धर्म

सूरह नहल हिंदी में – अन-नह्ल (सूरह 16)

सूरह नहल (अन-नह्ल) कुरान शरीफ का सोलहवाँ सूरह है। यह सूरह मक्की है। सूरह नहल में कुल 128 आयतें और 16 रुकुस हैं। कुरान के कई सूरहों का नाम सृष्टि के आधार पर रखा गया है, जैसे अन-नजम हुआ तारा, अश-शम्स मतलब सूरज, अल-फिल कहते हैं हाथी को, अल-अंकबित हुई मकड़ी, और अन-नहल मतलब मधुमक्खी। सूरह नहल की कई आयतों में इसका ज़िक्र किया गया है कि कैसे अल्लाह ने इस छोटे से जीव को पहाड़ों और पेड़ों पर घर बनाने को बढ़ावा दिया है। अगर कोई नेक इरादे और अल्लाह पर पूरा ऐतबार रखकर सूरह नहल को कागज़ पर लिखकर उसे अपने पास रखता है, तो वह अपने सभी दुश्मनों को शिकस्त दे सकता है। यही नहीं अगर कोई नेक इरादे के साथ सूरह नहल की आयत 10 और 11 को लिख कर इन्हें पानी के कटोरे में पढ़ता है और फिर अपने खेतों और पेड़ों पर उस पानी को डालता है, तो उसके भंडारों में वृद्धि होती रहती है। यदि बच्चे को दूध पिलाने वाली नई माँ बच्चे के लिए अपने दूध से भरण-पोषण में वृद्धि करना चाहती है, तो उसे सूरह नहल की 66वीं आयत लिखनी चाहिए, उसे पानी से धोना चाहिए और फिर वह पानी पीना चाहिए। पढ़ें सूरह नहल हिंदी में-

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

आ गया अल्लाह का फ़ैसला, पस उसकी जल्दी न करो। वह पाक है और बरतर है उससे जिसे वे शरीक ठहराते हैं। वह फ़रिश्तों को अपने हुक्म की रूह के साथ उतारता है अपने बंदों में से जिस पर चाहता है कि लोगों को ख़बरदार कर दो कि मेरे सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं। पस तुम मुझसे डरो। उसने आसमानों और ज़मीन को हक़ के साथ पैदा किया है। वह बरतर है उस शिर्क से जो वे कर रहे हैं। उसने इंसान को एक बूंद से बनाया। फिर वह यकायक खुल्लम खुल्ला झगड़ने लगा और उसने चौपायों को बनाया उनमें तुम्हारे लिए पोशाक भी है और ख़ुराक भी और दूसरे फ़ायदे भी, और उनमें से खाते भी हो। और उनमें तुम्हारे लिए रौनक़ है, जबकि शाम के वक़्त उन्हें लाते हो और जब सुबह के वक़्त छोड़ते हो और वे तुम्हारे बोझ ऐसे मक़ामात तक पहुंचाते हैं जहां तुम सख्त महनत के बगैर नहीं पहुंच सकते थे। बेशक तुम्हारा रब बड़ा शफ़ीक़ (करुणामय) मेहरबान है। और उसने घोड़े और ख़च्चर और गधे पैदा किए ताकि तुम उन पर सवार हो और ज़ीनत (साज-सज्जा) के लिए भी और वह ऐसी चीज़ें पैदा करता है जो तुम नहीं जानते। (1-8)

और अल्लाह तक पहुंचती है सीधी राह। और कुछ रास्ते टेढ़े भी हैं और अगर अल्लाह चाहता तो तुम सबको हिदायत दे देता। वही है जिसने आसमान से पानी उतारा, तुम उसमें से पीते हो और उसी से दरख्त होते हैं जिनमें तुम चराते हो। वह उसी से तुम्हारे लिए खेती और ज़ैतून और खजूर और अंगूर और हर क़रिस्म के फल उगाता है। बेशक इसके अंदर निशानी है उन लोगों के लिए जो गौर करते हैं। और उसने तुम्हारे काम में लगा दिया रात को और दिन को और सूरज को और चांद को और सितारे भी उसके हुक्म से मुसख्ख़र (अधीनस्थ) हैं। बेशक इसमें निशानियां हैं अक़्लमंद लोगों के लिए। और ज़मीन में जो चीज़ें मुख्तलिफ़ क़िस्म की तुम्हारे लिए फैलाई, बेशक इसमें निशानी है उन लोगों के लिए जो सबक़ हासिल करें। (9-13)

