धर्म

सूरह अन नम्ल हिंदी में – सूरह 27

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

ता० सीन०। ये आयतें हैं कुरआन की और एक वाज़ेह किताब की। रहनुमाई और ख़ुशख़बरी ईमान वालों के लिए। जो नमाज़ क्ायम करते हैं और ज़कात देते हैं और वे आख़िरत पर यक्ीन रखते हैं। जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते उनके कामों को हमने उनके लिए ख़ुशनुमा बना दिया है, पस वे भटक रहे हैं। ये लोग हैं जिनके लिए बुरी सज़ा है और वे आख़िरत में सख्त ख़सारे (घाटे) में होंगे। और बेशक क्रुरआन तुम्हें एक हकीम (तत्वदर्शी) और अलीम (ज्ञानवान) की तरफ़ से दिया जा रहा है। (1-6)

जब मूसा ने अपने घर वालों से कहा कि मैंने एक आग देखी है। मैं वहां से कोई ख़बर लाता हूं या आग का कोई अंगारा लाता हूं ताकि तुम तापो। फिर जब वह उसके पास पहुंचा तो आवाज़ दी गई कि मुबारक है वह जो आग में है और जो उसके पास है। और पाक है अल्लाह जो रब है सारे जहान का। (7-8)

ऐ मूसा यह मैं हूं अल्लाह, ज़बरदस्त हकीम (तत्वदर्शी)। और तुम अपना असा (डंडा) डाल दो। फिर जब उसने उसे इस तरह हरकत करते देखा जैसे वह सांप हो तो वह पीछे को मुड़ा और पलट कर न देखा। ऐ मूसा, डरो नहीं मेरे हुज़ूर पैग़म्बर डरा नहीं करते। मगर जिसने ज़्यादती की। फिर उसने बुराई के बाद उसे भलाई से बदल दिया। तो मैं बख़्शने वाला मेहरबान हूं। और तुम अपना हाथ अपने गिरेबान में डालो, वह किसी ऐब के बगैर सफ़ेद निकलेगा | यह दोनों मिलकर नौ निशानियों के साथ फ़िरऔन और उसकी क़ौम के पास जाओ। बेशक वे नाफ़रमान लोग हैं। पस जब उनके पास हमारी वाज़ेह निशानियां आईं, उन्होंने कहा यह खुला हुआ जादू है। और उन्होंने उनका इंकार किया हालांकि उनके दिलों ने उनका यकीन कर लिया था, ज़ुल्म और घमंड की वजह से। पस देखो कैसा बुरा अंजाम हुआ मुफ़्सिदों (उपद्रवियों) का। (9-14)

और हमने दाऊद और सुलैमान को इल्म अता किया। और उन दोनों ने कहा कि शुक्र है अल्लाह के लिए जिसने हमें अपने बहुत से ईमान वाले बंदों पर फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) अता फ़रमाई। और दाऊद का वारिस सुलैमान हुआ। और कहा कि ऐ लोगो, हमें परिंदों की बोली सिखाई गई है, और हमें हर क़िस्म की चीज़ दी गई | बेशक यह खुला हुआ फ़ज़्ल है। (15-16)

और सुलैमान के लिए उसका लश्कर जमा किया गया, जिन्‍न और इंसान और परिंदे, फिर उनकी जमाअतें बनाई जातीं, यहां तक कि जब वह चींटियों की वादी पर पहुंचे। एक चींटी ने कहा, ऐ चींटियो, अपने सुराख्ों में दाख़िल हो जाओ, कहीं सुलैमान और उसका लश्कर तुम्हें कुचल डालें और उन्हें ख़बर भी न हो। पस सुलैमान उसकी बात पर मुस्कराते हुए हंस पड़ा और कहा, ऐ मेरे रब मुझे तौफ़ीक़ दे कि मैं तेरी नेमत का शुक्र अदा करूं जो तूने मुझ पर और मेरे वालिदेन पर किया है और यह कि मैं नेक काम करूं जो तुझे पसंद हो और अपनी रहमत से तू मुझे अपने नेक बंदों में दाखिल कर। (17-19) 

