सूरह लुक़मान हिंदी में – सूरह 31
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
अलिफ़० लाम० मीम०। ये पुरहिक्मत (तत्वन्ञानपूर्ण) किताब की आयतें हैं, हिदायत और रहमत नेकी करने वालों के लिए | जो कि नमाज़ क़ायम करते हैं और ज़कात अदा करते हैं। और वे आख़िरत पर यकीन रखते हैं। ये लोग अपने रब के सीधे रास्ते पर हैं और यही लोग फ़लाह (कल्याण, सफलता) पाने वाले हैं। (1-5)
और लोगों में कोई ऐसा है जो उन बातों का ख़रीदार बनता है जो ग़ाफ़िल करने वाली हैं। ताकि अल्लाह की राह से गुमराह करे, बगैर किसी इल्म के। और उसकी हंसी उड़ाए। ऐसे लोगों के लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है। और जब उन्हें हमारी आयतें सुनाई जाती हैं तो वह तकब्बुर (घमंड) करता हुआ मुंह मोड़ लेता है, जैसे उसने सुना ही नहीं, जैसे उसके कानों में बहरापन है। तो उसे एक दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो। बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किया। उनके लिए नेमत के बाग़ हैं। उनमें वे हमेशा रहेंगे। यह अल्लाह का पुख्ता वादा है और वह ज़बरदस्त है हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (6-9)
अल्लाह ने आसमानों को पैदा किया, ऐसे सुतूनों (स्तंभों) के बगैर जो तुम्हें नज़र आएं। और उसने ज़मीन में पहाड़ रख दिए कि वे तुम्हें लेकर झुक न जाए। और उसमें हर क़रिस्म के जानदार फैला दिए। और हमने आसमान से पानी उतारा फिर ज़मीन में हर किस्म की उम्दा चीज़ें उगाईं। यह है अल्लाह की तख्लीक़, तो तुम मुझे दिखाओ कि उसके सिवा जो हैं उन्होंने क्या पैदा किया है। बल्कि ज़ालिम लोग खुली गुमराही में हैं। (10-11)
और हमने लुक़मान को हिक्मत (तत्वज्ञान) अता फ़रमाई कि अल्लाह का शुक्र करो। और जो शख्स शुक्र करेगा तो वह अपने ही लिए शुक्र करेगा और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बेनियाज़ (निस्पृष्ठ) है खूबियों वाला है। और जब लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा कि ऐ मेरे बेटे, अल्लाह के साथ शरीक न ठहराना, बेशक शिर्क बहुत बड़ा जुल्म है। (12-13)
और हमने इंसान को उसके मां-बाप के मामले में ताकीद की। उसकी मां ने दुख पर दुख उठाकर उसे पेट में रखा और दो वर्ष में उसका दूध छुड़ाना हुआ। कि तू मेरा शुक्र कर और अपने वालिदैन का। मेरी ही तरफ़ लौट कर आना है और अगर वे दोनों तुझ पर ज़ोर डालें कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को शरीक ठहराए जो तुझे मालूम नहीं तो उनकी बात न मानना। और दुनिया में उनके साथ नेक बर्ताव करना। और तुम उस शख्स के रास्ते की पैरवी करना जिसने मेरी तरफ़ रुजूअ किया है। फिर तुम सबको मेरे पास आना है। फिर मैं तुम्हें बता दूंगा जो कुछ तुम करते रहे। (14-15)
ऐ मेरे बेटे, कोई अमल अगर राई के दाने के बराबर हो फिर वह किसी पत्थर के अंदर हो या आसमानों में हो या ज़मीन में हो, अल्लाह उसे हाज़िर कर देगा। बेशक अल्लाह बारीकबीं है, बाख़बर है। ऐ मेरे बेटे नमाज़ क़ायम करो, अच्छे काम की नसीहत करो और बुराई से रोको और जो मुसीबत तुम्हें पहुंचे उस पर सब्र करो। बेशक यह हिम्मत के कामों में से है। और लोगों से बेरुख़ी न कर। और ज़मीन में अकड़ कर न चल। बेशक अल्लाह किसी अकड़ने वाले और फ़ख़ करने वाले को पसंद नहीं करता। और अपनी चाल में मियानारवी (शालीनता) इख़्तियार कर और अपनी आवाज़ को पस्त कर। बेशक सबसे बुरी आवाज़ गधे की आवाज़ है। (16-19)
