न वह ख़ुद बदला लेने वाला बन सका। यहां सारा इख्तियार सिर्फ़ ख़ुदाए बरहक़ का है। वह बेहतरीन अज़ (प्रतिफल) और बेहतरीन अंजाम वाला है। (42-44)

और उन्हें दुनिया की ज़िंदगी की मिसाल सुनाओ। जैसे कि पानी जिसे हमने आसमान से उतारा। फिर उससे ज़मीन की नबातात (पौध) खूब घनी हो गईं। फिर वे रेज़ा-रेज़ा हो गईं जिसे हवाएं उड़ाती फिरती हैं। और अल्लाह हर चीज़ पर कुदरत रखने वाला है। माल और औलाद दुनियावी ज़िंदगी की रौनक़ हैं। और बाक़ी रहने वाली नेकियां तुम्हारे रब के नज़दीक सवाब के एतबार से बेहतर हैं। (45-46)

और जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएंगे। और तुम देखोगे ज़मीन को बिल्कुल खुली हुई। और हम उन सबको जमा करेंगे। फिर हम उनमें से किसी को न छोड़ेंगे। और सब लोग तेरे रब के सामने सफ़ बांधकर पेश किए जाएंगे। तुम हमारे पास आ गए जिस तरह हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था, बल्कि तुमने यह गुमान किया कि हम तुम्हारे लिए कोई वादे का वक़्त मुक़र्रर नहीं करेंगे। (47-48)

और रजिस्टर रखा जाएगा तो तुम मुजरिमों को देखोगे कि उसमें जो कुछ है वे उससे डरते होंगे और कहेंगे कि हाय ख़राबी। कैसी है यह किताब कि इसने न कोई छोटी बात दर्ज करने से छोड़ी है और न कोई बड़ी बात। और जो कुछ उन्होंने किया है वह सब सामने पाएंगे। और तेरा रब किसी के ऊपर ज़ुल्म न करेगा। (49)

और जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सज्दा करो तो उन्होंने सज्दा किया मगर इब्लीस (शैतान) ने न किया, वह जिन्‍्नों में से था। पस उसने अपने रब के हुक्म की नाफ़रमानी की। अब क्‍या तुम उसे और उसकी औलाद को मेरे सिवा अपना दोस्त बनाते हो हालांकि वे तुम्हारे दुश्मन हैं। यह ज़ालिमों के लिए बहुत बुरा बदल है। (50)

मैंने उन्हें न आसमानों और ज़मीन पैदा करने के वक़्त बुलाया। और न ख़ुद उनके पैदा करने के वक़्त बुलाया। और मैं ऐसा नहीं कि गुमराह करने वालों को अपना मददगार बनाऊं। (51)

और जिस दिन ख़ुदा कहेगा कि जिन्हें तुम मेरा शरीक समझते थे उन्हें पुकारो। पस वे उन्हें पुकारेंगे मगर वे उन्हें कोई जवाब न देंगे। और हम उनके दर्मियान (अदावत की) आड़ कर देंगे। और मुजरिम लोग आग को देखेंगे और समझ लेंगे कि वे उसमें गिरने वाले हैं और वे उससे बचने की कोई राह न पाएंगे। (52-53)

और हमने इस कुरआन में लोगों की हिदायत के लिए हर क़िस्म की मिसाल बयान की है और इंसान सबसे ज़्यादा झगड़ालू है। और लोगों को बाद इसके कि उन्हें हिदायत पहुंच चुकी, ईमान लाने से और अपने रब से बस्शिश मांगने से नहीं रोका मगर उस चीज़ ने कि अगलों का मामला उनके लिए भी ज़ाहिर हो जाए, या अज़ाब उनके सामने आ खड़ा हो। (54-55)