और सुलैमान ने परिंदों का जायज़ा लिया तो कहा, कया बात है कि मैं हुद्हुद को नहीं देख रहा हूं। क्या वह कहीं ग़ायब हो गया है। मैं उसे सख्त सज़ा दूंगा। या उसे ज़िब्ह कर दूंगा, या वह मेरे सामने कोई साफ़ हुज्जत लाए। ज़्यादा देर नहीं गुज़री थी कि उसने आकर कहा, कि मैं एक चीज़ की ख़बर लाया हूं जिसकी आपको ख़बर न थी। और मैं सबा से एक यक़ीनी ख़बर लेकर आया हूं। मैंने पाया कि एक औरत उन पर बादशाही करती है और उसे सब चीज़ मिली है। और उसका एक बड़ा तख़्त है। मैंने उसे और उसकी क़ौम को पाया कि सूरज को सज्दा करते हैं अल्लाह के सिवा। और शैतान ने उनके आमाल उनके लिए ख़ुशनुमा बना दिए, फिर उन्हें रास्ते से रोक दिया, पस वे राह नहीं पाते, कि वे अल्लाह को सज्दा न करें जो आसमानों और ज़मीन की छुपी चीज़ को निकालता है और वह जानता है जो कुछ तुम छुपाते हो और जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो। अल्लाह, उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं, मालिक अर्शे अज़ीम (महान सिंहासन) का। (20-26)

सुलैमान ने कहा, हम देखेंगे कि तुमने सच कहा या तुम झूठों में से हो। मेरा यह ख़त लेकर जाओ। फिर इसे उन लोगों की तरफ़ डाल दो। फिर उनसे हट जाना। फिर देखना कि वे क्‍या रदृदेअमल (प्रतिक्रिया) ज़ाहिर करते हैं। मलिका सबा ने कहा कि ऐ दरबार वालो, मेरी तरफ़ एक बावक़अत (प्रतिष्ठित) ख़त डाला गया है। वह सुलैमान की तरफ़ से है। और वह है– शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है कि तुम मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो। और मुतीअ (आज्ञाकारी) होकर मेरे पास आ जाओ। मलिका ने कहा कि ऐ दरबारियो, मेरे मामले में मुझे राय दो। मैं किसी मामले का फ़ैसला नहीं करती जब तक तुम लोग मौजूद न हो। उन्होंने कहा, हम लोग ज़ोरआवर हैं। और सख्त लड़ाई वाले हैं। और फ़ैसला आपके इख़्तियार में है। पस आप देख लें कि आप क्या हुक्म देती हैं। मलिका ने कहा कि बादशाह लोग जब किसी बस्ती में दाखिल होते हैं तो उसे ख़राब कर देते हैं और उसके इज़्ज़त वालों को ज़लील कर देते हैं। और यही ये लोग करेंगे। और मैं उनकी तरफ़ एक हदिया (उपहार) भेजती हूं, फिर देखती हूं कि सफ़ीर (दूत) क्या जवाब लाते हैं। (27-35)

फिर जब सफ़ीर (दूत) सुलैमान के पास पहुंचा, उसने कहा क्‍या तुम लोग माल से मेरी मदद करना चाहते हो। पस अल्लाह ने जो कुछ मुझे दिया है वह उससे बेहतर है जो उसने तुम्हें दिया है। बल्कि तुम ही अपने तोहफ़े से ख़ुश हो। उनके पास वापस जाओ। हम उन पर ऐसे लश्कर लेकर आएंगे जिनका मुक़ाबला वे न कर सकेंगे और हम उन्हें वहां से बेइज़्जत करके निकाल देंगे। और वे ख़्वार सम्मानहीन होंगे। (36-37) 