और वही है जिसने समुद्र को तुम्हारे काम में लगा दिया ताकि तुम उसमें से ताज़ा गोश्त खाओ और उससे ज़ेवर निकालो जिसे तुम पहनते हो और तुम कश्तियों को देखते हो कि उसमें चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम उसका फ़ज़्ल (अनुग्रह) तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो। और उसने ज़मीन में पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम्हें लेकर डगमगाने न लगे और उसने नहरें और रास्ते बनाए ताकि तुम राह पाओ। और बहुत सी दूसरी अलामतें (चिह्न) भी हैं, और लोग तारों से भी रास्ता मालूम करते हैं। फिर क्‍या जो पैदा करता है वह बराबर है उसके जो कुछ पैदा नहीं कर सकता, क्‍या तुम सोचते नहीं। अगर तुम अल्लाह की नेमतों को गिनो तो तुम उन्हें गिन न सकोगे, बेशक अल्लाह बख़्शने वाला, मेहरबान है। और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम छुपाते हो और जो तुम ज़ाहिर करते हो। (14-19)

और जिन्हें लोग अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वे किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते और वे ख़ुद पैदा किए हुए हैं। वे मुर्दा हैं जिनमें जान नहीं और वे नहीं जानते कि वे कब उठाए जाएंगे। तुम्हारा माबूद एक ही माबूद (पूज्य) है मगर जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते उनके दिल मुंकिर हैं और वे तकब्बुर (घमंड) करते हैं अल्लाह यक्रीनन जानता है जो कुछ वे छुपाते हैं और जो कुछ वे ज़ाहिर करते हैं। बेशक वह तकब्बुर करने वालों को पसंद नहीं करता। और जब उनसे कहा जाए कि तुम्हारे रब ने कया चीज़ उतारी है तो कहते हैं कि अगले लोगों की कहानियां हैं, ताकि वे क्रियामत के दिन अपने बोझ भी पूरे उठाएं और उन लोगों के बोझ में से भी जिन्हें वे बगैर किसी इल्म के गुमराह कर रहे हैं। याद रखो बहुत बुरा है वह बोझ जिसे वे उठा रहे हैं। उनसे पहले वालों ने भी तदबीरें कीं। फिर अल्लाह उनकी इमारत पर बुनियादों से आ गया। पस छत ऊपर से उनके ऊपर गिर पड़ी और उन पर अज़ाब वहां से आ गया जहां से उन्हें गुमान भी न था। फिर क्रियामत के दिन अल्लाह उन्हें रुसवा करेगा और कहेगा कि वे मेरे शरीक कहां हैं जिनके लिए तुम झगड़ा किया करते थे। जिन्हें इल्म दिया गया था वे कहेंगे कि आज रुस्वाई और अज़ाब मुंकिरों पर है। (20-27)

जिन लोगों को फ़रिश्ते इस हाल में वफ़ात (मौत) देंगे कि वे अपनी जानों पर ज़ुल्म कर रहे होंगे तो उस वक़्त वे सिपर डाल देंगे कि हम तो कोई बुरा काम न करते थे, हां बेशक अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते थे। अब जहन्नम के दरवाज़ों में दाख़िल हो जाओ। उसमें हमेशा हमेशा रहो | पस कैसा बुरा ठिकाना है तकब्बुर (घमंड) करने वालों का। और जो तक़वा (ईश-परायणता) वाले हैं उनसे कहा गया कि तुम्हारे रब ने क्‍या चीज़ उतारी है तो उन्होंने कहा कि नेक बात। जिन लोगों ने भलाई की उनके लिए इस दुनिया में भी भलाई है और आख़िरत का घर बेहतर है और क्या ख़ूब घर है तक़वा वालों का। हमेशा रहने के बाग़ हैं जिनमें वे दाख़िल होंगे, उनके नीचे से नहरें जारी होंगी। उनके लिए वहां सब कुछ होगा जो वे चाहें, अल्लाह परहेज़गारों को ऐसा ही बदला देगा | जिनकी रूह फ़रिश्ते इस हालत में क़ब्ज़ करते हैं कि वे पाक हैं। फ़रिश्ते कहते हैं तुम पर सलामती हो, जन्नत में दाखिल हो जाओ अपने आमाल के बदले में। (28-32)