और रसूलों को हम सिर्फ़ ख़ुशख़बरी देने वाला और डराने वाला बनाकर भेजते हैं, और मुंकिर लोग नाहक़ की बातें लेकर झूठा झगड़ा करते हैं ताकि इसके ज़रिए से हक़ को नीचा कर दें और उन्होंने मेरी निशानियों को और जो डर सुनाए गए उन्हें मज़ाक़ बना दिया। उससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जिसे उसके रब की आयतों के ज़रिए याददिहानी की जाए तो वह उससे मुंह फेर ले और अपने हाथों के अमल को भूल जाए। हमने उनके दिलों पर पर्दे डाल दिए हैं कि वे उसे न समझें और उनके कानों में डाट है। और अगर तुम उन्हें हिदायत की तरफ़ बुलाओ तो वे कभी राह पर आने वाले नहीं हैं। (56-57)

और तुम्हारा रब बख्शने वाला, रहमत वाला है। अगर वह उनके किए पर उन्हें पकड़े तो फ़ौरन उन पर अज़ाब भेज दे, मगर उनके लिए एक मुक़र्रर वक़्त है और वे उसके मुक़ाबले में कोई पनाह की जगह न पाएंगे। और ये बस्तियां हैं जिन्हें हमने हलाक कर दिया जबकि वे ज़ालिम हो गए। और हमने उनकी हलाकत का एक वक़्त मुक़र्रर किया था। (58-59)

और जब मूसा ने अपने शागिर्द से कहा कि मैं चलता रहूंगा यहां तक कि या तो दो दरियाओं के मिलने की जगह पर पहुंच जाऊं या इसी तरह वर्षों तक चलता रहूं। पस जब वे दरियाओं के मिलने की जगह पहुंचे तो वे अपनी मछली को भूल गए। और मछली ने दरिया में अपनी राह ली। फिर जब वे आगे बढ़े तो मूसा ने अपने शागिर्द से कहा कि हमारा खाना लाओ, हमारे इस सफ़र से हमें बड़ी थकान हो गई। (60-62)

शागिर्द ने कहा, क्या आपने देखा, जब हम उस पत्थर के पास ठहरे थे तो मैं मछली को भूल गया। और मुझे शैतान ने भुला दिया कि मैं उसका ज़िक्र करता। और मछली अजीब तरीक़े से निकल कर दरिया में चली गई। मूसा ने कहा, उसी मौक़े की तो हमें तलाश थी। पस दोनों अपने क़दमों के निशान देखते हुए वापस लौटे। तो उन्होंने वहां हमारे बंदों में से एक बंदे को पाया जिसे हमने अपने पास से रहमत दी थी और जिसे अपने पास से एक इल्म सिखाया था। (63-65)

मूसा ने उससे कहा, कया मैं आपके साथ रह सकता हूं ताकि आप मुझे उस इल्म में से सिखा दें जो आपको सिखाया गया है। उसने कहा कि तुम मेरे साथ सब्र नहीं कर सकते और तुम उस चीज़ पर कैसे सब्र कर सकते हो जो तुम्हारी वाक़फ़ियत (जानकारी) के दायरे से बाहर है। मूसा ने कहा, इंशाअल्लाह आप मुझे सब्र करने वाला पाएंगे और मैं किसी बात में आपकी नाफ़रमानी नहीं करूंगा। उसने कहा कि अगर तुम मेरे साथ चलते हो तो मुझसे कोई बात न पूछना जब तक कि मैं ख़ुद तुमसे उसका ज़िक्र न करूं। (66-70)

फिर दोनों चले। यहां तक कि जब वे कश्ती में सवार हुए तो उस शख्स ने कश्ती में छेद कर दिया। मूसा ने कहा, क्या आपने इस कश्ती में इसलिए छेद किया है कि कश्ती वालों को ग़र्क़ कर दें। यह तो आपने बड़ी सख्त चीज़ कर डाली। उसने कहा, मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम मेरे साथ सब्र न कर सकोगे। मूसा ने कहा, मेरी भूल पर मुझे न पकड़िए और मेरे मामले में सख्ती से काम न लीजिए। फिर वे दोनों चले यहां तक कि वे एक लड़के से मिले तो उस शख्स ने उसे मार डाला। मूसा ने कहा, क्या आपने एक मासूम जान को मार डाला हालांकि उसने किसी का ख़ून नहीं किया था। यह तो आपने एक नामाक़ूल बात की है। (71-74)