सुलैमान ने कहा ऐ दरबार वालो, तुम में से कौन उसका तख्त (सिंहासन) मेरे पास लाता है इससे पहले की वे लोग मुतीअ (आज्ञाकारी) होकर मेरे पास आएं। जिन्‍नों में से एक देव ने कहा, मैं उसे आपके पास ले आऊंगा इससे पहले कि आप अपनी जगह से उठें, और मैं इस पर कुदरत रखने वाला, अमानतदार हूं। जिसके पास किताब का एक इल्म था उसने कहा, मैं आपके पलक झपकने से पहले उसे ला दूंगा। फिर जब उसने तख़्त को अपने पास रखा हुआ देखा तो उसने कहा, यह मेरे रब का फ़ज़्ल है। ताकि वह मुझे जांचे कि मैं शुक्र करता हूं या नाशुक्री। और जो शख्स शुक्र करे तो अपने ही लिए शुक्र करता है। और जो शख्स नाशुक्री करे तो मेरा रब बेनियाज़ (निस्पृष) है करम करने वाला है। (38-40)

सुलैमान ने कहा कि उसके तख़्त (सिंहासन) का रूप बदल दो, देखें वह समझ पाती है या उन लोगों में से हो जाती है जिन्हें समझ नहीं। पस जब वह आई तो कहा गया क्‍या तुम्हारा तख़्त ऐसा ही है। उसने कहा, गोया कि यह वही है। और हमें इससे पहले मालूम हो चुका था। और हम फ़रमांबरदारों में थे। और उसे रोक रखा था उन चीज़ों ने जिन्हें वह अल्लाह के सिवा पूजती थी। वह मुंकिर लोगों में से थी। उससे कहा गया कि महल में दाख़िल हो। पस जब उसने उसे देखा तो उसे ख्याल किया कि वह गहरा पानी है और अपनी दोनों पिंडलियां खोल दीं। सुलैमान ने कहा, यह तो एक महल है जो शीशों से बनाया गया है। उसने कहा कि ऐ मेरे रब, मैंने अपनी जान पर ज़ुल्म किया। और मैं सुलैमान के साथ होकर अल्लाह रब्बुल आलमीन पर ईमान लाई। (41-44)

और हमने समूद की तरफ़ उनके भाई सालेह को भेजा, कि अल्लाह की इबादत करो, फिर वे दो फ़रीक़ (पक्ष) बनकर आपस में झगड़ने लगे। उसने कहा कि ऐ मेरी क़ौम के लोगो, तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्‍यों जल्दी कर रहे हो। तुम अल्लाह से माफ़ी क्‍यों नहीं चाहते कि तुम पर रहम किया जाए। उन्होंने कहा, हम तो तुम्हें और तुम्हारे साथ वालों को मनहूस समझते हैं। उसने कहा कि तुम्हारी बुरी क्रिस्मत अल्लाह के पास है बल्कि तुम तो आज़माए जा रहे हो। (45-47)

और शहर में नौ शख्स थे जो ज़मीन में फ़साद करते थे और इस्लाह (सुधार) का काम न करते थे। उन्होंने कहा कि तुम लोग अल्लाह की क़सम खाओ कि हम उसे और उसके लोगों को चुपके से हलाक कर देंगे। फिर उसके वल्ली (संरक्षक) से कह देंगे कि हम उसके घर वालों की हलाकत के वक़्त मौजूद न थे। और बेशक हम सच्चे हैं। और उन्होंने एक तदबीर (युक्ति) की और हमने भी एक तदबीर की और उन्हें ख़बर भी न हुई। पस देखो कैसा हुआ उनकी तदबीर का अंजाम। हमने उन्हें और उनकी पूरी क़ौम को हलाक कर दिया। पस ये हैं उनके घर वीरान पड़े हुए उनके ज़ुल्म के सबब से। बेशक इसमें सबक़ है उन लोगों के लिए जो जानें। और हमने उन लोगों को बचा लिया जो ईमान लाए और जो डरते थे। (48-53) 