क्या ये लोग इसके मुंतज़िर हैं कि उनके पास फ़रिश्ते आएं या तुम्हारे रब का हुक्म आ जाए। ऐसा ही इनसे पहले वालों ने किया। और अल्लाह ने उन पर ज़ुल्म नहीं किया बल्कि वे ख़ुद ही अपने ऊपर ज़ुल्म कर रहे थे। फिर उन्हें उनके बुरे काम की सज़ाएं मिलीं। और जिस चीज़ का वे मज़ाक़ उड़ाते थे उसने उन्हें घेर लिया। और जिन लोगों ने शिर्क किया वे कहते हैं, अगर अल्लाह चाहता तो हम उसके सिवा किसी चीज़ की इबादत न करते, न हम और न हमारे बाप दादा, और न हम उसके बग़ैर किसी चीज़ को हराम ठहराते। ऐसा ही इनसे पहले वालों ने किया था, पस रसूलों के ज़िम्मे तो सिर्फ़ साफ़-साफ़ पहुंचा देना है। (33-35)

और हमने हर उम्मत में एक रसूल भेजा कि अल्लाह की इबादत करो और ताग़ूत (बढ़े हुए उपद्रवी) से बचो, पस उनमें से कुछ को अल्लाह ने हिदायत दी और किसी पर गुमराही साबित हुई। पस ज़मीन में चल फिरकर देखो कि झुठलाने वालों का अंजाम क्‍या हुआ। अगर तुम उसकी हिदायत के हरीस (लालसा रखने वाले) हो तो अल्लाह उसे हिदायत नहीं देता जिसे वह गुमराह कर देता है और उनका कोई मददगार नहीं। और ये लोग अल्लाह की क़समें खाते हैं, सख्त क़समें कि जो शख्स मर जाएगा अल्लाह उसे नहीं उठाएगा। हां, यह उसके ऊपर एक पक्का वादा है, लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते। ताकि उनके सामने उस चीज़ को खोल दे जिसमें वे इख़्तेलाफ़ (मतभेद) कर रहे हैं और इंकार करने वाले लोग जान लें कि वे झूठे थे। जब हम किसी चीज़ का इरादा करते हैं तो इतना ही हमारा कहना होता है कि हम उसे कहते हैं हो जा तो वह हो जाती है। (36-40)

और जिन लोगों ने अल्लाह के लिए अपना वतन छोड़ा, बाद इसके कि उन पर ज़ुल्म किया गया, हम उन्हें दुनिया में ज़रूर अच्छा ठिकाना देंगे और आख़िरत का सवाब तो बहुत बड़ा है, काश वे जानते। वे ऐसे हैं जो सब्र करते हैं और अपने रब पर भरोसा रखते हैं। और हमने तुमसे पहले भी आदमियों ही को रसूल बनाकर भेजा, जिनकी तरफ़ हम “वही” (प्रकाशना) करते थे, पस अहले इल्म से पूछ लो अगर तुम नहीं जानते। हमने भेजा था उन्हें दलाइल (स्पष्ट प्रमाणों) और किताबों के साथ। और हमने तुम पर भी याददिहानी (अनुस्मृति) उतारी ताकि तुम लोगों पर उस चीज़ को वाज़ेह कर दो जो उनकी तरफ़ उतारी गई है और ताकि वे ग़ौर करें। क्‍या वे लोग जो बुरी तदबीरें कर रहे हैं वे इस बात से बेफ़िक्र हैं कि अल्लाह उन्हें ज़मीन में धंसा दे या उन पर अज़ाब वहां से आ जाए जहां से उन्हें गुमान भी न हो या उन्हें चलते फिरते पकड़ ले तो वे लोग ख़ुदा को आजिज़ नहीं कर सकते या उन्हें अंदेशे की हालत में पकड़ ले। पस तुम्हारा रब शफ़ीक़ (करुणामय) और मेहरबान है। (41-47)

