सूरह साद हिंदी में – सूरह 38
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
साद०। क़सम है नसीहत वाले कुरआन की। बल्कि जिन लोगों ने इंकार किया, वे घमंड और ज़िद में हैं। उनसे पहले हमने कितनी ही क़ौमें हलाक कर दीं, तो वे पुकारने लगे और वह वक़्त बचने का न था। (1-3)
और उन लोगों ने तअज्जुब किया कि उनके पास उनमें से एक डराने वाला आया। और इंकार करने वालों ने कहा कि यह जादूगर है, झूठा है। क्या उसने इतने माबूदों (पूज्यों) की जगह एक माबूद कर दिया, यह तो बड़ी अजीब बात है। और उनके सरदार उठ खड़े हुए कि चलो और अपने माबूदों पर जमे रहो, यह कोई मतलब की बात है। हमने यह बात पिछले मज़हब में नहीं सुनी, यह सिर्फ़ एक बनाई बात है। कया हम सब में से इसी शख्स पर कलामे इलाही नाज़िल किया गया। बल्कि ये लोग मेरी याददिहानी की तरफ़ से शक में हैं। बल्कि उन्होंने अब तक मेरे अज़ाब का मज़ा नहीं चखा। (4-8)
क्या तेरे रब की रहमत के ख़ज़ाने उनके पास हैं जो ज़बरदस्त है, फ़य्याज़ (दाता) है। क्या आसमानों और ज़मीन और इनके दर्मियान की चीज़ों की बादशाही उनके इख़्तियार में है। फिर वे सीढ़ियां लगाकर चढ़ जाएं। एक लश्कर यह भी यहां तबाह होगा सब लक्करों में से। इनसे पहले क़ौमे नूह और आद और मेखों (कीलों) वाला फ़िर२औन | और समूद और क़ौमे लूत और ऐका वालों ने झुठलाया। ये लोग बड़ी-बड़ी जमाअतें थे। उन सब ने रसूलों को झुठलाया तो मेरा अज़ाब नाज़िल होकर रहा। और ये लोग सिर्फ़ एक चिंघाड़ के मुंतज़िर हैं, जिसके बाद कोई ढील नहीं। और उन्होंने कहा कि ऐ हमारे रब, हमारा हिस्सा हमें हिसाब के दिन से पहले दे दे। (9-16)
जो कुछ वे कहते हैं उस पर सब्र करो, और हमारे बंदे दाऊद को याद करो जो क्रुव्वत वाला, रुजूअ करने वाला था। हमने पहाड़ों को उसके साथ मुसख़्वर (वशीभूत) कर दिया कि वे उसके साथ सुबह व शाम तस्बीह करते थे, और परिंदों को भी जमा होकर। सब अल्लाह की तरफ़ रुजूअ करने वाले थे। और हमने उसकी सल्तनत मज़बूत की, और उसे हिक्मत अता की | और मामलात का फ़ैसला करने की सलाहियत दी। और क्या तुम्हें ख़बर पहुंची है मुक़दमा वालों की जबकि वे दीवार फांदकर इबादतख़ाने में दाखिल हो गए। जब वे दाऊद के पास पहुंचे तो वह उनसे घबरा गया, उन्होंने कहा कि आप डरें नहीं, हम दो फ़रीक़े मामला (विवाद के पक्ष) हैं, एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है तो आप हमारे दर्मियान हक़ के साथ फ़ैसला कीजिए, बेइंसाफ़ी न कीजिए और हमें राहेरास्त (सन्मार्ग) बताइए। (17-22)
यह मेरा भाई है, इसके पास निन्नानवे दुंबियां हैं और मेरे पास सिर्फ़ एक दुंबी है। तो वह कहता है कि वह भी मेरे हवाले कर दे। और उसने गुफ़्तुगू में मुझे दबा लिया। दाऊद ने कहा, उसने तुम्हारी दुंबी को अपनी दुंबियों में मिलाने का मुतालबा करके वाक़ई तुम पर ज़ुल्म किया है। और अक्सर शुरका (साझीदार) एक दूसरे पर ज़्यादती किया करते हैं। मगर वे जो ईमान रखते हैं और नेक अमल करते हैं, और ऐसे लोग बहुत कम हैं। और दाऊद को ख्याल आया कि हमने उसका इम्तेहान किया है, तो उसने अपने रब से माफ़ी मांगी और सज्दे में गिर गया। और रुजूअ हुआ। फिर हमने उसे वह माफ़ कर दिया। और बेशक हमारे यहां उसके लिए तक़र्रुब (सान्निध्य) है और अच्छा अंजाम। (23-25)