और लूत को जब उसने अपनी क़ौम से कहा, क्या तुम बेहयाई करते हो और तुम देखते हो। क्या तुम मर्दों के साथ शहवतरानी करते हो। औरतों को छोड़कर, बल्कि तुम लोग बेसमझ हो। फिर उसकी क़़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा, लूत के घर वालों को अपनी बस्ती से निकाल दो, ये लोग पाक साफ़ बनते हैं। फिर हमने उसे और उसके लोगों को नजात दी सिवा उसकी बीवी के, जिसका पीछे रह जाना हमने तै कर दिया था। और हमने उन पर बरसाया एक हौलनाक बरसाना | पस कैसा बुरा बरसाव था उन पर जिन्हें आगाह किया जा चुका था, कहो हम्द है अल्लाह के लिए और सलाम उसके उन बंदों पर जिन्हें उसने मुंतख़ब फ़रमाया। क्‍या अल्लाह बेहतर है या वे जिन्हें वे शरीक करते हैं। (54-59) 

भला वह कौन है जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया। और तुम्हारे लिए आसमान से पानी उतारा। फिर हमने उससे रौनक़ वाले बाग़ उगाए। तुम्हारे वश में न था कि तुम इन दरख्तों को उगा सकते। कया अल्लाह के साथ कोई और माबूद (पूज्य) है। बल्कि वे राह से इंहिराफ़ करने वाले लोग हैं। भला किसने ज़मीन का ठहरने के लायक़ बनाया और उसके दर्मियान नदियां जारी कीं। और उसके लिए उसने पहाड़ बनाए। और दो समुद्रों के दर्मियान पर्दा डाल दिया। क्‍या अल्लाह के साथ कोई और माबूद है। बल्कि उनके अक्सर लोग नहीं जानते। (60-61)

 कौन है जो बेबस की पुकार को सुनता है और उसके दुख को दूर कर देता है। और तुम्हें ज़मीन का जानशीन (उत्तराधिकारी) बनाता है। क्या अल्लाह के सिवा कोई और माबूद (पूज्य) है। तुम बहुत कम नसीहत पकड़ते हो। कौन है जो तुम्हें ख़ुश्की और समुद्र के अंधेरों में रास्ता दिखाता है। और कौन अपनी रहमत के आगे हवाओं को ख़ुशख़बरी बनाकर भेजता है। क्या अल्लाह के साथ कोई और माबूद है। अल्लाह बहुत बरतर है उससे जिन्हें वे शरीक ठहराते हैं। कौन है जो ख़ल्क़ (सृष्टि) की इक्तिदा करता है और फिर उसे दोहराता है। और कौन तुम्हें आसमानों और ज़मीन से रोज़ी देता है। क्या अल्लाह के साथ कोई और माबूद है। कहो कि अपनी दलील लाओ, अगर तुम सच्चे हो। (62-64) 

कहो कि अल्लाह के सिवा, आसमानों और ज़मीन में कोई गैब (अप्रकट) का इल्म नहीं रखता। और वे नहीं जानते वे कब उठाए जाएंगे। बल्कि आख़िरत के बारे में उनका इल्म उलझ गया है। बल्कि वे उसकी तरफ़ से शक में हैं। बल्कि वे उससे अंधे हैं। और इंकार करने वालों ने कहा, क्या जब हम मिट्टी हो जाएंगे और हमारे बाप दादा भी, तो कया हम ज़मीन से निकाले जाएंगे। इसका वादा हमें भी दिया गया और इससे पहले हमारे बाप दादा को भी। यह महज़ अगलों की कहानियां हैं। कहो कि ज़मीन में चलो फिरो, पस देखो कि मुजरिमों का अंजाम क्या हुआ। (65-69)

और उन पर ग़म न करो और दिल तंग न हो उन तदबीरों पर जो वे कर रहे हैं। और वे कहते हैं कि यह वादा कब है अगर तुम सच्चे हो। कहो कि जिस चीज़ की तुम जल्दी कर रहे हो शायद उसमें से कुछ तुम्हारे पास आ लगा हो। और बेशक तुम्हारा रब लोगों पर बड़े फ़ज़्ल वाला है। मगर उनमें से अक्सर शुक्र नहीं करते। और बेशक तुम्हारा रब खूब जानता है जो उनके सीने छुपाए हुए हैं और जो वे ज़ाहिर करते हैं। और आसमानों और ज़मीन की कोई पोशीदा चीज़ नहीं है जो एक वाज़ेह किताब में दर्ज न हो। (70-75)

