सूरह अल मोमिनून हिंदी में – सूरह 23
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
यक़ीनन फ़लाह पाई ईमान वालों ने जो अपनी नमाज़ में झुकने वाले हैं और जो लग्व (घटिया, निरर्थक) बातों से बचते हैं। और जो ज़कात अदा करने वाले हैं और जो अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले हैं, सिवा अपनी बीवियों के और उन औरतों के जो उनके अधीन दासियां हों कि उन पर वे क़ाबिले मलामत नहीं। अलबत्ता जो इसके अलावा चाहें तो वही ज़्यादती करने वाले हैं। और जो अपनी अमानतों और अपने अहद (वचन) का ख़्याल रखने वाले हैं। और जो अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं। यही लोग वारिस होने वाले हैं जो फ़िरदौस की विरासत पाएंगे। वे उसमें हमेशा रहेंगे। (1-11)
और हमने इंसान को मिट्टी के ख़ुलासा (सत) से पैदा किया | फिर हमने पानी की एक बूंद की शक्ल में उसे एक महफ़ूज़ ठिकाने में रखा। फिर हमने पानी की बूंद को एक जनीन (भ्रूण) की शक्ल दी। फिर जनीन को गोश्त का एक लौथड़ा बनाया। पस लौथड़े के अंदर हड़िडियां पैदा कीं। फिर हमने हड्डियों पर गोश्त चढ़ा दिया। फिर हमने उसे एक नई सूरत में बना खड़ा किया। पस बड़ा ही बाबरकत है अल्लाह, बेहतरीन पैदा करने वाला। फिर इसके बाद तुम्हें ज़रूर मरना है। फिर तुम क्रियामत के दिन उठाए जाओगे। (12-16)
और हमने तुम्हारे ऊपर सात रास्ते बनाए। और हम मख्लूक़ (सृष्टि) से बेख़बर नहीं हुए। और हमने आसमान से पानी बरसाया एक अंदाज़े के साथ। फिर हमने उसे ज़मीन में ठहरा दिया। और हम उसे वापस लेने पर क़ादिर हैं। फिर हमने उससे तुम्हारे लिए खजूर और अंगूर के बाग़ पैदा किए। तुम्हारे लिए उनमें बहुत से फल हैं। और तुम उनमें से खाते हो। और हमने वह दरख़्त पैदा किया जो तूरे सीना से निकलता है, वह तेल लिए हुए उगता है। और खाने वालों के लिए सालन भी। और तुम्हारे लिए मवेशियों में सबक़ है। हम तुम्हें उनके पेट की चीज़ से पिलाते हैं। और तुम्हारे लिए उनमें बहुत फ़ायदे हैं। और तुम उन्हें खाते हो। और तुम उन पर और कश्तियों पर सवारी करते हो। और हमने नूह को उसकी क़ौम की तरफ़ भेजा तो उसने कहा कि ऐ मेरी क़ौम, तुम अल्लाह की इबादत करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। क्या तुम डरते नहीं। तो उसकी क़ौम के सरदार जिन्होंने इंकार किया था उन्होंने कहा कि यह तो बस तुम्हारे जैसा एक आदमी है। वह चाहता है कि तुम्हारे ऊपर बरतरी हासिल करे। और अगर अल्लाह चाहता तो वह फ़रिश्ते भेजता। हमने यह बात अपने पिछले बड़ों में नहीं सुनी। यह तो बस एक शख्स है जिसे जुनून हो गया है। पस एक वक़्त तक इसका इंतिज़ार करो। (17-25)
नूह ने कहा कि ऐ मेरे रब तू मेरी मदद फ़रमा कि इन्होंने मुझे झुठला दिया। तो हमने उसे “वही” (प्रकाशना) की कि तुम कश्ती तैयार करो हमारी निगरानी में और हमारी हिदायत के मुताबिक़ | तो जब हमारा हुक्म आ जाए और ज़मीन से पानी उबल पड़े तो हर क़िस्म के जानवरों में से एक-एक जोड़ा लेकर उसमें सवार हो जाओ। और अपने घर वालों को भी, सिवा उनके जिनके बारे में पहले फ़ैसला हो चुका है। और जिन्होंने ज़ुल्म किया है उनके मामले में मुझसे बात न करना। बेशक उन्हें डूबना है। (26-27)