क्या नहीं देखते कि अल्लाह ने जो चीज़ भी पैदा की है उसके साये दाईं तरफ़ और बाईं तरफ़ झुक जाते हैं, अल्लाह को सज्दा करते हुए, और वे सब आजिज़ (नम्न) हैं। और अल्लाह ही को सज्दा करती हैं जितनी चीज़ें चलने वाली आसमानों और ज़मीन में हैं। और फ़रिश्ते भी और वे तकब्बुर (घमंड) नहीं करते। वे अपने ऊपर अपने रब से डरते हैं और वही करते हैं जिसका उन्हें हुक्म मिलता है। और अल्लाह ने फ़रमाया कि दो माबूद (पूज्य) मत बनाओ। वह एक ही माबूद है तो मुझ ही से डरों और उसी का है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है। और उसी की इताअत (आज्ञापालन) है हमेशा। तो कया तुम अल्लाह के सिवा औरों से डरते हो। (48-52)

और तुम्हारे पास जो नेमत भी है वह अल्लाह ही की तरफ़ से है। फिर जब तुम्हें तकलीफ़ पहुंचती है तो उससे फ़रयाद करते हो | फिर जब वह तुमसे तकलीफ़ दूर कर देता है तो तुम में से एक गिरोह अपने रब का शरीक ठहराने लगता है ताकि मुंकिर हो जाएं उस चीज़ से जो हमने उन्हें दी है। पस चन्द रोज़ फ़ायदे उठा लो। जल्द ही तुम जान लोगे। और ये लोग हमारी दी हुई चीज़ों में से उनका हिस्सा लगाते हैं जिनके मुतअल्लिक़ उन्हें कुछ इल्म नहीं | खुदा की क़सम, जो झूठ तुम गढ़ रहे हो उसकी तुमसे ज़रूर बाज़पुर्स (पूछगछ) होगी। और वे अल्लाह के लिए बेटियां ठहराते हैं, वह इससे पाक है, और अपने लिए वह जो दिल चाहता है। और जब उनमें से किसी को बेटी की ख़ुशख़बरी दी जाए तो उसका चेहरा स्याह पड़ जाता है और वह जी में घुटता रहता है। जिस चीज़ की उसे ख़ुशख़बरी दी गई है उसके आर (लाज) से लोगों से छुपा फिरता है। उसे ज़िल्लत के साथ रख छोड़े या उसे मिट्टी में गाड़ दे। क्या ही बुरा फ़ैसला है जो वे करते हैं। बुरी मिसाल है उन लोगों के लिए जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते। और अल्लाह के लिए आला मिसालें हैं। वह ग़ालिब (प्रभुत्शशाली) और हकीम (तत्वदर्शी) है।(53-60)

और अगर अल्लाह लोगों को उनके ज़ुल्म पर पकड़ता तो ज़मीन पर किसी जानदार को न छोड़ता। लेकिन वह एक मुक़र्रर वक़्त तक लोगों को मोहलत देता है। फिर जब उनका मुक़र्रर वक़्त आ जाएगा तो वे न एक घड़ी पीछे हट सकेंगे और न आगे बढ़ सकेंगे। और वे अल्लाह के लिए वह चीज़ ठहराते हैं जिसे अपने लिए नापसंद करते हैं और उनकी ज़बानें झूठ बयान करती हैं कि उनके लिए भलाई है। निश्चय ही उनके लिए दोज़ख़ है और वे ज़रूर उसमें पहुंचा दिए जाएंगे। ख़ुदा की क़सम हमने तुमसे पहले मुख्तलिफ़ क़ौमों की तरफ़ रसूल भेजे। फिर शैतान ने उनके काम उन्हें अच्छे करके दिखाए। पस वही आज उनका साथी है और उनके लिए एक दर्दनाक अज़ाब है। और हमने तुम पर किताब सिर्फ़ इसलिए उतारी है कि तुम उन्हें वह चीज़ खोल कर सुना दो जिसमें वे इख़्तेलाफ़ (मत-भिन्‍नता) कर रहे हैं और वह हिदायत और रहमत है उन लोगों के लिए जो ईमान लाएं। (61-64)