ऐ दाऊद हमने तुम्हें ज़मीन में ख़लीफ़ा (हाकिम) बनाया है तो लोगों के दर्मियान इंसाफ़ के साथ फ़ैसला करो और ख़्वाहिश की पैरवी न करो वह तुझे अल्लाह की राह से भटका देगी। जो लोग अल्लाह की राह से भटकते हैं उनके लिए सख्त अज़ाब है इस वजह से कि वे रोज़े हिसाब को भूले रहे। (26)
और हमने ज़मीन और आसमान और जो इनके दर्मियान है अबस व्यर्थ) नहीं पैदा किया, यह उन लोगों का गुमान है जिन्होंने इंकार किया, तो जिन लोगों ने इंकार किया उनके लिए बर्बादी है आग से। क्या हम उन लोगों को जो ईमान लाए और अच्छे काम किए उनकी मानिंद कर देंगे जो ज़मीन में फ़साद करने वाले हैं। या हम परहेज़गारों को बदकारों जैसा कर देंगे। यह एक बाबरकत किताब है जो हमने तुम्हारी तरफ़ उतारी है ताकि लोग इसकी आयतों पर ग़ौर करें और ताकि अक़्ल वाले इससे नसीहत हासिल करें। (27-29)
और हमने दाऊद को सुलैमान अता किया, बेहतरीन बंदा, अपने रब की तरफ़ बहुत रुजूअ करने वाला | जब शाम के वक़्त उसके सामने तेज़ रफ़्तार, उम्दा घोड़े पेश किए गए। तो उसने कहा, मैंने दोस्त रखा माल की मुहब्बत को अपने रब की याद से, यहां तक कि छुप गया ओट में। उन्हें मेरे पास वापस लाओ। फिर वह झाड़ने लगा पिंडलियां और गर्दनें। (30-33)
और हमने सुलैमान को आज़माया। और हमने उसके तख़्त पर एक धड़ डाल दिया, फिर उसने रुजूअ किया। उसने कहा कि ऐ मेरे रब, मुझे माफ़ कर दे और मुझे ऐसी सल्तनत दे जो मेरे बाद किसी के लिए सज़ावार (उपलब्ध) न हो। बेशक तू बड़ा देने वाला है। तो हमने हवा को उसके ताबेअ (अधीन) कर दिया। वह उसके हुक्म से नर्मी के साथ चलती थी जिधर वह चाहता। और जिन््नात को भी उसका ताबेअ कर दिया। हर तरह के कामगर और ग़ोताख़ोर। और दूसरे जो ज़ंजीरों में जकड़े हुए रहते। यह हमारा अतिया (देन) है तो चाहे उसे दो या रोको, बेहिसाब। और उसके लिए हमारे यहां क्रुर्ब (समीपता) है और बेहतर अंजाम। (34-40)
और हमारे बंदे अय्यूब को याद करो। जब उसने अपने रब को पुकारा कि शैतान ने मुझे तकलीफ़ और अज़ाब में डाल दिया है। अपना पांव मारो। यह ठंडा पानी है, नहाने के लिए और पीने के लिए। और हमने उसे उसका कुंबा अता किया और उनके साथ उनके बराबर और भी, अपनी तरफ़ से रहमत के तौर पर और अक़्ल वालों के लिए नसीहत के तौर पर। और अपने हाथ में सींकों का एक मुट्ठा लो और उससे मारो और क़सम न तोड़ो | बेशक हमने उसे साबिर (धैर्यवान) पाया, बेहतरीन बंदा, अपने रब की तरफ़ बहुत रुजूअ करने वाला। (41-44)
और हमारे बंदो, इब्राहीम और इस्हाक़ और याक़ूब को याद करो, वे हाथों वाले और आंखों वाले थे। हमने उन्हें एक ख़ास बात के साथ मख्सूस किया था कि वह आख़िरत (परलोक) की याददिहानी है। और वे हमारे यहां चुने हुए नेक लोगों में से हैं। और इस्माईल और अल यसअ और ज़ुलकिफ़्ल को याद करो, सब नेक लोगों में से थे। (45-48)
यह नसीहत है, और बेशक अल्लाह से डरने वालों के लिए अच्छा ठिकाना है, हमेशा के बाग़ जिनके दरवाज़े उनके लिए खुले होंगे। वे उनमें तकिया लगाए बैठे होंगे। और बहुत से मेवे और मशरूबात (पेय पदार्थ) तलब करते होंगे। और उनके पास शर्मीली हमसिन (समान अवस्था वाली) बीवियां होंगी। यह है वह चीज़ जिसका तुमसे रोज़े हिसाब आने पर वादा किया जाता है। यह हमारा रिज़्क़ है जो कभी ख़त्म होने वाला नहीं। (49-54)