फिर जब तुम और तुम्हारे साथी कश्ती में बैठ जाएं तो कहो कि शुक्र है अल्लाह का जिसने हमें ज़ालिम लोगों से नजात दी और कहो कि ऐ मेरे रब तू मुझे उतार बरकत का उतारना और तू बेहतर उतारने वाला है। बेशक इसमें निशानियां हैं और बेशक हम बंदों को आज़माते हैं। (28-30)
फिर हमने उनके बाद दूसरा गिरोह पैदा किया। फिर उनमें एक रसूल उन्हीं में से भेजा, कि तुम अल्लाह की इबादत करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। क्या तुम डरते नहीं। और उसकी क़ौम के सरदारों ने जिन्होंने इंकार किया। और आख़िरत की मुलाक़ात को झुठलाया, और उन्हें हमने दुनिया की ज़िंदगी में आसूदगी (सम्पन्नता) दी थी, कहा यह तो तुम्हारे ही जैसा एक आदमी है। वही खाता है जो तुम खाते हो, और वही पीता है जो तुम पीते हो। और अगर तुमने अपने ही जैसे एक आदमी की बात मानी तो तुम बड़े घाटे में रहोगे। (31-34)
क्या यह शख्स तुमसे कहता है कि जब तुम मर जाओगे और मिट्टी और हड़िडियां हो जाओगे तो फिर तुम निकाले जाओगे। बहुत ही बईद और बहुत ही बईद (असंभव) है जो बात उनसे कही जा रही है। ज़िंदगी तो यही हमारी दुनिया की ज़िंदगी है। यहीं हम मरते हैं और जीते हैं। और हम दुबारा उठाए जाने वाले नहीं हैं। यह तो बस एक ऐसा शख्स है जिसने अल्लाह पर झूठ बांधा है। और हम उसे मानने वाले नहीं। (35-38)
रसूल ने कहा, ऐ मेरे रब, मेरी मदद फ़रमा कि उन्होंने मुझे झुठला दिया। फ़रमाया कि ये लोग जल्द ही पछताएंगे। पस उन्हें एक सख्त आवाज़ ने हक़ के मुताबिक़ पकड़ लिया। फिर हमने उन्हें ख़त व ख़ाशाक (कूड़ा-कचरा) कर दिया। पस दूर हो ज़ालिम क़ौम। (39-41)
फिर हमने उनके बाद दूसरी क़ौमें पैदा कीं। कोई क़ौम न अपने वादे से आगे जाती और न उससे पीछे रहती। फिर हमने लगातार अपने रसूल भेजे। जब भी किसी क्रौम के पास उसका रसूल आया तो उन्होंने उसे झुठलाया। तो हमने एक के बाद एक को लगा दिया। और हमने उन्हें कहानियां बना दिया। पस दूर हों वे लोग जो ईमान नहीं लाते। (42-44)
फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को भेजा अपनी निशानियों और खुली दलील के साथ फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास तो उन्होंने तकब्बुर (घमंड) किया और वे मग़रूर (अभिमानी) लोग थे। पस उन्होंने कहा क्या हम अपने जैसे दो आदमियों की बात मान लें हालांकि उनकी क़ौम के लोग हमारे ताबेअदार हैं। पस उन्होंने उन्हें झुठला दिया। फिर वे हलाक कर दिए गए। और हमने मूसा को किताब दी ताकि वे राह पाएं। (45-49)
और हमने मरयम के बेटे को और उसकी मां को एक निशानी बनाया और हमने उन्हें एक ऊंची ज़मीन पर ठिकाना दिया जो सुकून की जगह थी और वहां चशमा जारी था। (50)
ऐ पैग़म्बरो, सुथरी चीज़ें खाओ और नेक काम करो। मैं जानता हूं जो कुछ तुम करते हो। और यह तुम्हारा दीन एक ही दीन है। और मैं तुम्हारा रब हूं, तो तुम मुझसे डरो। (51-52)
फिर लोगों ने अपने दीन (धर्म) को आपस में टुकड़े-टुकड़े कर लिया। हर गिरोह के पास जो कुछ है उसी पर वह नाज़ां (गौरवांवित) है। पस उन्हें उनकी बेहोशी में कुछ दिन छोड़ दो। क्या वे समझते हैं कि हम उन्हें जो माल और औलाद दिए जा रहे हैं तो हम उन्हें फ़ायदा पहुंचाने में सरगर्म हैं। बल्कि वे बात को नहीं समझते। (53-56)