और अल्लाह ने आसमान से पानी उतारा। फिर उससे ज़मीन को उसके मुर्दा होने के बाद ज़िंदा कर दिया। बेशक इसमें निशानी है उन लोगों के लिए जो सुनते हैं। और बेशक तुम्हारे लिए चौपायों में सबक़ है। हम उनके पेटों के अंदर के गोबर और ख़ून के दर्मियान से तुम्हें ख़ालिस दूध पिलाते है, ख़ुशगवार पीने वालों के लिए और खजूर और अंगूर के फलों से भी। तुम उनसे नशे की चीज़ें भी बनाते हो और खाने की अच्छी चीज़ें भी। बेशक इसमें निशानी है उन लोगों के लिए जो अक़्ल रखते हैं। और तुम्हारे रब ने शहद की मक्खी पर “वही! (प्रकाशना) किया कि पहाड़ों और दरख़्तों और जहां टंट्टियां बांधते हैं उनमें घर बना। फिर हर क़रिस्म के फलों का रस चूस और अपने रब की हमवार की हुई राहों पर चल। उसके पेट से पीने की चीज़ निकलती है, इसके रंग मुख्तलिफ़ हैं, इसमें लोगों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) है। बेशक इसमें निशानी है उन लोगों के लिए जो गौर करते हैं। (65-69)

और अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया, फिर वही तुम्हें वफ़ात (मौत) देता है। और तुम में से कुछ वे हैं जो नाकारा उम्र तक पहुंचाए जाते हैं कि जानने के बाद वे कुछ न जानें। बेशक अल्लाह इल्म वाला है, कुदरत वाला है। और अल्लाह ने तुम में से कुछ को कुछ पर रोज़ी में बड़ाई दी है। पस जिन्हें बड़ाई दी गई है वे अपनी रोज़ी अपने ग़ुलामों को नहीं दे देते कि वे इसमें बराबर हो जाएं। फिर क्‍या वे अल्लाह की नेमत का इंकार करते हैं। (70-71)

और अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम ही में से बीवियां बनाईं और तुम्हारी बीवियों से तुम्हारे लिए बेटे और पोते पैदा किए और तुम्हें सुथरी चीज़ें खाने के लिए दीं। फिर क्‍या ये बातिल (असत्य) पर ईमान लाते हैं और अल्लाह की नेमत का इंकार करते हैं। और वे अल्लाह के सिवा उन चीज़ों की इबादत करते हैं जो न उनके लिए आसमान से किसी रोज़ी पर इख़्तियार रखती हैं और न ज़मीन से, और न वे क़ुदरत रखती हैं। पस तुम अल्लाह के लिए मिसालें न बयान करो | बेशक अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते। और अल्लाह मिसाल बयान करता है एक गुलाम ममलूक की जो किसी चीज़ पर इख़्तियार नहीं रखता, और एक शख्स है जिसे हमने अपने पास से अच्छा रिज़्क़ दिया है, वह उसमें से पोशीदा और एलानिया ख़र्च करता है। कया ये यकसां (समान) होंगे। सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है, लेकिन उनमें अक्सर लोग नहीं जानते। (72-75)

और अल्लाह एक और मिसाल बयान करता है कि दो शख्स हैं जिनमें से एक गूंगा है, कोई काम नहीं कर सकता और वह अपने मालिक पर एक बोझ है। वह उसे जहां भेजता है वह कोई काम दुरुस्त करके नहीं लाता। क्या वह और ऐसा शख्स बराबर हो सकते हैं जो इंसाफ़ की तालीम देता है और वह एक सीधी राह पर है। और आसमानों और ज़मीन की पोशीदा (छुपी) बातें अल्लाह ही के लिए हैं और क्रियामत का मामला बस ऐसा होगा जैसे आंख झपकना बल्कि इससे भी जल्द | बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। और अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी मांओं के पेट से निकाला, तुम किसी चीज़ को न जानते थे। और उसने तुम्हारे लिए कान और आंख और दिल बनाए ताकि तुम शुक्र करो। क्या लोगों ने परिंदों को नहीं देखा कि आसमान की फ़ज़ा में मुसख़्वर (अधीनस्थ) हो रहे हैं। उन्हें सिर्फ़ अल्लाह थामे हुए है। बेशक इसमें निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो ईमान लाएं। और अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारे घरों को सुकून का मक़ाम बनाया और तुम्हारे लिए जानवरों की खाल के घर बनाए जिन्हें तुम अपने कूच के दिन और क़याम के दिन हल्का पाते हो। और उनकी ऊन और उनके रूऐं और उनके बालों से घर का सामान और फ़ायदे की चीज़ें एक मुदृदत तक के लिए बनाईं। (76-80)