उस शख्स ने कहा कि क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम मेरे साथ सत्र न कर सकोगे। मूसा ने कहा कि इसके बाद अगर मैं आपसे किसी चीज़ के मुतअल्लिक़ पूछूं तो आप मुझे साथ न रखें। आप मेरी तरफ़ से उज़ की हद को पहुंच गए। फिर दोनों चले। यहां तक कि जब वे एक बस्ती वालों के पास पहुंचे तो वहां वालों से खाने को मांगा। उन्होंने उनकी मेज़बानी से इंकार कर दिया। फिर उन्हें वहां एक दीवार मित्री जो गिरा चाहती थी तो उसने उसे सीधा कर दिया। मूसा ने कहा अगर आप चाहते तो इस पर कुछ उजरत (मेहनताना) ले लेते। उसने कहा कि अब यह मेरे और तुम्हारे दर्मियान जुदाई है। मैं तुम्हें उन चीज़ों की हक़ीक़त बताऊंगा जिन पर तुम सब्र न कर सके। (75-78)

कश्ती का मामला यह है कि वह चन्द मिस्कीनों की थी जो दरिया में मेहनत करते थे। तो मैंने चाहा कि उसे ऐबदार कर दूं, और उनके आगे एक बादशाह था जो हर कश्ती को ज़बरदस्ती छीन कर ले लेता था। (79)

और लड़के का मामला यह है कि उसके मां-बाप ईमानदार थे। हमें अंदेशा हुआ कि वह बड़ा होकर अपनी सरकशी और नाफ़रमानी से उन्हें तंग करेगा। पस हमने चाहा कि उनका रब उन्हें उसकी जगह ऐसी औलाद दे जो पाकीज़गी में उससे बेहतर हो और श्ञफ़क़त करने वाली हो। (80-81)

और दीवार का मामला यह है कि वह शहर के दो यतीम लड़कों की थी। और उस दीवार के नीचे उनका एक ख़ज़ाना दफ़्न था और उनका बाप एक नेक आदमी था पस तुम्हारे रब ने चाहा कि वे दोनों अपनी जवानी की उम्र को पहुंचें और अपना खज़ाना निकालें। यह तुम्हारे रब की रहमत से हुआ। और मैंने उसे अपनी राय से नहीं किया। यह है हक़ीक़त उन बातों की जिन पर तुम सब्र न कर सके। (82)

और वे तुमसे ज़ुलक़रनैन का हाल पूछते हैं। कहो कि मैं उसका कुछ हाल तुम्हारे सामने बयान करूंगा। हमने उसे ज़मीन में इक़्तेदार (शासन) दिया था। और हमने उसे हर चीज़ का सामान दिया था। (83-84)

फिर ज़ुलक़रनैन एक राह के पीछे चला। यहां तक कि वह सूरज के ग़ुरूब होने के मक़ाम तक पहुंच गया। उसने सूरज को देखा कि वह एक काले पानी में डूब रहा है और वहां उसे एक क़ौम मिली। हमने कहा कि ऐ ज़ुलक़रनैन तुम चाहो तो उन्हें सज़ा दो और चाहो तो उनके साथ अच्छा सुलूक करो। उसने कहा कि जो उनमें से ज़ुल्म करेगा हम उसे सज़ा देंगे। फिर वह अपने रब के पास पहुंचाया जाएगा, फिर वह उसे सख्त सज़ा देगा। और जो शख्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा उसके लिए अच्छी जज़ा है और हम भी उसके साथ आसान मामला करेंगे। (85-88)

फिर वह एक राह पर चला। यहां तक कि जब वह सूरज निकलने की जगह पहुंचा तो उसने सूरज को एक ऐसी क़ौम पर उगते हुए पाया जिनके लिए हमने सूरज के ऊपर कोई आड़ नहीं रखी थी। यह इसी तरह है। और हम ज़ुलक़रनैन के अहवाल (हालात) से बाख़बर हैं। (89-91)