बेशक जो लोग अपने रब की हैबत से डरते हैं। और जो लोग अपने रब की आयतों पर यक्रीन रखते हैं। और जो लोग अपने रब के साथ किसी को शरीक नहीं करते | और जो लोग देते हैं जो कुछ देते हैं और उनके दिल कांपते हैं कि वे अपने रब की तरफ़ लौटने वाले हैं। ये लोग भलाइयों की राह में सबक़त (अग्रसरता) कर रहे हैं और वे उन पर पहुंचने वाले हैं सबसे आगे। और हम किसी पर उसकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डालते। और हमारे पास एक किताब हे जो बिल्कुल ठीक बोलती है, और उन पर ज़ुल्म न होगा। बल्कि उनके दिल इसकी तरफ़ से
ग़फ़लत में हैं। और उनके कुछ काम इसके अलावा हैं वे उन्हें करते रहेंगे। यहां तक कि जब हम उनके खुशहाल लोगों को अज़ाब में पकड़ेंगे तो वे फ़रयाद करने लगेंगे। अब फ़रयाद न करो। अब हमारी तरफ़ से तुम्हारी कोई मदद न होगी। तुम्हें मेरी आयतें सुनाई जाती थीं तो तुम पीठ पीछे भागते थे, उससे तकब्बुर (घमंड) करके। गोया किसी क़रिस्सा कहने वाले को छोड़ रहे हो। (57-67)
फिर क्या उन्होंने इस कलाम पर ग़ौर नहीं किया। या उनके पास ऐसी चीज़ आई है जो उनके अगले बाप दादा के पास नहीं आई। या उन्होंने अपने रसूल को पहचाना नहीं | इस वजह से वे उसे नहीं मानते | या वे कहते हैं कि उसे जुनून है। बल्कि वह उनके पास हक़ सत्य लेकर आया है। और उनमें से अक्सर को हक़ बात बुरी लगती है। और अगर हक़ उनकी ख़्वाहिशों के ताबेअ (अधीन) होता तो आसमान और ज़मीन और जो उनमें हैं सब तबाह हो जाते। बल्कि हमने उनके पास उनकी नसीहत भेजी है तो वे अपनी नसीहत से एराज़ (उपेक्षा) कर रहे हैं। (68-71)
क्या तुम उनसे कोई माल मांग रहे हो तो तुम्हारे रब का माल तुम्हारे लिए बेहतर है। और वह बेहतरीन रोज़ी देने वाला है। और यक़ीनन तुम उन्हें एक सीधे रास्ते की तरफ़ बुलाते हो। और जो लोग आख़िरत पर यकीन नहीं रखते वे रास्ते से हट गए हैं। (72-74)
और अगर हम उन पर रहम करें और उन पर जो तकलीफ़ है वह दूर कर दें तब भी वे अपनी सरकशी में लगे रहेंगे बहके हुए। और हमने उन्हें अज़ाब में पकड़ा | लेकिन न वे अपने रब के आगे झुके और न उन्होंने आजिज़ी की। यहां तक कि जब हम उन पर सख्त अज़ाब का दरवाज़ा खोल देंगे तो उस वक़्त वे हैरतज़दा रह जाएंगे। (75-77)
और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आंखें और दिल बनाए। तुम बहुत कम शुक्र अदा करते हो। और वही है जिसने तुम्हें ज़मीन में फैलाया। और तुम उसी की तरफ़ जमा किए जाओगे। और वही है जो जिलाता है और मारता है और उसी के इख़्तियार में है रात और दिन का बदलना। तो क्या तुम समझते नहीं। (78-80)
बल्कि उन्होंने वही बात कही जो अगलों ने कही थी। उन्होंने कहा कि क्या जब हम मर जाएंगे और हम मिट्टी और हड़्डियां हो जाएंगे तो क्या हम दुबारा उठाए जाएंगे। इसका वादा हमें और इससे पहले हमारे बाप दादा को भी दिया गया। ये महज़ अगलों के अफ़साने हैं। (81-83)
कहो कि ज़मीन और जो कोई इसमें है यह किसका है, अगर तुम जानते हो। वे कहेंगे कि अल्लाह का है। कहो कि फिर तुम सोचते नहीं। कहो कि कौन मालिक है सात आसमानों का और कौन मालिक है आर्शे अज़ीम का। वे कहेंगे कि सब अल्लाह का है। कहो, फिर क्या तुम डरते नहीं। कहो कि कौन है जिसके हाथ में हर चीज़ का इख्तियार है और वह पनाह देता है और उसके मुक़ाबले में कोई पनाह नहीं दे सकता, अगर तुम जानते हो। वे कहेंगे कि यह अल्लाह के लिए है। कहो कि फिर कहां से तुम मस्हूर (जादूग्रस्त) किए जाते हो। (84-89)