और अल्लाह ने तुम्हारे लिए अपनी पैदा की हुई चीज़ों की साये बनाए और तुम्हारे लिए पहाड़ों में छुपने की जगह बनाई और तुम्हारे लिए ऐसे लिबास बनाए जो तुम्हें गर्मी से बचाते हैं और ऐसे लिबास बनाए जो लड़ाई में तुम्हें बचाते हैं। इसी तरह अल्लाह तुम पर अपनी नेमतें पूरी करता है ताकि तुम फ़रमांबरदार बनो। (87)

पस अगर वे एराज़ (उपेक्षा) करें तो तुम्हारे ऊपर सिर्फ़ साफ़-साफ़ पहुंचा देने की ज़िम्मेदारी है। वे लोग ख़ुदा की नेमत को पहचानते हैं फिर वे उसके मुंकिर हो जाते हैं और उनमें अक्सर नाशुक्र हैं। (82-83) 

और जिस दिन हम हर उम्मत में एक गवाह उठाएंगे। फिर इंकार करने वालों को हिदायत न दी जाएगी। और न उनसे तौबा ली जाएगी। और जब ज़ालिम लोग अज़ाब को देखेंगे तो वह अज़ाब न उनसे हल्का किया जाएगा और न उन्हें मोहलत दी जाएगी। और जब मुश्रिक (बहुदेववादी) लोग अपने शरीकों को देखेंगे तो कहेंगे कि ऐ हमारे रब, यही हमारे वे शुर्का (ईश्वरत्व के साझीदार) हैं जिन्हें हम तुझे छोड़कर पुकारते थे। तब वे बात उनके ऊपर डाल देंगे कि तुम झूठे हो। और उस दिन वे अल्लाह के आगे झुक जाएंगे और उनकी इफ़्तिरा परदाज़ियां (गढ़े हुए झूठ) उनसे गुम हो जाएंगी। जिन्होंने इंकार किया और लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोका, हम उनके अज़ाब पर अज़ाब का इज़ाफ़ा करेंगे उस फ़साद की वजह से जो वे करते थे। और जिस दिन हम हर उम्मत में एक गवाह उन्हीं में से उन पर उठाएंगे और तुम्हें उन लोगों पर गवाह बना कर लाएंगे और हमने तुम पर किताब उतारी है हर चीज़ को खोल देने के लिए। वह हिदायत और रहमत और बशारत (शुभ सूचना) है फ़रमांबरदारों के लिए। बेशक अल्लाह हुक्म देता है अदूल (न्याय) का और एहसान (परोपकार) का और क़राबतदारों (नातेदारों) को देने का। और अल्लाह रोकता है बेहयाई के कामों और बुराई से और सरकशी से। अल्लाह तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम याददिहानी (अनुस्मरण) हासिल करो। (84-90)

और तुम अल्लाह के अहद (वचन) को पूरा करो जबकि तुम आपस में अहद कर लो। और क्रसमों को पक्का करने के बाद न तोड़ो। और तुम अल्लाह को ज़ामिन भी बना चुके हो। बेशक अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो। और तुम उस औरत की मानिंद न बनो जिसने अपना महनत से काता हुआ सूत टुकड़े-टुकड़े करके तोड़ दिया। तुम अपनी क़समों को आपस में फ़साद डालने का ज़रिया बनाते हो महज़ इस वजह से कि एक गिरोह दूसरे गिरोह से बढ़ जाए। अल्लाह इसके ज़रिए से तुम्हारी आज़माइश करता है और वह क्रियामत के दिन उस चीज़ को अच्छी तरह तुम पर ज़ाहिर कर देगा जिसमें तुम इख़्तेलाफ़ (मत-भिन्‍नता) कर रहे हो। और अगर अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही उम्मत बना देता लेकिन वह बेराह कर देता है जिसे चाहता है और हिदायत दे देता है जिसे चाहता है और ज़रूर तुमसे तुम्हारे आमाल की पूछ होगी। (91-93)