फिर वह एक राह पर चला। यहां तक कि जब वह दो पहाड़ों के दर्मियान पहुंचा तो उनके पास उसने एक क्रौम को पाया जो कोई बात समझ नहीं पाती थी। उन्होंने कहा कि ऐ ज़ुलक़रनैन, याजूज और माजूज हमारे मुल्क में फ़साद फैलाते हैं तो क्या हम तुम्हें कोई महसूल (शुल्क) इसके लिए मुक़र्रर कर दें कि तुम हमारे और उनके दर्मियान कोई रोक बना दो। (92-94)

ज़ुलक़रनैन ने जवाब दिया कि जो कुछ मेरे रब ने मुझे दिया है वह बहुत है। तुम महनत से मेरी मदद करो। मैं तुम्हारे और उनके दर्मियान एक दीवार बना दूंगा। तुम लोहे के तख़्ते लाकर मुझे दो। यहां तक कि जब उसने दोनों के दर्मियानी ख़ला (रिक्त स्थल) को भर दिया तो लोगों से कहा कि आग दहकाओ यहां तक कि जब उसे आग कर दिया तो कहा कि लाओ अब मैं उस पर पिघला हुआ तांबा डाल दूं। पस याजूज व माजूज न उस पर चढ़ सकते थे और न उसमें सुराख़ कर सकते थे। ज़ुलक़रनैन ने कहा कि यह मेरे रब की रहमत है। फिर जब मेरे रब का वादा आएगा तो वह उसे ढाकर बराबर कर देगा और मेरे रब का वादा सच्चा है। (95-98)

और उस दिन हम लोगों को छोड़ देंगे। वे मौजों की तरह एक दूसरे में घुसेंगे। और सूर फूंका जाएगा पस हम सबको एक साथ जमा करेंगे और उस दिन हम जहन्नम को मुंकिरों के सामने लाएंगे, जिनकी आंखों पर हमारी याददिहानी से पर्दा पड़ा रहा और वे कुछ सुनने के लिए तैयार न थे। (99-101)

क्या इंकार करने वाले यह समझते हैं कि वे मेरे सिवा मेरे बंदों को अपना कारसाज़ बनाएं। हमने मुंकिरों की महमानी के लिए जहन्नम तैयार कर रखी है। (102)

कहो क्या मैं तुम्हें बता दूं कि अपने आमाल के एतबार से सबसे ज़्यादा घाटे में कौन लोग हैं। वे लोग जिनकी कोशिश दुनिया की ज़िंदगी में अकारत हो गई और वे समझते रहे कि वे बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। यही लोग हैं जिन्होंने अपने रब की निशानियों का और उससे मिलने का इंकार किया। पस उनका किया हुआ बर्बाद हो गया। फिर क़रियामत के दिन हम उन्हें कोई वज़न न देंगे। यह जहन्नम उनका बदला है इसलिए कि उन्होंने इंकार किया और मेरी निशानियों और मेरे रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया। (103-106)

बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक अमल किया उनके लिए फ़िरदौस के बाग़ों की महमानी है। उसमें वे हमेशा रहेंगे। वहां से कभी निकलना न चाहेंगे। (107-108)

कहो कि अगर समुद्र मेरे रब की निशानियों को लिखने के लिए रोशनाई हो जाए तो समुद्र ख़त्म हो जाएगा इससे पहले कि मेरे रब की बातें ख़त्म हों, अगरचे हम उसके साथ उसी के मानिंद और समुद्र मिला दें। (109) 

कहो कि मैं तुम्हारी ही तरह एक आदमी हूं। मुझ पर “वही” (ईश्वरीय वाणी) आती है कि तुम्हारा माबूद (पूज्य) सिर्फ़ एक ही माबूद है। पस जिसे अपने रब से मिलने की उम्मीद हो उसे चाहिए कि नेक अमल करे और अपने रब की इबादत में किसी को शरीक न ठहराए। (110)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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