सूरह नूह हिंदी में – सूरह 71
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
हमने नूह को उसकी क़रौम की तरफ़ रसूल बनाकर भेजा कि अपनी क्रौम के लोगों को ख़बरदार कर दो इससे पहले कि उन पर एक दर्दनाक अज़ाब आ जाए। उसने कहा कि ऐ मेरी क़ौम के लोगो, मैं तुम्हारे लिए एक खुला हुआ डराने वाला हूं कि तुम अल्लाह की इबादत करो और उससे डरो और मेरी इताअत (आज्ञापालन) करो। अल्लाह तुम्हारे गुनाहों से दरगुज़र करेगा और तुम्हें एक मुअय्यन वक़्त तक बाक़ी रखेगा। बेशक जब अल्लाह का मुक़र्रर किया हुआ वक़्त आ जाता है तो फिर वह टाला नहीं जाता। काश कि तुम उसे जानते। (1-4)
नूह ने कहा कि ऐ मेरे रब, मैंने अपनी क़ौम को शब व रोज़ पुकारा। मगर मेरी पुकार ने उनकी दूरी ही में इज़ाफ़ा किया। और मैंने जब भी उन्हें बुलाया कि तू उन्हें माफ़ कर दे तो उन्होंने अपने कानों में उंगलियां डाल लीं और अपने ऊपर अपने कपड़े लपेट लिए और ज़िद पर अड़ गए और बड़ा घमंड किया। फिर मैंने उन्हें बरमला (खुलकर) पुकारा। फिर मैंने उन्हें खुली तब्लीग की और उन्हें चुपके से समझाया। मैंने कहा कि अपने रब से माफ़ी मांगो, बेशक वह बड़ा माफ़ करने वाला है। वह तुम पर आसमान से खूब बारिश बरसाएगा और तुम्हारे माल और औलाद में तरक़्क़ी देगा। और तुम्हारे लिए बाग़ पैदा करेगा। और तुम्हारे लिए नहरें जारी करेगा तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह के लिए अज़्मत (महानता) की उम्मीद नहीं रखते। हालांकि उसने तुम्हें तरह-तरह से बनाया। क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने किस तरह सात आसमान तह-ब-तह बनाए। और उनमें चांद को नूर और सूरज को चराग़ बनाया। और अल्लाह ने तुम्हें ज़मीन से ख़ास एहतिमाम से उगाया। फिर वह तुम्हें ज़मीन में वापस ले जाएगा। और फिर उससे तुम्हें बाहर ले जाएगा। और अल्लाह ने तुम्हारे लिए ज़मीन को हमवार (समतल) बनाया ताकि तुम उसके खुले रास्तों में चलो। (5-20)
नूह ने कहा कि ऐ मेरे रब, उन्होंने मेरा कहा न माना और ऐसे आदमियों की पैरवी की जिनके माल और औलाद ने उनके घाटे ही में इज़ाफ़ा किया। और उन्होंने बड़ी तदबीरें कीं। और उन्होंने कहा कि तुम अपने माबूदों (पूज्यों) को हरगिज़ न छोड़ना। और तुम हरगिज़ न छोड़ना वद को और सुवाअ को और यग़ूस को और यऊक़ और नस्र को। और उन्होंने बहुत लोगों को बहका दिया। और अब तू उन गुमराहों की गुमराही में ही इज़ाफ़ा कर। अपने गुनाहों के सबब से वे ग़र्क़ किए गए। फिर वे आग में दाख़िल कर दिए गए। पस उन्होंने अपने लिए अल्लाह से बचाने वाला कोई मददगार न पाया। (21-25)
और नूह ने कहा कि ऐ मेरे रब, तू इन मुंकिरों में से कोई ज़मीन पर बसने वाला न छोड़। अगर तूने इन्हें छोड़ दिया तो ये तेरे बंदों को गुमराह करेंगे और उनकी नस्ल से जो भी पैदा होगा बदकार और सख्त मुंकिर ही होगा। ऐ मेरे रब, मेरी मग्फ़िरत (माफ़ी) फ़रमा | और मेरे मां बाप की मग्फ़िरत फ़रमा | और जो मेरे घर में मोमिन होकर दाख़िल हो तू उसकी मण्फ़िरत फ़रमा। और सब मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को माफ़ फ़रमा दे और ज़ालिमों के लिए हलाकत (नाश) के सिवा किसी चीज़ में इज़ाफ़ा न कर। (26-28)