और तुम अपनी क़समों को आपस में फ़रेब का ज़रिया न बनाओ कि कोई क़दम जमने के बाद फिसल जाए और तुम इस बात की सज़ा चखो कि तुमने अल्लाह की राह से रोका और तुम्हारे लिए एक बड़ा अज़ाब है। और अल्लाह के अहद (वचन) को थोड़े फ़ायदे के लिए न बेचो। जो कुछ अल्लाह के पास है वह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानो। (94-95) 

जो कुछ तुम्हारे पास है वह ख़त्म हो जाएगा और जो कुछ अल्लाह के पास है वह बाक़ी रहने वाला है। और जो लोग सत्र करेंगे हम उनके अच्छे कामों का अज़् (प्रतिफल) उन्हें ज़रूर देंगे। जो शख़्स कोई नेक काम करेगा, चाहे वह मर्द हो या औरत, बशर्ते कि वह मोमिन हो तो हम उसे ज़िंदगी देंगे, एक अच्छी ज़िंदगी। और जो कुछ वे करते रहे उसका हम उन्हें बेहतरीन बदला देंगे। पस जब तुम क़ुरआन को पढ़ो तो शैतान मर्दूद से अल्लाह की पनाह मांगो। उसका ज़ोर उन लोगों पर नहीं चलता जो ईमान वाले हैं और अपने रब पर भरोसा रखते हैं। उसका ज़ोर सिर्फ़ उन लोगों पर चलता है जो उससे तअल्लुक़ रखते हैं, और जो अल्लाह के साथ शिर्क करते हैं। और जब हम एक आयत की जगह दूसरी आयत बदलते हैं, और अल्लाह ख़ूब जानता है जो कुछ वह उतारता है, तो वे कहते हैं कि तुम गढ़ लाए हो। बल्कि उनमें अक्सर लोग इल्म नहीं रखते। कहो कि इसे रूहुल क़ुद्स (पवित्र आत्मा) ने तुम्हारे रब की तरफ़ से हक़ के साथ उतारा है ताकि वह ईमान वालों को साबित क़दम रखे और वह हिदायत और ख़ुशख़बरी हो फ़रमांबरदारों के लिए। (96-102)

और हमें मालूम है कि ये लोग कहते हैं कि इसे तो एक आदमी सिखाता है। जिस शख्स की तरफ़ वे मंसूब करते हैं। उसकी ज़बान अजमी (गैर अरबी) है और यह कुरआन साफ़ अरबी ज़बान है। बेशक जो लोग अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते, अल्लाह उन्हें कभी राह नहीं दिखाएगा और उनके लिए दर्दनाक सज़ा है। झूठ तो वे लोग गढ़ते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते और यही लोग झूठे हैं। जो शख्स ईमान लाने के बाद अल्लाह से मुंकिर होगा, सिवा उसके जिस पर ज़बरदस्ती की गई हो बशर्ते कि उसका दिल ईमान पर जमा हुआ हो, लेकिन जो शख़्स दिल खोलकर मुंकिर हो जाए तो ऐसे लोगों पर अल्लाह का ग़ज़ब होगा और उन्हें बड़ी सज़ा होगी। यह इस वास्ते कि उन्होंने आख़िरत (परलोक) के मुक़ाबले में दुनिया की ज़िंदगी को पसंद किया और अल्लाह मुंकिरों को रास्ता नहीं दिखाता। ये वे लोग हैं कि अल्लाह ने उनके दिलों पर और उनके कानों पर और उनकी आंखों पर मुहर कर दी। और ये लोग बिल्कुल ग़ाफ़िल हैं। लाज़िमी बात है कि आख़िरत में ये लोग घाटे में रहेंगे। (103-109)