बल्कि हम उनके पास हक़ लाए हैं और बेशक वे झूठे हैं। अल्लाह ने कोई बेटा नहीं बनाया और उसके साथ कोई और माबूद (पूज्य) नहीं। ऐसा होता तो हर माबूद अपनी मख्लूक़ को लेकर अलग हो जाता। और एक दूसरे पर चढ़ाई करता। अल्लाह पाक है उससे जो वे बयान करते हैं। वह खुले और छुपे का जानने वाला है। वह बहुत ऊपर है उससे जिसे ये शरीक बताते हैं। (90-92)
कहो कि ऐ मेरे रब, अगर तू मुझे वह दिखा दे जिसका उनसे वादा किया जा रहा है। तो ऐ मेरे रब मुझे ज़ालिम लोगों में शामिल न कर | और बेशक हम क़ादिर हैं कि हम उनसे जो वादा कर रहे हैं वह तुम्हें दिखा दें। (93-95)
तुम बुराई को उस तरीक़े से दूर करो जो बेहतर हो। हम ख़ूब जानते हैं जो ये लोग कहते हैं। और कहो कि ऐ मेरे रब मैं पनाह मांगता हूं शैतानों के वसवसों से। और ऐ मेरे रब मैं तुझसे पनाह मांगता हूं कि वे मेरे पास आएं। (96-98)
यहां तक कि जब उनमें से किसी पर मौत आती है तो वह कहता है कि ऐ मेरे रब, मुझे वापस भेज दे | ताकि जिसे मैं छोड़ आया हूं उसमें कुछ नेकी कमाऊं। हरगिज़ नहीं,यह एक बात है कि वही वह कहता है। और उनके आगे एक पर्दा है उस दिन तक के लिए जबकि वे उठाए जाएंगे। फिर जब सूर फूंका जाएगा तो फिर उनके दर्मियान न कोई रिश्ता रहेगा और न कोई किसी को पूछेगा। पस जिनके पल्ले भारी होंगे वही लोग कामयाब होंगे। और जिनके पल्ले हल्के होंगे तो यही लोग हैं जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला, वे जहन्नम में हमेशा रहेंगे। उनके चेहरों को आग झुलस देगी और वे उसमें बदशक्ल हो रहे होंगे। (99-104)
क्या तुम्हें मेरी आयतें पढ़कर नहीं सुनाई जाती थीं तो तुम उन्हें झुठलाते थे। वे कहेंगे कि ऐ हमारे रब हमारी बदबख्ती ने हमें घेर लिया था और हम गुमराह लोग थे। ऐ हमारे रब हमें इससे निकाल ले, फिर अगर हम दुबारा ऐसा करें तो बेशक हम ज़ालिम हैं। ख़ुदा कहेगा कि दूर हो, इसी में पड़े रहो और मुझसे बात न करो। (105-108)
मेरे बंदों में एक गिरोह था जो कहता था कि ऐ हमारे रब हम ईमान लाए, पस तू हमें बख़्श दे और हम पर रहम फ़रमा और तू बेहतरीन रहम फ़रमाने वाला है। पस तुमने उन्हें मज़ाक़ बना लिया। यहां तक कि उनके पीछे तुमने हमारी याद भुला दी और तुम उन पर हंसते रहे। मैंने उन्हें आज उनके सब्र का बदला दिया कि वही हैं कामयाब होने वाले। (109-111)
इर्शाद होगा कि वर्षों के शुमार से तुम कितनी देर ज़मीन में रहे | वे कहेंगे हम एक दिन रहे या एक दिन से भी कम। तो गिनती वालों से पूछ लीजिए। इर्शाद होगा कि तुम थोड़ी ही मुद्दत रहे। काश तुम जानते होते। (112-114)
पस क्या तुम यह ख़्याल करते हो कि हमने तुम्हें बेमक़्सद पैदा किया है और तुम हमारे पास नहीं लाए जाओगे। पस बहुत बरतर (उच्च) है अल्लाह, बादशाह हक़ीक़ी, उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। वह मालिक है अर्शे अज़ीम का। और जो शख्स अल्लाह के साथ किसी और माबूद को पुकारे, जिसके हक़ में उसके पास कोई दलील नहीं। तो उसका हिसाब उसके रब के पास है बेशक मुंकिरों को फ़लाह न होगी। और कहो कि ऐ मेरे रब, मुझे बख्श दे और मुझ पर रहम फ़रमा, तू बेहतरीन रहम फ़रमाने वाला है। (115-118)