बेशक यह कुरआन बनी इस्राईल पर बहुत सी चीज़ों को वाज़ेह कर रहा है जिनमें वे इख़्तेलाफ़ (मतभेद) रखते हैं। और वह हिदायत और रहमत है ईमान वालों के लिए। बेशक तुम्हारा रब अपने हुक्म के ज़रिए उनके दर्मियान फ़ैसला करेगा और वह ज़बरदस्त है, जानने वाला है। पस अल्लाह पर भरोसा करो। बेशक तुम सरीह हक़ (सुस्पष्ट सत्य) पर हो। तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते और न तुम बहरों को अपनी पुकार सुना सकते हो जबकि वे पीठ फेरकर चले जाएं। और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से बचाकर रास्ता दिखाने वाले हो। तुम तो सिर्फ़ उन्हें सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं, फिर फ़रमांबरदार बन जाते हैं। (76-81)

और जब उन पर बात आ पड़ेगी तो हम उनके लिए ज़मीन से एक दाब्बह (जानवर) निकालेंगे जो उनसे कलाम करेगा। कि लोग हमारी आयतों पर यक़रीन नहीं रखते थे। और जिस दिन हम हर उम्मत में से एक गिरोह उन लोगों का जमा करेंगे जो हमारी आयतों को झुठलाते थे, फिर उनकी जमाअतबंदी की जाएगी। यहां तक कि जब वे आ जाएंगे तो ख़ुदा कहेगा कि तुमने मेरी आयतों को झुठलाया हालांकि तुम्हारा इल्म उनका अहाता न कर सका, या बोलो कि तुम क्या करते थे। और उन पर बात पूरी हो जाएगी इस सबब से कि उन्होंने ज़ुल्म किया, पस वे कुछ न बोल सकेंगे। क्‍या उन्होंने नहीं देखा कि हमने रात बनाई ताकि लोग उसमें आराम करें। और दिन कि उसमें देखें। बेशक इसमें निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो यक्रीन करते हैं। (82-86)

और जिस दिन सूर फूंका जाएगा तो घबरा उठेंगे जो आसमानों में हैं और जो ज़मीन में हैं मगर वह जिसे अल्लाह चाहे। और सब चले आएंगे उसके आगे आजिज़ी से | और तुम पहाड़ों को देखकर गुमान करते हो कि वे जमे हुए हैं, और वे चलेंगे जैसे बादल चलें | यह अल्लाह की कारीगरी है जिसने हर चीज़ को मोहकम (सुदृढ़) किया है। बेशक वह जानता है जो तुम करते हो। जो शख्स भलाई लेकर आएगा तो उसके लिए इससे बेहतर है, और वे उस दिन घबराहट से महफ़ूज़ होंगे। और जो शख्स बुराई लेकर आया तो ऐसे लोग औंधे मुंह आग में डाल दिए जाएंगे। तुम वही बदला पा रहे हो जो तुम करते थे। (87-90) 

मुझे यही हुक्म दिया गया है कि मैं इस शहर (मक्का) के रब की इबादत करूं जिसने इसे मोहतरम (आदरणीय) ठहराया और हर चीज़ उसी की है। और मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं फ़रमांबरदारी करने वालों में से बनूं। और यह कि क्ुरआन को सुनाऊं। फिर जो शख्स राह पर आएगा तो वह अपने लिए राह पर आएगा और जो गुमराह हुआ तो कह दो कि मैं तो सिर्फ़ डराने वालों में से हूं। और कहो कि सब तारीफ़ अल्लाह के लिए है, वह तुम्हें अपनी निशानियां दिखाएगा तो तुम उन्हें पहचान लोगे और तुम्हारा रब उससे बेख़बर नहीं जो तुम करते हो। (91-93)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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