यह बात हो चुकी, और सरकशों के लिए बुरा ठिकाना है। जहन्नम, उसमें वे दाख़िल होंगे। पस क्या ही बुरी जगह है। यह खौलता हुआ पानी और पीप है, तो ये लोग उन्हें चखें। और इस क़िस्म की दूसरी और भी चीज़ें होंगी। यह एक फ़ौज तुम्हारे पास घुसी चली आ रही है, उनके लिए कोई ख़ुशआमदीद (स्वागत) नहीं। वे आग में पड़ने वाले हैं। वे कहेंगे बल्कि तुम, तुम्हारे लिए कोई ख़ुशआमदीद नहीं। तुम्हीं तो यह हमारे आगे लाए हो, पस कैसा बुरा है यह ठिकाना। वे कहेंगे कि ऐ हमारे रब, जो शख्स इसे हमारे आगे लाया उसे तू दुगना अज़ाब दे, जहन्नम में। और वे कहेंगे, क्या बात है कि हम उन लोगों को यहां नहीं देख रहे हैं जिन्हें हम बुरे लोगों में शुमार करते थे। क्या हमने उन्हें मज़ाक़ बना लिया था या उनसे निगाहें चूक रही हैं। बेशक यह बात सच्ची है, अहले दोज़ख़ का आपस में झगड़ना | (55-64)
कहो कि मैं तो सिर्फ़ एक डराने वाला हूं। और कोई माबूद (पूज्य) नहीं मगर अल्लाह, यकता (एक) और ग़ालिब (वर्चस्वशील)। वह रब है आसमानों और ज़मीन का और उन चीज़ों को जो इनके दर्मियान हैं, वह ज़बरदस्त है, बख्शने वाला है। कहो कि यह एक बड़ी ख़बर है, जिससे तुम बेपरवाह हो रहे हो। मुझे आलमे बाला (आकाश लोक) की कुछ ख़बर नहीं थी जबकि वे आपस में तकरार कर रहे थे। मेरे पास तो “वही” (ईश्वरीय वाणी) बस इसलिए आती है कि मैं एक खुला डराने वाला हूं। (65-70)
जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं मिट्टी से एक बशर (इंसान) बनाने वाला हूं। फिर जब मैं उसे दुरुस्त कर लूं और उसमें अपनी रूह फूँक दूं तो तुम उसके आगे सज्दे मे गिर पड़ना। पस तमाम फ़रिश्तों ने सज्दा किया मगर इब्लीस (शैतान), कि उसने घमंड किया और वह इंकार करने वालों में से हो गया। फ़रमाया कि ऐ इब्लीस, किस चीज़ ने तुझे रोक दिया कि तू उसे सज्दा करे जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया। यह तूने तकब्बुर (घमंड) किया या तू बड़े दर्जे वालों में से है। उसने कहा कि मैं आदम से बेहतर हूं। तूने मुझे आग से पैदा किया है और उसे मिट्टी से। फ़रमाया कि तू यहां से निकल जा, क्योंकि तू मर्दूद (धुत्कारा हुआ) है। और तुझ पर मेरी लानत है जज़ा के दिन तक। (71-78)
इब्लीस ने कहा कि ऐ मेरे रब, मुझे मोहलत दे उस दिन तक के लिए जब लोग दुबारा उठाए जाएंगे। फ़रमाया कि तुझे मोहलत दी गई, मुअय्यन (निश्चित) वक़्त तक के लिए। उसने कहा कि तेरी इज़्ज़त की क़सम, मैं उन सबको गुमराह करके रहूंगा, सिवाए तेरे उन बंदों के जिन्हें तूने ख़ालिस कर लिया है। फ़रमाया, तो हक़ यह है और मैं हक़ ही कहता हूं कि मैं जहननम को तुझसे और उन तमाम लोगों से भर दूंगा जो उनमें से तेरी पैरवी करेंगे। (79-85)
कहो कि मैं इस पर तुमसे कोई अज़ (मेहनताना) नहीं मांगता और न मैं तकल्लुफ़ (बनावट) करने वालों में से हूं। यह तो बस एक नसीहत है दुनिया वालों के लिए। और तुम जल्द उसकी दी हुई ख़बर को जान लोगे। (86-88)