क्या तुम नहीं देखते कि अल्लाह ने तुम्हारे काम में लगा दिया है जो कुछ आसमानों में है और जो ज़मीन में है। और उसने अपनी खुली और छुपी नेमतें तुम पर तमाम कर दीं। और लोगों में ऐसे भी हैं जो अल्लाह के बारे में झगड़ते हैं, किसी इल्म और किसी हिदायत और किसी रोशन किताब के बगैर। और जब उनसे कहा जाता है कि तुम पैरवी करो उस चीज़ की जो अल्लाह ने उतारी है तो वे कहते हैं कि नहीं, हम उस चीज़ की पैरवी करेंगे जिस पर हमने अपने बाप दादा को पाया है। क्या अगर शैतान उन्हें आग के अज़ाब की तरफ़ बुला रहा हो तब भी। (20-21)
और जो शख्स अपना रुख़ अल्लाह की तरफ़ झुका दे और वह नेक अमल करने वाला भी हो तो उसने मज़बूत रस्सी पकड़ ली। और अल्लाह ही की तरफ़ है तमाम मामलात का अंजामकार | और जिसने इंकार किया तो उसका इंकार तुम्हें ग़मगीन न करे। हमारी ही तरफ़ है उनकी वापसी। तो हम उन्हें बता देंगे जो कुछ उन्होंने किया। बेशक अल्लाह दिलों की बात से भी वाक़िफ़ है। उन्हें हम थोड़ी मुद्दत फ़ायदा देंगे। फिर उन्हें एक सख्त अज़ाब की तरफ़ खींच लाएंगे। (22-24)
और अगर तुम उनसे पूछो कि आसमानों और ज़मीन को किसने पैदा किया, तो वे ज़रूर कहेंगे कि अल्लाह ने। कहो कि सब तारीफ़ अल्लाह के लिए है, बल्कि उनमें से अक्सर नहीं जानते। अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और ज़मीन में। बेशक अल्लाह बेनियाज़ (निस्पृह) है, खूबियों वाला है। और अगर ज़मीन में जो दरख़्त हैं वे कलम बन जाएं और समुद्र, सात अतिरिक्त समुद्रों के साथ, रोशनाई बन जाएं, तब भी अल्लाह की बातें ख़त्म न हों। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त है, हिक््मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (25-27)
तुम सबका पैदा करना और ज़िंदा करना बस ऐसा ही है जैसा एक शख्स का। बेशक अल्लाह सुनने वाला देखने वाला है। कया तुमने नहीं देखा कि अल्लाह रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाख़िल करता है। और उसने सूरज और चांद को काम में लगा दिया है। हर एक चलता है एक मुक़र्रर वक़्त तक | और यह कि जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे बाख़बर है। यह इस वजह से है कि अल्लाह ही हक़ है। और उसके सिवा जिन चीज़ों को वे पुकारते हैं वे बातिल हैं और बेशक अल्लाह बरतर (सर्वोच्च) है, बड़ा है। (28-30)
क्या तुमने देखा नहीं कि कश्ती समुद्र में अल्लाह के फ़ज़्ल (अनुग्रह) से चलती है ताकि वह तुम्हें अपनी निशानियां दिखाए। बेशक इसमें निशानियां हैं हर सत्र करने वाले, शुक्र करने वाले के लिए। और जब मौत उनके सर पर बादल की तरह छा जाती है, वे अल्लाह को पुकारते हैं उसके लिए दीन को ख़ालिस करते हुए। फिर जब वह उन्हें नजात देकर ख़ुश्की की तरफ़ ले आता है तो उनमें कुछ एतदाल (संतुलित मार्ग) पर रहते हैं। और हमारी निशानियों का इंकार वही लोग करते हैं जो बदअहद (वचन तोड़ने वाले) और नाशुक्रगुज़ार हैं। (31-32)
ऐ लोगो अपने रब से डरो और उस दिन से डरो जबकि कोई बाप अपने बेटे की तरफ़ से बदला न देगा और न कोई बेटा अपने बाप की तरफ़ से कुछ बदला देने वाला होगा। बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है तो दुनिया की ज़िंदगी तुम्हें धोखे में न डाले न धोखेबाज़ तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखा देने पाए। बेशक अल्लाह ही को क्रियामत का इल्म है और वही बारिश बरसाता है और वह जानता है जो कुछ रहम (गर्भ) में है। और कोई शख्स नहीं जानता कि कल वह क्या कमाई करेगा। और कोई शख्स नहीं जानता कि वह किस ज़मीन में मरेगा। बेशक अल्लाह जानने वाला, बाख़बर है। (33-34)