फिर तेरा रब उन लोगों के लिए जिन्होंने आज़माइश में डाले जाने के बाद हिजरत (स्थान-परिवर्तन) की, फिर जिहाद किया और क़ायम रहे तो इन बातों के बाद बेशक तेरा रब बख़्शने वाला, मेहरबान है। जिस दिन हर शख्स अपनी ही तरफ़दारी में बोलता हुआ आएगा। और हर शख्स को उसके किए का पूरा बदला मिलेगा और उन पर ज़ुल्म न किया जाएगा। और अल्लाह एक बस्ती वालों की मिसाल बयान करता है कि वे अम्न और इत्मीनान में थे। उन्हें उनका रिज़्क़ फ़राग़त के साथ हर तरफ़ से पहुंच रहा था। फिर उन्होंने ख़ुदा की नेमतों की नाशुक्री की तो अल्लाह ने उन्हें उनके आमाल के सबब से भूख और ख़ौफ़ का मज़ा चखाया। और उनके पास एक रसूल उन्हीं में से आया तो उसे उन्होंने झूठा बताया फिर उन्हें अज़ाब ने पकड़ लिया और वे ज़ालिम थे। सो जो चीज़ें अल्लाह ने तुम्हें हलाल और पाक दी हैं उनमें से खाओ और अल्लाह की नेमत का शुक्र करो। अगर तुम उसकी इबादत करते हो। उसने तो तुम पर सिर्फ़ मुर्दार को हराम किया है और ख़ून को और सुअर के गोश्त को और जिस पर गैर-अल्लाह का नाम लिया गया हो। फिर जो शख्स मजबूर हो जाए बशर्ते कि वह न तालिब हो और न हद से बढ़ने वाला, तो अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है। (110-115)

और अपनी ज़बानों के गढ़े हुए झूठ की बिना पर यह न कहो कि यह हलाल है, और यह हराम है कि तुम अल्लाह पर झूठी तोहमत लगाओ। जो लोग अल्लाह पर झूठी तोहमत लगाएंगे वे फ़लाह (कल्याण, सफलता) नहीं पाएंगे। वे थोड़ा सा फ़ायदा उठा लें, और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। और यहूदियों पर हमने वे चीज़ें हराम कर दी थीं जो हम इससे पहले तुम्हें बता चुके हैं कि हमने उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया बल्कि वे ख़ुद अपने ऊपर ज़ुल्म करते रहे। फिर तुम्हारा रब उन लोगों के लिए जिन्होंने जहालत से बुराई कर ली, इसके बाद तौबा की और अपनी इस्लाह की तो तुम्हारा रब इसके बाद बख्शने वाला मेहरबान है। बेशक इब्राहीम एक अलग उम्मत था, अल्लाह का फ़रमांबरदार, और उसकी तरफ़ यकसू (एकाग्रचित्त), और वह शिर्क (ख़ुदा के साझीदार बनाना) करने वालों में से न था। वह उसकी नेमतों का शुक्र करने वाला था। ख़ुदा ने उसे चुन लिया। और सीधे रास्ते की तरफ़ उसकी रहनुमाई की। और हमने उसे दुनिया में भी भलाई दी और आख़िरत में भी | वह अच्छे लोगों में से होगा। फिर हमने तुम्हारी तरफ़ “वही! (प्रकाशना) की कि इब्राहीम के तरीक़े की पैरवी करो जो यकसू था और वह शिर्क करने वालों में से न था। (116-123)

सब्त उन्हीं लोगों पर आयद किया गया था जिन्होंने उसमें इख़्तेलाफ़ (मतभेद) किया था। और बेशक तुम्हारा रब क्रियामत के दिन उनके दर्मियान फ़ैसला कर देगा जिस बात में वे इख्तेलाफ़ कर रहे थे। अपने रब के रास्ते की तरफ़ हिक्मत (तत्वदर्शिता) और अच्छी नसीहत के साथ बुलाओ और उनसे अच्छे तरीक़े से बहस करो। बेशक तुम्हारा रब ख़ूब जानता है कि कौन उसकी राह में भटका हुआ है और वह उन्हें भी खूब जानता है जो राह पर चलने वाले हैं। (124-125)

और अगर तुम बदला लो तो उतना ही बदला लो जितना तुम्हारे साथ किया गया है और अगर तुम सब्र करो तो वह सब्र करने वालों के लिए बहुत बेहतर है और सब्र करो और तुम्हारा सब्र ख़ुदा ही की तौफ़ीक़ से है और तुम उन पर ग़म न करो और जो कुछ तदबीरें वे कर रहे हैं उससे तंग दिल न हो। बेशक अल्लाह उन लोगों के साथ है जो परहेज़गार (ईश-परायणता) हैं और जो नेकी करने वाले हैं। (126-128)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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